इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का ख़ेताबः

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा और मासूम नस्ल और उनके चुने हुए साथियों और भलाई में उनका अनुसरण करने वालों पर क़यामत तक।

मैं आप सभी अज़ीज़ भाइयों, आदरणीय लोगों और विशेषज्ञ असेंबली के मेहनती सदस्यों का स्वागत करता और जनाब बूशहरी की तफ़सीली स्पीच का शुक्रिया अदा करता हूँ जिसमें उन्होंने विशेषज्ञ असेंबली के इस सेशन की तफ़सील और दूसरी बहुत अहम बातें बयान कीं। बहुत अहम विषय पेश किए। काश इन विषयों की पैरवी की जाए, उनका मुतालेबा किया जाए और इंशाअल्लाह ये काम अंजाम पाएं।

आज आप लोगों की सेवा में पेश करने के लिए जो बातें मेरे मद्देनज़र हैं, उनका निचोड़ यह है कि विशेषज्ञ असेंबली अपने अर्थ के लेहाज़ से और मुल्क के संविधान में इसकी जो परिभाषा की गयी है, उसके लेहाज़ से यह इस्लामी इंक़ेलाब का सबसे इंक़ेलाबी विभाग है। सबसे इंक़ेलाबी से मेरी मुराद यह है कि यह इस्लामी इंक़ेलाब से सबसे ज़्यादा संबंधित है। मैं जो इसे सबसे इंक़ेलाबी कहता हूँ तो इसकी वजह वरिष्ठ नेता के चयन में इसका रोल है। यह बहुत अहम काम है, यह अद्वितीय रोल है और अलहम्दुलिल्लाह विशेषज्ञ असेंबली इस रोल के लिए तैयार है और इसको तैयार रहना चाहिए। इस सिलसिले में मैं कुछ बातें पेश करुंगा।

इस्लामी सिस्टम के ढांचे और इस्लामी सिस्टम के सभी विभागों में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का रोल इंक़ेलाब के लक्ष्य और दिशा की हिफ़ाज़त करना है। यह सुप्रीम लीडर की सबसे अहम ज़िम्मेदारी है।

इंक़ेलाब एक मक़सद के लिए आया है। अलबत्ता सभी इंक़ेलाबों के अपने लक्ष्य हैं। बुनियादी लक्ष्य होते हैं जिनकी बुनियाद पर ज़िंदगी के हालात को बदलते हैं, उलट पलट देते हैं। अगर इस्लामी इंक़ेलाब के लक्ष्य को संक्षेप में पेश करना चाहें तो वह मुल्क के अवाम की ज़िंदगी में तौहीद (एकेश्वरवाद) स्थापित करना है। एकेश्वरवाद अर्थ और मफ़हूम के लेहाज़ से ऐसी चीज़ है जो लोगों की समझ के के स्तर के मुताबिक़ विस्तृत होने के योग्य है। सामाजिक ज़िंदगी में यह अर्थ नज़र आना चाहिए क्योंकि सारा का सारा धर्म तौहीद (एकेश्वरवाद) है। धर्म की बुनियाद है और संपूर्ण धर्म का नाम तौहीद है। यह इस्लामी इंक़ेलाब का लक्ष्य है, इसके बारे में काफ़ी बातें, बहस, व्याख्या और तफ़सील है जिसे यहाँ बयान नहीं किया जा सकता। इस्लामी समाज को इस अर्थ के क़रीब करने और एकेश्वरवादी समाज वजूद में लाने के लिए कोशिश ज़रूरी है और इस राह में रुकावटें भी हैं। इस लक्ष्य की राह में हमेशा रुकावटें पेश आती हैं। इस दिशा में बढ़ने की राह में रुकावट डालने वाले तत्व भी पाए जाते हैं। उकसाने वाला तत्व मौजूद है। यह उकसावा यह है कि इंक़ेलाब और सिस्टम को आगे बढ़ने और कामयाब होने और अपने लक्ष्य तक पहुंचने से रोका जाए। इसको रोकना चाहते हैं बल्कि पीछे ले जाना चाहते हैं। अब चाहे यह पीछे ले जाना, अतीत के रूढ़िवादी रूप के बजाए नए रूप में ही क्यों न हो। लेबास नया हो लेकिन अस्ली हक़ीक़त वही हो। ऐसे उकसाने वाले तत्व पाए जाते हैं।

