आयतुल्लाह ख़ामेनेई की स्पीचः

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के परवरदिगार के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम और उनकी पाकीज़ा नस्ल ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर। (1)

आप सबका स्वागत है। मैं भी जैसा कि जनरल बाक़ेरी साहब ने बयान किया, एक लंबी मुद्दत के बाद होने वाली इस मुलाक़ात से, ख़ुश हूं और उम्मीद करता हूं कि पूरी कायनात का मालिक इन्शाअल्लाह आप सभी को उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ अमल करने और उस चीज़ में कामयाब करे जो आप के अहम व बड़े मिशन के लिए ज़रूरी है। आप सभी को नौरोज़ की भी मुबारकबाद पेश करता हूं, हालांकि ईद को क़रीब एक महीना गुज़र चुका है, लेकिन नौरोज़ की ईद दो तीन महीने तक जारी रहती है, मुबारकबाद दी जा सकती है, कोई हरज नहीं है।

बाक़ेरी साहब की बातें, बहुत अच्छी थीं, मतलब यह कि सशस्त्र बल से हमारी अपेक्षा इन्ही बातों की है जो उन्होंने बयान कीं। इसके अलावा कुछ मौक़ों पर आपने ख़ुद उपाय किया, ढूंढा और फ़ैसला किया -जो बहुत अच्छी सोच है- लेकिन फ़ैसला आधा काम है, दूसरा आधा काम उस पर अमल करना, उसे फॉलोअप करना वग़ैरह है। इन फ़ैसलों को पुराना और बासी न होने दीजिए कि धीरे-धीरे उन्हें भुला दिया जाए। मैं आपको जो यह सिफ़ारिश कर रहा हूं,  इस पर हैरत न कीजिए क्योंकि ऐसा बहुत होता है, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ में भी होता है, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के बाहर भी होता है। फ़ैसला लिया जाता है, जो लोग विभागों के इनचार्ज हैं, फ़ैसला लेते हैं, मज़बूत इरादा रखते हैं, गंभीर होते हैं और उनका पूरा यक़ीन होता है कि वे ऐसा करना चाहते हैं लेकिन जब वह काम अधिकारियों और मानव संसाधन की मुख़्तलिफ़ सतह पर अंजाम के लिए पहुंचता है तो धीरे-धीरे कमज़ोर हो जाता है, ढीला पड़ जाता है और कभी कभी तो अंजाम ही नहीं पाता! ऐसा न होने दीजिए। यह एक बात हुयी।

दूसरी बात यह कि जो चीज़ें आपने शुरू की हैं, उन पर काम करते रहिए, उनके बारे में पूछते रहिए। मिसाल के तौर पर घरों का निर्माण, आपने कुछ तादाद में मकान बनाने शुरू किए, बहुत अच्छा, लेकिन हमारे मुल्क में निर्माण के प्रोजेक्ट्स में एक कमी यह है कि उनमें तय शुदा मुद्दत से ज़्यादा वक़्त लग जाता है। मिसाल के तौर पर एक रिहायशी कॉम्पलेक्स को फ़र्ज़ कीजिए तीन साल में पूरा हो जाना चाहिए, इस मुद्दत को सात साल या दस साल न होने दीजिए। यह भी हमारी सिफ़ारिशों में से एक है।

मैंने आप प्रिय भाइयों के सामने पेश करने के लिए कुछ प्वाइंट्स नोट किए हैं। उनमें से एक बात आप लोगों की पोज़ीशन के बारे में है। यह जो फ़रमाया गया है कि फ़ौजी, अल्लाह की इजाज़त से अवाम के लिए क़िला हैं (2) तो आप दीवार हैं कौम और समाज के लिए मज़बूत दीवार हैं, यह बहुत फ़ख़्र करने वाली बात है। इससे ज़्यादा फ़ख़्र करने के क़ाबिल और क्या बात होगी? अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की इस तरह ख़ुसूसियत बयान करते हैं कि ये लोग मुल्क और क़ौम के चारों ओर मज़बूत दीवारें हैं, इससे बड़ी और इससे ज़्यादा अहम चीज़ और क्या हो सकती है? अगर आप एक शख़्स को अपनी सरपरस्ती में ले लें और उसे पनाह दें तो यह कितनी क़ीमती बात है, अब इसके दायरे को बढ़ा कर पूरी क़ौम से तुलना कीजिए। आप एक पूरी क़ौम को अपनी हिफ़ाज़त में लेते हैं। इसलिए यह बहुत ही ऊंची पोज़ीशन है, बहुत बड़ी पोज़ीशन। इतनी ही इसकी ज़िम्मेदारी भी है, उन सभी चीज़ों की तरह जो ज़्यादा क़ीमती हैं, उसकी ज़िम्मेदारी भी, उसकी क़द्र के लेहाज़ से ही है। आप अपनी क़द्र, इस काम की क़द्र, इस ओहदे की क़द्र, इस ज़िम्मेदारी की क़द्र समझिए और साथ ही सभी ज़िम्मेदारियों को भरपूर तरीक़े से संभालिए यानी अपने कांधों पर इस ज़िम्मेदारी को लीजिए और इस सिलसिले में काम कीजिए।

