ईरान में मनाए जाने वाले हुकूमत के हफ़्ते के मौक़े पर राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी और उनकी कैबिनेट के सदस्यों ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। 30 अगस्त 2022 को इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में होने वाली इस मुलाक़ात में सुप्रीम लीडर ने हुकूमत के हफ़्ते के संदर्भ के बारे में कुछ बातें बयान कीं और राष्ट्रपति रईसी की सरकार के एक साल के कामकाज पर अपनी राय रखी साथ ही कुछ अहम सिफ़ारिशें कीं। (1)
तक़रीर इस तरह है:
बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम
सम्मानीय प्रेसिडेंट, जनाब इब्राहीम रईसी साहब और दूसरे लोगों की जो रिपोर्टें यहां हमने सुनीं वो बड़ी फ़ायदेमंद थीं। हम अपने दो प्यारे शहीदों, शहीद रजाई और शहीद बाहुनर को याद करते हैं। सच में यह दोनों लोग, इस्लामी इन्क़ेलाब की शान की कसौटी पर पूरे उतरने वाले मुल्क के ओहदेदार थे, दोनों ही ज़ाहिर सी बात है हमने इन दोनों और ख़ास तौर पर बाहुनर साहब के साथ बरसों काम किया है, हम उन्हें क़रीब से जानते थे और उनसे मिलते रहते थे। ख़ुदा ने उन्हें उनकी नेकियों के बदले में शहादत की नेमत अता कर दी। यानी बहुत अफ़सोस होता अगर यह दोनों लोग शहादत के अलावा किसी और वजह से इस दुनिया से जाते। हम उन्हें हमेशा याद करते रहेंगे।
हुकूमत का हफ्ता जो मनाया जाता है उसके दे फ़ायदे हैं जिनमें से एक पर आम तौर पर ध्यान नहीं दिया जाता। यहां मैं दोनों का ज़िक्र करुंगा। हुकूमत के हफ़्ते का पहला फ़ायदा 'याद करना' है। यही शहीद रजाई को शहीद बाहुनर को या फिर इन्क़ेलाब की घटनाओं को याद करना है। याद रखने, का उलटा है भूल जाना, भुला देना, जो बहुत बड़ी बीमारी है। भूलना और लारपरवाही करना बहुत बड़ी बीमारी है। “आप उसी को डराएंगे जो ज़िक्र (अल्लाह की किताब) की पैरवी करेगा। (2) ज़िक्र यानी याद या दूसरी आयत में कहा गया है कि “हमने तुम्हें वह किताब दी है जिसमें तुम्हारा ज़िक्र है।“ (3) यानी याद है। दुनिया के अलग अलग मज़हबों में एक चीज़ जिस पर बहुत ध्यान दिया गया है, वह यह है कि लोगों को याद दिलाया जाए, लापरवाही से बाहर निकाला जाए, भूल जाने को, अपनी प्रकृति भूल जाने की आदत को ख़त्म किया जाए।
हमारी आंखों के सामने बहुत कुछ हुआ है। शायद आप नौजवानों ने इनमें से बहुत सी घटनाओं को देखा न हो या फिर ठीक से आप को याद न हो। नयी तारीख़ रचने वाली घटनाओं को, इन्क़ेलाब के शुरु में लोगों के जोश को, इस गैर मामूली बदलाव के सामने दुश्मनों की हैरत से फटी आंखों को और फिर उनकी दुश्मनी की शुरुआत और हमारी ईरानी क़ौम के लिए एक के बाद एक सामने आने वाली घटनाओं को याद रखा जाना और उन्हें याद किया जाना चाहिए। हमें यह जानना चाहिए कि हम किस हालत में हैं? इसी तेहरान शहर के आसमान में सद्दाम के जहाज़ उड़ते फिरते थे, उनसे निपटने के लिए हमारे पास कुछ भी नहीं था। उनका पायलट, लड़ाका जहाज़ में बैठता था और बिना किसी डर के तेहरान के ऊपर उड़ान भरता था, हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते थे, चाहता तो बम गिराता और चाहता तो साउंड बैरियर तोड़ता और ईरानी क़ौम की बेइज़्ज़ती करता, यह तो हमारे आसमान का हाल था। हमारी ज़मीन की हालत यह थी कि हमारी ज़मीन पर, हमारी सड़कों पर और हमारी गलियों में आतंकवाद का बोलबाला था, सड़कों पर निकल कर लोगों का क़त्ल करते थे, आईआरजीसी के जवान को क़त्ल करते थे, बिज़नेसमैन को क़त्ल कर देते थे, दुकानदार को क़त्ल कर देते थे, पूरे मुल्क में अशांति का माहौल था। हम यह सब कभी नहीं भूलेंगे, वह दौर गुज़र गया, ईरानी क़ौम और इस्लामी सरकार ने ताक़त और वेक़ार के साथ इन सब चैलेंजों का सामना किया और इन सब मुद्दों को ख़त्म कर दिया। लेकिन हमें ऊंच-नीच को, अच्छाईयों को, बुराइयों को, आगे बढ़ने को पीछे हटने को भूलना नहीं चाहिए। इसी तरह हमें इन्क़ेलाब की शुरुआत से आज तक सरकारों के कामकाज को, पार्लियामेंट और इसी तरह के दूसरे इदारों के कामकाज को भूलना नहीं चाहिए।
उसके बाद लोगों के रोल को। इस पूरी मुद्दत में और इन्क़ेलाब की घटनाओं में अस्ली हीरो यही अवाम रहे। यह बड़े बड़े जुलूस, यह लोगों का मजमा, आठ बर्सों के दौरान पाक़ीज़ा डिफ़ेन्स में मोर्चों पर लोगों का जमे रहना और इसी तरह दूसरे मोर्चों पर, यह इन्क़ेलाबी रैलियां और जुलूस, इन्क़ेलाब की कामयाबी की सालगिरह के मौक़े पर, क़ुदस डे पर 14 जूलाई (4) या 30 दिसंबर (5) के मौक़े पर अवाम की भारी संख्या में रैलियां, बहुत अजीब चीज़ें हैं इन सब में हमारी क़ौम ने सब को हैरत में डाल दिया। हमें यह सब याद रखना चाहिए और आज, इन चीज़ों पर भरोसा करना चाहिए। इससे सीख लेना चाहिए, सबक़ हासिल करना चाहिए कि हम अपनी क़ौम के साथ कैसा बर्ताव करें उनके लिए क्या किया जा सकता है।
जब भी हमारे मुल्क के सिस्टम को, क़ौम के योगदान की ज़रूरत हुई, अवाम बिना किसी के कहे ख़ुद ही मैदान में आ गये। शहीद सुलैमानी का जुलूसे जनाज़ा आप लोगों को याद है? या अभी दो तीन दिन पहले इस्फ़हान में जो जुलूसे जनाज़ा निकाला गया (6) इन सब में बहुत कुछ छुपा है, इन से रुख़ का पता चलता है, हमें रास्ते का पता मिलता है। यह जो तेहरान में ईदे ग़दीर का जश्न हुआ (7) वह भी बहुत अजीब घटना थी और इसी तरह के मौक़ों और कामों में अवाम हमेशा आगे आगे मौजूद रहे। इन सब चीज़ों को भूलना नहीं चाहिए। हुकूमत के हफ़्ते में शहीद रजाई और शहीद बाहुनर की याद एक मिसाल है, एक निशानी है ताकि हम इन सब चीज़ों को याद करें, उनकी याद मनाएं, याद बहुत अहम चीज़ है, हुकुमत के हफ़्ते का एक काम तो यह है ।
हुकमत के हफ़्ते का एक और फ़ायदा यह है कि यह दरअस्ल, सत्ता में रहने वाली हुकुमत के कामकाज का जायज़ा लेने का मौक़ा है। यानी हम हुकूमत के कामों पर नज़र दौड़ाएं, उसके बारे में ग़ौर करें, उसके बारे में बात करें, उसकी अच्छाइयों और उसकी कमज़ोरियों के बारे में सोचें। जो एक्सपर्ट हैं वह भी सोचें और सरकारें उनके सुझावों पर तवज्जो दें। यह बहुत अच्छी चीज़ है। यह जो हम हर साल हुकूमत का हफ़्ता मनाते हैं वह इसलिए है कि यह वह मौक़ा है जब हम सरकार के बारे में उसके कामकाज के बारे में सोचते हैं बातें करते और फ़ैसले करते हैं। यह इसका दूसरा फ़ायदा है। मैं अपनी बातें दो हिस्सों में रखूंगा और कोशिश होगी कि वक़्त कम से कम लगे इन्शाअल्लाह।
