इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बुधवार को पूरे मुल्क से 'बसीज' (स्वयंसेवी बल) के हज़ारों की तादाद में आए हुए सदस्यों से मुलाक़ात में इस फ़ोर्स को इमाम ख़ुमैनी की क़ीमती यादगार बताया और कहा कि इमाम ख़ुमैनी का ख़ुद के बसीजी होने पर फ़ख़्र करना, इस फ़ोर्स के आला दर्जे को प्रमाण है।
उन्होंने सीमा और क़ौम तक सीमित न रहने के पहलू को बसीज की एक और नुमायां ख़ुसूसियत क़रार देते हुए कहा कि विश्व रेज़िस्टेंस की युनिटों के गठन के बारे में इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने जो ख़ुशख़बरी दी थी वह आज इलाक़े में व्यवहारिक हो चुकी है और रेज़िस्टेंस की इकाइयां क्षेत्र का भविष्य तय कर रही हैं, जिसकी मिसाल अलअक़सा फ़्लड ऑप्रेशन है।
उन्होंने पश्चिमी एशिया के जियोपोलिटिकल नक़्शे को बदलने की अमरीकियों की नाकाम साज़िश की ओर इशारा करते हुए कहा कि उन्होंने कई साल पहले लेबनान के मसले में कहा था कि वो अपनी ज़रूरतों और नाजायज़ हितों की बुनियाद पर नए वेस्ट एशिया के गठन की कोशिश में हैं लेकिन वो इसमें नाकाम रहे।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इलाक़े का नया नक़्शा बनाने में अमरीका की नाकामी की मिसालें पेश करते हुए कहा कि अमरीका हिज़्बुल्लाह को ख़त्म करना चाहता था लेकिन 33 दिन की जंग के बाद हिज़्बुल्लाह पहले से दस गुना ज़्यादा ताक़तवर हो गया।
उन्होंने वेस्ट एशिया की भूगराजनैतिक स्थिति में धीरे-धीरे रेज़िस्टेंस फ़्रंट का पलड़ा भारी होने की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस नक़्शे की पहली ख़ुसूसियत, अमरीका को दूर करना यानी क्षेत्र पर अमरीकी प्रभाव का अंत है कि जिसका मतलब यह है कि अमरीका की राजनैतिक ताक़त और उसका प्रभाव ख़त्म होता जा रहा है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि क्षेत्र पर वर्चस्व के लिए अमरीका की कोशिशों में से एक ज़ायोनी सरकार को मज़बूत बनाना और मुल्कों को उससे संबंध स्थापित करने के लिए प्रेरित करना था। उन्होंने आगे कहा कि क्षेत्र से अमरीका को दूर करने की साफ़ निशानियों में से एक अलअक़सा फ़्लड ऑप्रेशन का इतिहास रचने वाला ज़बरदस्त वाक़या है जो अगरचे ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ था लेकिन अमरीका को क्षेत्र से खदेड़ने की ओर केन्द्रित था।
उन्होंने इसी सिलसिले में कहा कि अलअक़सा फ़्लड ऑप्रेशन ने इस इलाक़े से संबंधित अमरीकी प्रोग्रामों के शेड्यूल को अस्त व्यस्त कर दिया और अगर यह तूफ़ान जारी रहा तो क्षेत्र से अमरीकी योजनाओं का पूरा शेड्यूल सिरे से मिट जाएगा।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कहा कि न्यू वेस्ट एशिया की दूसरी ख़ुसूसियत, क्षेत्र में जुदाई डालने वाले प्रोपैगंडों का अंत है और अरब और ग़ैर अरब, शिया और सुन्नी या शिया क्रेसेन्ट के अफ़साने जैसे प्रोपैगंडों का रंग फीका पड़ चुका है जिसकी साफ़ मिसाल फ़िलिस्तीन का मसला है क्योंकि अलअक़सा फ़्लड के दौरान और इससे पहले फ़िलिस्तीनियों की सबसे ज़्यादा मदद अरब और ग़ैर अरब शियों ने की।
