हक़ीक़ी ताक़त उस क़ौमी ताक़त को कहते हैं जिसके साथ इस बात की समझ पैदा हो कि उसके आस-पास क्या हो रहा है, दूसरे यह कि अपने हक़ और अपने रास्ते पर उसे ईमान हो, तीसरे यह कि वह फ़ैसला करे कि वह उस रास्ते पर चलती रहेगी, अगर किसी क़ौम में यह तीनों ख़ूबियां हों, दुनिया की कोई ताक़त उससे ज़्यादा ताक़तवर नहीं हो सकती। हम अपनी हैसियत, अपनी इज़्ज़त व शराफ़त, अपने धर्म, अपने इंक़ेलाब, अपने मानवाधिकार और अपनी संप्रभुता की रक्षा कर रहे हैं, हर क़ौम जो अपने इन हक़ीक़ी अधिकारों के बारे में ईमान व जागरुकता के साथ फ़ैसला कर ले, निश्चित तौर पर कामयाब होगी, इसलिए हम अपने दुश्मनों से ज़्यादा ताक़तवर हैं। हमारी यह ताक़त और संप्रभुता उस वक़्त है जब हम एकजुट हों, क़ौम जब एकजुट हो। किसी क़ौम में फूट हो तो उससे ज़िन्दगी को, इज़्ज़त को और संप्रभुता को छीन लेती है। क़ौम की इस एकता की अगर आपने रक्षा की तो यह ताक़त बाक़ी रहेगी।
इमाम ख़ामेनेई
14/7/1989