अगला प्वाइंट यह है कि अलहम्दो लिल्लाह हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ तरक़्क़ी की ओर बढ़ रही है, सभी इंडेक्स इसी का पता दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे यहाँ कमी नहीं है, है और इसमें कोई शक नहीं है, कमज़ोरियां भी हैं, लेकिन अहम बात यह है कि हम आगे बढ़ रहे हैं, यह पक्की बात है। रुक नहीं रहे हैं, आगे बढ़ रहे हैं, यह बहुत अहम प्वाइंट है, इसे हाथ से जाने मत दीजिए। रुक जाना भी पीछे हटने जैसा ही है। दोनों में कोई फ़र्क़ नहीं है, अपनी मौजूदा स्थिति से संतुष्ट मत रहिए, आगे बढ़ते रहिए। मैंने “परिवर्तन” (3) शब्द इस्तेमाल किया था, परिवर्तन, हरकत का ऊपरी भाग है। जो चीज़ ज़रूरी है, वह आगे की ओर बढ़ना, तरक़्क़ी की ओर बढ़ना है। देखिए, ग़ौर कीजिए कि आप जिस विभाग में हैं, वहाँ इस सिलसिले में क्या कर सकते हैं।

एक दूसरा अहम प्वाइंट तैयारी है। उन्होंने वार गेम्ज़ की ओर इशारा किया, यह अहम बात है। यानी वार गेम्ज़ की, उस क्षेत्र में जिसमें दुश्मन की फ़ोर्सेज़ पाबंद रहती हैं- उसके सभी क्षेत्रों में, उसके हवाई, उसके ज़मीनी, उसके समुद्री, उसके सुरक्षा के क्षेत्र में, उसके घुसपैठ बनाने के क्षेत्र में- वे सभी क्षेत्र जो आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के कार्यक्षेत्र में आते हैं, तैयारी होनी चाहिए।

जब ख़तरा है तो तैयारी होनी चाहिए और ख़तरा तो हमेशा ही रहता है क्योंकि ऐसा कोई वक़्त फ़र्ज़ नहीं किया जा सकता जिसमें ख़तरा न हो, ऐसा वक़्त फ़र्ज़ किया जा सकता है अम्न हो और जंग न हो लेकिन यह कि हम ऐसा वक़्त फ़र्ज़ करें कि जिसमें बिल्कुल भी ख़तरा न हो, मेरे ख़्याल में ऐसी चीज़ मुमकिन नहीं है और ऐसा नहीं होता है। इसलिए तैयारी हमेशा रहनी चाहिए। (ऐ मुसलमानो) तुम जिस क़द्र इस्तेताअत रखते हो उन (कुफ़्फ़ार) के लिए तैयार रखो इसका यही तो मतलब है, यानी तैयारी रखो, अइद्दू यानी तैयारी रखो, कितनी तैयारी रखो? “जिस क़द्र इस्तेताअत रखते हो”, “क़ुव्वत व ताक़त और बंधे हुए घोड़े”, यही तैयारी, ख़ुद यह तैयारी डिटरन्स है, तैयार रहना ही डिटरन्स है। इसी लिए आयत में कहा गया है कि “ख़ौफ़ज़दा कर सको” ऐसी तैयारी, “ ताकि तुम इससे अल्लाह के दुश्मन और अपने दुश्मनों को ख़ौफ़ज़दा कर सको” (5) मतलब यह कि जब तुम तैयार हो और दुश्मन यह समझ जाए कि तुम तैयार हो तो यही चीज़ डिटरन्स है। एयरफ़ोर्स में डिटरन्स है, डिफ़ेन्स में डिटरन्स है, समुद्री गश्त में डिटरन्स है, सैन्य अभ्यासों में जो आप जल और थल में अंजाम देते हैं, डिटेरन्स है, दूसरे सभी मैदानों में ऐसा ही है। इसलिए तैयारी को बरक़रार रखिए कि दुश्मन उसे देखे।

