इस सभा में जिसमें बड़ी तादाद में मोमिन, इंक़ेलाबी और ज़िम्मेदारी का एहसास रखने वाले लोग तेहरान के इमाम ख़ुमैनी मुसल्ला और उसके आस पास की सड़कों पर कई किलोमीटर के दायरे में मौजूद थे, आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मुजाहिद शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह को इस्लामी जगत की फ़ख़्र के क़ाबिल और लोकप्रिय शख़्सियत बताया जो क्षेत्र की क़ौमों की ज़बान थे।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि प्रतिरोध के मोर्चे के ध्वजवाहक और मज़लूमों के बहादुर रक्षक की शख़्सियत का असर उनकी शहादत के बाद और फैलेगा और क्षेत्र की क़ौमें और अल्लाह की राह में जेहाद करने वाले, उनकी शहादत के पैग़ाम यानी अल्लाह पर ज़्यादा से ज़्यादा भरोसा, ज़्यादा मज़बूत एकता, ज़ायोनी दुश्मन को शिकस्त और उसके विनाश तक बिना किसी संदेह के ज़्यादा ताक़त से संघर्ष को पूरे वजूद से आगे बढ़ाएंगे।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने मुसलमानों में एकता पर आधारित क़ुरआन की तालीम की व्याख्या में कहा कि आपस में लगाव, सह्रदयता और सहयोग पर आधारित मुसलमानों में दोस्ती, अल्लाह की तरफ़ से युक्तिपूर्ण मदद का सबब बनेगी कि जिसके नतीजे में दुश्मनों पर कामयाबी मिलेगी और इस राह में आने वाली रुकावटें दूर होंगी।

उन्होंने इस पाकीज़ा नीति के मुक़ाबले में साम्राज्यवाद और आक्रमणकारी ताक़तों की फूट डालने वाली नीति चिन्हिंत करते हुए कहा कि इस्लामी जगत को साम्राज्यवाद की फूट डालो और राज करो की पालिसी से बहुत नुक़सान पहुंचा है लेकिन आज का दिन मुसलमानों के जागरुक होने का दिन है, ऐसा न हो कि यह गंदी नीति फिर से दोहराई जाए।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने दुश्मन की फूट डालने के लिए सैन्य राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक लेहाज़ से अलग अलग नीतियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि ईरानी कौम का दुश्मन वही है जो फ़िलिस्तीनी, लेबनानी, मिस्री, सीरियाई, इराक़ी, यमनी और दूसरी इस्लामी क़ौमों का दुश्मन है और हमला करने और फूट डालने के सभी निर्देश एक ही कमांड रूम से जारी होते हैं सिर्फ़ अलग अलग मुल्कों में उन्हें लागू करने के अंदाज़ में अंतर है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल दिया कि जो भी क़ौम चाहती है कि दुश्मन की पंगु बना देने वाली घेराबंदी का शिकार न हो, उसे जाग जाना चाहिए और जिस क़ौम को दुश्मन निशाना बनाए बाक़ी क़ौमें उसकी मदद के लिए दौड़ पड़ें वरना उनका भी वहीं अंजाम होगा।

उन्होंने बल दिया कि अफ़ग़ानिस्तान से यमन और ईरान से ग़ज़ा, लेबनान और सभी इस्लामी मुल्कों तक इज़्ज़त, स्वाधीनता और रक्षा बेल्ट को मज़बूत कर लेना चाहिए।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने वतन की ख़ाक, अपने घर और अपने हितों की रक्षा के लिए इस्लाम के तर्क व शरीअत पर आधारित रक्षा के बारे में स्पष्ट हुक्म की ओर इशारा करते हुए कहा कि संविधान और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक़ भी हमलावरों और क़ाबिज़ ताक़तों के मुक़ाबले में फ़िलिस्तीन और दूसरी क़ौमों की मदद करना पूरी तरह सही और ठोस तर्क पर आधारित है और किसी शख़्स, किसी सेंटर और अंतर्राष्ट्रीय संगठन को इस संबंध में एतेराज़ का हक़ नहीं है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इसी तरह इस्लाम, अक़्ल और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून की बुनियाद पर हर उस क़ौम की मदद को शरीअत के लेहाज़ से सही बताया जो आक्रमणकारियों से अपनी रक्षा कर रही है। उन्होंने कहा कि इस बुनियाद पर किसी को यह हक़ नहीं पहुंचता कि वह लेबनान और हिज़्बुल्लाह सहित ग़ज़ा के मज़लूम अवाम की मदद करने और फ़िलिस्तीनी क़ौम के आंदोलन के प्रति होने वाले सपोर्ट पर एतेराज़ करे।

