ग़ज़ा में दुश्मन के दरिंदगी और बेरहमी से भरे जुर्म, जिसकी मिसाल मानवता पर ढाए गए ज़ुल्म के इतिहास में बहुत कम है, (फ़िलिस्तीनी) मर्दों, औरतों, जवानों और बच्चों के ठोस इरादों पर क़ाबू पाने में ज़ायोनियों की कमज़ोरी की निशानी हैं। अल्लाह का दुरूद व सलाम हो इस महान व साबित-क़दम क़ौम, ग़ज़ा के अवाम और हमास की सरकार पर जिन्होंने क़ुरआन मजीद की इन अमर आयतों की अमली तसवीर पेश कर दी। “और हम ज़रूर तुम्हें आज़माएंगे ख़ौफ़ व ख़तर, और कुछ भूख (व प्यास) और कुछ मालों, जानों और फलों के नुक़सान के साथ (यानी इनमें से किसी न किसी चीज़ के साथ) ऐ रसूल! ख़ुशख़बरी दे दीजिए उन सब्र करने वालों को कि जब भी उन पर कोई मुसीबत आ पड़े तो वो कहते हैं कि बेशक हम सिर्फ़ अल्लाह ही के लिए हैं और उसी की तरफ़ पलट कर जाने वाले हैं। यही वो (ख़ुशनसीब) हैं, जिन पर उनके परवरदिगार की तरफ़ से दुरूद (ख़ास इनायतें और नवाज़िशें) हैं और रहमत व मेहरबानी है और यही लोग हेदायत-याफ़्ता हैं।” (सूरए बक़रह, आयत-155) और “मुसलमानो! ज़रूर तुम्हें तुम्हारे मालों और जानों के बारे में आज़माया जाएगा और तुम्हें अहले किताब मुशरेकीन से बड़ी दिल आज़ार बातें सुनना पड़ेंगी और अगर तुम सब्र व ज़ब्त से काम लो और तक़वा अख़्तियार करो तो बेशक यह बड़ी हिम्मत और हौसले का काम है।” (सूरए आले इमरान, आयत-186) हक़ और बातिल की इस लड़ाई में अंत में जीत हक़ की ही है और सब्र व दृढ़ता का प्रदर्शन करने वाली फ़िलिस्तीन की यह क़ौम दुश्मन को हराकर रहेगी। “और अल्लाह बड़ा ताक़तवर (और) ग़ालिब है।” (सूरए अहज़ाब, आयत-25)
इमाम ख़ामेनेई
07/12/2008