हमने दूसरी क्रांतियों में भी उकसाने वाले तत्व देखे हैं और वे कामयाब भी हुए। क्रांतियों को उनके लक्ष्य तक पहुंचने से रोकने में कामयाब रहे। क्रांतियों का रास्ता पलट दिया। मिसाल के तौर पर आप फ़्रांस के इंक़ेलाब को ले लीजिए, जो हमारे दौर की महाक्रांतियों में शुमार होती है, अभी इंक़ेलाब के 15 साल भी नहीं गुज़रे थे कि अतीत की ज़ालिम व तानाशाही बादशाहत दोबारा मुल्क में क़ायम हुयी और फिर वही हुआ। इतने ज़्यादा पब्लिक आंदोनल, मशहूर फ्रांसीसी विचारकों का आंदोलन, अवाम की कोशिश और संघर्ष, जानी नुक़सान, क़त्ले आम, मारपीट, ये सब बेकार हो गया। 15 साल से कम मुद्दत में सब कुछ ख़त्म हो गया! बिल्कुल यही अंजाम इससे भी बुरे रूप में रूस के इंक़ेलाब का हुआ। वह भी एक महाक्रांति थी। रूस का इंक़ेलाब बहुत बड़ा इंक़ेलाब था। वहाँ भी यही हुआ। 10 साल से भी कम मुद्दत में वे सारे दावे, वे बातें, न्याय व इंसाफ़ के जो दावे किए जा रहे थे, ख़ास कम्युनिस्ट सरकार का वादा, सब कुछ ख़त्म हो गया। एक तानाशाह, स्टालिन जैसा ताक़तवर तानाशाह सत्ता में आया और सब कुछ ख़त्म हो गया। मेरा मतलब यह है कि सभी इंक़ेलाबों के लिए ख़तरा होता है।

क़ुरआन मजीद में इस बात पर ध्यान दिया गया है और इसकी ओर से सावधान भी किया गया है और वह भी एक बार दो बार नहीं, बल्कि शायद दसियों बार। क़ुरआन की आयतों में बार बार पीछे की ओर, पुरानी हालत पर पलट जाने और उससे छुटकारा पा लेने और निकल जाने की बात की गयी है। इस सिलसिले में मोमिनों को भी संबोधित किया गया और ख़ुद काफ़िरों को भी संबोधित किया गया है।

काफ़िरों को चेतावनी दी जाती है कि तुम उसी अतीत के ढर्रे पर चल रहे हो। सूरए तौबा की यह जो आयत है कि "और तुम्हें भी जो तुम्हारा हिस्सा था वह मिला जिस तरह कि उनको भी जो तुमसे पहले थे, वह मिला जो उनका नसीब था और तुम बातिल में डूब गए जिस तरह कि वे डूब गए थे..." (2)(सूरए तौबा, आयत-69) इसका मतलब यह है कि उन्हें दिखाया जा रहा है कि वे वही अतीत की तरह काम कर रहे हैं। कहते हैं कि तुम उसी अतीत की हालत पर चल रहे हो। या सूरए इब्राहीम की इस आयत में कि "और लोगों को उस दिन से डराओ जब उन पर अज़ाब नाज़िल होगा।" (3) और फिर यहाँ पहुंचते हैं कि "और उनके घरों में सुकूनत अख़्तियार की जिन्होंने ख़ुद पर ज़ुल्म किया था और तुम पर आशकारा हो गया कि हमने उनके साथ क्या किया, और तुम्हारे लिए मिसालें क़ायम कीं।" (4)

