बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

प्यारे भाइयो, एयरफ़ोर्स के जवानो! आपका स्वागत है। आपसे मिल कर ख़ुशी हुयी। कोरोना की वजह से हम उस तरह यह बैठक आयोजित न कर सके जिस तरह चाहते थे। हम चाहते थे कि आप लोगों से ज़्यादा तादाद में मुलाक़ात हो और बेहतर ढंग से आपसे बात हो, लेकिन क्या किया जाए कि डॉक्टरों की तरफ़ से तयशुदा एसओपीज़ पर अमल को अपने लिए ज़रूरी समझता हूं।  उन पर अमल करना अपना फ़रीज़ा समझता हूं और अमल करता हूं।  वे मास्क लगाने पर ताकीद करते हैं।  इसके टीके की तीसरी डोज़ भी कुछ महीने पहले लगवा ली।  यानी जो कुछ सम्मानीय डॉक्टर सही समझते हैं, ज़रूरी समझते हैं, हम उस पर अमल करना ज़रूरी समझते हैं। मेरी गुज़ारिश है कि प्रिय अवाम इस फ़ील्ड के डॉक्टरों और माहिरों की बातों पर ध्यान दें, जो कुछ वे सही समझते हैं, ज़रूरी समझते हैं, अंजाम दें।

बहरहाल यह बैठक आज इसी रूप में आयोजित हुयी, आपका स्वागत है, इंशा अल्लाह उम्मीद है अल्लाह आप सबको कामयाब करे।

ख़ैर रजब का महीना है। मेरी पहली गुज़ारिश यह है कि आप इस महीने की और इन दिनों की क़द्र को समझें, रजब का महीना अल्लाह से क़रीब  होने का महीना है, उससे गिड़गिड़ाने का महीना है, दुआ का महीना है, रूह और ज़ेहन की सफ़ाई का महीना है, मन को अल्लाह के निकट करना चाहिए। ख़ास तौर पर आप जवानों को, बैठक में मौजूद और फ़ोर्स की सतह पर आप जवानों को इस संपर्क की, अल्लाह से राबते को मज़बूत करने की हम सभी को ज़रूरत है।  हमें अपनी उम्र के हर लम्हे अल्लाह से इस रिश्ते को मज़बूत करने की ज़रूरत है और इन दिनों, रजब का महीना इसके लिए ज़्यादा मुनासिब है, इस महीने अल्लाह का करम और आत्मिक लाभ हासिल करने का माहौल मुहैया है।

ख़ैर, आज 8 फ़रवरी है, यानी एयरफ़ोर्स की 'बैअत' (वफ़ादारी के एलान) के कारनामे का दिन, एयरफ़ोर्स की ओर से एक ऐतिहाहिसक व निर्णायक कारनामे का दिन है। एयरफ़ोर्स की मौजूदा नस्ल में शायद ही कोई जवान उस दिन मौजूद रहा हो, ज़्यादातर जवान तो शायद उस वक़्त पैदा भी नहीं हुए होंगे, लेकिन मेरा मानना है कि वे सभी लोग जो एयरफ़ोर्स में ज़िम्मेदारी के जज़्बे के साथ काम कर रहे हैं, उस दिन की बैअत में शामिल हैं, उस दिन अंजाम पाने वाले कारनामे के समय आप लोग नहीं थे,  फ़ोर्स में नहीं थे, यानी आपमें ज़्यादातर लोगों का काम का रेकॉर्ड इतना नहीं है, लेकिन उस दिन के गौरव, उस दिन के सवाब में आप सब शामिल हैं, क्यों? इसलिए कि उस दिन जो जवान, अफ़सर और एयरफ़ोर्स के ख़ास दस्ते के लोग उस बैठक में, उस हैरतअंगेज़ मुलाक़ात में शामिल हुए और  बैअत की।  यह बैअत किसी शख़्स की बैअत नहीं थी, यह लक्ष्यों से वफ़ादारी का एलान था,  महान उद्देश्यों से वफ़ादारी का एलान था। उस पाक जेहाद से वफ़ादारी का एलान था जिसके ताक़तवर कमांडर इमाम थे। ये लोग आए, एयरफ़ोर्स को इस ताक़तवर, महान हैरतअंगेज़ कारनामे करने वाले कमांडर की कमान में ले आए। यह एक आध्यात्मिक काम था, इसलिए यह काम जारी है, यह काम ऐसी घटना नहीं थी कि उस दिन हुयी और ख़त्म हो गयी, नहीं; यह काम जारी है, जो भी जिस दौर में भी उन लक्ष्यों की दिशा में बढ़ेगा, वह इस कारनामे में भागीदार होगा, इसलिए आप भी उन लोगों में शामिल हैं जिनके हिस्से में 8 फ़रवरी का कारनामा आया।