उन्होंने अलअक़्सा फ़लड आप्रेशन को जो पिछले साल इन्हीं दिनों हुआ, तर्क की बुनियाद पर और अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक़ फ़िलिस्तीनी क़ौम के हक़ में उठाया जाने वाला सही क़दम बताया और फ़िलिस्तीनी अवाम के हक़ में लेबनानियों की बहादुरी से भरी मदद को पूरी तरह क़ानून और शरीअत के मुताबिक़ क़रार दिया।

उन्होंने कहा कि हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की कार्यवाही, क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार को उसके अपराध की तुलना में न्यूनतम सज़ा थी जो क्षेत्र में अमरीका की ख़ूंखार पागल कुत्ते के रूप में मौजूद इस सरकार को दी गयी।

उन्होंने इस संबंध में इस्लामी गणराज्य की ओर से हर फ़रीज़े को पूरी ताक़त व दृढ़ता से अंजाम दिए जाने पर ताकीद करते हुए कहा कि हम इस फ़रीज़े को अंजाम देने में न सुस्ती दिखाएंगे, न जल्दबाज़ी करेंगे और जो कुछ फ़ौजी और राजनैतिक अधिकारियों की नज़र में तार्किक व सही होगा उसे सही वक़्त पर अंजाम दिया जाएगा, जैसा कि यह काम हुआ और भविष्य में भी ज़रूरत पड़ने पर अंजाम पाएगा।

रहबरे इंक़ेलाब ने नमाज़े जुमा का दूसरा ख़ुतबा अरबी भाषा में दिया और कहा कि इस ख़ुतबे में मेरा संबोधन इस्लामी दुनिया से है लेकिन विशेष रूप से हमारा ख़ेताब लेबनान और फ़िलिस्तीन के अवाम से है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने हिज़्बुल्लाह के प्रमुख शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह को याद करते हुए कहा कि मैंने ज़रूरी समझा कि मेरे भाई, मेरे अज़ीज़, गौरवान्वित करने वाले, इस्लामी जगत की लोकप्रिय हस्ती, इलाक़े की क़ौमों की ज़बान, लेबनान के अनमोल रत्न जनाब सैयद हसन नसरुल्लाह रिज़वानुल्लाह अलैह को श्रद्धांजलि पेश करने का प्रोग्राम तेहरान की जुमे की नमाज़ में आयोजित हो।

उनका कहना था कि हम सबके सब अज़ीज़ सैयद की शहादत पर दुखी और सोगवार हैं। यह बहुत बड़ा नुक़सान है, इसने वाक़ई हमें ग़मज़दा कर दिया है। अलबत्ता हमारी सोगवारी अवसाद, मानसिक परेशानी और निराशा के मानी में नहीं है। यह शहीदों के सरदार इमाम हुसैन बिन अली अलैहेमस्सलाम की अज़ादारी जैसी है, नई जान डालने वाली, जोश व जज़्बा भरने वाली और उम्मीद पैदा करने वाली।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ज़ोर देकर कहा कि बेशक सैयद हसन नसरुल्लाह का जिस्म हमारे बीच नहीं रहा लेकिन उनकी अस्ली शख़्सियत, उनकी आत्मा, उनका रास्ता, उनकी दूर तक पहुंचने वाली आवाज़ हमारे बीच यथावत बाक़ी रहेगी।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह के महान व्यक्तित्व के बारे में बात करते हुए कहा कि वो ज़ालिम और लुटेरे शैतानों के मुक़ाबले में प्रतिरोध का ऊंचा परचम थे। मज़लूमों की बोलती ज़बान और बहादुर रक्षक थे, मुजाहिदों और सत्य की राह पर चलने वालों के साहस और ढारस का सबब थे। उनकी लोकप्रियता और गहरे प्रभाव का दायरा लेबनान, ईरान और अरब मुल्कों की सरहदों से आगे तक फैला हुआ था और अब उनकी इस शहादत से उनका प्रभाव और बढ़ जाएगा।