क़ुरआन मजीद की अनेक आयतों में मोमिनों को भी संबोधित करके चेतावनी दी जाती है और सचेत किया जाता है। मैंने इस संदर्भ में दो तीन आयतें नोट की हैं: "ऐ वह लोगो जो ईमान लाए हो! अगर उनकी इताअत की जो काफ़िर हो गए तो वे तुम्हें तुम्हारे अक़ीदे से पलटा देंगे और तुम घाटे में रहोगे।"(5) यह सूरए आले इमरान में है। अगर ग़फ़लत की, अगर उनकी इताअत की तो पलट जाओगे, पीछे की तरफ़ पलट जाओगे, वापसी हो जाएगी। क़ुरआन मजीद सावधान करता है कि "ऐ वे लोगो जो ईमान लाए हो, अगर अहले किताब की इताअत की तो वे तुम्हें ईमान के बाद हालते कुफ़्र पर पलटा देंगे।" (6) यह भी सूरए आले इमरान में है। और सूरए बक़रह में फ़रमाता है कि "...और वे मुसलसल तुमसे जंग करते हैं ताकि अगर हो सके तो तुम्हें तुम्हारे दीन से पलटा दें..." (7) या सूरए बक़रह की ही इस आयत में फ़रमाता है "बहुत से अहले किताब की आरज़ू थी कि तुम्हें तुम्हारे ईमान के बाद काफ़िर बना दें..." (8) यानी पलट जाने, रुक जाने और पीछे की ओर वापस हो जाने का मसला मामूली बात नहीं है, बहुत अहम मसला है और क़ुरआन ने यह मसला बयान किया है। हम ख़ुद इतिहास की हक़ीक़त को देखते हैं जो हमसे क़रीब है और अतीत में भी यह देखा है।

अतीत की तरफ़ पलटने से रोकने के लिए एक तत्व ज़रूरी है। इस्लामी सिस्टम में यह तत्व नेतृत्व व लीडरशिप है। इस गुमराही को रोकना नेतृत्व का काम है। यह बहुत अहम है। इसकी अहमियत बहुत ज़्यादा है। इसलिए विशेषज्ञ परिषद की अहमियत यह है कि यह असेंबली इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के चयन की ज़िम्मेदार है। इस असेंबली की अहमियत यह है। इसलिए मैंने अर्ज़ किया कि विशेषज्ञ असेंबली सबसे ज़्यादा इंक़ेलाबी विभागों में से एक है। अर्थ के लेहाज़ से इसकी यह हैसियत है, मिसाल के तौर पर मुमकिन है कि मुख़्तलिफ़ तरह के हालात पेश आ जाएं। कभी यह काम हो, कभी न हो। इसलिए वरिष्ठ नेता के लिए मुमकिन है कि यह काम कर सके और कभी न कर सके। अलबत्ता इस बात की कलपना नहीं की जा सकती कि वह न चाहे। चाहने और न चाहने की बात ही नहीं है।   

विशेषज्ञ असेंबली के संबध में एक और अहम बात ख़ुद इस असेंबली की ज़िम्मेदारी का है और वह यह कि विशेषज्ञ असेंबली का गठन और इसके वजूद का मतलब यह है कि इस्लामी सिस्टम रुक नहीं सकता। यानी इसमें रुकावट नहीं आएगी। विघ्न नहीं आ सकता। यानी विशेषज्ञ असेंबली मौजूद है जो बाद के वरिष्ठ नेता का चयन करेगी, यानी यह क्रम पूरी ताक़त व क्षमता के साथ मौजूद रहेगा। विशेषज्ञ असेंबली की यह तैयारी, विशेषज्ञ असेंबली के वजूद का मतलब यह है कि अगर यह शख़्स जो है, न रहे तो विशेषज्ञ असेंबली फ़ौरन कार्यवाही करेगी और बाद के शख़्स का चयन करेगी। यह बात है।

इसके अंतर्गत यहाँ एक और अर्थ भी है जो अपने आप में बहुत अहम है और वह यह है कि वरिष्ठ नेतृत्व का हस्तांतरण यह बताता है कि इस्लामी सिस्टम और इस्लामी इंक़ेलाब किसी व्यक्ति और शख़्स पर निर्भर नहीं है। लोगों का रोल है, उनकी ज़िम्मेदारियां हैं जो उन्हें अंजाम देनी हैं, उनके रोल बहुत अहम हैं जो उन्हें अदा करने हैं, लेकिन उन पर निर्भर नहीं है और उस ख़ास शख़्स के न होने की स्थिति में भी अपने रास्ते पर आगे चल सकता है। यह अल्लाह ने सृष्टि की सबसे अहम व सबसे अज़ीम हस्ती पैग़म्बरे इस्लाम के बारे में बयान किया है कि अगर वह मर जाएं या क़त्ल कर दिए जाएं तो क्या तुम अपने पिछले अक़ीदे पर पलट जाओगे?..." (9)

