जल्द ही फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास की नेतृत्व परिषद के प्रमुख मोहम्मद इस्माईल दरवीश का Khamenei.ir को दिया गया ख़ुसूसी इंटरव्यू पेश किया जाएगा।
अल्लाह ने क़ुरआन मजीद की इस आयत को "ख़ुदा के हुक्म से कई छोटी जमाअतें बड़ी जमाअतों पर ग़ालिब आ जाती हैं..." (सूरए बक़रह, आयत-249) आपके ज़रिए पूरी दुनिया के सामने मिसाल के तौर पर पेश किया।
अमरीकी, धमकी दे रहे हैं। अगर हमें धमकी देंगे तो हम उन्हें धमकी देंगे। अगर वह इस धमकी पर अमल करेंगे तो हम भी धमकी पर अमल करेंगे। यह व्यवहार, इस्लाम से लिया गया सबक़ और इस्लाम का हुक्म है और यह हमारा फ़रीज़ा है।
इस शख़्स ने जो इस वक़्त सत्ता में है, उस समझौते को फाड़ दिया, ऐसी सरकार से वार्ता नहीं करनी चाहिए, वार्ता करना अक़्लमंदी नहीं है, समझदारी नहीं है, शराफ़तमंदाना काम नहीं है।
अगर आपसे कहा जाता कि एक बालिश्त ज़मीन वाला ग़ज़ा अमरीका की सैन्य ताक़त जैसी एक बड़ी ताक़त से टकराने वाला है और उस पर हावी हो जाएगा तो क्या आपको यक़ीन आता?! आपको यक़ीन नहीं आता, यह नामुमकिन चीज़ों में से है। लेकिन अल्लाह के हुक्म से यह काम मुमकिन है।
दूसरे भी समझते हैं कि अमरीका झूठा है, लेकिन उनमें कहने की हिम्मत नहीं है। दूसरी बहुत सी क़ौमों और ईरानी क़ौम में फ़र्क़ यह है कि ईरानी क़ौम में यह कहने की हिम्मत है कि अमरीका हमलावर है, अमरीका झूठा है, अमरीका धोखेबाज़ है, अमरीका साम्राज्यवादी है और अमरीका मुर्दाबाद।
कूटनैतिक मुस्कुराहटों के पीछे इस तरह की दुश्मनियां, इस तरह के द्वेष इस तरह के घिनौने अंतर्मन छिपे हुए हैं, हम अपनी आँखें खोलें। हमें मालूम होना चाहिए कि हमारा सामना किससे है, हम किससे डील कर रहे हैं, किससे बात कर रहे हैं।
यह रेज़िस्टेंस और उसका आगे बढ़ना, इसी बेसत की एक किरण हैं। रेज़िस्टेंस जो इस्लामी ईरान से शुरू हुआ, उसने मुस्लिम क़ौमों को जागरुक किया। कुछ मुस्लिम क़ौमों को मैदान में ले आया। उसने अवाम की सतह पर मुस्लिम क़ौमों को बेदार किया और बहुत से ग़ैर मुसलमानों के ज़मीरों को भी जगा दिया। वर्चस्ववादी सिस्टम पहचाना गया, पहचनवाया गया।
आज सारे सियासी व दुनियावी समीकरण दक्षिणी लेबनान के मोमिन व मुख़लिस अवाम के हाथों ध्वस्त हो गए जो क़ाबिज़ ज़ायोनी सेना को धता बताते हुए बलिदान के जज़्बे और अल्लाह के वादे पर यक़ीन के साथ जान हथेली पर रख कर मैदान में आ गए।
इमाम ख़ामेनेई
ज़ालिम व निर्दयी ज़ायोनी सरकार, हमास के साथ जिसे वह ख़त्म करना चाहती थी, वार्ता की मेज़ पर बैठी है।और युद्ध विराम पर अमल के लिए उसकी शर्तें मान चुकी है। यह जो हम कहते हैं कि रेज़िस्टेंस ज़िंदा है, इसका अर्थ यह है।
रीगन ने इसी ख़याल से कि ईरान कमज़ोर हो गया है, सद्दाम शासन की इतनी ज़्यादा मदद की। वह भी और दसियों दूसरे ख़याली पुलाव पकाने वाले नरक में पहुंच गए, इस्लामी सरकार दिन ब दिन आगे बढ़ती गयी।
