फ़िलिस्तीन का मुद्दा, इस्लामी लेहाज़ से सभी मुसलमानों के लिए बुनियादी मुद्दा है और एक फ़रीज़ा है। सभी शिया, सुन्नी धर्मगुरुओं और पुराने ज़माने के धर्मगुरुओं ने साफ़ तौर पर कहा है कि अगर कोई इस्लामी इलाक़ा दुश्मन के क़ब्ज़े में आ जाए तो ऐसी हालत में सभी का फ़रीज़ा है कि मदद करें ताकि क़ब्ज़े में जाने वाली सरज़मीनों को वापस ले सकें। हर किसी पर जिससे जो भी बन पड़े, जैसे भी मुमकिन हो फ़िलिस्तीन के संबंध में वह काम अंजाम देने का फ़रीज़ा है। इस्लामी सरज़मीन होने के लेहाज़ से फ़रीज़ा है। इस्लामी सरज़मीन है जो इस्लाम के दुश्मनों के क़ब्ज़े में है और वह वापस होनी चाहिए, दूसरे यह कि 80 लाख मुसलमान जिनमें कुछ बेवतन हैं और कुछ इस्राईल के नाजायज़ क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में बेवतनों से भी ज़्यादा बुरी हालत में ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं। इन लोगों का टार्गेट यह है कि फ़िलिस्तीन का नाम भुला दिया जाए, लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे, क़ुद्स दिवस ऐसा नहीं होने देगा, इमाम ख़ुमैनी ने अपनी समझदारी और ज़ेहानत से ऐसा नहीं होने दिया, यह एक बड़ा कारनामा है।
इमाम ख़ामेनेई
31/12/1999