ध्यान दें इस आयत का संदर्भ ओहद की जंग है। यानी अल्लाह तीसरी हिजरी में यह आयत नाज़िल फ़रमाता है। इस आयत में अवाम को सावधान करता है। इस आयत की ज़बान, फटकारने वाली ज़बान है। जवाबतलबी की ज़बान है कि तुम प़ैग़म्बर के क़त्ल की अफ़वाह से बिखर गए और अपना आपा ऐसा खो बैठे कि कुछ (ऐसी) बातें कह दीं (जो नहीं कहनी चाहिए थीं)। तो क्या पैग़म्बर न होते तो तुम पलट जाते? अपने अतीत की ओर पलट जाते? क़ुरआन जवाबतलबी कर रहा है।

अब आप फ़र्ज़ करें कि तीसरी हिजरी में पैग़म्बरे इस्लाम न हों, अभी इस्लामी सिस्टम भी मज़बूत नहीं हुआ है। इसमें ज़रूरी क्षमता नहीं आयी है और पैग़म्बर को भी उनके बीच से उठा लिया जाता है। ऐसे हालात में अल्लाह यह क़ुबूल नहीं करेगा कि लोग पलट जाएं। क्या तुम अपने अक़ीदे पर पलट जाओगे? यह साबित करता है कि यह लोगों पर निर्भर नहीं है।

बहरहाल यह विशेषज्ञ असेंबली के सबसे अहम फ़रीज़ों में से हैं यानी जो बातें मैंने अर्ज़ की हैं उनमें से विशेषज्ञ असेंबली की अहमियत मालूम होती है। स्वाभाविक तौर पर यह अहमियत विशेषज्ञ असेंबली के कंधों पर भारी फ़रीज़ा भी डालती है और वह यह है कि विशेषज्ञ असेंबली को अपने चयन में बहुत बारीकी और ध्यान से काम लेने की ज़रूरत है। ज़्यादा से ज़्यादा बारीकी और ध्यान से काम ले।

संविधान में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के लिए ज़रूरी शर्तों का ज़िक्र मौजूद है। उनमें से एक शर्त यह है कि इंक़ेलाब और इंक़ेलाब के लक्ष्य पर दिल से अक़ीदा रखता हो। यह अक़ीदा और यक़ीन होना चाहिए। लगातार बिना रुके आगे बढ़ते रहने का संकल्प होना चाहिए। यह जद़िम्मेदारी उसको सौंपना चाहिए जो इसके योग्य हो। लोगों में ऐसी ख़ुसूसियतों को देखा जाए उसके बाद चयन किया जाए। ये कुछ बातें विशेषज्ञ असेंबली के संबंध में अर्ज़ कीं।

ये हमारे दौर के अज़ीम मुजाहिद के चालीसवें के दिन हैं। हक़ और इंसाफ़ की बात तो यह है कि सैयद हसन नसरुल्लाह रिज़वानुल्लाह अलैह (अल्लाह उनके दर्जे बढ़ाए और उनके अज्र में इज़ाफ़ा करे) हमारे दौर के अज़ीम मुजाहिद थे। ये उनकी शहादत के चालीसवें के दिन हैं। ये उनकी याद के दिन हैं। शहीद हनीया, शहीद सफ़ीउद्दीन, शहीद यहया सिनवार, शहीद नीलफ़ुरूशान और दूसरे शहीद, रेज़िस्टेंस मोर्चे की याद के दिन हैं। मैं उनके बारे में अपनी बात के शुरू में अर्ज़ करना चाहता था, अब अर्ज़ करता हूँ। इस असेंबली के शहीदों को भी याद करें, शहीद रईसी (रिज़्वानुल्लाह अलैह) शहीद आले हाशिम (रिज़वानुल्लाह अलैह) को भी याद करें। अल्लाह इन सभी शहीदों के दर्जे बुलंद करे।

