अफ़्रीक़ा में महान सभत्यताएं थीं जो अपनी क्षमताओं के बारे में ग़फ़लत बरतने की वजह से उस साफ़्ट वार की भेंट चढ़ गईं जो विस्तारवादी ताक़तों ने उन पर थोपीं। नेहरू ने अपनी किताब में भारत के बारे में इसी चीज़ का उल्लेख किया है।
इमाम ख़ामेनेई
Nov 17, 2021
वैज्ञानिक प्रगति की हमारी रफ़तार ऐसी होनी चाहिए कि तक़रीबन पचास साल में ईरान दुनिया में ज्ञान-विज्ञान का सेंटर बन जाए और लोगों को आधुनिक ज्ञान के लिए फ़ारसी सीखने की ज़रूरत पड़े। दुनिया में किसी ज़माने में यही स्थिति थी जो दोबारा भी बन सकती है।
इमाम ख़ामेनेई
Nov 17, 2021
भविष्य में दुनिया के मैनेजमेंट में आर्टिफ़िशियल इंटैलीजेन्स का बहुत अहम रोल होगा। इस विषय पर तवज्जो और गहरा चिंतन किया जाना चाहिए। हमें इतनी मेहनत करनी चाहिए कि इस मैदान में हमारा देश दुनिया में फ़्रंटलाइन के दस देशों में अपनी जगह बनाए।
इमाम ख़ामेनेई
Nov 17, 2021
विस्तारवादी ताक़तों की साफ़्ट जंग का एक पहलू यह होता है कि वह राष्ट्रों को उनकी क्षमता से ग़ाफ़िल रखें। या उनकी ऐसी दुर्गत कर दें कि वे ख़ुद ही अपनी क्षमताओं को नकारने लगें। जब किसी राष्ट्र पर अपनी क्षमताओं के बारे में ग़फ़लत छा जाती है तो उसको लूटना आसान हो जाता है।
इमाम ख़ामेनेई
Nov 17, 2021
क़ुम, हज़रत फ़ातेमा मासूमा अलैहस्सलाम का पवित्र मज़ार और हरम है, वह महान हस्ती जिनके पवित्र मज़ार के क़रीब से पहली बार यह उफनता हुआ सोता उबला और इसकी बरकतें पूरी दुनिया ख़ास कर इस्लामी जगत तक पहुंचीं। इमाम ख़ामेनेई, 5 अक्तूबर 2000
आयतुल्लाह ख़ामेनेईः “हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम उसी सामर्रा शहर में जो दरअस्ल एक छावनी के समान था, अपने व्यापक प्रचारिक व ज्ञान संबंधी नेटवर्क के ज़रिए पूरी इस्लामी दुनिया से संपर्क स्थापित करने में कामयाब हुए। सिर्फ़ यह नहीं था कि आप नमाज़, रोज़ा या तहारत और नजासत के मसलों का जवाब देते थे। वह एक इमाम की हैसियत से उस अंदाज़ में जो इस्लाम के मद्देनज़र है अपना पक्ष रखते थे और आम जन से मुख़ातिब होते थे।”
इमाम ख़ामेनेई
10 मई 2003
शहीदों को श्रद्धाजलि देने के कार्यक्रम को मामूली काम नहीं समझना चाहिए। वाक़ई यह बड़ा नेक काम है। यह एक फ़र्ज़ है जो अभी अदा नहीं हुआ है। अभी तो शुरुआत है। यह काम जारी रहेंगे और उन्हें जारी रहना ही चाहिए।
शहीद चुने हुए लोग हैं, शहीद वे हैं जिन्हें महान परवरदिगार चुनता है। शहीदों ने सही रास्ते को चुना और अल्लाह ने भी उन्हें मक़सद तक पहुंचने के लिए चुना। शहीदों की क़ीमत को भौतिक हिसाब से आंका नहीं जा सकता।
इमाम ख़ामेनेई, 24 अक्तूबर 2021