रहबरे इंक़ेलाब ने लेबनान के अवाम को शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह का पैग़ाम याद दिलाते हुए कहा कि लेबनान की वफ़ादार क़ौम के लिए उनका सबसे अहम ज़बानी और अमली पैग़ाम यह था कि इमाम मूसा सद्र, अब्बास मूसवी और दूसरी प्रतिष्ठित हस्तियों के इस संसार से चले जाने की स्थिति में आप मायूस और परेशान न हों, संघर्ष की राह में शक व संदेह का शिकार न हों, अपनी कोशिश और ताक़त बढ़ाइये, अपनी एकता और एकजुटता को बढ़ाइये। हमलावर व आक्रामक दुश्मन के मुक़ाबले में ईमान और अल्लाह पर भरोसे के जज़्बे को मज़बूत करके प्रतिरोध कीजिए और उसे नाकाम कर दीजिए।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ज़ायोनी शासन के बर्बर हमलों का उल्लेख करते हुए कहा कि घटिया दुश्मन जब हिज़्बुल्लाह या हमास या इस्लामी जेहाद या अल्लाह की राह में जेहाद के दूसरे आंदोलनों के मज़बूत ढांचे को कोई बड़ा नुक़सान नहीं पहुंचा पा रहा है तो टार्गेट किलिंग, बमबारी, क़त्ले आम और निहत्थे लोगों को सोगवार करके उसे अपनी कामयाबी ज़ाहिर कर रहा है।

 

मगर उनका कहना था कि इस रवैये का नतीजा अवाम के ग़म व ग़ुस्से की तीव्रता, जज़्बात का भड़क जाना, ज़्यादा लोगों, सरदारों, रहनुमाओं और त्यागी बहादुरों का सामने आना और ख़ूंख़ार भेड़िए के गिर्द घेराबंदी का तंग हो जाना और दुनिया से उसके शर्मनाम वजूद का अंत है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने शहीद सैयद हसन नसरुल्लाह के महान योगदान को याद करते हुए कहा कि अज़ीज़ सैयद 30 साल तक संघर्ष में नेतृत्व के फ़रीज़े अंजाम देते रहे और हिज़्बुल्लाह को एक एक क़दम करके बुलंदियों पर पहुंचाया।

उन्होंने कहा कि सैयद की सूझबूझ भरी कोशिशों से हिज़्बुल्लाह ने चरणबद्ध रूप में, सब्र व धैर्य से, तार्किक और स्वाभाविक अंदाज़ में विकास का अमल तय किया और मुख़्तलिफ़ मौक़ों पर ज़ायोनी सरकार को पीछे ढकेल कर दुश्मन को अपनी मौजूदगी का एहसास कराया।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई का कहना था कि घायल व लहूलुहान लेबनान का क़र्ज़ अदा करना हमारा और सभी मुसलमानों का फ़रीज़ा है। हिज़्बुल्लाह और शहीद सैयद ने ग़ज़ा का साथ देकर, मस्जिदुल अक़्सा के लिए जेहाद करके और क़ाबिज़ व ज़ालिम सरकार पर वार लगाकर पूरे इलाक़े और इस्लामी जगत की बुनियादी सेवा की राह में क़दम बढ़ाया।

रहबरे इंक़ेलाब ने अमरीका और ज़ायोनी शासन की ख़तरनाक साज़िश का उल्लेख करते हुए कहा कि क़ाबिज़ सरकार की सुरक्षा पर अमरीका और उसके घटकों का ज़ोर इस इलाक़े के संसाधनों को हड़पने और उसे दुनिया की जंगों में इस्तेमाल करने के मक़सद से इस सरकार को एक हथकंडे में तबदील करने की घातक नीति पर पर्दा डालने की कोशिश है। इनकी नीति इस सरकार को इलाक़े से पश्चिमी जगत के लिए ऊर्जा की आपूर्ति और पश्चिम से प्रोडक्ट और टेक्नालोजी इस इलाक़े में लाने के दरवाज़े में तबदील करना है। इसका मतलब क़ाबिज़ सरकार के वजूद की गारंटी मुहैया करना और पूरे इलाक़े को उसका मोहताज बना देना है। मुजाहिदों के ख़िलाफ़ इस सरकार का बर्बरतापूर्ण और बेलगाम रवैया इसी पोज़ीशन में पहुंचने की लालच का नतीजा है।