ये अज़ीम हस्तियां जिनके नाम मैंने लिए, शहीद नसरुल्लाह और हाल में शहीद होने वाले दूसरे शहीद, हक़ और इंसाफ़ की बात तो यह है कि उन्होंने इस्लाम की इज़्ज़त बढ़ाई, रेज़िस्टेंस मोर्चे को भी इज़्ज़त दी और इस मोर्चे की ताक़त व क्षमता दुगुनी कर दी। ये सभी, जिनके नाम मैंने लिए, इनमें से हर एक ने अलग अलग शक्ल में यह काम किया। हमारे अज़ीज सैयद (हसन नसरुल्लाह) शहीदों के आला दर्जे पर पहुंच गए। वह ख़ुद उस दर्जे तक पहुंच गए जिसकी उन्हें आरज़ू थी लेकिन उन्होंने यहाँ अपनी एक अमर यादगार छोडी और वह हिज़्बुल्लाह है। हिज़्बुल्लाह सैयद की बहादुरी, सूझबूझ और अल्लाह पर उस हैरतअंगेज़ भरोसे की बरकत से जो उनके अंदर था, असाधारण रूप से विकसित हुआ और हिज़्बुल्लाह एक ऐसा संगठन बन गया कि अनेक प्रकार के हथियारों और प्रचारिक हथकंडों से लैस दुश्मन उस पर हावी न हो सका और इंशाअल्लाह भविष्य में भी उस पर हावी न हो सकेगा। शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह ने हिज़्बुल्लाह को एक ऐसे संगठन में तबदील कर दिया।

अलबत्ता उनकी शहादत में अमरीका की साफ़ तौर पर संलिप्तता सबको मालूम है। वाक़ई अमरीकी सरकार के हाथ उनके ख़ून से सने हुए हैं। ग़जा और लेबनान में जो अपराध किए गए, उन सब में अमरीका खुल्लम खुल्ला सहअपराधी है, यह आज सब जानते हैं। इससे पहले समीक्षाओं व टीका टिप्पणियों में कहा जाता था लेकिन अब सब देख रहे हैं। इसी तरह कुछ योरोपीय मुल्क भी सहअपराधी हैं। मैं जो बात कहना चाहता हूँ यह है कि ये संघर्ष जो आज अलहम्दुलिल्लाह पूरी ताक़त से जारी हैं, लेबनान में भी, ग़ज़ा में भी, और फ़िलिस्तीन में भी, निश्चित तौर पर इनसे सत्य को कामयाबी मिलेगी। सत्य के मोर्चे को कामयाबी हासिल होगी। रेजिस्टेंस मोर्चे को कामयाबी मिलेगी। यह वह चीज़ है जिससे हमारी उम्मीद जुड़ी हुयी है और इन सभी वाक़यों और अल्लाह की ओर से किए गए वादे से महसूस होती है और यह निश्चित नतीजा नज़र आता है।

सबसे पहले तो अल्लाह के वादे की दलील से यह बात साबित है कि ये वाक़ए इस आयत पर चरितार्थ होते हैं कि "और जिन लोगों पर जंग मुसल्लत की गयी है, उन्हें जेहाद की इजाज़त दी गयी है, क्योंकि उन पर ज़ुल्म हुआ है और यक़ीनन ख़ुदा उनकी मदद पर क़ादिर है। वह लोग जिन्हें नाहक़ उनके घरों से निकाल दिया गया है (उनका कोई गुनाह नहीं था) सिवाए इसके कि कहते थे हमारा परवरदिगार ख़ुदा है। और अगर ख़ुदा लोगों में से बाज़ के ज़रिए बाज़ को दफ़ा न करता तो सूमए, चर्च, कनीसे और मस्जिदें जिनमें ख़ुदा का नाम लिया जाता है, तबाह और वीरान हो जातीं।"