एक तो आप की कामयाबियों का हल्का सा ज़िक्र है यानी वह काम जो मेरी नज़र में हक़ीक़त में आप की कामयाबी है, यह उन कामयाबियों से अलग है जिनका ज़िक्र आप लोगों की रिपोर्टों में किया गया है जिनमें से कुछ बहुत अहम भी हैं। लेकिन हम उन बातों का ज़िक्र करेंगे जो हमारी नज़र में कामयाबी हैं। दूसरा हिस्सा कुछ सिफ़ारिशें हैं जिनका मैं ज़िक्र करना चाहता हूं।
जहां तक कामयाबियों की बात है तो मेरी नज़र में इस सरकार की सब से बड़ी कामयाबी, अवाम में उम्मीद और भरोसे को बहाल करना है। यह आप की सबसे बड़ी कामयाबी है। सरकार के कामों ने चाहे वह ख़ुद प्रेसिडेंट के काम हों या अलग अलग इदारों को ओहदेदारों के काम हों, कुल मिला कर यह सब काम ऐसे रहे जिनसे लोगों को यह लगने लगा कि सरकार, मैदान में मौजूद है, काम कर रही है, कोशिश कर रही है और उनकी ख़िदमत कर रही है, उन्हें सहूलत देना चाहती है, इससे अवाम के दिल में काफ़ी हद तक उम्मीद और भरोसा बहाल हुआ है। बहुत से मैदानों में सरकार की ओर से की जाने वाली इन कोशिशों का नतीजा भी सामने आया है जिसे अवाम ने ख़ुद अपनी आंखों से देखा भी। जैसे हेल्थ के मैदान में डिप्लोमैसी के मैदान में, थोड़ा बहुत कल्चरल कामों के मैदान में भी सामने नज़र आने वाले नतीजे हैं। इसके अलावा कुछ मैदानों में नतीजे तो निकले लेकिन उन्हें लोगों के सामने लाये जाने की ज़रूरत है, लोगों को दिखाने की ज़रूरत है, कुछ कोशिशों का नतीजा तो निकला है लेकिन उसे लोगों के सामने पेश करके यह बताने की ज़रूरत है कि इस काम का यह नतीजा निकला है, यह सब हुआ है। बहुत से मैदानों में अब भी कोशिश जारी है और नतीजे का इंतेज़ार है। लेकिन यह अच्छी तरह से महसूस किया जा रहा है कि कोशिश जारी है काम हो रहा है। मेरे ख़्याल में यह आप की सब से बड़ी कामयाबी है।
आप की दूसरी कामयाबी वह है जो आप सूबों का दौरा करते हैं, यह बहुत तारीफ़ के लायक़ काम है, बहुत अहम काम है। यह बहुत अहम बात है कि 11 महीनों में मुल्क के सूबों का 31 दौरा किया जाए, पिछड़े इलाक़ों का, दूरदराज़ के इलाक़ों का दौरा किया जाए जहां हैरतअंगेज़ चीज़ें भी देखने को मिलें, आम लोगों के साथ सच्चाई से जुड़ने और लोगों के मुद्दों को क़रीब से देखने का मौक़ा मिले तो यह यक़ीनी तौर पर बहुत अहम काम है। मैं अभी अपनी सिफ़ारिशों में भी इस बारे में एक और बात कहूंगा।