उस दिन एयरफ़ोर्स का कारनामा पहलवी शासन के खोखले ढांचे पर आख़िरी वार साबित हुआ और मनहूस पहलवी शासन का ख़ैमा ढह गया, तबाह हो गया। यह काम, असर डालने वाला कारनामा था, बहुत ज़्यादा असर डालने वाला कारनामा। अस्ल में उस दिन इमाम ख़ुमैनी ने आए हुए लोगों के बीच फ़रमाया थाः आप ने फ़ौज को आज़ाद करा दिया, फ़ौज को सरकश शासन की सेवा से इस्लाम की सेवा में ले आए। आज के दिन तक सरकश शासन की सेवा में थे, अब इमाम की सेवा में ले आए। वे नारा लगाते थे हम सब आपके सिपाही हैं, इमाम ने फ़रमाया(2) आप सब मानवता के अंतिम मुक्तिदाता इमाम महदी के सिपाही हैं, क़ुरआन के सिपाही और इस्लाम के सिपाही हैं, आप इस रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं, हक़ीक़त भी यही थी। यह एक बात थी।

इस संबंध में कई बिन्दु हैं। एक बिन्दु यह है कि यह कारनामा वक़्त की ज़रूरत के एहसास और उस एहसास के मुताबिक़ क़दम उठाने से अंजाम पाया। मैं इस बात पर बहुत ज़ोर देता हूं,  मैं कई बार इस पर ताकीद कर चुका हूं।(3)  हमें चाहिए कि हम अपने काम में लम्हे की ज़रूरत को समझें। कुछ काम ऐसे होते हैं कि अगर आपने उसी वक़्त अंजाम दिया तो उससे लक्ष्य हासिल होता है, उसी काम को अगर दूसरे वक़्त में अंजाम देंगे तो उसका कोई फ़ायदा नहीं होगा। इस बात की समझ होनी चाहिए कि लम्हे की ज़रूरत क्या है? आप इसे हमेशा आज़माइये। इसी एयरफ़ोर्स में देखिए कि इसकी आज की ज़रूरत क्या है, उसे उसी वक़्त अंजाम दीजिए। यह सबसे ज़्यादा अहम है। मेरी नज़र में यह इस गिरोह का सबसे अहम काम था; वरना अगर ये लोग यही काम फ़र्ज़ कीजिए दस दिन बाद, बीस दिन बाद अंजाम देते तो कभी यह असर न होता, लम्हे की ज़रूरत को समझा, यह हमारे लिए सबक़ है।