शहीद दुनिया के सबसे बड़े व्यापार में कामयाब हैं। हे ईमान वालो, क्या तुम्हे ऐसा व्यापार दिखाएं जो तुम्हे दर्दनाक अज़ाब से बचाए? अल्लाह और उसके पैग़म्बर पर ईमान लाओ और अपनी जान-माल से अल्लाह की राह में जेहाद करो, अगर जानते हो तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है। (सूरए सफ़ आयत 10 व 11)
इमाम ख़ामेनेई, 24 अक्तूबर 2021
मुसलमानों की एकता निश्चित क़ुरआनी कर्तव्य है। मुसलमानों की एकता टैक्टिकल चीज़ नहीं कि कोई सोचे कि ख़ास हालात के कारण हम एकजुट हो जाएं। नहीं! यह सैद्धांतिक विषय है। मुसलमानों का आपसी सहयोग ज़रूरी है। मुसलमान एकजुट रहेंगे तो एक दूसरे की मदद करेंगे और सब ताक़तवर बनेंगे।
इमाम ख़ामेनई
24 अक्तूबर 2021
इस्लाम, समावेशी दीन है। इसकी समग्रता का हक़ अदा करना चाहिए। भौतिकवादी राजनैतिक ताक़तों की ज़िद है कि इस्लाम, व्यक्तिगत अमल और दिल की आस्था तक सीमित रहे। क़ुरआन, सैकड़ों आयतों में इसका खंडन करता है। इस्लाम की गतिविधियों का दायरा सामाजिक, राजनैतिक और वैश्विक विषयों तक फैला हुआ है।
इमाम ख़ामेनेई, 24 अक्तूबर 2021
कुछ इस्लामी सरकारों ने अतिग्रहणकारी ज़ालिम ज़ायोनी शासन से संबंध क़ायम करके बड़ा पाप किया है। उन्हें वापस लौटना और ग़लती की भरपाई करना चाहिए।
इमाम ख़ामेनेई, 24 अक्तूबर 2021
पैग़म्बरे इस्लाम का उठना बैठना ग़ुलामों के साथ रहता था। उनके साथ खाना खाते थे। बहुत मामूली कपड़े पहनते थे। जो खाना मौजूद होता वही खाते, किसी भी खाने को नापसंद नहीं करते थे। पूरे मानव इतिहास में यह विशेषताएं बेजोड़ हैं।
इमाम ख़ामेनई
Sept 27, 1991
अल्लाह ने पैग़म्बरे इस्लाम को ‘रहमतुल लिलआलमीन’ का लक़ब दिया। इंसानों के किसी एक गिरोह के लिए नहीं, किसी एक समूह के लिए नहीं बल्कि सारी कायनात के लिए रहमत हैं। वह सब के लिए रहमत हैं। पैग़म्बर जो पैग़ाम अल्लाह की तरफ़ से लेकर आए उसे आपने सारी इंसानियत को प्रदान किया।
इमाम ख़ामेनई
Dec 17, 2016
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की उम्र लगभग 55 साल है। 55 साल की इस उम्र में लगभग 20 साल का समय उनकी इमामत का समय है। जब हज़रत की इमामत का दौर ख़त्म हुआ और आपको शहीद कर दिया गया तो अगर आप उस वक़्त के हालात देखिए तो महसूस करेंगे कि अहले बैते रूसूल से मुहब्बत का सिलसिला इस्लामी जगत में इस व्यापकता और गहराई के साथ फैल चुका था कि ज़ालिम अब्बासी सल्तनत उस पर क़ाबू पाने में नाकाम थी। यह कारनामा इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम ने अंजाम दिया।
इमाम ख़ामेनई
Sept 17, 2013
पैग़म्बरों को उन समाजों में भेजा गया जहां अज्ञानता का अंधेरा था। पैग़म्बरों का मक़सद था अज्ञानता की व्यवस्था को ख़त्म करके तौहीद (एकेश्वरवाद) पर आधारित बराबरी की व्यवस्था स्थापित करना, ग़रीबी और घमंड को मिटाना। वह मानवीय प्रतिष्ठा बहाल करने के लिए आए।
इमाम ख़ामेनई
Dec 31, 1976