यह जो मैंने ख़तरे की बात की, वह किसकी तरफ़ से है? यह भी अहम प्वाइंट है। हमें ग़लती नहीं करनी चाहिए। इंसान कभी देखता है कि मिसाल के तौर पर फ़र्ज़ कीजिए कि एक छोटी और कम प्रभावी ताक़त कोई बात करती है, कोई काम करती है और इंसान का ध्यान उसकी ओर मुड़ जाता है। हमें इन छोटी मोटी दुश्मनियों की ओर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं करना चाहिए, हमें यह देखना चाहिए कि इसके पीछे कौन है, इसकी योजना किसने बनायी है? यह चीज़ अहम है। हमारे इलाक़े में और दुनिया के दूसरे इलाक़ों में ये जो जंग के शोले भड़काए जा रहे हैं, इन सबके पीछे बड़ी ताक़तें हैं। मिसाल के तौर पर आज यूरोप में युक्रेन जंग में फंसा हुआ है, यह जंग कौन शुरू करवाता है? इसकी योजना कौन बनाता है? सीरिया में, लीबिया में, सूडान में और दूसरी जगहों पर भी ऐसा ही है। यह जो कुछ हो रहा है, यह जो जंगें हो रही हैं, इनके पीछे पूरी प्लानिंग है। इसे छोटे मोटे तत्वों की हरकत क़रार नहीं दिया जा सकता। यह योजना बनाने वाले कौन लोग हैं? वे अंतर्राष्ट्रीय दुष्ट ताक़तें हैं जिन्हें साम्राज्यवादी कहते हैं। साम्राज्यवादी का मतलब वही अंतर्राष्ट्रीय दुष्ट व आक्रामक ताक़तें जो किसी हद पर नहीं ठहरतीं। ये लोग देखते हैं, योजना बनाते हैं कि फ़ुलां जगह एक झगड़ा कराने की ज़रूरत है। फ़ुलां जगह से मुनाफ़ा कमा सकें, इसलिए यहाँ झगड़ा करा देते हैं ताकि वहाँ उन्हें फ़ायदा हो! इन बातों पर ध्यान देना चाहिए और मामले के पीछे की सच्चाई क्या है, उसे देखना चाहिए।

दुश्मन की योजना, मेरे ख़्याल में लंबी मुद्दत की है। हमें सिर्फ़ यह नहीं देखना चाहिए कि मिसाल के तौर पर उन्होंने हमारे ख़िलाफ़ इस पांच साल के लिए या दस साल के लिए क्या सोच रखा है, बल्कि हमें यह देखना चाहिए कि उन्होंने लंबी मुद्दत के लिए हमारे ख़िलाफ़ क्या प्लानिंग कर रखी है। आम तौर पर उनकी योजना लंबी मुद्दत की होती है, यह बात समझ में आती है। ये लोग लंबी मुद्दत और मध्य कालिक हर तरह की योजना बनाते हैं और बिना योजना के काम नहीं होता। मैं सोचता हूं तो देखता हूं कि मिसाल के तौर पर क़रीब 22 साल पहले हमारे पूरब और पश्चिम में थोड़ी मुद्दत के अंतराल से दो कार्यवाहियां की गयीं।(6) यह इत्तेफ़ाक़ तो नहीं हो सकता, एक मुल्क के साथ हमारी 1300 किलोमाटर से ज़्यादा संयुक्त सीमा है और दूसरे के साथ 800 किलोमीटर से ज़्यादा। अचानक हमारे पूरब और पश्चिम में आग भड़क जाती है। हमारा कोई हस्तक्षेप नहीं है, हम बग़ल में हैं, लेकिन साम्राज्यवादी तत्व कूद पड़ते हैं, जंग शुरू करा देते हैं, गंभीर जंग। यह काम इराक़ में हुआ, वहाँ अमरीकियों का घुस आना मज़ाक़ नहीं था। एक पूरी तरह सोची समझी गंभीर जंग थी जिसमें इराक़ में अमरीका की पूरी थल और वायु सेना को इस्तेमाल किया गया। अफ़ग़ानिस्तान में भी ऐसा ही था, उन्होंने वह जंग भी इराक़ की जंग से थोड़ा पहले शुरू की थी। तो यह क्या इत्तेफ़ाक़ की बात है? ईरान के पूरब और पश्चिम में थोड़े से अंतराल पर ऐसी जंग शुरू होना क्या इत्तेफ़ाक़ है? नहीं, बिल्कुल नहीं, यह इत्तेफ़ाक़ नहीं हो सकता, इसके पीछे एक सोच और प्लानिंग है। मुमकिन है इराक़ में भी उनके कुछ हित हों या अफ़ग़ानिस्तान में भी मामूली हित हों लेकिन ये हित ऐसे नहीं हैं जिनके लिए इस तरह की जंग की जाए। इस जंग का टार्गेट इस्लामी राष्ट्र ईरान है। जब ग़ौर कीजिए तो इस बात में ज़रा भी शक नहीं रह जाता कि इन दो जंगों का टार्गेट ईरान था, मुख़्तलिफ़ शक्लों और मुख़्तलिफ़ समीक्षाओं से यह बात समझ में आ सकती है, इसकी समीक्षा इतनी मुश्किल भी नहीं है। फ़ुज़ूल के बहाने बनाते हैं, मिसाल के तौर पर वहाँ कोई बहाना और यहाँ कोई बहाना बनाते हैं और घुस जाते हैं, एक जंग शुरू कर देते हैं। इस पर ध्यान देना चाहिए कि हमारा दुश्मन कौन है।

