इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से हमास आंदोलन और जेहादे इस्लामी आंदोलन के संयुक्त प्रतिनिधिमंडल की मुलाक़ात के कुछ घंटे बाद, Khamenei.ir ने शहीद इस्माईल हनीया और जनाब ज़्याद अन्नख़ाला से बातचीत की। इस बातचीत में जो शहीद हनीया का आख़िरी तफ़सीली इंटरव्यू भी है, फ़िलिस्तीन के दो इस्लामी प्रतिरोध संगठनों के नेताओं ने फ़तह के निश्चित होने पर ताकीद की और इस्लामी जगत की एकता पर बल दियाः
इंटरव्यूः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
जनाब इस्माईल हनीया और जनाब ज़्याद अन्नख़ाला, वक़्त देने के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूं। अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन को क़रीब 10 महीने हो रहे हैं, प्रतिरोध के मोर्चे के दूसरे धड़े ने तेल अबीब पर अपने हमले शुरू कर दिए और बड़ी हद तक ज़ायोनियों को समुद्र की ओर से घेर लिया है। यमन और उत्तरी मोर्चे पर आप्रेशन की वजह से उन इलाक़ों से ज़ायोनी सेटलर्ज़ को निकलना पड़ा और ज़ायोनी सेना को एक शिकस्त का सामना है। जंग और नाकाबदी के 10 महीने गुज़रने के बाद भी प्रतिरोध की बढ़ती ताक़त की क्या वजह और इसके पीछे कौन से तत्व हैं? जंग जारी रहने की स्थिति में, अनेक मैदानों में प्रतिरोध के मोर्चे के अगले क़दम क्या होंगे?
हनीयाः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
सबसे पहले, मैं इस्लामी गणराज्य ईरान के केंद्र से फ़िलिस्तीनी क़ौम और ग़ज़ा तथा पश्चिमी तट और सभी जगहों पर उनके बहादुरी भरे प्रतिरोध को सलाम करता हूं और इसी तरह प्रतिरोध के सभी मोर्चों को सलाम करता हूं जो अलअक़्सा फ़ल्ड आप्रेशन के सपोर्टर और हमारी क़ौम व प्रतिरोध के मददगार हैं।
प्रतिरोध की दृढ़ता की ताक़त के पीछे जो संपत्ति है उसके तीन उसूल हैं
पहला उसूल, ईमान और अक़ीदे की बुनियाद है, ईमानी और जेहादी शख़्सियत का स्रोत यहाँ है और उसने प्रतिरोध को मैदान में टिकने, पुरुषार्थ, बलिदान, इस राह में पेश आने वाली मुसीबतों पर सब्र और उसे बर्दाश्त करने की ताक़त दी है।
दूसरा उसूल, फ़ौजी तैयारी है, अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन से पहले, कई बरस से प्रतिरोध के गिरोह लंबी मुद्दत की तैयारी कर रहे थे कि अपने अंदर क्षमता पैदा करें और उन्होंने इस क्षमता को विकसित किया और ऐसी चीज़ें हासिल करने में वे सफल हुए कि यह लड़ाई लड़ सकें और ऐतिहासिक शौर्य दिखा सकें।
यह बात सही है कि हमारे और दुश्मन की ताक़त में बहुत अंतर है लेकिन प्रतिरोध की आंतरिक क्षमता और प्रतिरोध के मोर्चे की मदद इस मार्ग पर आगे बढ़ने में मददगार बनी।
तीसरा उसूल, स्ट्रैटेजिक गठबंधन है, इस प्रतिरोध ने प्रतिरोध के मोर्चे से, क़ौम की इकाइयों से अपने संबंध की, इस क़ौम के बीच और इस इलाक़े में अपनी स्ट्रैटेजिक डेप्थ की रक्षा की और इससे भी बढ़कर देशों से संबंध, चाहे लैटिन अमरीका हो, या रूस, चीन और दक्षिण अफ़्रीक़ा जैसी दूसरी जगहें हैं, क़ायम किए हैं। इन सबकी वजह से इस विषय पर प्रतिरोध को सुरक्षा परिषद और दूसरी जगहों पर राजनैतिक संरक्षण मिला।
मेरा मानना है कि ये तीन उसूल यानी ईमानी आयाम, सैन्य आयाम और राजनैतिक आयाम यानी स्ट्रैटेजिक गठबंधन, अल्लाह की कृपा से इस बहादुरी भरे प्रतिरोध का ख़त्म न होने वाला स्रोत हैं।
