हम जब भी इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की सेवा में पहुंचते और क्षेत्र के हालात के बारे में उनसे बात करते तो वे मुस्कुराते थे और कहते थे कि हमें रेज़िस्टेंस के रास्ते को जारी रखना होगा और इंशाअल्लाह समझौते की साज़िश सफल नहीं होगी।

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