एक बिन्दु जो सबक़ लेने लायक़ बिन्दु है, जिससे सबक़ लेना चाहिए यह है कि एयरफ़ोर्स के इस कारनामे में सरकश शाही शासन को ऐसी जगह से चोट पहुंची जिसके बारे में वह सोच भी नहीं सकता था। बिल्कुल उसी तरह जिसकी मिसाल पवित्र क़ुरआन के हश्र सूरे की आयत नंबर दो में है यहाँ तक कि अल्लाह का (अज़ाब) जहाँ से सोच नहीं सकते थे आ पहुंचा।(4)  यह आयत यहूदियों के बारे में है उन्होंने जिस जगह के बारे में सोचा भी नहीं था, अल्लाह ने उन्हें वहाँ से चोट पहुंचायी। ऐसा ही था। सरकश शाही सरकार में किसी ने सोचा भी नहीं था कि एयरफ़ोर्स से, फ़ौज से वह भी फ़ौज की एयरफ़ोर्स से चोट खाएंगे, इन्होंने एयरफ़ोर्स पर बहुत पैसा लगाया था, उनके अमरीकी समर्थकों को भी हैरत हुयी। हायज़र, जनरल हायज़र जिनके बारे में आपको पता होगा कि अमरीकी जनरल थे, नेटो में दूसरे सबसे बड़े अफ़सर, उन्हें अमरीकियों ने ईरान भेजा था। (5)  ताकि यहाँ आकर फ़ौज को संगठित करें और जैसे भी मुमकिन हो ख़ूनख़राबे वाला सैन्य विद्रोह करवाकर शाही सरकार को गिरने से बचाए, यानी उन्होंने यह फ़ैसला किया था कि तेहरान में अगर ज़रूरत हुयी तो एक लाख लोगों का भी क़त्लेआम कराएंगे। यानी इस नियत के साथ हायज़र तेहरान आए थे, अलबत्ता नाकाम रहे, अपना सा मुंह लेकर लौट गए।  यह हायज़र अपनी आपबीती में लिखते हैं- मैंने ख़ुद इस किताब को नहीं पढ़ा, मुझे बताया गया- एयरफ़ोर्स ऐसी पोज़ीशन में थी कि हमें उसमें किसी तरह की बग़ावत की सबसे कम उम्मीद थी, क्योंकि कमान और ट्रेनिंग की नज़र से सिर से पैर तक अमरीका से क़रीब थी। शायद बहुत से लोग, उन लोगों में जिन्होंने उस दिन के ऐतिहासिक कारनामे में हिस्सा लिया था, वे लोग थे जिनकी शिक्षा ख़ास तौर पर- अमरीका में हुयी थी, वे अमरीकी कल्चर से वाक़िफ़ थे और ऐसा ही था। लेकिन इन्हें वहाँ से चोट लगी। ख़ैर यह इस बात की निशानी है कि अल्लाह का वादा सच्चा है, जैसा कि अल्लाह ने फ़रमायाः वे चाल चलते हैं और मैं भी उनके मुक़ाबले में चाल चलता हूं।(6)  एक और जगह पर हैः काफ़िर चाल में फंसे हुए हैं।(7)  इस तरह की हालत में जिन्हें चोट पहुंचती है, सत्य और असत्य के मोर्चे में जिसे चोट पहुंचती है, वह असत्य का मोर्चा है जिसे चोट पहुंचती है। ऐसा हमेशा से है। यानी इस मामले में अमरीकियों का अंदाज़ा ग़लत साबित हुआ, यानी उन्होंने सरकश शाही शासन की एयरफ़ोर्स के संबंध में एक अंदाज़ा लगाया था जो ग़लत साबित हुआ, उन्होंने सोचा भी नहीं था कि ऐसा हो जाएगा।  हमेशा से ऐसा ही रहा है, मैं यह बात कहना चाहता हूं कि जब भी आप यानी सत्य की फ़ोर्स, इस्लाम की फ़ोर्स कुफ़्र के मुक़ाबले में मैदान में उतरती है, दुश्मन अपने ज़ाहिरी रोब और दबदबे के साथ जो दरअस्ल अंदर से खोखला होता है, अपने अंदाज़े में ग़लती करता है, हमेशा ऐसा ही हुआ है। इंक़ेलाब के सिलसिले में भी ऐसा ही है। इंक़ेलाब के शुरू में भी ऐसा हुआ और इन 40 से ज़्यादा बरसों में भी ऐसा ही हुआ।  हमेशा उन्होंने अंदाज़ा लगाया, हमेशा सोचा कि आख़िरी चोट पहुंचा रहे हैं। मगर ख़ुद ही चोट खायी।() अगर आप जेहाद के मैदान में, हर जेहाद में, हर दौर में किसी न किसी तरह का जेहाद ज़रूरी होता है, फ़ौजी जेहाद है, इल्मी जेहाद है, रिसर्च की फ़ील्ड में जेहाद है, आप जिस तरह के जेहाद में भी डटे हुए हों, सरगर्म हों तो दुश्मन को हरा देंगे, क्यों? चूंकि अल्लाह ने ऐसा तय किया है कि दुश्मन के अंदाज़े ग़लत साबित हों, वह सही अंदाज़ा नहीं लगा सकता, सही आंकलन नहीं कर सकता। आज अमरीका के सामने भी यही मुश्किल है यानी यहाँ तक कि अल्लाह (का अज़ाब) जहाँ से सोच नहीं सकते थे आ पहुंचा।आज अमरीका ऐसी जगह से चोट खा रहा है, जिसके बारे में उसने सोचा भी नहीं था, आज दो अमरीकी राष्ट्रपति- पहले वाले राष्ट्रपति (8)  और मौजूदा राष्ट्रपति-(9)  इन्होंने मानो आपस में हाथ में हाथ मिला लिया है कि अमरीका की बची खुची इज़्ज़त को नीलाम कर देंगे और ऐसा कर रहे हैं, वह अलग अंदाज़ से यह दूसरी तरह से।  क्या उन्होंने ऐसा अंदाज़ा लगाया था? ऐसा सोचा था? दिन ब दिन ख़ुद से ख़ुद को कमज़ोर कर रहे हैं और यह सिलसिला जारी रहेगा। इसलिए यह बिन्दु भी जानना अहम है कि अगर आप अमल के मैदान में हैं, जागरुक हैं, ऐक्टिव हैं, उम्मीद के साथ कोशिश करेंगे तो यक़ीनी तौर पर मज़बूती, कामयाबी और तरक़्क़ी हासिल करेंगे।

एक और अहम बात यह है कि कोई यह न सोचे कि इन जवानों का उस दिन का कारनामा जज़्बाती था, ऐसा नहीं था। ठीक है जज़्बात का दख़्ल होता है, लेकिन इसका मज़बूत बैकग्राउंड था, गहराई थी, निर्देशित था। ख़ैर मुझे इस बारे में बहुत सी बातें याद हैं, इसकी जड़ के गहरी होने की एक निशानी यह है कि यह आंदोलन एयरफ़ोर्स में जारी रहा, अगर अचानक उठने वाला क़दम होता तो जारी नहीं रहता। एयरफ़ोर्स में यह आंदोलन जारी रहा, क्रांति की कामयाबी के शुरूआती दिनों में इस इकाई के कारनामे से, फ़ोर्सेज़ को आत्म निर्भर बनाने का जेहाद, एयरफ़ोर्स में शुरू हुआ, उस वक़्त फ़ौज में, देश में कहीं भी, किसी भी सगंठन में आत्मनिर्भरता के जेहाद का नामोनिशान नहीं था, इसे एयरफ़ोर्स के नेक व क्रांतिकारी जवानों ने क़ायम किया,  पहले दिन से काम करना, कोशिश करना शुरू किया, यहाँ तक कि आज बहुत बड़े बड़े काम भी हुए हैं। इसके अलावा एयरफ़ोर्स की जेहादी इकाई ने एयरफ़ोर्स के भीतर बड़े कारनामे अंजाम दिये; 1979 को जो काम सबसे पहले अंजाम पाए, उनमें तबरीज़ छावनी में साज़िश को नाकाम बनाने का काम था।