जैसा कि आपने कहा, इस बात में शक नहीं कि लेबनान, यमन और इराक़ में प्रतिरोध के मोर्चों ने जो अंजाम दिया और यमन में अंसारुल्लाह ने एक ड्रोन से तेल अबिब को निशाना बनाकर जो बड़ी कामयाबी हासिल की, इसने फ़िलिस्तीन की सरज़मीन से बाहर ज़ायोनी शासन से निपटने के स्वरूप के लेहाज़ से एक बदलाव पैदा किया है।
हमारा यह मानना है कि इस वक़्त हम बहुत ही अहम व निर्णायक क्षण में हैं, हमारे पास कामयाबी हासिल करने का बहुत अच्छा मौक़ा है, इंशाअल्लाह। हालांकि हमारे सामने चुनौतियां हैं जो आसान नहीं है, ख़ास तौर पर ग़ज़ा में हमारे अवाम की मानवीय स्थिति, नरंसहार, जनसंहार, जंग, विनाश, बेवतन होना, बेघर होना और जो कुछ दुश्मन वेस्ट बैंक में कर रहा है।
लेकिन हम इंशाअल्लाह कामयाबी के रास्ते पर और कामयाबी की ओर बढ़ रहे हैं अल्लाह की इजाज़त से।
मैं यही सवाल जनाब अबू तारिक़ (ज़्यादा अन्नख़ाला) से करना चाहता हूं। आज हम देख रहे हैं कि प्रतिरोध अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन के आग़ाज़ के दिनों से ज़्यादा ताक़तवर है। अगर जंग जारी रहे तो प्रतिरोध का मोर्चा, इस मोर्चे की बढ़ती हुयी ताक़त के मद्देनज़र अनेक मैदानों में अगला क़दम क्या उठाएगा?
ज़्याद अन्नख़ालाः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
पहली बात तो यह कि 10 महीने तक प्रतिरोध की दृढ़ता और यह डटा रहना- इंशाअल्लाह- कामयाबी तक जारी रहेगा और इसकी बुनियाद इस्लाम और क़ुरआन का विचार है कि फ़रमाता हैः बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम "(ऐ मुसलमानो!) तुम जिस क़द्र क्षमता रखते हो इन (कुफ़्फ़ार) के लिए क़ुव्वत व ताक़त और बंधे हुए घोड़े तैयार रखो" (सूरए अन्फ़ाल, आयत-60)
पहली बात समाज की स्वस्थ व मज़बूत तरीक़े से क़ुरआन और इस्लामी संस्कृति की बुनियाद पर तैयारी।
दूसरी बात, मुनासिब प्रतिरोध फ़ोर्सेज़ को तैयार करना और संघर्ष व जेहाद के लिए उन्हें मुनासिब तरीक़े से तैयार करना।
ये दो जंग के मैदान में फ़िलिस्तीनी समाज और फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध की दृढ़ता के दो मूल बिन्दु हैं और प्रतिरोध के जियाले और मुजाहिद इसी तरह जंग के मैदान में संघर्ष और इम्तेहान की हालत में हैं और उनकी जेहादी कोशिशें दिन ब दिन बढ़ती जा रही है।
इसके अलावा, ये अपराध जो दुश्मन फ़िलिस्तीन के आम लोगों के ख़िलाफ़, बच्चों और औरतों के ख़िलाफ़ कर रहा है, उसने इस दुश्मन को दंडित करने के लिए फ़िलिस्तीनी जवानों और मुजाहिदों के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा दी है।
आप जंग के मैदान में मुजाहिदों की बहादुरी को देख रहे हैं कि किस तरह वह 10 महीने से इस्राईली फ़ोर्सेज़ का मुक़ाबला कर रहे हैं और उसके सैन्य वाहनों और फ़ौजियों को नुक़सान पहुंचा रहे हैं, इस शक्ल में कि दुनिया ने हर्गिज़ यह नहीं देखा था कि एक फ़ाइटर दुश्मन के वाहन की ओर बढ़ता है और टैंक पर बम और बारूदी सुरंग चिपका देता है, यह मंज़र दसियों बार दोहराया गया और कुछ तो ऐसे मंज़र थे जो जंग के मैदान की स्थिति की वजह से बहादुर जवान कैमरे में क़ैद न कर सके और उसे दिखा न सके।
फ़िलिस्तीन के अवाम की ऐतिहासिक दृढ़ता का यह दायरा क्षेत्र तक फैल गया है और फ़िलिस्तीनी अवाम एहसास कर रहे हैं कि क्षेत्र में उनके पास ऐसे घटक हैं और यह वही प्रतिरोध का मोर्चा है जो फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के सपोर्ट में डटा हुआ है। यह विषय बहुत अहम है और इससे भी बढ़कर इसका जंग के दिनों से कोई संबंध नहीं है, बल्कि यह फ़िलिस्तीन में प्रतिरोध और इस्लामी गणराज्य के बीच एक संबंध है, फ़िलिस्तीन में हिज़्बुल्लाह और प्रतिरोध और इसी तरह यमन में हमारे भाइयों के बीच है। क्षेत्र के ये सभी राष्ट्र मुसलमान लोग हैं जिनके बीच पारस्परिक एकता व गठजोड़ है।