ये आंसू, एक साथ बैठना, मुसीबत का ज़िक्र, इस मोहर्रम और आशूर का हमारी जनता के जीवन पर असर पड़ता है। शिया विरोधी कुछ समाजों की नीरसता व निर्जीवता - अफ़सोस कि कुछ हुकूमतें अपनी जनता को ग़ैर शिया नहीं बल्कि शिया विरोधी बनाती हैं - ईश्वर की कृपा से हमारे समाज में नहीं है। हमारा समाज लचक, भावना, नर्मी और स्नेह व प्यार वाला समाज है।
सुप्रीम लीडर
18 मई 1995
क़ुन्दूज़ इलाक़े की मस्जिद में धमाके में नमाज़ियों की मौत की घटना ने हमें ग़मज़दा कर दिया। पड़ोसी बंधु देश अफ़ग़ानिस्तान के अधिकारियों से वाक़ई अपेक्षा है कि वह इस भयानक-अपराध के ख़ंख़ार दोषियों को सज़ा देंगें और आवश्यक उपायों के ज़रिए इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाएंगे।
इमाम ख़ामेनेई
9 अक्तूबर 2021
दर्जनों देशों से लोग अरबईन मार्च में हिस्सा लेते हैं और इराक़ियों के मेहमान बनते हैं। हमारी कोशिश यह होना चाहिए कि मुस्लिम भाइयों के रिश्ते इस पैदल ज़ियारत की मदद से और भी मज़बूत हों। इराक़ियों और ग़ैर इराक़ियों का रिश्ता, शिया सुन्नी का रिश्ता, अरब, फ़ार्स, तुर्क और कुर्द जातियों का रिश्ता, यह रिश्ते ख़ुश नसीबी की गैरेंटी हैं। यह रिश्ते अल्लाह की रहमत की निशानी हैं। दुश्मन की कोशिश फूट डालने की थी लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाया और अल्लाह के करम से वह आगे भी सफल नहीं होगा। यह रिश्ता और संपर्क जिस चीज़ ने पैदा किया है वह अल्लाह पर ईमान है, पैग़म्बर और उनके ख़ानदान से मुहब्बत है, इमाम हुसैन से मुहब्बत है।
इमाम ख़ामेनई
Sept 18, 2019
अगर हम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन को आशूर के दौर और चेहलुम के दौर में बांटें तो हमें आशूर को इमाम हुसैन की क़ुरबानी का दिन मानना चाहिए और अरबईन या चेहलुम को इमाम हुसैन की विचारधारा के प्रचार और प्रतिरोध की शुरुआत मानना चाहिए।
इमाम ख़ामेनई
Dec 28, 1980
अरबईन के पैदल मार्च से इस्लाम को ताक़त मिलती है। यह हक़ की ताक़त है। यह इस्लामी प्रतिरोध मोर्चे की ताक़त है जिसकी वजह से दसियों लाख ज़ायरीन कर्बला की ओर, इमाम हुसैन की ओर जो प्रतिष्ठा, क़ुरबानी और शहादत की आख़िरी मंज़िल पर हैं, चल पड़ते हैं।
इमाम ख़ामेनई
Oct 13, 2019
पवित्र प्रतिरक्षा के शहीदों और मुजाहेदीन की निष्ठापूर्ण क़ुरबानियां ईरानी जनता के लिए विजय और सफलता का उपहार लेकर आईं और उनके ख़ून से इतिहास में इस्लामी गणराज्य की सत्यता दर्ज हो गई।
यह मुजाहेदीन का बड़ा सबक़ हैः जहां निष्ठापूर्ण संघर्ष होगा विजय और सरबुलंदी मिलेगी।
इमाम ख़ामेनई
अगर आशूर क़ुरबानी के ज़रिए जेहाद का चरम बिंदु है तो यह चालीस दिन बयान के ज़रिए जेहाद का चरम बिंदु हैं।
पैग़म्बर के ख़ानदान के आंदोलन ने कर्बला की घटना को अमर कर दिया। यह बयान उस क़ुरबानी को मुकम्मल करने वाली कड़ी है।
इमाम ख़ामेनई
Sept 27, 2021