एक दूल्हा दुल्हन की नई ज़िन्दगी शुरू हुयी, इश्क़ व मोहब्बत से भरी, ज़िंदगी में आगे बढ़ने व तरक़्क़ी करने की चाह के साथ, लेकिन ग़ज़ा की दुल्हनों के लिए स्थिति अलग तरह की है। किसी माँ के लिए एक नवज़ात के जन्म के आग़ाज़ के क्षण उसकी ज़िंदगी के सबसे ख़ूबसूरत लम्हे होते हैं। ऐसे लम्हें जो इंतेज़ार की लंबी घड़ियों के अंत और उम्मीद और इश्क़ से भरी ज़िंदगी शुरू होने की ख़ुशख़बरी देते हैं। लेकिन ग़ज़ा की माँओं के लिए स्थिति अलग तरह की है। ज़रा कलपना कीजिए एक परिवार के लोग इकट्ठा हैं, बच्चे आस पास खेल में मसरूफ़ हैं और माँ बाप खाना तैयार करने में लगे हैं। खाना तैयार है। माँ बच्चों को आवाज़ देती है कि खाने के लिए आएं, कितना मीठा अनुभव है ये। लेकिन ग़ज़ा की माँओं के लिए स्थिति अलग तरह की है।
ग़ज़ा की सबसे ज़्यादा दयनीय स्थिति
ग़ज़ा की सबसे ज़्यादा दयनीय स्थिति, मानव इतिहास के सबसे बेरहम शासन ने बनायी है। जबसे उसने फ़िलिस्तीन की सरज़मीन पर क़ब्ज़ा किया है, उस समय से वो नाना प्रकार के अपराध करता आ रहा है जिसका सबसे भयावह रूप वो जातीय सफ़ाया है जिसे उसने ग़ज़ा में अक्तूबर 2023 से शुरू किया और जो अब भी जारी है। ज़ायोनी शासन आतंकवाद के अंत के बहाने, फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफ़ाए और उन्हें ग़ज़ा से निकालने पर तुला हुआ है और इस शासन के हमले के निशाने पर सबसे ज़्यादा ग़ज़ा के बच्चे और औरतें हैं। ग़ज़ा की औरतों की स्थिति बरसों से दयनीय बनी हुयी है। आज वो सबसे ज़्यादा, ज़िंदगी से वंचित हैं।
ग़ज़ा में सदमें में घिरी एक दुल्हन की हालत
शहीद अहमद की बीवी जिसे वैवाहिक जीवन शुरू किए सिर्फ़ 6 महीने हुए थे, अपने शौहर के जूते को हाथ में लिए उसके शव को निहार रही है।
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माँ की सूनी गोद
ग़ज़ा में एक माँ ऐसी है जो अपने छोटे शहीद बच्चे के शव को अपनी गोद में लेती है, उसे चूमती है और अपने बच्चे के इस दुनिया में आने के आरंभिक क्षणों की चिंता और शौक़ के साथ उसे हमेशा के लिए आराम करने वाले स्थल की ओर विदा करती है।
आख़िरी बार परिवार के सदस्यों का एक साथ इकट्ठा होना
ग़ज़ा में एक दुखियारी माँ अपने ध्वस्त हो चुके घर के मलबे के किनारे अपने बच्चों को ऊँची आवाज़ से बुलाती है कि दोबारा इकट्ठा हों। लेकिन अब ऐसा कभी नहीं होगा क्योंकि उसके पाँचों बच्चे शहीद हो चुके हैं।
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ज़ायोनी शासन के हाथों महिलाओं का नरसंहार