तबरीज़ की छावनी में एक साज़िश रची गयी, उस वक़्त शहीद फ़कूरी तबरीज़ छावनी के कमांडर थे, उपद्रवियों ने इस शहीद को एक तरह से घेर लिया था, गिरफ़्तार करने जैसी हालत थी।  फ़ोर्स के क्रांतिकारी जवान, दूसरी जगह से किसी तरह की मदद लिए बिना, वहाँ गए, उन्हें तितर बितर किया और शहीद फ़कूरी को तेहरान लाए। हमदान छावनी में विद्रोह का मामला, शहीद नूजे छावनी, इस बग़ावत के लिए सब कुछ तैयार था, इस बग़ावत के सभी पहलुओं का दारोमदार अमरीकी मदद पर था। अचानक इस साज़िश को नाकाम बना दिया गया और इसकी वजह एक जवान अफ़सर बना जिसने आकर ख़बर दी और फ़ौरन ही इस काम से संबंधित नेटवर्क, आईआरजीसी के जवान, सेक्युरिटी एजेंसियों के जवान, इनके (एयरफ़ोर्स के) जवान निकल पड़े और साज़िश को नाकाम बना दिया, साज़िश को जड़ से उखाड़ दिया। ख़ुद एयरफ़ोर्स के जवानों ने यह काम किया, एक जवान अफ़सर, एक जवान पायलेट ने आकर ख़बर दी। यानी ख़ुद फ़ोर्स के जवानों ने, ख़ुद फ़ोर्स ने यह काम किया। दूसरे मामलों में भी ऐसा ही है।

पवित्र प्रतिरक्षा की शुरूआत के दिनों में सबसे अहम काम एयरफ़ोर्स ने अंजाम दिया, यानी कुछ दिन के भीतर एयरफ़ोर्स की सॉर्टी, बेजोड़ थी। नाचीज़ उस वक़्त सांसद था और आर्म्ड फ़ोर्सेज़ में इमाम का प्रतिनिधि था, मैंने संसद में रिपोर्ट पेश की तो सब हैरत में थे। तीन से चार दिन में एयरफ़ोर्स ने कई सौ सॉर्टी अंजाम दी। उस वक़्त दूसरे तंत्र, दूसरे दस्तों को सही तरह से हालात का पता भी नहीं था कि क्या काम करें, सबसे पहले एयरफ़ोर्स मैदान में कूदी, यह उसी पहले क़दम का जारी सिलसिला है।

यह जो मैं कहता हूं कि यह क़दम, जोश में उठाया गया क़दम नहीं था, वह इस लिए है क्योंकि इसका सिलसिला जारी रहा और एयरफोर्स में यह काम होता रहा। उस दौर में यही सूझ-बूझ और जज़्बा इस बात की वजह बना कि एयरफोर्स में ही नहीं बल्कि पूरी फ़ौज में बड़े बड़े शहीद सामने आए। शहीद सैयाद शीराज़ी, शहीद बाबाई, शहीद सत्तारी, शहीद कुलाहदूज़, यह लोग और इन लोगों जैसे हज़ारों दूसरे शहीद, इन में मशहूर लोगों की तादाद बहुत ज़्यादा है। सब के सब मशहूर हैं। यहां  तक कि तानाशाही दौर के बहुत से अफ़सर, शहीदों में शामिल हो जाते हैं, शहीद फ़ल्लाही, फ़ल्लाही तानाशाही दौर के ब्रिगेडियर थे लेकिन इन्क़ेलाब, फ़ौज की हालत और वह बड़ा बदलाव इस बात की वजह बना कि फ़ल्लाही जैसा अफ़सर, शहीद फ़ल्लाही बन गया, फ़कूरी भी ऐसे ही थे, शहीद फ़कूरी, यह सब इन्क़ेलाब से पहले की फ़ौज के अफ़सर थे। जी, तो यह थी सूझबूझ और बसीरत। जिस वजह से यह लोग आए और उन्होंने आगे बढ़ कर इमाम खुमैनी की बैअत का तारीखी क़दम उठाया वह इसी बसीरत और सूझ बूझ का नतीजा था, सूझ बूझ थी जो उन्होंने यह काम किया। अब सवाल यह है कि इस सूझ बूझ की वजह क्या थी? क्यों दूसरों में यह सूझ बूझ नहीं थी? हो सकता है इसकी कई वजहें बयान की जाएं लेकिन इस सूझ बूझ की एक अस्ल वजह यह थी कि एयरफ़ोर्स के फ़ौजी बहुत क़रीब से अमरीकी अफ़सरों की तानाशाही और उनके असर को देखते थे। फ़ौज के किसी हिस्से में एयरफ़ोर्स की तरह अमरीकी अफ़सरों का असर नहीं था, अमरीकी अफ़सर दसियों हज़ार फ़ौजी सलाहकार थे, अमरीकी अफ़सरों की तादाद चालीस पचास हज़ार थी जो ईरान में रह रहे थे। यह लोग यहां जम गये थे। ख़ास तौर पर एयरफ़ोर्स में। उनका पूरा क़ब्ज़ा था, ईरानी कमांडरों को बेइज़्ज़त करते थे, ईरानियों की गिनती ही नहीं थी, कुछ नहीं समझते थे, उनका सीधा ताल्लुक़ शाही दरबार के लोगों से था। इस लिए एयरफ़ोर्स के ईरानी अफ़सरों की कोई हैसियत नहीं थी। अमरीकी, सैन्य उपकरण बेचते थे लेकिन ईरानी एयरफ़ोर्स के इंजीनियरों को, आम अफ़सरों की तो बात ही छोड़िए, इंजीनियरों को भी और एयरफ़ोर्स के खास इंजीनियरों को भी इन सामानों को इस्तेमाल करने का तरीक़ा नहीं बताते थे, पुर्ज़ों की मरम्मत की इजाज़त नहीं देते थे। जो कल पुर्ज़े कई पुर्ज़ों से बने होते उन्हें खोलने की इजाज़त नहीं थी, हवाई जहाज़ से अमरीका ले जाते और वहां बदलते, एक दूसरा ले आते, उसके पैसे लेते। मतलब इस तरह से ईरानियों को बेइज़्ज़त करते थे। यह लोग यह सब कुछ क़रीब से देखते थे। अख़लाक़ी बुराइयां भी थीं जिन्हें बयान नहीं किया जा सकता, ईरान की फ़ौज में मौजूद अमरीकी अफ़सर बड़े अजीब अजीब काम करते थे जो बहुत अफ़सोसनाक है।

