फ़िलिस्तीन और क़ुद्स की आज़ादी के ध्वजवाहक हुज्जतुल इस्लाम वलमुस्लेमीन सैयद हसन नसरुल्लाह की मज़लूमाना शहादत के बाद और अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन(1) की पहली सालगिरह के मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने 4 अक्तूबर 2024 को तेहरान की जुमे की नमाज़ पढ़ाई।
पहला ख़ुतबा
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए और दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार और नबी अबिल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाकीज़ा, सबसे पाक, सबसे चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी पर। ऐ अल्लाह मैं तेरी तारीफ़ करता हूँ, तुझसे मदद चाहता हूँ, तुझसे इस्तेग़फ़ार चाहता हूँ और तुझ पर भरोसा करता हूँ। और सलाम हो मुसलमानों के इमाम और दीन दुखियों के समर्थकों और मोमिनों की हिदायत करने वालों पर। अल्लाह फ़रमाता हैः और मोमिन मर्द और मोमिन औरतें ये सब बाहम यकरंग और हम आहंग हैं, वह भलाई का हुक्म देते हैं और बुराई से रोकते हैं और नमाज़ क़ायम करते हैं। और ज़कात अदा करते हैं और अल्लाह और उसकी रसूल की इताअत करते हैं। यही वह लोग हैं जिन पर अल्लाह ज़रूर रहम फ़रमाएगा। यक़ीनन अल्लाह ज़बरदस्त और बड़ा हिकमत वाला है। (2)(सूरए तौबा, आयत-71)
अपने सारे अज़ीज़ भाइयों और बहनों को अल्लाह का तक़वा अपनाने की दावत देता हूँ, सिफ़ारिश करता हूँ। अपनी बातचीत और अपने कर्मों में हम सावधान रहें और अल्लाह की ओर से निर्धारित की गयी सीमा से बाहर न निकलें। तक़वा के यही मानी हैं।
जिस आयत की मैंने तिलावत की, उसमें मोमिनों के एक दूसरे से लगाव और संपर्क का अहम विषय पेश किया गया है। क़ुरआन के शब्दों में इस संपर्क व लगाव को 'विलायत' कहा गया है, मोमिनों की आपस में एक दूसरे से विलायत। यह चीज़ क़ुरआन की कई आयतों में आयी है। इस आयत में विलायत और आपसी लगाव का नतीजा अल्लाह की रहमत क़रार दिया गया हैः 'यही वे लोग हैं जिन पर अल्लाह ज़रूर रहम फ़रमाएगा।' यानी अगर मुसलमानों में आपसी रिश्ते, संपर्क, सहयोग और हमदिली हो तो अल्लाह की रहमत उन्हें अपने दायरे में ले लेगी। इसके बाद अल्लाह फ़रमाता हैः 'यक़ीनन अल्लाह ज़बरदस्त और बड़ा हिकमत वाला है।' अल्लाह की इज़्ज़त और हिकमत का ज़िक्र करके आयत को ख़त्म किया गया है। इसका मक़सद शायद यह हो कि इस मौक़े पर अल्लाह की रहमत नाज़िल होने का संबंध अल्लाह की इज़्ज़त और हिकमत से है। चूंकि अल्लाह की रहमत में बंदों पर अल्लाह की ओर से नाज़िल होने वाली अनेक मेहरबानियां शामिल हैं। सारी नेमतें, सारी कृपाएं, ज़िंदगी के सारे वाक़यों के पीछे अल्लाह की रहमत है। मगर इस आयत में इस रहमत का हक़ीक़त में इज़्ज़त और हिकमत से संबंध है। अल्लाह की इज़्ज़त यानी पूरी सृष्टि अल्लाह