ग़ज़्ज़ा में औरतों पर पड़ने वाली मुसीबत सिर्फ़ इतनी नहीं है। ग़ज़ा में औरतों पर निर्दयी ज़ायोनी शासन के हमलों की तीव्रता को 10000, 1 लाख और 10 लाख कहना उचित होगा। फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने ग़ज़ा में 8200 फ़िलिस्तीनी औरतों की शहादत की रिपोर्ट दी है। ज़ायोनी शासन क़रीब हर घंटे में 2 माँओं1 को शहीद किया है ऐसी माँएं जिन्होंने 13000 से ज़्यादा बच्चों को शहीद होते देखा है। ग़ज़ा की औरतों और लड़कियों की पीड़ा सिर्फ़ अपने प्यारों को खोने तक सीमित नही है। ग़ज़ा2 में 290000 घर तबाह, 10 लाख से ज़्यादा औरतें और लड़कियां बेघर हो चुकी हैं।3 इन औरतों और लड़कियों को जो दक्षिणी ग़ज़ा और रफ़ह शहर में कैंपों में रह रही हैं, खाद्य पदार्थ, इलाज, स्वास्थ्य सुविधाओं, आत्मिक, मानसिक और आर्थिक लेहाज़ से बहुत सख़्त मुश्किलों का सामना है।
ग़ज़ा में क़रीब 50000 गर्भवती औरतें हैं जिनमें 5500 से ज़्यादा जारी महीने माँ बनने वाली हैं। इनमें से 840 को विशेष मेडिकल सहूलत की ज़रूरत है जो ग़ज़्ज़ा के मेडिकल विभाग की तबाही की वजह से मुमकिन नहीं है।4 इन तत्वों के मद्देनज़र, जन्मजात मानसिक पिछड़ेपन या मस्कुलर पैरालिसिस जैसी बीमारियों से ग्रस्त नवजात के पैदा होने की आशंका है। माँओं के सही खानपान और मुनासिब मेडिकल सहूलत न होने की वजह से प्रीमैच्योर या मुर्दा नवजात के पैदा होने की संभावना है। जंग के हालात में सहूलतों से ख़ाली अस्पतालों और शरणार्थी कैंपों में रोज़ाना क़रीब 180 औरतें मां बन रही हैं। किसी को भी उचित मेडिकल, खानपान, आत्मिक व मनोवैज्ञानिक सुविधा हासिल नहीं है।5 ये माँएं जिनके नवजात बच्चों के ज़िंदा बचने की संभावना एक तिहाई है,6 बच्चे अगर बच भी जाएं तो उनके पालने के लिए उचित सुविधा मौजूद नहीं है। 68000 से ज़्यादा माँएं ख़ून की कमी और गंभीर कुपोषण का शिकार हैं और अपने बच्चों को उनका प्राकृतिक भोजन नहीं दे सकतीं।7
ये तादाद क़रीब उतनी औरतों की है हो अमरीका के कन्ज़ास शहर में रहती हैं। ग़ज़्ज़ा में औरतें और लड़कियां मेडिकल लेहाज़ से बहुत ही कठिन स्थिति में ज़िंदगी जी रहीं हैं। जंग की वजह से कैंपों में रहने वाली औरतों में 3 लाख 10000 से ज़्यादा सांस की बीमारियों और 75000 से ज़्यादा सर में जूँ की मुश्किल का शिकार हैं। उन्हें औरतों के लिए ज़रूरी मेडिकल सहूलतें भी हासिल नहीं हैं और कुछ औरतें अपनी माहवारी को टालने वाली दवाएं ले रही हैं कि जिसके ख़तरनाक साइड इफ़ेक्ट होते हैं।8
(हर क़िस्म की नाइंसाफ़ी और यातना को सहना ग़लत है...)9 (हर जवान लड़की पैदाइश के वक़्त से मूल्यवान शख़्सियत की मालिक होती है दूसरे सभी इंसानों की तरह...)10
क्या समय नहीं आ गया है कि दुनिया के लोग पश्चिम के मानवाधिकार के अनुपयोगी सिस्टम को छोड़ कर नए विकल्प के बारे में गंभीर रूप से सोचें और उसी की ओर क़दम बढाएं?