ब्रिक्स (BRICS) के वित्तीय सिस्टम से सदस्य देशों की मुद्राओं से जो लेन-देन होना तय है, अगर उस पर गंभीरता से काम किया गया तो निश्चित तौर पर यह बहुत मदद करेगा।
शहीद राज़ीनी और शहीद मुक़ीसा को अल्लाह के दुश्मनों के हाथों, अल्लाह की राह में शहीद होने का बदला मिला। जो लोग दुनिया से शहीद जाते हैं उन्हें हक़ीक़त में अल्लाह के पास से बदला मिलता है।
कुछ लोग कहते हैं कि जनाब आप अमरीका के साथ न तो वार्ता के लिए तैयार हैं और नहीं संपर्क क़ायम करना चाहते हैं, योरोपीय देशों के साथ जबकि वे भी अमरीका की ही तरह हैं, क्या अंतर है, क्यों संपर्क बना रखा है? नहीं! फ़र्क़ है।
जो लोग भी सांस्कृतिक मसलों में, हेजाब के मसले वग़ैरह में फ़ैसला ले रहे हैं, उनका इस बात की ओर ध्यान रहे कि अमरीका और ज़ायोनियों के स्टैंड को अहमियत न दें, देश के हितों को मद्देनज़र रखें, इस्लामी गणराज्य के हितों को मद्देनज़र रखें।
पहलवी दौर का ईरान, अमरीकी हितों का मज़बूत क़िला था। इस क़िले के गर्भ से इंक़ेलाब निकला और फैल गया। अमरीकी समझ नहीं पाए, अमरीकी धोखा खा गए, अमरीकी सोते रह गए, अमरीकी ग़ाफ़िल थे, अमरीका की अंदाज़े की ग़लती का मतलब यह है।
आज बुनियादी काम, हमारे प्रचारिक तंत्र का अहम काम साइबर स्पेस पर हमारे सरगर्म लोगों का बुनियादी काम यह है कि दुश्मन की ताक़त के भ्रम को चकनाचूर कर दें, जनमत पर दुश्मन के प्रचार का असर न होने दें।
यहया इब्राहीम हसन सिनवार की दास्तान, सिर्फ़ एक इंसान की दास्तान नहीं है। यह नाजायज़ क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ संघर्ष, प्रतिरोध और एक लड़ाई की दास्तान है जिसका दशकों से प्रभाव न सिर्फ़ पश्चिमी एशिया के इलाक़े बल्कि दुनिया पर पड़ा है। उन्होंने हिब्रू ज़बान भी सीखी, वह अपनी क़ौम और अपनी सरज़मीन के दुश्मनों को पहचानते थे और उनके आस-पास के लोग उनका सम्मान भी करते थे।
जो आख़िर में विजयी होगा, वह ईमान की ताक़त है और ईमान वाले हैं। लेबनान, रेज़िस्टेंस का प्रतीक है, वही विजयी होगा। यमन भी रेज़िस्टेंस का प्रतीक है, वही विजयी होगा।
सीला फ़सीह, ग़ज़ा में हाल में ठंड से शहीद होने वाली नवजात शिशु है। ग़ज़ा में सिर छिपाने की जगह न होने और ईंधन की कमी की वजह से बेघर होने वालों के पास ठंडक और गर्मी से बचाव का कोई साधन नहीं है।
सीरिया की जवान नस्ल को चाहिए कि इच्छा शक्ति से उन लोगों के मुक़ाबले में, जो इस अशांति के योजनाकार और इसे फैलाने वाले हैं, डट जाए और इंशाअल्लाह उन्हें हरा देगी।
यमन, हिज़्बुल्लाह, हमास और इस्लामी जेहाद हमारी प्रॉक्सी फ़ोर्स नहीं हैं। अगर हमें किसी दिन कोई क़दम उठाना पड़े तो हमें किसी प्रॉक्सी की ज़रूरत नहीं है।