की क़ुदरत के अंदर और उसके प्रभुत्व में है। अल्लाह की हिकमत से मुराद सृष्टि के नियमों की मज़बूती व दृढ़ता। शायद इस आयत में हमारा ध्यान इस बात की ओर केन्द्रित कराया गया है कि अगर मुसलमानों में आपस में एकता हो तो अल्लाह की इज़्ज़त और हिकमत उनका सपोर्ट करेगी। वे अल्लाह की अथाह ताक़त से लाभान्वित होंगे। अल्लाह की परंपराओं और नियमों के तक़ाज़ों से फ़ायदा उठा सकते हैं।
यह विलायत क्या है? इससे मुराद है मुसलमानों का आपस में संपर्क और निर्भरता। यह मुसलमानों के लिए क़ुरआन की नीति है। मुसलमानों के लिए क़ुरआन की नीति यह है कि मुसलमान क़ौमें, मुसलमान जमाअतें आपस में एकता क़ायम करें, मानो वादा किया जा रहा है कि अगर आप मुसलमान क़ौमें आपस में एकजुट हो गयीं तो इसका नतीजा यह होगा कि अल्लाह की इज़्ज़त आपका सपोर्ट करेगी। यानी फिर आप सारी रुकावटों से निपट लेंगे, सारे दुश्मनों पर विजयी हो जाएंगे। अल्लाह की हिकमत आपकी मदद करेगी। यानी सृष्टि के सभी नियम आपकी तरक़्क़ी में आपके मददगार बनेंगे। यह क़ुरआन का तर्क और क़ुरआन की नीति है।
इसके विपरीत नीति, इस्लाम के दुश्मनों की नीति है। यानी दुनिया की साम्राज्यवादी ताक़तों और दूसरों के अधिकारों पर डाका डालने वालों की नीति। उसकी नीति 'फूट डालो और राज करो' की नीति है। उनकी मूल नीति ही फूट डालना है। फूट डालने की इस नीति को इस्लामी मुल्कों में आज तक अनेक तरह के हथकंडों से लागू किया जाता रहा है। आज भी वे बाज़ नहीं आए हैं, उनकी वजह से मुसलमान क़ौमों के दिल एक दूसरे की ओर से साफ़ नहीं है। लेकिन अब क़ौमें जाग गयी हैं। आज वह दिन है कि इस्लामी जगत इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मनों के इस हथकंडे को नाकाम बना सकता है।
मैं अर्ज़ करना चाहता हूं कि ईरानी क़ौम का जो दुश्मन है वही फ़िलिस्तीनी क़ौम का भी दुश्मन है, वही लेबनानी क़ौम का भी दुश्मन है, वही इराक़ी क़ौम का भी दुश्मन है, वही मिस्री क़ौम का भी दुश्मन है, वही सीरियाई क़ौम का भी दुश्मन है, यमनी क़ौम का भी दुश्मन है। दुश्मन एक ही है। बस अलग अलग मुल्कों में दुश्मन की शैलियां अलग है। कही मनोवैज्ञानिक जंग के ज़रिए, कहीं आर्थिक दबाव की मदद से, कहीं दो टन भारी बम की मदद से, कहीं हथियारों से, कहीं मुस्कुराहटों से हमारे दुश्मन अपनी इस नीति को लागू कर रहे हैं। मगर सबका कमाडं एंड कंट्रोल रूम एक है। एक ही जगह से निर्देश जारी होते हैं। एक ही जगह से मुसलमान आबादियों और मुसलमान क़ौमों पर हमलों का निर्देश जारी होता है। अगर यह नीति किसी एक मुल्क में कामयाब हुयी, किसी एक मुल्क पर हावी हुयी तो उस एक मुल्क की ओर से संतुष्ट होने के बाद दुश्मन दूसरे मुल्क की ओर बढ़ेगा। क़ौमों को चाहिए कि ऐसा न होने दें।