उन्होंने कहा कि इस तरह के थोपे गए प्रोपैगंडों के मुक़ाबले में प्रतिरोध करना और घुटने टेक देना दो नई हक़ीक़तें इलाक़े में सामने आ गयी हैं।
उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीन की पूरी सरज़मीन पर फ़िलिस्तीनियों की संप्रभुता की बहाली के रूप में फ़िलिस्तीन के मसले का हल, वेस्ट एशिया की एक दूसरी ख़ुसूसियत है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने फ़िलिस्तीन के भविष्य के लिए इस्लामी गणराज्य के प्रस्ताव यानी फ़िलिस्तीन के भीतर और बाहर रहने वाले सभी फ़िलिस्तीनियों की शिरकत से रेफ़्रेन्डम कराए जाने की ओर इशारा करते हुए कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि ज़ायोनी सरकार इस प्रस्ताव को नहीं मानेगी लेकिन उस पर इस इरादे को लागू करना ही होगा और अगर इस प्रस्ताव पर ठोस तरीक़े से काम किया जाए, जो इंशाअल्लाह किया जाएगा और अगर रेज़िस्टेंस की युनिटें, पूरी गंभीरता से अपने इरादे पर अमल करें तो यह लक्ष्य पूरा हो जाएगा।
उन्होंने इस लक्ष्य से क़रीब होने में अलअक़सा फ़्लड ऑप्रेशन के रोल की ओर इशारा करते हुए कहा कि ज़ायोनी इस ऑप्रेशन से बहुत तैश में हैं और इसे रोकने के लिए अस्पतालों, स्कूलों और अवाम की भीड़ पर हमले कर रहे हैं।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपने लक्ष्य के हासिल होने में नाकामी की वजह से जारी ज़ायोनियों के बेरहमाना अपराधों की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये जुर्म, ज़ायोनी सरकार, अमरीका और पश्चिमी सभ्यता की और ज़्यादा बेइज़्ज़ती का सबब बने हैं और पश्चिम का कल्चर और सभ्यता ये है कि वह 5000 फ़िलिस्तीनी बच्चों को शहीद करने और फ़ॉसफ़ोरस बमों के इस्तेमाल को सेल्फ़ डिफ़ेन्स का नाम देती है।
उन्होंने ग़ज़ा में 50 दिन से जारी ज़ायोनी अपराधों को, फ़िलिस्तीन में 75 बरस पर फैले ज़ायोनियों के अपराधों का निचोड़ बताया और कहा कि अलअक़सा फ़्लड रुकने वाला नहीं है और इंशाअल्लाह वर्तमान स्थिति जारी नहीं रहेगी।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी स्पीच में इमाम ख़ुमैनी की ओर से मुल्क को एक महान फ़ोर्स की ज़रूरत महसूस किए जाने और उनकी दूरदर्शिता को बसीज के गठन का सबब बताया।
उन्होंने इमाम ख़ुमैनी की ओर से बसीज (स्वयंसेवी बल) के लिए "इश्क़ की पाठशाला" की शब्दावली इस्तेमाल किए जाने को इस हक़ीक़त की निशानी बताया कि बसीज फ़ोर्स अल्लाह, अध्यात्म और अवाम से इश्क़ के साथ हक़ की राह पर क़दम बढ़ा रही है।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच के आख़िरी भाग में स्वयंसेवी बल के सदस्यों को कुछ नसीहतें कीं। सूझबूझ में इज़ाफ़ा, इनोवेशन, दुश्मन की योजनाओं में मददगार बनने से परहेज़, कठोर पाबंदियों और दबाव में मुल्क की हक़ीक़ी तरक़्क़ी व कामयाबी पर भरोसा करते हुए भविष्य के बारे में आशावान रहना, घमंड से दूरी, स्वयंसेवी होने की क़द्र समझना और इसे अल्लाह की क़ीमती अमानत मानना, अल्लाह पर हमेशा भरोसा, ऑप्रेश्नल फ़ोर्सेज़ के साथ प्लानिंग फ़ोर्सेज़ की भरती और उपाय, प्लानिंग और योजना तैयार किए जाने को ज़्यादा अहमियत देना, वो नसीहतें थीं जो इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बसीजियों से कीं।