क़ारी मोहम्मद हसन मोवह्हेदी द्वारा क़ुरआन मजीद की तिलावत से मजलिस का आग़ाज़ हुआ। उसके बाद हुज्जतुल इस्लाम महदी असलानी ने मजलिस पढ़ी। उन्होंने मजलिस में आशूर के दिन सत्य और असत्य के बीच जंग की  व्याख्या में यज़ीदियों के मुक़ाबले में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जेहाद को, नाउम्मीदी के मुक़ाबले में उम्मीद का जेहाद और इरादों की जंग बताया और कहा कि समाज में निराशा पैदा करना और अवाम के इरादे को कमज़ोर करना, शैतानी गिरोह का सबसे बड़ा हथकंडा है कि जिसके मुक़ाबले में तर्क, उम्मीद जगाना और उम्मीद जगाने वाले  होते हैं जो संवेदनशील स्थिति में अगर तादाद में कम भी हों तब भी असत्य की बड़ी तादाद के मुक़ाबले में हालात को बदल कर इस प्रक्रिया पर फ़तह हासिल करते हैं।

मजलिस के बाद जनाब मीसम मुतीई ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों के हाल का मर्सिया और नौहा पढ़ा।