पैग़म्बरे इस्लाम सल्लललाहो अलैहि वआलेही वसल्लम जिस वक़्त इस दुनिया से जा रहे थे तो उस वक़्त आपने अपने उत्तराधिकारी और उसके बाद के उत्तराधिकारियों को ग़ैबत के ज़माने तक तय कर दिया था और उन उत्तराधिकारियों ने भी उम्मत के इमाम को तय कर दिया था। कुल मिलाकर उन्होंने इस उम्मत को उसके हाल पर कभी नहीं छोड़ा कि वह हैरान रहे। इसके लिए पहले से इमाम तय कर दिया, रहबर को निर्धारित कर दिया जबकि बारह इमामों का सिलसिला चलता रहा, वे इमाम और रहबर थे और उनके बाद फ़ोक़हा (वरिष्ठ धर्मगुरूओं) का सिलसिला शुरू हुआ। वे अपने वचन के पाबंद थे, इस्लाम की समझ रखते थे, धर्म से परिचित थे, आत्म संयमी थे, सांसारिक मोहमाया से दूर, दुनिया की तड़क भड़क से बेफ़िक्र और क़ौम के हमदर्द थे। उनको इस उम्मत की निगरानी के लिए नियुक्त किया जाता रहा, ये सब वरिष्ठ धर्मगुरू थे जिन्हें उम्मत का इमाम व रहबर क़रार दिया गया है। वही हैं जो इस दुनिया से तानाशाही का अंत कर देना और सभी को इस्लाम के परचम और क़ानून की हुकूमत के तहत लाना चाहते हैं।
इमाम ख़ुमैनी
09/11/1979