इसलिए क्षेत्र में एक इस्लामी स्टैंड का आत्मिक व व्यवहारिक नज़र से फ़िलिस्तीनी क़ौम के प्रतिरोध पर बड़ा असर पड़ा।
इंशाअल्लाह इस जंग का नतीजा दुश्मन की हार की शक्ल में सामने आएगा। आम लोग अपनी आँखों से ज़ायोनी समाज में बिखराव की निशानियों को देख रहे हैं और फ़िलिस्तीनी एकता की निशानियां, जंग के मैदान और राजनीति में प्रतिरोध में एकता की निशानियां भी ज़ाहिर हैं। इस बात की इससे बड़ी दलील और क्या हो सकती है कि आज फ़िलिस्तीन में इस्लामी आंदोलन, फ़िलिस्तीन में मुजाहिद और फ़िलिस्तीन में प्रतिरोध फ़ोर्सेज़ एक आवाज़ होकर वार्ता और राजनैतिक प्रक्रिया में भाग ले रही हैं जो इस बात की गवाह है कि प्रतिरोध ने फ़िलिस्तीनी क़ौम को इस्राईल के मुक़ाबले में एकजुट कर दिया। और इंशाअल्लाह जंग की मुद्दत जितनी खिंचती जाएगी एक कामयाबी के बाद अगली कामयाबी...और दूसरी कामयाबियां...मिलेंगी।
जनाब "अबू तारिक़" अलअक़्सा फ़्लड आप्रेशन के आग़ाज़ से आपने कितनी बार इस्लामी इंक़ेलाब के नेता इमाम ख़ामेनेई से (उनका साया बरक़रार रहे) मुलाक़ात की। इन मुलाक़ातों के दौरान, किन बिंदुओं पर दूसरे विषयों से ज़्यादा बल दिया गया? इन मुलाक़ातों की अहमियत को आप प्रतिरोध के मोर्चे के अनेक अंगों के बीच समन्वय के संबंध में किस तरह से देखते हैं?
ज़्याद अन्नख़ालाः पहली बात तो यह कि इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से रेज़िस्टेंस एक्सिस के अधिकारियों की मुलाक़ात कोई नई बात नहीं है बल्कि इस्लामी गणराज्य ने अपनी स्थापना के आग़ाज़ से, अपने आंदोलन और अपने वजूद को, अपने दरवाज़ों को फ़िलिस्तीन के प्रतिरोध और फ़िलिस्तीनी क़ौम के लिए खुला रखा था।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ातें प्रतिरोध के संबंध में उनके साफ़ व खुले स्टैंड और दिल व तर्क की नज़र से उनके विश्वास और क्षेत्र में ज़ायोनी प्रोजेक्ट के संबंध में उनके संघर्ष पर आधारित स्टैंड की वजह से जारी हैं। इस स्टैंड का, प्रतिरोध के लिए इस्लामी गणराज्य के सपोर्ट पर काफ़ी असर पड़ा।
इसलिए इस बात में शक नहीं कि प्रतिरोध की स्थिति को मज़बूत करने और प्रतिरोध की क्षमता को बढ़ाने में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के ऐतिहासिक स्टैंड का मूल रूप से असर पड़ा और यह संतोष मिला कि इस्लामी गणराज्य फ़िलिस्तीन में प्रतिरोध के संबंध में हमेशा सही पोज़ीशन लेगा और सच्चा सपोर्टर रहेगा।
यही वजह है कि इस्लामी गणराज्य के नेता फ़िलिस्तीन के प्रतिरोध के सपोर्ट में हमेशा अहम व ऐतिहासिक रोल अपनाए रहे और हम ज़ायोनी प्रोजेक्ट से निपटने में फ़िलिस्तीन में प्रतिरोध फ़ोर्सेज़ के बीच एकता पर बल देते हैं।
जनाब हनीया यही सवाल मैं आपसे पूछना चाहता हूं: आपने इस मुद्दत में कई बार इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ात की। इन मुलाक़ातों में किन बिंदुओं पर बल दिया गया? इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से इन मुलाक़ातों की क्या अहमियत है? कुल मिलाकर इन मुलाक़ातों की प्रतिरोध के मुख़्तलिफ़ मोर्चों के बीच समन्वय में क्या अहमियत है? जैसा कि आप जानते हैं कि यह आप और जनाब अबू तारिक़ (ज़्याद अन्नख़ाला) की एक साथ इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से पहली बार मुलाक़ात है...