जो क़ौम भी चाहती है कि दुश्मन की बेबस कर देने वाली नाकाबंदी का शिकार न हो, उसे चाहिए कि पहले ही अपनी आँखें खुली रखे, जागरुक रहे, जैसे ही देखे कि दुश्मन किसी दूसरी क़ौम की ओर बढ़ रहा है, ख़ुद को मज़लूम व पीड़ित क़ौम के दुख दर्द में शरीक जाने, उसकी मदद करे, उससे सहयोग करे ताकि दुश्मन वहाँ कामयाब न हो सके। अगर दुश्मन वहाँ कामयाब हो गया तो दूसरे प्वाइंट की ओर बढ़ेगा। हम मुसलमान बरसों इस हक़ीक़त की ओर से लापरवाही करते रहे और इसका नतीजा भी हमने देखा। अब आज हमें ग़ाफ़िल नहीं होना चाहिए। हमें सचेत रहना चाहिए। हमें चाहिए कि रक्षा बेल्ट को, स्वाधीनता की बेल्ट को, सम्मान व प्रतिष्ठा की बेल्ट को अफ़ग़ानिस्तान से यमन तक, ईरान से ग़ज़ा और लेबनान तक सारे इस्लामी मुल्कों में, सारी मुसलमान क़ौमों में मज़बूत बनाएं। यह पहला बिंदु है जिसके बारे में मैं आज बात करना चाह रहा था।
आज मेरी गुफ़तगू का बड़ा हिस्सा लेबनानी और फ़िलिस्तीनी भाइयों से विशेष है जो मुश्किलों का शिकार हैं। दूसरे ख़ुतबे में ये बातें उनसे अर्ज़ करुंगा। दूसरा बिंदु यह है कि इस्लाम के सुरक्षा संबंधी आदेशों ने हमें अपने कर्तव्य की ओर से आगाह कर दिया है। इस्लाम के रक्षा से संबंधित हुक्म ने भी, हमारे संविधान ने भी और अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों ने भी, वैसे इन क़ानूनों के बनाने में हमारा कोई रोल नहीं रहा है, फिर भी यहाँ तक कि इन क़ानूनों में भी ये चीज़ जो मैं अर्ज़ करने जा रहा हूँ मान्य हक़ीक़त का दर्जा रखती हैं। वह चीज़ यह है कि हर क़ौम को अपनी सरज़मीन की, अपने घर की, अपने मुल्क की, अपने हितों की आक्रमणकारियों के मुक़ाबले में रक्षा करने का अधिकार है। इस बात का यह मतलब है। इस बात का मतलब यह है कि फ़िलिस्तीनी क़ौम को पूरा हक़ है कि उस दुश्मन के मुक़ाबले में जिसने उसकी सरज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रखा है, उसके घर पर क़ब्ज़ा कर लिया है, उसकी खेतियों को तबाह कर दिया है, उसकी ज़िंदगी को बर्बाद कर दिया है, रक्षा करे। फ़िलिस्तीनी क़ौम को यह अधिकार हासिल है। यह बहुत तर्कपूर्ण बात है जिसे आज अंतर्राष्ट्रीय क़ानून भी मानते हैं।
फ़िलिस्तीन किसका है? फ़िलिस्तीनी अवाम कौन हैं? ये क़ाबिज़ कहाँ से आए हैं? फ़िलिस्तीनी क़ौम को उनके ख़िलाफ़ उठ खड़े होने का हक़ है। कोई भी अदालत, कोई भी सेंटर, कोई भी अंतर्राष्ट्रीय संगठन फ़िलिस्तीनी क़ौम पर एतेराज़ करने का हक़ नहीं रखता कि वह क्यों क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ सीना तान कर खड़ी है। किसी को हक़ नहीं है। जो लोग फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की मदद कर रहे हैं वे भी अस्ल में अपने फ़रीज़े पर अमल कर रहे हैं। कोई भी किसी भी अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के हेसाब से