इस्लामी इंक़ेलाब की सालगिरह के मौक़े पर दस दिनों के समारोह दहे फ़ज्र में दो तरह का शुक्रिया अदा करना ज़रूरी हैः पहला अल्लाह का शुक्र अदा करना -पूरे वजूद से, पूरे ख़ुलूस के साथ हम अल्लाह के सामने सिर झुकाते हैं कि उसने ईरानी क़ौम को यह अवसर दिया, यह अज़ीम कारनामा, यह बड़ा काम, यह इतिहास लिखने वाला आंदोलन ईरानी क़ौम के हाथों, इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में वजूद में आया, ईरानी क़ौम का सफ़र अल्लाह की ओर, अल्लाह के मक़सद की ओर और इलाही मूल्यों की ओर शुरू हुआ। इससे बड़ी कोई नेमत नहीं है और इस अज़ीम नेमत पर अल्लाह का शुक्रिया अदा करना, हमेशा ज़रूरी है और दहे फ़ज्र के दिनों में तो ज़्यादा ज़रूरी है। दूसरा शुक्रिया, ईरानी कौम का शुक्रिया अदा करना है, लोगों ने वफ़ादारी दिखाई, बड़प्पन का प्रदर्शन किया, क़ुर्बानियां दीं, त्याग किया, बहादुरी दिखाई, बसीरत से काम लिया...यह पौधा, सभी ख़तरों, सभी मुश्किलों के बावजूद दिन ब दिन ज़्यादा तनावर, ज़्यादा फलदार और ज़्यादा ऊंचा होता गया।

इमाम ख़ामेनेई

05/12/1986