शायद हमारे नौजवानों को यह पता न हो कि अमरीका और ब्रिटेन ने कई बार हमारी फ़ौज को दूसरे मुल्कों के लोगों के ख़िलाफ इस्तेमाल किया है जिनमें वियतनाम भी शामिल है। हमारे जहाज़ों को वियतनाम ले गये ताकि उन वियतनामियों पर बमबारी करें जो नाजायज़ क़ब्ज़ा करने वाले अमरीका के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे! (10)  यह होता था, कई और मुल्कों में यही हुआ। यहां तक कि मुझे यह भी बताया गया हालांकि मुझे खुद इस बारे में नहीं मालूम लेकिन पक्का सुबूत है कि हमारे फ़ैंटम जहाज़ इस्राईल भी इस्तेमाल करता था। ज़ाहिर है वह क्या करता था? यक़ीनी तौर पर फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ या फिर उस वक्त इस्राईल के सामने डट जाने वाले अरब मुल्कों के खिलाफ़ इस्तेमाल करता था, जैसे मिस्र, सीरिया और इस तरह के मुल्क। यानि जो चीज़ें ईरान की थीं, इस्लाम की थीं उन्हें अमरीकी मक़सद के लिए मज़लूमों के ख़िलाफ़ और ज़ालिमों की मदद के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था। यह सब अहम बातें हैं जिनके बारे  में मालूमात ज़रुरी है। यह भी एक गद्दारी थी हालांकि पहलवी हुकूमत की गद्दारियों की लिस्ट बहुत लंबी है। लेकिन यह भी एक तरह की ग़द्दारी है, यह फ़ौज से भी  ग़द्दारी थी, अवाम से भी ग़द्दारी थी। क्योंकि मुल्क की दौलत अमरीका की ख़िदमत के लिए इस्तेमाल हो रही थी और इसी तरह दूसरे मुल्कों के ख़िलाफ़ जुर्म भी किया जा रहा था।