एक और चीज़ जो आप की कामयाबी है, बाढ़ जैसे हादेसात के वक़्त आप के कामों की तेज़ रफ़्तार है। यह रफ़्तार बहुत अहम चीज़ है। यह बहुत अहम और क़द्र के लाय़क है कि अगर कहीं मिसाल के तौर पर भूकंप या बाढ़ आ जाए तो मुल्क के ओहदेदार फ़ौरन वहां पहुंच जाएं और अपनी देख रेख में काम कराएं और इंतेज़ाम करें। मोहतरम प्रेसिडेंड, दूसरे मुल्क के दौरे से वापस आए (8) और फ़ौरन ही बाढ़ का शिकार होने वालों से मिलने किरमान चले गये या फिर कोई मिनिस्टर ख़ुद जाकर किसी काम की निगरानी करता है। यह सब बहुत अहम चीज़ें हैं। यह आप की एक कामयाबी है और इससे यह पता चलता है कि सरकार के दिल में अवाम का दर्द है और वह मैदान में खड़ी है, यह भी एक कामयाबी है। यह जो मैं आप लोगों की कामयाबियों का ज़िक्र कर रहा हूं तो इसका मक़सद सिर्फ़ आप लोगों की तारीफ़ करना नहीं है बल्कि यह सब कहने का मक़सद यह है कि यह सिलसिला बंद न होने पाए, अपने काम करने के इस तरीक़े को जारी रखिए इसे बनाए रखिए।
एक और कामयाबी, अलग-अलग सरकारी इदारों के बीच मुक़ाबले को ख़त्म करना भी है। मेरे ख़्याल में यह भी बहुत अहम है। अगर सरकार, पार्लियामेंट और जुडीशरी हमेशा एक दूसरे से टकराते रहें और एक दूसरे की शिकायतें करते रहें तो यह कोई अच्छी बात नहीं है, इससे अवाम का ज़ेहन परेशान होता है। आज कल यह महसूस हो रहा है कि एक तरह की यूनिटी और समन्वित नज़रिया पैदा हो गया है। यक़ीनी तौर पर यह चीज़ और यह काम उन कामों में से है जिस पर सरकार और पार्लियामेंट दोनों को ध्यान देना चाहिए और यह सिलसिला जारी रखना चाहिए क्योंकि यह चीज़ बहुत जल्दी ख़त्म हो जाती है। मतलब यह कि यह उन चीज़ों में से है जिस पर आप का बहुत ज़्यादा कंट्रोल नहीं होता, अकेले आप या पार्लियामेंट के हाथ में नहीं होता, कुछ दूसरे लोग बीच में कूद पड़ते हैं, हंगामा करते हैं और फ़ितना पैदा कर देते हैं। इस लिए आप यह कोशिश करें कि यह एक तरह का ज़ो ख़याल है, एक तरह की जो सोच है वह बाक़ी रहे, इसका ख़याल सरकार भी रखे और पार्लिमेंट भी ख़याल रखे और जुडीशरी भी ध्यान रखे, आप सब को ख़याल रखना चाहिए।
आप की एक और जो कामयाबी है वह मुल्क चलाने वाले इदारों में नौजवानों को मौक़ा देना है। यह बहुत अच्छी बात है। इस की वजह से ओहदेदारों का दायरा बढ़ेगा, खुलेगा और मुल्क के इदारों में नयी जान पड़ जाएगी, यह बहुत अच्छी चीज़ है, इसे जारी रखें। यक़ीनी तौर पर मुझे मालूम है और मैं देखता भी हूं पहले भी जो हम हमेशा नौजवानों की बात करते रहे हैं तो भी हमें यह मालूम था कि कभी कभी नौजवानों से ग़लतियां हो जाती हैं, सरकार में भी और पार्लियामेंट में भी नौजवान ओहदेदारों ने ग़लतियां की हैं, कुछ ग़लतियां की हैं लेकिन इसके बावजूद उन्हें मौक़ा दिया जाना अच्छा है, अगर मुल्क को सरकार को या पार्लियामेंट को ताज़ा दम नौजवान चलाएं तो फिर अगर दो चार ग़लतियां हो भी जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं है। यह ग़लतियां भी धीरे धीरे ख़त्म हो जाएंगी, इन्शाअल्लाह और मज़बूत और अच्छे ओहदेदार तैयार होंगे। यह भी एक कामयाबी है।