उन्होंने कहा कि यह हक़ीक़त हमें यह बताती है कि इस सरकार पर पड़ने वाला हर वार चाहे वह किसी भी शख़्स या संगठन की ओर से हो, न सिर्फ़ इलाक़े बल्कि पूरी इंसानियत की सेवा है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि यह घटिया सरकार बुनियाद से ख़ाली, जाली और अस्थिर है, सिर्फ़ अमरीकी मदद से उसने बड़ी मुश्किल से ख़ुद को बाक़ी रहा है। लेकिन अल्लाह की इजाज़त से, यह भी ज़्यादा टिक नहीं सकेगी। इस दावे की साफ़ दलील यह है कि इस वक़्त दुश्मन ग़ज़ा और लेबनान में अरबों डालर ख़र्च करने के बाद अमरीका और कई पश्चिमी सरकारों की व्यापक मदद के बावजूद मैदाने जंग के कुछ हज़ार जवानों और अल्लाह की राह में जेहाद करने वाले मुजाहिदों के मुक़ाबले में जो घिरे हुए भी हैं और बाहर से उनकी हर तरह की मदद रोक दी गयी है, शिकस्त खा गयी, उसकी सारी कामयाबी बस घरों, स्कूलों, अस्पतालों और निहत्थे लोगों की भीड़ वाली जगहों पर बमबारी करना है।

रहबरे इंक़ेलाब के अनुसार आज धीरे धीरे अपराधी ज़ायोनी गैंग भी इस नतीजे पर पहुंच गया है कि हमास और हिज़्बुल्लाह को हरगिज़ शिकस्त नहीं दे सकेगा।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने रेज़िस्टेंस की विजय को यक़ीनी बताते हुए कहा कि ग़ज़ा में प्रतिरोध ने दुनिया को हैरत में डाल दिया, इस्लाम का गौरव बढ़ाया। ग़ज़ा में सभी शैतानी व घटिया हरकतों के मुक़ाबले में इस्लाम सीना तान कर खड़ा हो गया। कोई भी आज़ाद सोच रखने वाला इंसान ऐसा नहीं है जो इस दृढ़ता को सलाम न करे और बर्बर व ख़ूंख़ार दुश्मन पर लानत न भेजे।

उनका कहना था कि अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन और ग़ज़ा तथा लेबनान के एक साल के प्रतिरोध ने क़ाबिज़ सरकार को इस हालत में पहुंचा दिया कि उसकी सारी चिंता अपने वजूद को बचाना है, यानी वही चिंता जो वजूद में आने के आग़ाज़ के दिनों में उसे सताती रहती थी। इसका मतलब यह है कि फ़िलिस्तीन व लेबनान के मुजाहिद जवानों के संघर्ष ने ज़ायोनी सरकार को 70 साल पीछे ढकेल दिया है।

रहबरे इंक़ेलाब ने इलाक़े में विदेशी हस्तक्षपे की आलोचना करते हुए कहा कि इस इलाक़े में जंग, अशांति और पिछड़ेपन की अस्ली वजह ज़ायोनी सरकार का वजूद और उन सरकारों की मौजूदगी है जो यह दावा करती हैं कि वो इलाक़े में शांति व अमन की कोशिश कर रही हैं। इलाक़े की सबसे बड़ी मुश्किल ग़ैरों की दख़लअंदाज़ी है। इलाक़े की सरकारें इस इलाक़े में अमन व शांति क़ायम करने में सक्षम हैं। इस अज़ीम व मुक्ति दायक लक्ष्य के लिए क़ौमों और सरकारों को कोशिश व संघर्ष करने की ज़रूरत है।