इमामत के सिलसिले को पैग़म्बरे इस्लाम अल्लाह के हुक्म से आगे बढ़ाते हैं, अलबत्ता इस इमामत के लिए सत्ता व शासन ज़रूरी है। इसीलिए ख़िलाफ़त का एलान करते हैं, विलायत के एलान के वक़्त फ़रमाते हैं: "जिस जिस का मैं मौला हूं उसके ये अली मौला हैं।"
18 ज़िलहिज्जा सन 10 हिजरी का दिन, ग़दीर के एलान और अमीरुल मोमेनीन की जानशीनी के एलान का दिन वह दिन है जब काफ़िर मायूस हो गए। इस बारे में कि वो दीने इस्लाम को मिटा सकेंगे। इस दिन से पहले तक उन्हें यह उम्मीद थी कि ऐसा कर ले जाएंगे। लेकिन इस दिन उनकी उम्मीद मर गई।
बुज़ुर्ग धर्मगुरू आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी के तेहरान के एक अस्पताल में भर्ती होने पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने अस्पताल पहुंच कर उनका हाल-चाल पूछा।
जो लोग तुम्हें क़त्ल करते हैं, तुमसे जंग करते हैं, तुम्हें तुम्हारे वतन से भगा देते हैं या उन लोगों की मदद करते हैं जिन्होंने तुम्हें तुम्हारे घरों से निकाल दिया है तो उनसे संपर्क रखने या उन की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाने का तुम्हें हक़ नहीं है।
पूरे हज में अल्लाह का ज़िक्र है, अल्लाह की याद है। यह ज़िक्र, ज़िंदगी का स्रोत है, इसका हमारी ज़िंदगी पर, हमारे इरादे पर, हमारे संकल्प पर, हमारे बड़े बड़े फ़ैसलों पर असर पड़ेगा।
अज़ीज़ राष्ट्रपति ने ईरान को दुनिया की राजनैतिक हस्तियों की नज़र में ज़्यादा बड़ा और नुमायां कर दिया। इसीलिए आज राजनैतिक हस्तियां जो उनके बारे में बात करती हैं, उन्हें एक नुमायां शख़्सियत बताती हैं।
अलअक़्सा फ़्लड ऑप्रेशन ज़ायोनी सरकार पर एक निर्णायक वार था, एक ऐसा वार जिसका कोई इलाज नहीं है। ज़ायोनी सरकार को इस वार से ऐसे नुक़सान पहुंचे हैं जिनसे वह कभी नजात हासिल नहीं कर पाएगी
इमाम ख़ुमैनी का मानना था कि ख़ुद फ़िलिस्तीनी अवाम को दुश्मन यानी ज़ायोनी सरकार को पीछे हटने पर मजबूर कर देना चाहिए, उसे कमज़ोर बना देना चाहिए। आज यह काम हो गया।
संयुक्त राज्य अमरीका के अज़ीज़ स्टूडेंट्स! यह हमारी आपसे सहृदयता और समरसता का पैग़ाम है। इस वक़्त आप इतिहास की सही दिशा में, जो अपना पन्ना पलट रहा है, खड़े हुए हैं।
आपको सलाम कि दुनिया की सबसे ज़्यादा हथियारों से लैस सेनाओं में से एक और धरती के सबसे घटिया लोगों के मुक़ाबले में आज अपकी दृढ़ता ने हमें, प्रतिरोध का अर्थ समझाया।
राष्ट्रपति हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद इब्राहीम रईसी और हेलीकॉप्टर दुर्घटना में दूसरे शहीदों की नमाज़े जनाज़ा इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की इमामत में अदा की गयी।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई और हुज्जतुल इस्लाम वलमुस्लेमीन मरहूम रईसी इमाम रज़ा अलैहिस्सालम की ज़रीह में मुक़द्दस क़ब्र की सफ़ाई की ख़िदमत करते हुए।
मुल्क की सुरक्षा भी, सरहदों की सुरक्षा भी, मुल्क की सतह के दूसरे काम भी जो कार्यपालिका के ज़रिए अंजाम पाते हैं, सही तरीक़े से अंजाम पाएंगे। लोग चिंतित न हों, घबराएं नहीं, इंशाअल्लाह राष्ट्रपति, जनता के बीच लौट आएंगे।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने तेहरान इंटरनैशनल बुक फ़ेयर का तीन घंटे मुआइना किया और किताबों के मुख़्तलिफ़ स्टालों पर गए, किताबें भी देखीं और स्टाल के मालिकों से बातचीत भी की।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने तेहरान इंटरनैशनल बुक फ़ेयर का मुआइना करने के बाद, संबंधित विभाग को किताबों का प्रकाशन बढ़ाने पर ताकीद की।
चुनाव, मैदान में अवाम की मौजूदगी की निशानी और अवाम के इरादे व निर्णय का चिन्ह है। इसलिए हर उस इंसान का क़ौमी फ़रीज़ा है कि चुनाव में शरीक हो जो चाहता है कि मुल्क तरक़्क़ी करे काम करे और बड़े लक्ष्य तक पहुंचे।
इस्लाम के सबसे ख़ूबसूरत आध्यात्मिक दृष्यों में से एक, मस्जिदुन नबी में क़ुरआन की तिलावत है, मस्जिद और क़ुरआन एक साथ, काबा और क़ुरआन एक साथ, यह बहुत ही सुंदर संगम है।
हज़रत इब्राहीम ने जो शिक्षाएं हमें दी हैं उनके मुताबिक़ इस साल का हज बेज़ारी के एलान का हज है। पश्चिमी कल्चर से निकलने वाले ख़ूंख़ार वजूद से बेज़ारी का एलान जिसने ग़ज़ा में अपराध किए।
अगर अमरीका की मदद न होती तो क्या ज़ायोनी सरकार में इतनी ताक़त थी, हिम्मत थी कि मुसलमान मर्दों, औरतों और बच्चों के साथ उस छोटे से इलाक़े में ऐसा बर्बरतापूर्ण व्यवहार करे?
हज़रत इब्राहीम की शिक्षाओं की बुनियाद पर इस साल का हज ख़ास तौर पर बराअत का हज है, क्योंकि एक तरफ़ ख़ूंख़ार ज़ायोनी है तो दूसरी ओर ग़ज़ा के मुसलमान अवाम का इतनी मज़लूमियत के साथ प्रतिरोध है।
अगर हमारे ये दसियों लाख बच्चे और नौजवान, सिस्टम के बुनियादी हितों को समझ लें, तो फिर दुश्मन के प्रोपैगंडे और प्रोपैगंडों पर अरबों डॉलर ख़र्च करके की जाने वाली ये सारी कोशिशें वग़ैरह नाकाम हो जाएंगी
ग़ज़ा, दुनिया का सबसे बड़ा मुद्दा है। हमें इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दुनिया के लोगों की नज़रों से हटने नहीं देना चाहिए, ये मुद्दा नंबर एक की पोज़ीशन से दुनिया के लोगों की नज़रों से हटने न पाए।
अगर बीस साल और तीस साल बाद तक इस हुकूमत को बचाए रखना चाहें, कि जो उनके बस की बात नहीं है, तो भी मुश्किल हल होने वाली नहीं है। मुश्किल तब हल होगी जब फ़िलिस्तीन उसके अस्ली मालिकों को वापस मिल जाए।
ईरान ने कड़ी पाबंदियों के दौरान भी आधुनिक हथियार वो भी इतनी तादाद में तैयार कर लिए! वो इससे भी ज़्यादा तैयार कर सकता है, इससे भी बेहतर तैयार कर सकता है।