उन्होंने इस मुलाक़ात के दौरान अपने ख़ेताब में, चुनावों में क़ौम की भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति का प्रदर्शन, राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरंटी और ईरान के कट्टर दुश्मनों को मायूस करने वाला क़दम बताया और सबसे योग्य उम्मीदवार की ख़ुसूसियतें बयान करते हुए कहा कि अवाम की भरपूर भागीदारी से आयोजित होने वाले चुनाव से मुश्किलें दूर करने और मुल्क की तरक़्क़ी का रास्ता समतल होता है और चुनाव मुल्क के सही संचालन के स्तंभों में से एक है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने, इंक़ेलाब से पहले ईरान के चुनावों के दिखावा मात्र के होने पर आधारित पहलवी शासन के कुछ अधिकारियों के लिखित बयानों की ओर इशारा करते हुए कहा कि जैसा कि उन्होंने इस बात को माना है कि चुनावों से पहले ही शाही दरबार में, यहाँ तक कि कभी कभी कुछ विदेशी दूतावासों में कामयाब उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार कर दी जाती थी और बैलेट बॉक्सों से वही लिस्ट बाहर आती थी।

उन्होंने फ़्रांस और पूर्व सोवियत संघ जैसे बड़े इंक़ेलाबों के बाद तानाशाही गुटों का शासन आ जाने की ओर इशारा करते हुए कहा कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने अवाम पर भरपूर भरोसा करके और बैलेट बाक्सों को अहमियत देकर इंक़ेलाब की कामयाबी के बाद क़रीब 50 दिनों के भीतर इस बात के लिए रेफ़रेंडम कराया कि अवाम को किस तरह का शासन चाहिए ताकि अवाम मुल्क और इंक़ेलाब के अस्ली मालिक की हैसियत से सभी मसलों के बारे में फ़ैसला करे।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने उन घटिया दुश्मनों की ओर इशारा करते हुए जो ईरान और शुक्रवार के चुनावों पर नज़रें गड़ाए हुए हैं, कहा कि अमरीका, यूरोप के ज़्यादातर राजनेता, घटिया ज़ायोनी शासन और बड़े बड़े पूंजीपति और बड़ी बड़ी कंपनियां जो मुख़्तलिफ़ वजहों से पूरे ध्यान से ईरान के मसलों पर नज़र रखती हैं, हर चीज़ से ज़्यादा चुनावों में ईरानी अवाम की भागीदारी और ईरानी अवाम की ताक़त से ख़ौफ़ खाती हैं।

उन्होंने कहा कि दुश्मनों ने देखा कि इसी निर्णायक अवामी ताक़त ने अमरीका और ब्रिटेन द्वारा समर्थित सरकश शाही शासन को जड़ से उखाड़ फेंका और थोपी गयी जंग में सद्दाम को, उसके सभी पूर्वी व पश्चिमी तथा क्षेत्रीय समर्थकों के बावजूद, रुसवा किया और धूल चटा दी, इसी वजह से चुनाव, मुल्क की राष्ट्रीय शक्ति दुनिया के सामने पेश करने का प्रतीक हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने चुनावों में अवाम भी भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति के प्रदर्शन और राष्ट्रीय शक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरेंटी बताया और कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के बिना कोई भी चीज़ बाक़ी नहीं रहेगी और अगर दुश्मन ने राष्ट्रीय ताक़त के संबंध में ईरानियों में ज़रा भी कमजोरी देखी तो मुख़्तलिफ़ पहलुओं से राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डाल देगा।

उनका कहना था कि भरपूर भागीदारी से मज़बूत चुनाव का एक अहम नतीजा, मज़बूत लोगों का चयन और मज़बूत संसद का गठन और इसके नतीजे में मुश्किलों का अंत और मुल्क की प्रगति है। उन्होंने चुनावों के दूसरे नतीजों की ओर इशारा करते हुए कहा कि चुनावों के दौरान राजनैतिक बोध में तरक़्क़ी और जवानों में समीक्षा करने की क्षमता में इज़ाफ़ा बहुत क़ीमती चीज़ है क्योंकि इससे दुश्मन, उसके तरीक़ों और हथकंडों की पहचान होगी और नतीजे में इन चीज़ों से निपटने की राहों की पहचान होगी और दुश्मनों की साज़िशों को नाकाम बनाया जा सकेगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपने ख़ेताब के आख़िरी हिस्से में एक बार फिर ग़ज़ा के मसले को इस्लामी दुनिया का बुनियादी मसला बताते हुए कहा कि ग़ज़ा के मसले ने इस्लामी दुनिया को पहचनवा दिया और सभी को पता चल गया कि इस्लाम और धर्म का तत्व, मज़बूती, दृढ़ता की बुनियाद और ज़ायोनियों की इतनी ज़्यादा बमबारी और अपराधों के मुक़ाबले में घुटने न टेकने की वजह है।

उन्होंने आगे कहा कि इस मसले ने पश्चिमी कल्चर का असली चेहरा भी दुनिया के सामने पेश कर दिया और पता चल गया कि इस कल्चर में पले हुए राजनेता, ज़ायोनियों के हाथों फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफ़ाए को मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं और कुछ ज़बानी बातों के बावजूद वो व्यवहारिक तौर पर यूएन सेक्युरिटी काउंसिल के प्रस्तावों को वीटो करके जुर्म को रुकवाने में रुकावट डाल रहे हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ज़ायोनी शासन के अपराधों पर एतेराज़ करते हुए अमरीकी फ़ौज के एक अफ़सर के आत्मदाह की घटना को अमरीका और पश्चिम की भ्रष्ट व ज़ालिम संस्कृति की अमानवीय नीतियों की रुसवाई की इंतेहा की एक निशानी बताया और कहा कि इस शख़्स तक ने, जो ख़ुद पश्चिमी कल्चर में पला था, इस संस्कृति के घिनौने रूप को महसूस कर लिया।

उन्होंने उम्मीद जतायी कि अल्लाह, इस्लाम, मुसलमानों, फ़िलिस्तीन और ख़ास तौर पर ग़ज़ा की पूरी मदद करेगा।