फ़िलिस्तीनी राष्ट्र और लेबनान के हिज़्बुल्लाह पर एतेराज़ का हक़ नहीं रखता कि वह क्यों ग़ज़ा की और फ़िलिस्तानी अवाम के आंदोलन का सपोर्ट कर रहा है। यह उनका फ़रीज़ा था। उन्हें यह करना ही था। यह तो इस्लामी हुक्म भी है, अक़्ल का तक़ाज़ा भी है और अंतर्राष्ट्रीय व वैश्विक तर्क भी यही है। फ़िलिस्तीनी अपनी सरज़मीन के लिए लड़ रहे हैं, उनका रक्षा करना क़ानूनी हैसियत रखता है, उनकी मदद करना क़ानूनी लेहाज़ से सही है।
इसलिए ये सारे हमले और अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन जो पिछले साल इन्ही दिनों अंजाम दिया गया, (3) बिल्कुल सही और अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के हिसाब से तर्कसंगत क़दम था। इसमें हक़ फ़िलिस्तीनियों के साथ था। लेबनानियों का फ़िलिस्तीनी अवाम की रक्षा के लिए दिलेरी से खड़ा हो जाना भी इसी श्रेणी में आता है। वह भी क़ानूनी, अक़्ली, तर्कपूर्ण और जायज़ क़दम था। किसी को यह हक़ नहीं है कि उनकी आलोचना करे कि आप उनकी रक्षा के लिए क्यों आगे आए। दो तीन रात पहले हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ का शानदार कारनामा भी पूरी तरह क़ानूनी और जायज़ क़दम था। (4) हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने जो किया वह इलाक़े में अमरीका के पागल कुत्ते, ख़ूंख़ार सरकार, दरिंदा सरकार के हैरत में डाल देने वाले अपराधों पर क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार को दी जाने वाली न्यूनतम सज़ा थी। इस संबंध में इस्लामी गणराज्य का जो भी फ़रीज़ा होगा उसे पूरी ताक़त, दृढ़ता और यक़ीन के साथ अंजाम देगा। फ़रीज़े पर अमल में न तो हम संकोच से काम लेंगे और न जल्दबाज़ी करेंगे। संकोच भी नहीं करेंगे, कोताही भी नहीं करेंगे और जल्दबाज़ी का शिकार भी नहीं होंगे। जो तार्किक क़दम है, अक़्ल के मुताबिक़ है, जो राजनैतिक व सैन्य अधिकारियों की नज़र में सही होगा वह अपने वक़्त पर, अपने मौक़े पर अंजाम दिया जाएगा।
दूसरे ख़ुतबे में लेबनान के मसलों पर बात होगी और उस ख़ुतबे में हम इलाक़े के मुल्कों में रहने वाले अपने अरब भाइयों को संबोधित कर रहे हैं। इसलिए यह ख़ुतबा अरबी ज़बान में दूंगा।
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
क़सम है ज़माने की। यक़ीनन (हर) इंसान घाटे में है। सिवाए उन लोगों के जो ईमान लाए और नेक अमल किए और एक दूसरे को हक़ की वसीयत की और सब्र की नसीहत की। (5)
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रमहत व बरकत हो।
दूसरा ख़ुतबाः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
