ईदे ग़दीर को बाक़ी रखने के संबंध में अस्ल बात यह है कि हमको सिखाया जाए कि पैरवी किस तरह से करनी है ... क्योंकि ग़दीर सिर्फ़ अपने ज़माने तक सीमित नहीं है, ग़दीर को हर दौर में व्यवहारिक होना चाहिए और जो अंदाज़ हज़रत अमीरुल मोमेनीन ने उस हुकूमत में अख़्तियार किया है, क़ौमों और शासकों का वही तरीक़ा होना चाहिए। ग़दीर का विषय हुकूमत बनाने के बारे में है। हुकूमत में नियुक्ति मुमकिन है, आध्यात्मिक दर्जों में नियुक्ति मुमकिन नहीं है, क्योंकि आध्यात्मिक दर्जे नियुक्ति से हासिल नहीं होते। उस अज़ीम हस्ती का जो आध्यात्मिक दर्जा था और उनकी शख़्सियत में जो परिपूर्णता थी, वह वजह बनी कि उन्हें हुकूमत के लिए नियुक्त करें और इसीलिए हम देखते हैं कि इसे रोज़े, नमाज़ और इन जैसी चीज़ों के समानांतर लाया गया है और विलायत इन्हें लागू करती है।

इमाम ख़ुमैनी

24 जूलाई 1986