मैं जिस चीज़ का ज़्यादा ज़िक्र करना चाहता हूं और आप सब का ध्यान जिस तरफ़ खींचना चाहता हूं वह यह है कि हमने आज कल बार बार कहा है कि बयान के जेहाद की ज़रूरत है।(11)  मैं यह कहना चाहता हूं कि अगर उस दिन जब 8 फ़रवरी को इमाम ख़ुमैनी के सामने वह तारीख़ी क़दम उठाया गया, अगर उस काम का वह फ़ोटो लोगों के सामने न आता मतलब अगर उसे मशहूर न किया जाता तो फिर एयरफ़ोर्स का फिर यह काम अनमिट क़दम न बन पाता और न ही उसका इतना असर होता बल्कि यह भी दूसरे सभी उन वाक़ेआत की तरह होता जो होते हैं और फिर भुला दिये जाते हैं। इमाम ख़ुमैनी के हाथों एयरफ़ोर्स के फौजियों की बैअत के इस वाक़ेए के हमेशा बाक़ी रहने और असरदार होने की अस्ल वजह, महारत के साथ खींचा गया वह फ़ोटो है जो मीडिया में आया, बयान इसे कहते हैं, प्रोपैगंडा और लोगों को दिखाने का यह मतलब होता है। यह बहुत ही कम साधनों के साथ किया गया एक काम था, ज़ाहिर है उस दौर में इतने साधन और इतनी सहूलतें नहीं थीं, बहुत कम थीं। मीडिया के लिए किया जाने वाला एक छोटा सा काम 8 फ़रवरी को इमाम ख़ुमैनी के हाथों एयरफ़ोर्स की बैअत को अमर काम और गहरा असर रखने वाला काम बना देता है। सही तौर पर बयान करने का यह मतलब होता है। यह जो मैं बार बार कहता हूं कि सही तरीक़े से बयान किया जाए वह इसलिए है कि आज मीडिया इतना फैल गया है कि हम अगर उस दौर से मुकाबला करें तो सौ गुना नहीं बल्कि हज़ार गुना ज़्यादा फैल गया है, क्योंकि सोशल मीडिया भी है, सैटेलाइट चैनल भी हैं यह जो कुछ आज है, उस दौर में तो नहीं था, अब सब कुछ बदल गया है। ज़ाहिर सी बात है तो इस काम की अहमियत भी इसी तरह बढ़ी है, इसकी अहमियत भी बढ़ गयी है। आज इस्लामी जुम्हूरिया ईरान और इस्लाम के दुश्मन मीडिया की एक पॉलीसी यह है कि वह सच्चाई को तोड़ मरोड़ कर पेश करें। हमेशा सच्चाई को तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं और झूठ बोलते हैं, इस्लामी जुम्हूरिया ईरान के बारे में ख़बरों को तरह तरह के झूठ और फरेब के साथ पेश करते हैं, इस पर काम कर रहे हैं, मंसूबे बना रहे हैं, हर चीज़ को गडमड कर देना चाहते हैं, ईरान की शाही पहलवी हुकूमत को बना-संवार कर पेश कर रहे हैं उनके हज़ारों जुर्मों व ग़द्दारी पर पर्दा डाल रहे हैं। यहां तक कि सावाक को भी, जहां अमरीका और इस्राईल की ख़ुफ़िया एजेन्सियों के अंदाज़ में लोगों को टार्चर किया जाता था, कुछ तरीक़े तो शायद आज़माए जाते थे और कुछ तरीकों से टार्चर किया जाता था, इस क़िस्म के टार्चर का सामना करने वाले बहुत से लोग आज भी ज़िन्दा हैं, और उनके बदन पर उसके निशान देखे जा सकते हैं, सिर से पैर तक जुर्म व गुनाह में डूबी एजेंसी सावाक को भी अच्छा दिखाने की कोशिश है। उसे अब दूसरी तरह से पेश किये जाने की कोशिश हो रही है। मतलब उस दौर का सावाक का अफ़सर जो पूरे मुल्क में सब से ज़्यादा बदनाम और बदतरीन आदमी था वह अपनी बायोग्राफ़ी लिखता है और इस तरह बात करता है जैसे सावाक बहुत अच्छा इदारा था और टार्चर की जगह नहीं थी। दूसरी तरफ़ यह लोग जब इन्क़ेलाब की बात करते हैं तो जितना हो सकता है बदनाम करते हैं, इन्क़ेलाब, इमाम खुमैनी, इन चालीस बरसों में किये जाने वाले कामों के बारे में जो मुंह में आता है कहते हैं और इन की तसवीर ख़राब करने की कोशिश करते हैं। आप कभी भी इस्लामी जुमहूरिया ईरान और इन्क़ेलाब के बारे में वेस्टर्न मीडिया को अच्छी बातें करते, तरक़्क़ी  वग़ैरा का नाम लेते नहीं देखेंगे! सच्चाई को छुपाया जाता है लेकिन अगर कोई कमज़ोरी है, यक़ीनी तौर पर कमज़ोरियां होती हैं, कोई भी मुल्क बिना कमज़ोरी के नहीं होता, तो वे एक कमज़ोरी को सौ गुना बढ़ा कर पेश करते हैं और बार बार दिखाते हैं। यह एक हैरत की बात है जो आज कल नज़र आ रही है और यही वजह है कि बयान का जेहाद वाजिब है।