सारी तारीफ़ अल्लाह के लिए जो पूरी कायनात का मालिक है, मैं उसकी हम्द करता हूँ, उससे मदद चाहता हूँ, उससे इस्तेग़फ़ार चाहता हूँ, उस पर भरोसा करता हूँ, दुरूद व सलाम भेजता हूँ उसके हबीब पर जो अज़ीम पैग़म्बर हैं, हमारे सरदार मोहम्मद मुस्तफ़ा और उनकी पाक नस्ल ख़ास तौर पर अमीरुल मोमेनीन, उनकी चहेती हज़रत ज़हरा मर्ज़िया, हसन व हुसैन पर जो जन्नत के जवानों के सरदार हैं, अली बिन हुसैन ज़ैनुल आबेदीन, मोहम्मद बिन अली अलबाक़िर, जाफ़र बिन मोहम्मद सादिक़, मूसा बिन जाफ़र अलकाज़िम, अली बिन मूसा अलरज़ा, मोहम्मद बिन अली अलजवाद, अली बिन मोहम्मद अलहादी, हसन इब्ने अली अज़्ज़की अलअस्करी, और हुज्जत बिन हसन अलअस्करी इमाम महदी पर, अल्लाह का दुरूद व सलाम हो सब पर और मैं सलाम भेजता हूँ उनके चुने हुए सहाबियों पर, जिन्होंने नेकी में उनका अनुसरण किया क़यामत तक, पीड़ितों की मदद करने वालों और मोमिनों के चाहने वालों पर।
मैंने ज़रूरी समझा कि मेरे भाई, मेरे अज़ीज़, गौरवान्वित करने वाले, इस्लामी जगत की लोकप्रिय हस्ती, इलाक़े की क़ौमों की ज़बान, लेबनान के अनमोल रत्न जनाब सैयद हसन नसरुल्लाह रिज़वानुल्लाह अलैह को श्रद्धांजलि पेश करने का प्रोग्राम तेहरान की जुमे की नमाज़ में आयोजित हो और कुछ बातें भी लोगों की सेवा में पेश कर दूं।
इस ख़ुतबे में मेरा संबोधन पूरे इस्लामी जगत से है, लेकिन ख़ास तौर पर मेरा संबोधन लेबनान और फ़िलिस्तीन की क़ौम से है। हम सबके सब अज़ीज़ सैयद की शहादत पर दुखी और सोगवार हैं। यह बहुत बड़ा नुक़सान है, इसने वाक़ई हमें ग़मज़दा कर दिया है। अलबत्ता हमारी सोगवारी अवसाद, मानसिक परेशानी और निराशा के मानी में नहीं है। यह शहीदों के सरदार इमाम हुसैन बिन अली अलैहेमस्सलाम की अज़ादारी जैसी है, नई जान डालने वाली, जोश व जज़्बा भरने वाली और उम्मीद पैदा करने वाली।
बेशक सैयद हसन नसरुल्लाह का जिस्म हमारे बीच नहीं रहा लेकिन उनकी अस्ली शख़्सियत, उनकी आत्मा, उनका रास्ता, उनकी दूर तक पहुंचने वाली आवाज़ हमारे बीच यथावत बाक़ी रहेगी।
वो ज़ालिम और लुटेरे शैतानों के मुक़ाबले में प्रतिरोध का ऊंचा परचम थे। मज़लूमों की बोलती ज़बान और बहादुर रक्षक थे, मुजाहिदों और सत्य की राह पर चलने वालों के साहस और ढारस का सबब थे। उनकी लोकप्रियता और गहरे प्रभाव का दायरा लेबनान, ईरान और अरब मुल्कों की सरहदों से आगे तक फैला हुआ था और अब उनकी इस शहादत से उनका प्रभाव और बढ़ जाएगा।
आप लेबनान की वफ़ादार क़ौम के लिए उनका सबसे अहम ज़बानी और अमली पैग़ाम यह था कि इमाम मूसा सद्र, अब्बास मूसवी और दूसरी प्रतिष्ठित हस्तियों के इस संसार से चले जाने की स्थिति में आप मायूस और परेशान न हों, संघर्ष की राह में शक व संदेह का शिकार न हों, अपनी कोशिश और ताक़त बढ़ाइये, अपनी एकता और एकजुटता को बढ़ाइये। हमलावर व आक्रामक दुश्मन के मुक़ाबले में ईमान और अल्लाह पर भरोसे के जज़्बे को मज़बूत करके प्रतिरोध कीजिए और उसे नाकाम कर दीजिए।
