जो क़ौम जागरूक है और तरक़्क़ी की ओर बढ़ रही है, उन सभी कामों की ओर से जो विकास के साथ साथ वैज्ञानिक तरक़्क़ी और दूसरे बड़े बड़े कामों के साथ अंजाम पाने चाहिए और उनसे हरगिज़ ग़फ़लत न बरते, वह हर चरण में दुश्मन के टार्गेट की पहचान है, यह जागरूक होने की निशानी है। एक ऐसी क़ौम की कल्पना नहीं की जा सकती जो बड़े लक्ष्य की मालिक हो और बड़ा काम करना चाहती हो लेकिन उसके दुश्मन न हों। हाँ ऐसी क़ौमें भी पायी जाती हैं जो दुनिया में किसी किनारे एकांत में पड़ी हैं और अपने भविष्य की ओर से उन्हें कोई लेना देना नहीं है, विदेशी ताक़तों ने उन पर क़ब्ज़ा भी जमा रखा है ... बहरहाल एक ऐसी क़ौम जो ईरानी क़ौम जैसी है और जिसने विदेशी ताक़तों के हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ इंक़ेलाब किया है और विदेशी ताक़तों के हाथ मुल्क से काट दिए हैं और अपने मुल्क में विदेशी हस्तक्षेप का अंत कर दिया है, ये सब कोई छोटे काम नहीं हैं। (ऐसे में) ईरान के (भी) दुश्मन हैं। ईरानी क़ौम ने अपने तेल के भंडारों और तरह तरह के दूसरे भंडारों की विदेशी ताक़तों के हाथों लूट को ख़त्म किया है और उस सरकारी मशीनरी को जो विदेशी ताक़तों के हित में काम कर रही थी, उसको जड़ से उखाड़ फेंका। तो इन ख़ुसूसियतों वाली क़ौम के दुश्मन भी हैं। ऐसा कैसे मुमकिन है कि उसके दुश्मन न हों।
इमाम ख़ामेनेई
17 दिसम्बर 1999