मौजूदा सरकार की एक और कामयाबी यह रही है उसने मुल्क और समाज को इंतेज़ार और दूसरे मुल्कों से आस लगाकर बैठे रहने की हालत से छुटकारा दिला दिया। हमारा मुल्क इस हालत से निकल गया कि हम इंतेज़ार करें कि देखो दूसरे हमारे बारे में क्या फ़ैसला करते हैं, क्या कहते हैं। अब इस सरकार ने मुल्क की अपनी गुंजाइशों और चीज़ों पर ध्यान दिया, उन्हें अहमियत दी और उन पर भरोसा किया, इस पर काम हो रहा है। यह कि हमें हर हाल में किसी मुल्क से ताल्लुक़ बनाना चाहिए ताकि हमारी मुश्किलें हल हो जांए या किसी जगह पेश आने वाली कोई परेशानी ख़त्म हो जाए ताकि हमारी समस्याएं दूर हो जाएं, तो यह सोच मुल्क के लिए बहुत नुक़सानदेह है। मुल्क के लिए किये जाने वाले फ़ैसलों को दूसरे पर डिपेंड कर देना और दूसरों के इंतेज़ार में सब कुछ रोक देना, बुरी चीज़ है। ख़ुदा का शुक्र है कि आप की सरकार में यह चीज़ काफ़ी हद तक ख़त्म हो गयी है।
आप की एक और कामयाबी यह है कि आप की सरकार ने ध्यान भटकाने और बहाने बनाने से परहेज़ किया और ज़िम्मेदारी दिखायी है। हम ने इस एक साल में किसी बड़े सरकारी ओहदेदार से यह नहीं सुना कि "हमें काम नहीं करने दिया जाता, हमारे हाथ में कुछ नहीं, हमारे कंट्रोल में कुछ नहीं।" हमने आप लोगों से यह नहीं सुना। ज़िम्मेदारी का एहसास बहुत अच्छी चीज़ है, कहते हैं कि "हम हैं, हमें काम करना चाहिए और हम काम करते हैं।" यह पाज़िटिव चीज़ बहुत अहम है।
एक और बात यह है कि फ़ॉरेन पॉलिसी में और इसी तरह कल्चरल कामों के मैदान में अच्छा रुख़ अपनाया गया है जो नज़र आ रहा है। हालांकि ख़ासतौर पर कल्चर के मैदान में सोच और रुख़ को ज़मीन पर उतारने में थोड़ा वक़्त लगेगा लेकिन यही सोच और रुख़, बहुत अच्छी चीज़ है, इसे जारी रखना चाहिए। यह भी आप की एक कामयाबी है।
इन्साफ़ पसंदी, वीआईपी कल्चर से परहेज़, कमज़ोरों की मदद और साम्राज्यवादी ताक़तों से मुक़ाबला यह सब इन्क़ेलाब और इस्लाम के नारे हैं जो आज ज़्यादा मज़बूती के साथ लगाए जा रहे हैं, ज़्यादा साफ़ सुनाई दे रहे हैं, यह बहुत अच्छी चीज़ है, इसे जारी रखें। इन कामयाबियों को जारी रखने की कोशिश करें, मैं सिफ़ारिशों में इस बारे में ज़्यादा बात करुंगा लेकिन बहरहाल सभी मैदानों में लगातार काम करते रहना बहुत ज़रूरी है। यह तो पहले हिस्से यानी आप की कामयाबियों की बात थी।
अब सिफ़ारिशों की बारी है। मैं कुछ सिफ़ारिशें करना चाहूंगा। पहली सिफ़ारिश वह है जो मैंने हालिया कुछ बरसों में बनने वाली हर सरकार से की है कि आप लोग ख़ुदा का शुक्र करें कि उसने आप को अवाम की ख़िदमत का मौक़ा दिया है। यह जो आप उस पोज़ीशन पर हैं जहां रह कर आप हमारे इस्लामी मुल्क के अच्छे और मोमिन अवाम की ख़िदमत कर सकते हैं तो यह जो आप को मौक़ा मिला है यह बहुत बड़ी नेमत है, इस नेमत पर ख़ुदा का शुक्र करें।
इस नेमत का शुक्र भी पहले स्टेज पर यह है कि आप लोग ख़ुदा के साथ अपने ताल्लुक़ को मज़बूत करें, दुआ, मुनाजात और उसकी याद से दूर न हों। कोशिश करें कि ज़्यादा काम और मसरूफ़ियत की वजह से जो हक़ीक़त में है, इन कामों की वजह से ख़ुदा से ताल्लुक़, अच्छी नमाज़ , मुस्तहेब नमाज़, क़ुरआने मजीद की तिलावत और इस तरह के कामों असर न पड़ने पाए, एक तरह का ज़रूरी शुक्र तो यही है। दूसरा शुक्र यह है कि आप अवाम के लिए मेहनत के साथ कोशिश करें और ख़ुदा का शुक्र है कि आप लोग यह काम कर रहे हैं, इस जेहादी कोशिश को जारी रखें। तो हमारी पहली सिफ़ारिश यह हैः नेमतों पर शुक्र।