मेरे अज़ीज़ो! लेबनान की वफ़ादार क़ौम! हिज़्बुल्लाह और अमल के जवानो! आज भी अपनी क़ौम, रेज़िस्टेंस फ़्रंट और इस्लामी जगत से हमारे शहीद सैयद की यही इच्छा है।
घटिया दुश्मन जब हिज़्बुल्लाह या हमास या इस्लामी जेहाद या अल्लाह की राह में जेहाद के दूसरे आंदोलनों के मज़बूत ढांचे को कोई बड़ा नुक़सान नहीं पहुंचा पा रहा है तो टार्गेट किलिंग, बमबारी, क़त्ले आम और निहत्थे लोगों को सोगवार करके उसे अपनी कामयाबी ज़ाहिर कर रहा है।
नतीजा क्या निकला? इस रवैये का नतीजा अवाम के ग़म व ग़ुस्से की तीव्रता, जज़्बात का भड़क जाना, ज़्यादा लोगों, सरदारों, रहनुमाओं और त्यागी बहादुरों का सामने आना और ख़ूंख़ार भेड़िए के गिर्द घेराबंदी का तंग हो जाना और दुनिया से उसके शर्मनाम वजूद का अंत है।
अज़ीज़ो! दुखी दिलों को अल्लाह के ज़िक्र और उससे मदद तलब करने के ज़रिए सुकून मिलेगा, विरानियां दूर होंगी और आपके धैर्य व दृढ़ता से सम्मान व प्रतिष्ठा में इज़ाफ़ा होगा।
अज़ीज़ सैयद 30 साल तक संघर्ष में नेतृत्व के फ़रीज़े अंजाम देते रहे और हिज़्बुल्लाह को एक एक क़दम करके बुलंदियों पर पहुंचाया। जैसे एक खेती जिसने अपनी कोंपल निकाली फिर उसको ताक़त पहुंचाई और वह मज़बूत व मोटी हुयी फिर अपने तने पर खड़ी हो गयी, वह किसानों को ख़ुश करती है ताकि उनके ज़रिए से कुफ़्फ़ार के दिल जलाए। अल्लाह ने, उन लोगों से जो ईमान लाए और नेक अमल किए मग़फ़ेरत और बड़े अज्र व सवाब का वादा कर रखा है।(6) (सूरए फ़तह, आयत-29)
सैयद की सूझबूझ भरी कोशिशों से हिज़्बुल्लाह ने चरणबद्ध रूप में, सब्र व धैर्य से, तार्किक और स्वाभाविक अंदाज़ में विकास का अमल तय किया और मुख़्तलिफ़ मौक़ों पर ज़ायोनी सरकार को पीछे ढकेल कर दुश्मन को अपनी मौजूदगी का एहसास कराया। “जो अपने परवरदिगार के हुक्म से हर वक़्त फल दे रहा है...।” (7) (सूरए इब्राहीम, आयत-25)
हिज़्बुल्लाह वाक़ई पाकीज़ा दरख़्त है। हिज़्बुल्लाह और उसके बहादुर व शहीद रहनुमा, लेबनान की पहचान और इतिहास की ख़ासियतों का निचोड़ हैं।
हम ईरानी प्राचीन समय से लेबनान और उसकी ख़ूबियों से परिचित हैं। मोहम्मद बिन मक्की अलआमेली शहीद, अली बिन अब्दुल-आल कर्की, ज़ैनुद्दीन अलआमेली शहीद, हुसैन बिन अब्दुस्समद अलआमेली, उनके बेटे मोहम्मद बहाउद्दीनी उर्फ़ शैख़ बहाई और दूसरी धार्मिक हस्तियां और ओलमा सरबेदारान और सफ़वी सरकारों में आठवीं, दसवीं और ग्यारहवीं सदी हिजरी में अपने ज्ञान की बरकतों से फ़ायदा पहुंचाते रहे हैं।