अल्लाह ने अनेक आयाम से मर्द और औरत को एक जैसा रखा है। आत्मोत्थान के लेहाज़ में इनमें आपस में कोई अंतर नहीं है कि इसका नमूना हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा हैं। नेतृत्व की क्षमता के लेहाज़ से इनमें आपस में कोई अंतर नहीं है कि इसका नमूना हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा हैं।
हज़रत ज़हरा ने अपने दौर की हक़ीक़त को बयान किया। जो मसले उस दिन पेश आए, वे उस दौर के मसले थे। उन्हें हज़रत फ़ातेमा ने बयान किया। अपने दौर के मुद्दों को पेश करना, बहुत अहम फ़रीज़ा है।
अमरीकी अधिकारियों में से एक कह रहा है जो भी ईरान में उपद्रव करेगा हम उसकी मदद करेंगे। मूर्खों को बिल्ली की तरह ख़्वाब में छीछड़ा नज़र आ रहा है। ईरानी क़ौम उस शख़्स को जो इस संबंध में अमरीका का पिट्ठू बनना गवारा करेगा, अपने पैरों तले कुचल देगी।
ज़ायोनी सरकार अपने विचार में, ख़ुद को सीरिया के रास्ते हिज़्बुल्लाह की फ़ोर्सेज़ को घेरने और जड़ से उखाड़ने की तैयारी कर रही है, लेकिन जो उखड़ेगा वो इस्राईल है।
आज हमारे समाज को इस बात को समझने की ज़रूरत है कि घरेलू ख़ातून होने का क्या मतलब है? हज़रत फ़ातेमा ज़हरा, उस शान, उस रुतबे, उस मक़ाम और उस महानता के साथ ही घरेलू ख़ातून भी हैं। उनकी एक शान, उनका एक काम दांपत्य जीवन गुज़ारना है, मातृत्व की ज़िंदगी गुज़ारना है और घरेलू ख़ातून होना है, इन बातों को इस आयाम से देखना चाहिए।
हम गए, हमारी फ़ोर्सेज़ दो वजहों से इराक़ भी गयीं, सीरिया भी गयीं। एक, पाक़ीज़ा रौज़ों की रक्षा करना था। दूसरी वजह सुरक्षा का विषय था। अधिकारी बहुत जल्दी, वक़्त पर समझ गए कि अगर अशांति को वहीं पर रोका न गया तो यह फैलेगी, यहाँ हमारे विशाल मुल्क में अशांति फैल जाएगी।
जो कुछ सीरिया में हुआ वह अमरीका और ज़ायोनी शासन की एक संयुक्त साज़िश का नतीजा है। सीरिया के ख़िलाफ़ अस्ल षड्यंत्रकारी तत्व और मुख्य कमांड रूम अमरीका और ज़ायोनी सरकार में है।
रेज़िस्टेंस मोर्चा ऐसा हैः जितना उससे लड़िएगा, उतना ही उसका दायरा फैलता जाएगा। अल्लाह की ताक़त से, अल्लाह की इजाज़त से ईरान ताक़तवर है और इससे ज़्यादा ताक़तवर होता जाएगा।
शक मत कीजिए ऐसा ही होगा। अल्लाह की तौफ़ीक़ और ताक़त से अमरीका की स्थिति मज़बूत नहीं होगी, अमरीका भी रेज़िस्टेंस मोर्चे के हाथों क्षेत्र से बाहर खदेड़ दिया जाएगा।
चूंकि उसके सामने बंद गली नहीं है, इसी वजह से, इन्हीं दलीलों की वजह से एक बसीज को इस बात का यक़ीन है कि आख़िरकार एक दिन वह ज़ायोनी शासन को निश्चित तौर पर उखाड़ फेंकेगा।
मैं आज यह बात कह रहा हूं कि रेज़िस्टेंस मोर्चे का दायरा आज जितना है, कल उसका दायरा कई गुना ज़्यादा फैल जाएगा। ये मूर्ख अपने हाथों से रेज़िस्टेंस मोर्चे का दायरा बढ़ा रहे हैं।