बयान का जेहाद एक यक़ीनी ज़िम्मेदारी और फ़ौरी फर्ज़ है। जिससे भी हो सकता, जिसके बारे में बात करेंगे, उसे करना चाहिए लेकिन सरकारी ओहदेदारों की ज़्यादा बड़ी ज़िम्मेदारी है। वेस्टर्न मुल्क, तानाशाही के लिए बदनाम हैं, मतलब यही मुल्क जो आज तानाशाही के बारे में अपने ख़याल में दुनिया के तानाशाहों का मुक़ाबला करने का दावा करते हैं, सब से बड़े तानाशाह ख़ुद हैं। पॉलिटिक्स में, इकॉनोमिक्स में हर मैदान में पूरी दुनिया पर अपनी तानाशाही चलाते हैं। अब तानाशाही की एक और क़िस्म बढ़ गयी है जिसे मीडिया की तानाशाही का नाम दिया जाता है। मिसाल के तौर पर आप सोशल मीडिया पर शहीद सुलैमानी का नाम नहीं ले सकते, वह उसे हटा देते हैं, उनके हाथ में है, सोशल मीडिया की चाबी उनके हाथ में है वह शहीद क़ासिम सुलैमानी का नाम बर्दाश्त नहीं कर सकते, उनका फ़ोटो नहीं देख सकते। आजकल यह हालात हैं। पहले भी यही था, पहले भी ख़ुद अमरीका में भी इस तरह की तानाशाही थी। मरहूम अलहाज अहमद आग़ा रिज़वानुल्लाह अलैह हमें बताते थे। इमाम ख़ुमैनी ने, मेरे ख़याल से हज का पैग़ाम दिया था, हाज अहमद आग़ा का कहना है कि मैंने सुना कि कहा जाता है कि अमरीका में बोलने की आज़ादी है तो इमाम ख़ुमैनी के इस पैग़ाम को एक अमरीकी अख़बार में छपवाया जाए। बता रहे थे कि अमरीका में रहने वाले अपने दोस्तों को पैग़ाम दिया और उनसे कहा कि जो पैसा लगे हम देंगे इसे अख़बार में इश्तेहार की तरह छपवा दिया जाए। दोस्तों ने कहा कि कोई भी अख़बार इस पैगाम को छापने पर तैयार नहीं हुआ, बोलने की आज़ादी, सच्चाई को बयान करना सिर्फ़ बातें हैं वह इमाम ख़ुमैनी के पैग़ाम को छापने पर तैयार नहीं हुए। ईरान में अमरीका के जासूसी के अड्डे के बारे में जिन्होंने किताब लिखी है जो खुद वहां काम करने वालों में शामिल थे, उनका कहना है कि हम ने अमरीका में जिस पब्लिशर से राबेता किया उसने किताब छापने से इन्कार कर दिया। यहां तक कि हम कनाडा गये और वहां एक पब्लिशर मिला जो यह किताब छापने पर तैयार हुआ। लेकिन उसे भी अपना फ़ैसला बदलने पर मजबूर किया जाने लगा था। फ़ोन किया गया, धमकी वग़ैरा दी गयी। यह है मीडिया की तानाशाही। उसके बाद दावा यह किया जाता है कि हम प्रेस की आज़ादी और बोलने की आज़ादी के हिमायती हैं लेकिन आज जो बात भी वेस्ट की पॉलीसियों के ख़िलाफ़ हो या  उनकी हिमायत में न हो उस पर पाबंदी लगा दी जाती है। न उसका फ़ोटो दिखाया जा सकता है न उसे छापा जा सकता है लेकिन इसी मीडिया को इस्लामी जुम्हूरिया ईरान के मसलों और कमज़ोरियों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करने के लिए या इस्लाम को बदनाम करने के लिए पेश किया जाता है। इस्लामी तालीमात, इस्लामी कानूनों को बिगाड़ कर पेश करने के लिए खूब इस्तेमाल किया जाता है। यक़ीनी तौर पर यह एक कड़वी सच्चाई है, इस सिलसिले में सब की ज़िम्मेदारी बनती है। मैंने कहा कि सब से पहले मीडिया के मैदान में काम करने वाले ओहदेदारों की ज़िम्मेदारी है। चाहे मुल्क का सरकारी मीडिया हो या फिर कोई और इदारा या फिर सोशल मीडिया हो, या अख़बार, इस मैदान में सब पर ज़िम्मेदारी है, सब को मैदान में आना चाहिए और जिसके पास भी लोगों से बात करने की कोई जगह है उसकी इस सिलसिले में ज़िम्मेदारी है।

हमारे मुल्क में बड़े बड़े कारनामे होते हैं, इतने बरसों में, इतनी दहाइयों में, चालीस बरसों में मुल्क में कितने बड़े बड़े काम हुए हैं, कितने बड़े बड़े कारनामे हुए हैं, तो इन सब को बयान किये जाने की ज़रूरत है। इन सब को दुश्मन छुपाता है, दुश्मन सामने नहीं आने देता। समाजी मैदान में, इकॉनोमिक्स के मैदान में, रियल स्टेट के मैदान में, एजुकेशन के मैदान में, मेडिकल के मैदान में, इन्डस्ट्रीज़ के में, कुछ दिन पहले इन्डस्ट्री के मैदान के कुछ लोग यहां थे।(12)  कुछ लोगों ने रिपोर्टें पेश कीं, उनकी रिपोर्टों के साथ वीडियो क्लिप्स भी दिखायी जा रही थीं। यहां इसी इमामबाड़े में, उन सब पर बहुत हैरत हो रही थी। सच में यह तरक़्क़ी हैरतअंगेज़ है। मुल्क के मीडिया में इस बारे में कोई खबर ही नहीं नज़र आती, यह बहुत अजीब चीज़ है। इतने अच्छे-अच्छे काम हो रहे हैं, इतने अहम काम, इतने फ़ायदे वाले काम, यह सब कारनामें हैं। रियल स्टेट में, दीन और  कल्चर के मैदान में, डिफेंस और सेक्युरिटी के मैदान में आप लोग तो खुद ही एयरफ़ोर्स में होने वाली तरक़्क़ी के बारे में अच्छी तरह जानते हैं। बहुत से काम किये गए हैं, बहुत सी चीज़े बनायी गई हैं। लेकिन कौन से काम को मुल्क में अच्छी तरह से पेश किया गया? हम लापरवाही कर रहे हैं, इस मैदान में हम सच में लापरवाही कर रहे हैं। यह जो मैंने अभी कहा है, समाजी मैदान में, इकॉनोमिक्स के मैदान में, डिप्लोमेसी के मैदान में पॉलीटिक्स के मैदान में मुल्क में इतनी तरक़्क़ी हुई है इनमें से हरेक बयान के जेहाद का मौज़ू बन सकता है। हमें इस बात की इजाज़त नहीं देनी चाहिए कि मुल्क के मसले और कमज़ोरियां, जो कि हर मुल्क में होती हैं, हमारे मुल्क में भी हैं, एकॉनोमिक्स के मैदान में परेशानियां हैं, रोज़गार की मुश्किल है, तरक़्की की राह में किये जाने वाले कारनामों और कामों पर पर्दा डाल दें और लोगों को नज़र न आएं! यह कमज़ोरियां अपनी जगह हैं जिन्हें दूर करने की कोशिश की जानी चाहिए। इसमें कोई शक नहीं लेकिन इसके साथ ही यह भी ज़रूरी है कि जो अलग अलग मैदानों में बड़े बड़े काम हुए हैं, जो तरक्क़ी हुई है उसे भी नहीं याद रखा जाए।

