इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने गुरूवार की सुबह सिपाहे पासदाराने इंक़ेलाब आईआरजीसी के कमांडरों की जनरल असेंबली की चौबीसवीं बैठक में शामिल अधिकारियों और इस फ़ोर्स के वरिष्ठ कमांडरों से मुलाक़ात की।
इस मुलाक़ात में उन्होंने आईआरजीसी के गठन, इसकी तरक़्क़ी, संकट से निपटने की इसकी सलाहियत तथा फ़ौज, अवाम, सेवा और निर्माण के मैदानों में इसके प्रदर्शन को बेमिसाल व फ़ख़्र के क़ाबिल बताया और दुश्मन की ओर से मुल्क में संकट पैदा करने, सुरक्षा को नुक़सान पहुंचाने और लोगों की ज़िन्दगी को बाधित करने की नीति जारी रखने की ओर इशारा करते हुए कहा कि क़ौमी एकता, अवाम की भागीदारी, अवाम में ख़ास तौर पर कमज़ोर वर्ग की मदद, अधिकारियों की दिन रात अथक मेहनत और इंक़ेलाब के मक़सद को व्यवहारिक बनाने के लिए काम, उम्मीद और शौक़ के जारी रहने की वजह से दुश्मन की शिकस्त और ईरानी क़ौम की फ़त्ह निश्चित है।
उन्होंने आईआरजीसी के प्रदर्शन को आकर्षक व बहुआयामी बताया और संकटों से कामयाबी के साथ निपटने को इस फ़ोर्स के काम का एक स्थायी पहलू बताया।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के वक़्त फ़्रांस के ग्वादलूप द्वीप में अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी के राष्ट्राध्यक्षों की कान्फ़्रेंस की ओर इशारा करते हुए कहा कि उन्होंने पिट्ठू हुकूमत के बचने को नामुमकिन बताया लेकिन लगातार संकट की रणनीति के ज़रिए उन्हें उम्मीद थी कि यह संकट ईरान में क़ायम होने वाली किसी भी नई हुकूमत को गिरा सकते हैं।
उन्होंने इंक़ेलाब के आग़ाज़ के दिनों में मुल्क के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में पैदा किए जाने वाले संकटों, हंगामों, अशांति और आतंकवादी गुटों की बड़े पैमानें पर गतिविधियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि ईरान में अमरीका के जासूसी के अड्डे (पूर्व अमरीकी दूतावास) से मिलने वाले दस्तावेज़ों से भी पता चलता है कि ये वाक़ये भी, ईरान में लगातार संकट पैदा करने की पश्चिम की उसी रणनीति के तहत हुए थे।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने आईआरजीसी को इन संकटों की नाकामी और संकट ग्रस्त प्रांतों के अवाम की मुक्ति का ज़रिया बताया और बल दिया कि दुश्मन चाहते थे कि लगातार संकट पैदा करके, इंक़ेलाब को नाकाम बना दें और फिर 28 मुर्दाद (19 अगस्त) की बग़ावत जैसे किसी भी क़दम से इंक़ेलाब का काम तमाम कर दें लेकिन आईआरजीसी ने 28 मुर्दाद की बग़ावत को दोहराए जाने से रोक दिया और ईरान को उस सही रास्ते से नहीं हटने दिया जो उसके लिए शुरू हुआ था और यही वजह है कि दुश्मन, आईआरजीसी से इतना ज़्यादा द्वेष रखते हैं।
उन्होंने आठ वर्षीय युद्ध के दौरान आईआरजीसी के प्रदर्शन को उज्जवल अध्याय बताया और कहा कि दिन ब दिन सलाहियतों का बढ़ना, आईआरजीसी के प्रदर्शन का दूसरा पहलू है जिससे ईरान के लिए सेक्युरिटी और डिटरेन्स पैदा हुआ।
सशस्त्र बलों के सुप्रीम कमांडर ने “सभी विकल्प मेज़ पर हैं” के जुमले के न दोहराए जाने को, आईआरजीसी की सलाहियतों और डिटरेन्स पावर का नतीजा बताया और कहा कि सभी जानते हैं कि अब यह जुमला कोई मानी नहीं रखता है।