अल्लाह की कृपा से चूंकि इस्लामी गणराज्य का ढांचा मज़बूत है -यह जो मैं बार बार दोहराता हूं (7) इस पर ग़ौर कीजिए, इस्लामी इंक़ेलाब का ढांचा बहुत मज़बूत है, इस्लामी इंक़ेलाब के स्तंभ बहुत मज़बूत हैं- इसलिए दोनों मामलों में सामने वाले पक्ष को हार का मुंह देखना पड़ा, यानी उसे साफ़ तौर पर हार हुयी और उसकी हार के साथ ही इस्लामी गणराज्य का प्रभाव बढ़ गया, यह वह चीज़ थी जो वे नहीं चाहते थे, यह वह चीज़ थी जिसके बारे में वे सोच भी नहीं रहे थे। अल्लाह शहीद क़ासिम सुलैमानी पर अपनी रहमत नाज़िल करे, जिनका रोल इस मामले में बहुत ही बेमिसाल था, मैं जो बहुत क़रीब से मामलों की जानकारी रखता था, यह बात जानता हूं। अल्लाह उनके दर्जे बुलंद करे इन्शाअल्लाह।

तो दुश्मन को हार हुयी जबकि उसने योजना बना रखी थी। तो इससे हम एक नतीजा निकाल सकते हैं और वह नतीजा यह है कि दुश्मन को उसके सभी बज़ाहिर मज़बूत समीकरणों के बावजूद, पूरी तरह हराया जा सकता है, यह बात हमें भूलनी नहीं चाहिए। इस वक़्त हम जितने भी कैल्कुलेशन करते हैं और अंदाज़ा लगाते हैं, उनमें इस बात को भी मद्देनज़र रखना चाहिए कि ठीक है कि दुश्मन की इंटेलिजेन्स मज़बूत है, उसके अंदाज़े लगाने और कैल्कुलेशन करने वाले विभाग मज़बूत हैं, उसकी फ़ोर्सेज़ अच्छी हैं, पैसे तो उसके पास ज़्यादा हैं ही, ये सब अपनी जगह ठीक है, लेकिन इस बात का पूरा इमकान है कि इंसान उसके अंदाज़ों को ग़लत साबित कर दे, उसे हार का मज़ा चखा दें। अगर हम समझदारी से आगे बढ़ें और काम को यूं ही नहीं छोड़ दें बल्कि उसे आगे बढ़ाते रहें तो वह दुश्मन की सभी कोशिशों और चालों को नाकाम बना देगा।

इसका एक नमूना इस वक़्त यही ज़ायोनी शासन है जो आँखों के सामने है और पूरी दुनिया देख रही है। उस साल रमज़ान के महीने में फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ एक कार्यवाही हुयी और वह अहम कार्यवाही थी जिसमें फ़िलिस्तीनियों को काफ़ी नुक़सान हुआ -शैख़ जर्राह के मोहल्ले और दूसरी जगहों पर- वाक़ई फ़िलिस्तीनियों पर ज़ुल्म किया गया लेकिन दुनिया में कहीं से कोई आवाज़ नहीं उठी - मैंने नोट किया है, उस साल के नोट को देखा- इंसान को वाक़ई तकलीफ़ होती है कि दुनिया में कहीं से कोई आवाज़ नहीं उठी, न तो मानवाधिकार संगठन की ओर से और न ही कहीं और से। क़ुद्स दिवस में सिर्फ़ यहाँ से और कुछ दूसरी जगहों पर थोड़ी बहुत हरकत देखने में आई। आप इस साल को देखिए, इस्राईल जो कुछ कर रहा है, उसके मुक़ाबले में दुनिया में क्या हो रहा है, ख़ुद अमरीका में जुलूस निकल रहे हैं, ब्रिटेन में रैली निकल रही है, यूरोप के लोग ज़ायोनी शासन के प्रमुख की गाड़ी पर हमला कर रहे हैं। इस वक़्त इन्हीं मामलों में दुनिया में जो स्टैंड लिया गया है वह अच्छा स्टैंड है, फ़िलिस्तीनियों के हक़ में और इस्राईलियों के ख़िलाफ़ है। तो ये सारी चीज़ें ऐसी सच्चाई की ओर इशारा करती हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए और इनसे दुश्मन के पराजित होने और उसके अंदाज़ों के भी नाकाम होने को समझा जाना चाहिए।