मेरी आख़िरी बात यह है कि हमारे दुश्मन, हमारे दुश्मन का मोर्चा, एक है जो बहुत बड़ा है। आज दुश्मन के मोर्चे से कई पहलुओं पर आधारित हमला किया जा रहा है। उसमें एकॉनोमिक्स का पहलू है, पॉलीटिक्स का पहलू है, सिक्यूरेटी का पहलू है, मीडिया का पहलू है, डिप्लोमेसी का पहलू है, हर पहलू से हर तरफ़ से एक हमला शुरु कर दिया गया हे। हमें भी इसका इसी तरह मुक़ाबला करना चाहिए, हर तरफ़ से कोशिश करना चाहिए। हमें यक़ीनी तौर पर डिफ़ेंस करना चाहिए लेकिन हम हमेशा डिफेंस ही नहीं कर सकते। इस पर ध्यान दीजिए। यह जो मैं कहता हूं कि डिफेंस करना चाहिए तो यह एक ज़रूरी काम है लेकिन डिफ़ेंस की हालत में ही हमेशा नहीं रहा जा सकता, दुश्मन हमला करता है तो हमें भी हमला करना चाहिए, अलग अलग मैदानों में, मीडिया के मैदान में भी, इकॉनोमिक्स के मैदान में भी और सिक्यूरेटी के मैदान में भी। बड़े बड़े एक्सपर्ट्स की इस मैदान में ज़िम्मेदारी है।  जो लोग सोच सकते हैं, कुछ कर कर सकते हैं, ख़ास तौर पर ओहदेदार। इन सब को जिस मैदान में भी उनसे हो सके कोशिश करनी चाहिए और इन्शाअल्लाह जिस तरह दुश्मन की मर्ज़ी और अंदाज़े के खिलाफ़ इन चालीस बरसों से ज़्यादा वक्त में इस्लामी जुम्हूरिया ईरान पूरी ताक़त से आगे बढ़ा है और ख़ुदा के शुक्र से हर दिन ज़्यादा ताक़तवर हुआ है, आगे भी यही होगा और यह सिलसिला जारी रहेगा। मेरी नज़र में पहले से ज़्यादा अच्छी तरह हम आगे बढ़ेंगे और अल्लाह की मदद से दुश्मन को नाकाम बनाएंगे लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि हर आदमी अपनी ज़िम्मेदारी निभाए। हर मैदान में, सरकारी इदारों में, एजुकेशिन में और आप्रेशनल फील्ड में हर जगह बहुत सी ज़िम्मेदारियां हैं जिन्हें निभाया जाना ज़रूरी है और हमें उन पर अमल करना चाहिए। मैंने कुछ बातें कमांडरों से की हैं उन्हें बतायी हैं इन्शाअल्लाह उन पर अमल किया जाएगा और हमारे मुल्क का कल, आज से कई गुना बेहतर होगा इन्शाअल्लाह।

वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू

(1) इस मुलाक़ात के शुरु में ईरान की एयरफ़ोर्स के कमांडर ब्रिगेडियर हमीद वाहेदी ने एक रिपोर्ट पेश की।

(2) सहीफ़ए इमाम वाल्यूम 6 पेज 101 शाही वायु सेना के स्टाफ़ के बीच तक़रीर 8 फ़रवरी 1979

(3) तबरेज़ के अवाम के विद्रोह की सालगिरह के मौक़े पर पूर्वी आज़रबाइजान के अवाम के बीच तक़रीर 18 फ़रवरी 2019

(4) सूरए हश्र आयत 2 और ख़ुदा ने उन्हें उस जगह से आ लिया जिसके बारे में वे तसव्वुर भी नहीं कर रहे थे।

(5) जनरल हाइज़र अमरीकी वायु सेना का कमांडर था जो 4 जनवरी 1979 को इस्लामी इंक़ेलाब को रोकने के लिए बग़ावत करवाने और शाही सेना का नेतृत्व करने तेहरान आया था। एक महीने बाद यह साज़िश नाकाम हो जाने के बाद ईरान से भाग गया।

(6) सूरए तारिक़ आयत 15 और 16

(7) सूरा तूर आयत 42

(8) डोनल्ड ट्रम्प

(9) जो बाइडन

(10) दक्षिणी वियतनाम और कम्बोडिया का विद्रोही संगठन नेश्नल लिब्रेशन फ़्रंट आफ़ साउथ वियेतनाम

(11) क़सीदा व मरसिया ख़्वानों के बीच तक़रीर 23 जनवरी 2022

(12) देश के कुछ उद्योगपतियों और कारख़ानों के मालिकों के बीच तक़रीर 30 जनवरी 2022