ऐसा नहीं है कि जब हम वहाँ (इमामे ज़माना अलैहिस्सलाम के ज़माने में) पहुँचेंगे तो अचानक एक तेज़ हरकत होगी और फिर वो रुक जाएगी। नहीं, वो जगह एक रास्ता है। अस्ल में ये कहा जाना चाहिए कि इंसान की अस्ली ज़िंदगी और उसका वांछित जीवन वहीं से शुरू होगा और फिर इंसानियत रास्ते पर अपनर सफ़र शुरू करेगी जो "सिराते मुस्तक़ीम" (सीधा मार्ग) है और उसे उसकी रचना के मक़सद तक पहुंचाएगा, "इंसानियत" को पहुंचाएगा, कुछ इंसानी समूहों को नहीं, कुछ इंसानों को नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत को।
इमाम ख़ामेनेई
11/6/2014