उन्होंने कंस्ट्रक्शन और इन्फ़्रास्ट्रक्चर के मामलों में भी आईआरजीसी के प्रदर्शन को फ़ख़्र के क़ाबिल व बेमिसाल बताया और कहा कि आईआरजीसी पब्लिक सेवा, ग़रीबी दूर करने, क़ुदरती आपदाओं और कोरोना जैसी महामारी में भी पूरी ताक़त के साथ अवाम की सेवा में लगी रही।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने मुल्क के आम माहौल पर असरअंदाज़ होने और जवानों को आकर्षित करने को आईआरजीसी के प्रदर्शन का एक और पहलू गिनवाया और कहा कि जब नौजवान आईआरजीसी में इल्म व अमल, मक़सद पर नज़र, हक़ीक़त पर नज़र, हार्ड पावर और सॉफ़्ट पावर यानी पब्लिक से संपर्क को एक जगह देखता है तो इसे अपना आइडियल बनाता है और इसकी ओर आकर्षित होता है। उन्होंने कहा कि यह पवित्र रौज़ों की रक्षा और मुल्क की सुरक्षा की राह में जान क़ुर्बान करने वाले शहीदों, और अलहाज क़ासिम सुलैमानी, मोहसिन हुजजी और इब्राहीम हादी जैसे आईआरजीसी के अज़ीम सिपाहियों की इसी कोशिश का नतीजा हैं।
उन्होंने अपनी स्पीच में यह सवाल किया कि इस्लामी इंक़ेलाब में क्या ख़ुसूसियतें हैं कि इससे इस तरह की दुश्मनी की जाती है और इस दुश्मन के मुक़ाबले में इंक़ेलाब की रक्षा ज़रूरी हो जाती है? आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस्लाम की राजनैतिक व्यवस्था को इस सवाल का साफ़ जवाब बताया और राजनैतिक इस्लाम की ख़ुसूसियतों की व्याख्या करते हुए कहा कि ज़ुल्म और ज़ालिम की मुख़ालेफ़त और मज़लूम की मदद, राजनैतिक इस्लाम की वो नुमायां व प्रभावित करने वाली ख़ुसूसियतें हैं जो ज़ायोनी शासन जैसी हुकूमत को, जिसकी बुनियाद नाजायज़ क़ब्ज़े, ज़ुल्म, ज़बर्दस्ती और यातना देने पर रखी गयी है, इस्लामी गणराज्य जैसी हुकूमत से दुश्मनी पर मजबूर कर देती है।
उन्होंने वेस्ट एशिया के संवेदनशील इलाक़े में प्रतिरोध आंदोलनों के लिए इस्लामी गणराज्य के आइडियल बन जाने को इस्लामी व्यवस्था से दुश्मनी की एक और वजह बताया और कहा कि अगर इस्लामी गणराज्य आइडियल नहीं होता तो यह दुश्मनी इतनी ज़्यादा न होती।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस बात पर बल देते हुए कि हमें दुश्मनों की साज़िशों के मुक़ाबले में अपने फ़रीज़ों को समझना चाहिए, कहा कि आज हमारा फ़रीज़ा इंक़ेलाब की मुसलसल हिफ़ाज़त है; हमारी आज की ज़िम्मेदारी क़ौमी एकता, अहम मामलों में अवाम को शरीक करना और सभी लोगों ख़ास तौर पर कमज़ोर वर्ग की मदद करना है; आज की ज़िम्मेदारी अधिकारियों का बिना थके दिन रात काम करना है।
उन्होंने कहा कि आज तक हमने जो रास्ता तय किया है अगर उसे पूरी ताक़त से जारी रखें तो दुश्मन पर हमारी जीत पक्की है।
इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में आईआरजीसी में इस्लामी इंक़ेलाब के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वलमुस्लेमीन अलहाज सादेक़ी ने कहा कि यह फ़ोर्स ईरानी क़ौम के दुश्मनों की हर तरह की साज़िश और हर तरह के हमले के मुक़ाबले में डटी रही और आगे भी डटी रहेगी।
आईआरजीसी के कमांडर इनचीफ़ ब्रिगेडियर जनरल सलामी ने भी, सन 2019 में शहीद क़ासिम सुलैमानी के साथ इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से इस फ़ोर्स के कमांडरों की पिछली मुलाक़ात की ओर इशारा करते हुए, इस्लामी जगत में दुश्मनों की सभी साज़िशों की नाकामी को, इस महान शहीद और उनके साथियों के संघर्ष की देन बताया और दुश्मनों को संबोधित करते हुए कहा कि आईआरजीसी अपने शहीदों का बदला लेकर रहेगी और निश्चित तौर पर अमरीका को इस इलाक़े से निकालकर ही दम लेगी।