घायल व लहूलुहान लेबनान का क़र्ज़ अदा करना हमारा और सभी मुसलमानों का फ़रीज़ा है। हिज़्बुल्लाह और शहीद सैयद ने ग़ज़ा का साथ देकर, मस्जिदुल अक़्सा के लिए जेहाद करके और क़ाबिज़ व ज़ालिम सरकार पर वार लगाकर पूरे इलाक़े और इस्लामी जगत की बुनियादी सेवा की राह में क़दम बढ़ाया। क़ाबिज़ सरकार की सुरक्षा पर अमरीका और उसके घटकों का ज़ोर इस इलाक़े के संसाधनों को हड़पने और उसे दुनिया की जंगों में इस्तेमाल करने के मक़सद से इस सरकार को एक हथकंडे में तबदील करने की घातक नीति पर पर्दा डालने की कोशिश है। इनकी नीति इस सरकार को इलाक़े से पश्चिमी जगत के लिए ऊर्जा की आपूर्ति और पश्चिम से प्रोडक्ट और टेक्नालोजी इस इलाक़े में लाने के दरवाज़े में तबदील करना है। इसका मतलब क़ाबिज़ सरकार के वजूद की गारंटी मुहैया करना और पूरे इलाक़े को उसका मोहताज बना देना है। मुजाहिदों के ख़िलाफ़ इस सरकार का बर्बरतापूर्ण और बेलगाम रवैया इसी पोज़ीशन में पहुंचने की लालच का नतीजा है।
यह हक़ीक़त हमें यह बताती है कि इस सरकार पर पड़ने वाला हर वार चाहे वह किसी भी शख़्स या संगठन की ओर से हो, न सिर्फ़ इलाक़े बल्कि पूरी इंसानियत की सेवा है।
निश्चित तौर पर यह ज़ायोनी और अमरीकी ख़ाम ख़याली और असंभव चीज़ हैं। यह सरकार वही मनहूस पेड़ है जो ज़मीन की सतह से उखाड़ कर फेंक दिया जाए और अल्लाह के कथन के मुताबिक़ उसे बाक़ी नहीं रहना है।(8)
यह घटिया सरकार बुनियाद से ख़ाली, जाली और अस्थिर है, सिर्फ़ अमरीकी मदद से उसने बड़ी मुश्किल से ख़ुद को बाक़ी रहा है। लेकिन अल्लाह की इजाज़त से, यह भी ज़्यादा टिक नहीं सकेगी। इस दावे की साफ़ दलील यह है कि इस वक़्त दुश्मन ग़ज़ा और लेबनान में अरबों डालर ख़र्च करने के बाद अमरीका और कई पश्चिमी सरकारों की व्यापक मदद के बावजूद मैदाने जंग के कुछ हज़ार जवानों और अल्लाह की राह में जेहाद करने वाले मुजाहिदों के मुक़ाबले में जो घिरे हुए भी हैं और बाहर से उनकी हर तरह की मदद रोक दी गयी है, शिकस्त खा गयी, उसकी सारी कामयाबी बस घरों, स्कूलों, अस्पतालों और निहत्थे लोगों की भीड़ वाली जगहों पर बमबारी करना है।
आज धीरे धीरे अपराधी ज़ायोनी गैंग भी इस नतीजे पर पहुंच गया है कि हमास और हिज़्बुल्लाह को हरगिज़ शिकस्त नहीं दे सकेगा।
लेबनान और फ़िलिस्तीन के डटे हुए अवाम! बहादुर मुजाहिदो! धैर्यवान व क़द्रदान अवाम! ये शहादतें, ये ज़मीन पर बहने वाला ख़ून आपके आंदोलन को कमज़ोर नहीं बल्कि ज़्यादा मज़बूत बनाएगा। एक साल (1981) के गर्मी के मौसम के क़रीब तीन महीने में इस्लामी गणराज्य ईरान की कई दर्जन प्रतिष्ठित हस्तियों को क़त्ल कर दिया गया, जिनमें सैयद मोहम्मद बहिश्ती जैसी अज़ीम हस्ती भी शामिल थी, रजाई जैसे राष्ट्रपति और बाहुनर जैसे प्रधान मंत्री शामिल थे। आयतुल्लाह मदनी, क़ुद्दूसी, हाशेमी नेजाद वग़ैरह जैसे ओलमा शामिल थे। इनमें से हर एक राष्ट्रीय या स्थानीय स्तर पर इंक़ेलाब का स्तंभ समझा जाता था और उनका चला जाना कोई मामूली बात नहीं थी, लेकिन इंक़ेलाब की तरक़्क़ी रुकी नहीं, वह पीछे नहीं हटा बल्कि उसकी रफ़्तार तेज़ हो गयी।
इस वक़्त भी इलाक़े में प्रतिरोध इन शहादतों की वजह से पीछे नहीं हटेगा, रेज़िस्टेंस विजयी होगा।