वे चर्च पर बमबारी करते हैं, अस्पतालों पर हमले करते हैं, मस्जिद पर हमले करते हैं। यानी यह आयत "और अगर ख़ुदा लोगों में से बाज़ के ज़रिए बाज़ को दफ़ा न करता" उन पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। इसका नतीजा क्या है? इस आयत के बाद बयान किया जाता है। नतीजा यह है कि "और यक़ीनन ख़ुदा उन लोगों की मदद करता है जो उसकी नुसरत करते हैं और ख़ुदा बहुत ताक़तवर और नाक़ाबिले शिकस्त है।" (10) वह ताकीद जो इस इबारत में पायी जाती है, यह कुछ लोगों के ज़रिए कुछ लोगों को दफ़ा करना है। यानी मज़लूम के ज़रिए ज़ालिम और अल्लाह की राह में जेहाद करने वालों के संघर्ष से हमलावर और क़ाबिज़ को दफ़ा करना। नतीजा यह है। "और यक़ीनन ख़ुदा उन लोगों की मदद करता है जो उसकी नुसरत करते हैं" यह अल्लाह का वादा है। यानी अल्लाह का फ़रमान है और इसमें शक जायज़ नहीं है। अल्लाह के वादे पर शक जायज़ नहीं है। यह वह वादा है जो अल्लाह ने किया है। अब तक वही हुआ है जो अल्लाह ने कहा है।

एक ओर आयतें और अल्लाह का वादा है और दूसरी ओर हमारे अनुभव हैं। इन लंबे बरसों के दौरान, क़रीब 40 बरस और 30 से ज़्यादा बरसों के दौरान, हिज़्बुल्लाह ने एक बार ज़ायोनी सरकार को बैरूत से खदेड़ा। एक बार सैदा से पीछे ढकेला, एक बार सूर शहर से निकाला और एक बार पूरे दक्षिणी लेबनान के शहरों से, ग्रामीण बस्तियों से निकाल बाहर किया और लेबनान की पहाड़ियों को ज़ायोनी शासन के मनहूस वजूद से पाक किया और हिज़्बुल्लाह की ताक़त लगातार बढ़ती रही है। अल्लाह की राह में जेहाद करने वाले एक छोटे से गिरोह से यह इतनी अज़ीम ताक़त में तबदील हो गया कि जिसने सिर से पैर तक हथियारों से लैस दुश्मन को जो फ़ौजी हथियारों, प्रचारिक हथियारों, राजनैतिक हथियारों, आर्थिक हथियारों से और दुनिया के बड़े उद्दंडियों जैसे यही अमरीकी राष्ट्रपति वग़ैरह के भरपूर सपोर्ट के हथियार से लैस है, उसको कई बार पीछे ढकेला और शिकस्त दी। यह ख़ुद हमारे सामने की बात है। बिल्कुल यही तजुर्बा फ़िलिस्तीनी रेजिस्टेंस मोर्चे का भी है। वह भी 2008 से अब तक 9 बार ज़ायोनी शासन को जंग में शिकस्त दे चुका है।

आज भी जो बात आम लोगों को ज़ाहिरी तौर पर दिखती है, उसके विपरीत फ़िलिस्तीनी रेज़िस्टेंस मोर्चा, ज़ायोनी शासन पर हावी रहा है। इसलिए कि उसका मक़सद हमास को जड़ से ख़त्म करना था, न कर सका। इतने इंसानों का नरसंहार किया, दुनिया को अपना घिनौना चेहरा दिखा दिया, अपना घटियापन जगज़ाहिर कर दिया, अपनी निंदा करवायी, अलग थलग हो गया, रेज़िस्टेंस आंदोलन, हमास के लीडरों को क़त्ल किया और यह समझ लिया कि हमास ख़त्म हो गया लेकिन हमास उसी तरह जंग कर रहा है, उसी तरह संघर्ष कर रहा है। इसका मतलब ज़ायोनी शासन की शिकस्त है।