अलबत्ता दुश्मन की चाल की ओर से कभी भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, यानी हमें अपनी तरक़्क़ी और कामयाबियों के किसी भी चरण में हाथ पर हाथ रखकर बैठे नहीं रहना चाहिए और यह नहीं सोचना चाहिए कि बस अब ख़त्म हो गया। नहीं! वह जागरुकता और वह तैयारी जिसका मैंने पहले ज़िक्र किया, हमेशा होनी चाहिए। अलबत्ता आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के स्ट्रैटेजिक सेंटरों पर, मेरे ख़्याल में भारी ज़िम्मेदारी है, उन्हें सोचना चाहिए। मैंने एक बार आप लोगों से कहा था कि रणनीति तैयार कीजिए और अंग्रेज़ी की प्रचलित शब्दावली मिलिट्री स्ट्रैटेजी बनाने वाले हमारे लोग, आप हैं, बैठ कर योजना बनाइये, मुक़ाबले के लिए नई सोच के साथ योजना बनाइये। नई प्लानिंग में लगे रहिए, नए काम, अहम काम, अलबत्ता समझदारी के साथ काम कीजिए, यह काम इलाक़े की गुंजाइश, मुल्क की सलाहियत और ऐसे ही दूसरे प्वाइंट्स के मद्देनज़र रख कर अंजाम दिए जाएं।

बहरहाल रास्ता, अच्छा रास्ता है, काम, अच्छा काम है, नौकरी, फ़ख़्र के क़ाबिल नौकरी है और अल्लाह की मदद भी आपके साथ है इन्शाअल्लाह। अपने घरवालों को, अपनी बीवियों को, अपने बच्चों को मेरी तरफ़ से सलाम कहिएगा, (ईद की) मुबारकबाद भी पेश कीजिएगा और साथ ही आप लोगों के सिलसिले में वे लोग जो सब्र करते हैं, इस पर शुक्रिया भी अदा कीजिएगा। वाक़ई आप की औरतें जो सब्र करती हैं, उसके लिए उनका बहुत शुक्रिया अदा कीजिएगा। आप लोग काम और मुसलसल मीटिंग्स में रहते हैं और आपके काम के साथ ख़तरा भी होता है जबकि वे घरों की ज़िम्मेदारियां मुसलसल पूरी करती रहती हैं।

अल्लाह का सलाम और रहमत हो आप सब पर।

  1. इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के चीफ़ आफ़ स्टाफ़ जनरल मोहम्मद बाक़ेरी ने एक रिपोर्ट पेश की।
  2. नहजुल बलाग़ा, ख़त-53, सिपाही अल्लाह के हुक्म से रिआया की (रक्षा की) दीवार हैं।
  3. इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में स्थानीय लोगों और ज़ायरों के बीच स्पीच (21/3/2023)
  4. आर्म्ड फ़ोर्सेज़ को मज़बूत बनाने और तैयारी का स्तर बढ़ाने और इस्लामी गणराज्य की रक्षा ताक़त के प्रदर्शन के लिए फ़ौज, आईआरजीसी और पुलिस बल के अनेक अभ्यास की ओर इशारा।
  5. सूरए अन्फ़ाल, आयत-60, (ऐ मुसलमानो) तो जिस क़द्र इस्तेताअत रखते हो, इन (कुफ़्फ़ार) के लिए क़ुव्वत व ताक़त और बंधे हुए घोड़े तैयार रखो ताकि तुम इस (जंगी तैयारी) से अल्लाह के दुश्मन, अपने दुश्मन को और उन खुले दुश्मनों के अलावा दूसरे लोगों (मुनाफ़िक़ों) को ख़ौफ़ज़दा कर सको।
  6. अक्तूबर 2001 में अफ़ग़ानिस्तार पर और मार्च 2003 में इराक़ पर अमरीका के हमले की ओर इशारा
  7. इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में स्थानीय लोगों और ज़ायरों के बीच स्पीच (21/3/2023)