इस्माईल हनीयाः पहली बात तो यह कि यहाँ ईरान में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ात, इस बात की गवाह है कि फ़िलिस्तीन का विषय इस्लामी इंक़ेलाब के नेता और ईरान के मुसलमान अवाम के मन में कितनी अहमियत रखता है। इस बात के मद्देनज़र कि फ़िलिस्तीन का विषय क़ौम का मूल विषय है, निश्चित तौर पर ऐसे अनेक विषय हैं जिनकी ओर ईरान का ध्यान है लेकिन फ़िलिस्तीन का विषय इस्लामी इंक़ेलाब के नेता के मन में पहली प्राथमिकता रखता है।
दूसरी बात यह कि मुलाक़ातों में इस लड़ाई के स्वरूप से जुड़े बिंदुओं और इस विवाद के फ़िलिस्तीन तथा क्षेत्र के विषय से संबंधित आयाम पर चर्चा होती है। इसके अलावा ज़ायोनी एजेंडे से निपटने में रेज़िस्टेंस एक्सिस की दृढ़ता, मज़ूबती, स्थिरता और ताक़तवर बने रहने के उपायों पर चर्चा होती है क्योंकि क्षेत्र और क़ौम की पहली डिफ़ेंस लाइन, फ़िलिस्तीन में प्रतिरोध है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का इस ओर ध्यान है कि ख़ुदा न करे फ़िलिस्तीन में प्रतिरोध मोर्चे का पीछे हटना या हार का क्षेत्र पर असर पड़ेगा और ज़ायोनी दुश्मन को इस क्षेत्र में पैठ बनाने का मौक़ा मिलेगा, इसलिए फ़िलिस्तीन में प्रतिरोध को सपोर्ट एक शरई, इस्लामी, मानवीय और भाईचारे के लेहाज़ से अहम ज़िम्मेदारी है।
इसलिए प्रतिरोध का विषय हमेशा से रहा है कि इस प्रतिरोध का किस तरह से सपोर्ट हो, किस तरह से यह विकसित हो, किस तरह से प्रतिरोध की मदद हो और किस तरह से प्रतिरोध को सैन्य व वित्तीय मदद मुहैया की जाए।
तीसरा बिंदु जिस पर हमेशा चर्चा होती है वह प्रतिरोध के मोर्चे का इस प्रतिरोध की मदद में रोल का है, वह यह कि इस्लामी गणराज्य किस तरह प्रतिरोध के ध्रुव और प्रतिरोध के मोर्चे की ज़रूरत को एक सतह से ज़्यादा मुहैया कर सकता है ताकि वह अहम रोल निभा सके और वह मदद फ़िलिस्तीन की सरज़मीन पर प्रतिरोध के लिए बहुत अहम है।
इस बात में शक नहीं कि आज इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ात की दूसरी अहमियत है क्योंकि फ़िलिस्तीन का इस्लामी आंदोलन हमास का प्रतिनिधिमंडल और जेहादे इस्लामी का प्रतिनिधिमंडल एक था जो इस संबंध और भाईचारे की प्रवृत्ति और फ़िलिस्तीन की सरज़मीन पर इस्लामी प्रोजेक्ट के सपूतों के बीच इस ईमानी एकता को दिखाता है।
क़ौम को यह पैग़ाम भी देना है कि हम चाहते हैं कि यह क़ौम एकजुट रहे जिस तरह आज रेज़िस्टेंस फ़्रंट एकजुट है और इस्लामी आंदोलन एकजुट है, हम चाहते हैं कि यह क़ौम एकजुट हो जाए।
इसी तरह हमारा मानना है कि यह पैग़ाम अहम था और इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने संयुक्त फ़िलिस्तीनी-इस्लामी प्रतिनिधिमंडल की मौजूदगी को पूरी क़द्रदानी और गर्व के साथ देखा।
अलबत्ता आज की बैठक, ईरान की संसद में इस्लामी गणराज्य के निर्वाचित राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के मद्देनज़र भी अहमियत रखती है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से हमारी मुलाक़ात जनाब राष्ट्रपति से मुलाक़ात के बाद भी हुयी, प्रतिरोध में फ़िलिस्तीन के विषय पर इस्लामी गणराज्य के स्थिर स्टैंड के बारे में हमने सुना और यह हमारे लिए संतोष की बात थी कि अधिकारी बदल सकते हैं, स्टैंड बदल सकते हैं लेकिन इस विषय पर और प्रतिरोध के बारे में ईरान की नीति अटल है जो बदलेगी नहीं।
आपने वक़्त दिया इसके लिए आपके शुक्रगुज़ार हैं और अल्लाह से फ़िलिस्तीनी अवाम की कामयाबी की दुआ करते हैं।