इसी तरह हिज़्बुल्लाह है। हिज़्बुल्लाह भी इसी तरह है। ताक़तवर है। अब कुछ लोग लेबनान में और दूसरी जगहों पर यह गुमान करके कि हिज़्बुल्लाह कमज़ोर हो गया है, हिज़्बुल्लाह के कामों पर उसकी बुराई करने लगे हैं, वह ग़लत कर रहे हैं, वे भ्रम मैं है, वहम में हैं। हिज़्बुल्लाह ताक़तवर है। संघर्ष कर रहा है। यह सही है कि सैयद हसन नसरुल्लाह और सैयह हाशिम सफ़ीउद्दीन जैसी उसकी अज़ीम हस्तियां बाक़ी नहीं रहीं, लेकिन यह संगठन अलहम्दुलिल्लाह अपने जवानों के साथ, अपनी भीतरी व आध्यात्मिक ताक़त के साथ, अपने जोश व जज़्बे के साथ बाक़ी है और दुश्मन उस पर हावी न हो सका और इंशाअल्लाह कभी उस पर हावी न हो पाएगा। इंशाअल्लाह यह इलाक़ा और दुनिया, अल्लाह की राह में जेहाद करने वालों के हाथों ज़ायोनी शासन की खुली शिकस्त को देखेगी। उम्मीद है कि इंशाअल्लाह आप लोग भी देखेंगे।

आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।

1 इस मुलाक़ात में जो छठी विशेषज्ञ असेंबली के दूसरे सेशन के अंत पर अंजाम पायी, असेंबली के चेयरमैन आयतुल्लाह मोहम्मद अली मोवह्हेदी किरमानी और वाइस चेयरमैन हुज्जतुल इस्लाम वलमुस्लेमीन सैयद हाशिम बूशहरी ने कुछ बातें बयान कीं।

2 सूरए तौबा आयत-69"और तुम्हे भी जो तुम्हारा हिस्सा था वह मिला जिस तरह कि उनको भी जो तुमसे पहले थे, वह मिला जो उनका नसीब था और तुम बातिल में डूब गए जिस तरह कि वे डूब गए थे..."

3 सूरए इब्राहीम, आयत-44 "और लोगों को उस दिन से डराओ जब उन पर अज़ाब नाज़िल होगा।"

4 सूरए इब्राहीम आयत-45, "और उनके घरों में सुकूनत अख़्तियार की जिन्होंने ख़ुद पर ज़ुल्म किया था और तुम पर आशकार हो गया कि हमने उनके साथ क्या किया, और तुम्हारे लिए मिसालें क़ायम कीं।"

5 सूरए आले इमरान, आयत-149, "ऐ वे लोगो जो ईमान लाए हो! अगर उनकी इताअत की जो काफ़िर हो गए तो वे तुम्हें तुम्हारे अक़ीदे से पलटा देंगे और तुम घाटे में रहोगे।"

6 सूरए आले इमरान, आयत-100, "ऐ वो लोगो जो ईमान लाए हो, अगर अहले किताब की इताअत की तो वह तुम्हें ईमान के बाद हालते कुफ़्र पर पलटा देंगे।"

7 सूरए बक़रह, आयत-217, "...और वे मुसलसल तुमसे जंग करते हैं ताकि अगर हो सके तो तुम्हें तुम्हारे दीन से पलटा दें..."

8 सूरए बक़रह, आयत-109, "बहुत से अहले किताब की आरज़ू थी कि तुम्हें तुम्हारे ईमान के बाद काफ़िर बना दें..."

9 सूरए आले इमरान, आयत-144, "अगर वह मर जाएं या क़त्ल कर दिए जाएं तो क्या तुम अपने अक़ीदे से पलट जाओगे?..."

सूरए हज, आयत-39 और 40, "और जिन लोगों पर जंग मुसल्लत की गयी है, उन्हें जेहाद की इजाज़त दी गयी है, क्योंकि उन पर ज़ुल्म हुआ है और यक़ीनन ख़ुदा उनकी कामयाबी पर क़ादिर है। वह लोग जिन्हें नाहक़ उनके घरों से निकाल दिया गया है (उनका कोई गुनाह नहीं था) सिवाए इसके कि कहते थे हमारा परवरदिगार ख़ुदा है। और अगर ख़ुदा लोगों में से बाज़ के ज़रिए बाज़ को दफ़ा न करता तो सूमए, चर्च, कनीसे और मस्जिदें जिनमें ख़ुदा का नाम लिया जाता है, तबाह और वीरान हो जातीं। और यक़ीनन ख़ुदा उन लोगों की मदद करता है जो उसकी नुसरत करते हैं और ख़ुदा बहुत ताक़तवर और नाक़ाबिले शिकस्त है।"