ग़ज़ा में प्रतिरोध ने दुनिया को हैरत में डाल दिया, इस्लाम का गौरव बढ़ाया। ग़ज़ा में सभी शैतानी व घटिया हरकतों के मुक़ाबले में इस्लाम सीना तान कर खड़ा हो गया। कोई भी आज़ाद सोच रखने वाला इंसान ऐसा नहीं है जो इस दृढ़ता को सलाम न करे और बर्बर व ख़ूंख़ार दुश्मन पर लानत न भेजे।
अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन और ग़ज़ा तथा लेबनान के एक साल के प्रतिरोध ने क़ाबिज़ सरकार को इस हालत में पहुंचा दिया कि उसकी सारी चिंता अपने वजूद को बचाना है, यानी वही चिंता जो वजूद में आने के आग़ाज़ के दिनों में उसे सताती रहती थी। इसका मतलब यह है कि फ़िलिस्तीन व लेबनान के मुजाहिद जवानों के संघर्ष ने ज़ायोनी सरकार को 70 साल पीछे ढकेल दिया है।
इस इलाक़े में जंग, अशांति और पिछड़ेपन की अस्ली वजह ज़ायोनी सरकार का वजूद और उन सरकारों की मौजूदगी है जो यह दावा करती हैं कि वो इलाक़े में शांति व अमन की कोशिश कर रही हैं। इलाक़े की सबसे बड़ी मुश्किल ग़ैरों की दख़लअंदाज़ी है। इलाक़े की सरकारें इस इलाक़े में अमन व शांति क़ायम करने में सक्षम हैं। इस अज़ीम व मुक्ति दायक लक्ष्य के लिए क़ौमों और सरकारों को कोशिश व संघर्ष करने की ज़रूरत है।
अल्लाह इस राह पर चलने वालों के साथ है। और बेशक अल्लाह उनकी मदद करने पर क़ादिर है।(9) (सूरए हज, आयत-39)
अल्लाह का सलाम हो शहीद रहनुमा नसरुल्लाह पर, शहीद हीरो हनीया पर और गर्व के लायक़ कमांडर जनरल क़ासिम सुलैमानी पर।
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
जब अल्लाह की मदद और उसकी फ़तह व विजय आ जाए। और आप देख लें कि लोग फ़ौज दर फ़ौज अल्लाह के दीन में दाख़िल हो रहे हैं। तो (उस वक़्त) अपने परवरदिगार की हम्द के साथ उसकी तस्बीह करें और उससे मग़फ़ेरत तलब कीजिए, बेशक वह बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला है। (10)
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1 जुमे की नमाज़ तेहरान के इमाम ख़ुमैनी मुसल्ला में पढ़ी गयी
2 सूरए तौबा, आयत-71
3 फ़िलिस्तीन के प्रतिरोध संगठनों ने 7 अक्तूबर 2023 को अलअक़्सा फ़्लड के नाम से बड़ा आप्रेशन किया जिसमें हज़ारों ज़ायोनी ढेर और घायल हुए और सैकड़ों को क़ैद कर लिया गया।
4 ईरान के सच्चा वादा-2 सैन्य आप्रेशन की ओर इशारा है जो शहीद इस्माईल हनीया, सैयद हसन नसरुल्लाह और शहीद जनरल अब्बास नीलफ़ुरूशान की टार्गेट किलिंग और बैरूत के ज़ाहिया इलाक़े पर ज़ायोनी सरकार के तेज़ हमलों के जवाब में ईरानी फ़ोर्सेज़ ने किया। इस आप्रेशन में इस्राईल के भीतर सैन्य व सुरक्षा सेंटरों को निशाना बनाया गया।
5 सूरए अस्र
6 सूरए फ़तह, आयत-29
7 सूरए इब्राहीम, आयत-25
8 सूरए इब्राहीम आयत-26
9 सूरए हज, आयत-39
10 सूरए नस्र, आयत-10