बरसों की तानाशाही हुकूमतों ने हमारी क़ौम को निकम्मी क़ौम में बदल दिया था। ऐसी क़ौम जिसमें सलाहियत छलक रही हो, उत्कृष्ट सामूहिक आदतें हो, जिसने इस्लाम के बाद के लंबे इतिहास के दौर में ऐसे राजनैतिक व वैज्ञानिक कारनामे अंजाम दिए हों, एक कमज़ोर, दबाई हुयी और निकम्मी क़ौम बन गयी। विदेशी ताक़तों- एक मुद्दत तक अंग्रेज़ों ने, एक मुद्दत तक रूसियों ने और एक मुद्दत तक अमरीकियों ने और इन्हीं के साथ साथ कुछ दूसरी यूरोपीय सरकारों ने हमारी क़ौम को ज़लील व रुसवा कर रखा था...हमारे प्यारे व अजेय इमाम (ख़ुमैनी) रहमतुल्लाह अलैह ने ईरानी क़ौम की सोयी हुयी ग़ैरत और राष्ट्रीय गौरव को जगाया...हमारे अवाम को एहसास हो गया है कि वे इतनी ताक़त व क्षमता रखते हैं कि पूरब और पश्चिम की पाबंदियों और धमकियों के ख़िलाफ़ डट जाएं। सम्मान और आत्म विश्वास की भावना, सच्ची क़ौमी ग़ैरत और वास्तविक ग़ौरव की भावना को इमाम ने हमारी क़ौम के भीतर जगाया।

इमाम ख़ामेनेई

14/7/1989