हमारी दूसरी सिफ़ारिश यह है कि यह जो काम आप लोग कर रहे हैं उसे ख़ुदा के लिए करें यानी यह नीयत करें कि यह काम अल्लाह के लिए है, दिखावे का काम और इस लिए ताकि लोग देखें, लोग जानें और लोग हमारी तारीफ़ करें इन सब से काम में बरकत ख़त्म हो जाती है। जब आप सच्ची नीयत के साथ कोई काम करते हैं “तो जिसे अपने परवरदिगार से मुलाक़ात की उम्मीद है तो उसे नेक काम करना चाहिए और अपने परवरदिगार की इबादत में किसी को शरीक नहीं करना चाहिए। (9)“ तो ख़ुदा का किसी को शरीक नहीं मानना चाहिए, सिर्फ़ ख़ुदा के लिए काम करें। ज़ाहिर सी बात है लोगों की ख़िदमत वह काम है जिससे ख़ुदा खुश होता है। आप काम के वक़्त यह कहें कि परवरदिगार! मैं तेरी ख़ुशनूदी के लिए यह काम कर रहा हूं जो लोगों की ख़िदमत करना है। काम को सच्ची नीयत के साथ करें इससे आप के काम में बरकत होगी।
यक़ीनी तौर पर मैंने जो ख़ुदा के लिए काम करने की बात की है उसका मतलब यह नहीं है कि लोगों को काम के बारे में पता भी न चले, लोगों को बताने और अल्लाह के लिए काम करने में कोई टकराव नहीं है। रवायत में भी है कि अगर कोई यह चाहता है कि लोगों को उसके अच्छे कामों के बारे में पता चले तो इसमें कोई हरज नहीं है, इस बारे में मोतबर रवायत है हमारे पास। इस तरह की बातें जान कर लोगों के दिल में उम्मीद और भरोसा बढ़ेगा। लेकिन काम अल्लाह के लिए होना चाहिए।
तीसरी सिफ़ारिश यही लोगों के बीच जाना है। यह काम न छोड़ें। कुछ लोग मज़ाक़ बनाते हैं और इसे एक से एक नाम देते हैं जिनका मैं ज़िक्र नहीं करना चाहता हूं, इस तरह के प्रोपैगंडों का असर न लें, लोगों से जाकर रूबरू हों, लोगों की बातें सुनें, सब्र व संयम से काम लें। कभी कभी इन्सान थक जाता है इसका ख़ुद मुझे भी तजुर्बा है, कभी सच में इन्सान थक जाता है लेकिन बर्दाश्त करना चाहिए, सब्र करना चाहिए। यह प्रेसिडेंट साहब का बे झिझक बार बार लोगों के बीच जाना बहुत अच्छी चीज़ है, इसका बहुत अच्छा असर होता है। इसी तरह सरकार के दूसरे ओहदेदारों का भी लोगों के बीच जाने का बहुत फ़ायदा है।
आप लोग अपनी सरकार को अवामी सरकार कहते हैं, अवामी हुकूमत का सिर्फ़ यह मतलब नहीं है कि आप लोगों के बीच जाएं, यह भी ज़रूरी है लेकिन इतना ही काफ़ी नहीं है, बल्कि अलग अलग कामों में अवाम को, आम इंसानों को अपने साथ जोड़ने की ज़रूरत है। मैंने पहले भी कभी यह कहा है शायद आप लोगों के बीच ही कहा है (10) कि बैठें और आम लोगों को साथ जोड़ने के लिए प्लानिंग करें, यह सोचें कि किस तरह से आम लोगों को सरकार के कामों में शामिल किया जा सकता है चाहे सियासत का मैदान हो या इकॉनामी का मैदान हो, किस तरह अलग अलग मैदानों में लोगों के नज़रिये और लोगों की राय से फ़ायदा उठाया जा सकता है। इसके लिए प्लानिंग की ज़रूरत है। यह जो आम लोगों के ख़त अलग अलग तरीक़ों से हमारे पास पहुंचते हैं उनमें कभी कभी ऐसे सुझाव होते हैं जो वाक़ई बहुत अच्छे होते हैं। कभी कोई आदमी जिसे हम नहीं जानते किसी ख़ास मामले में ऐसी अच्छी राय देता है जो बहुत फ़ायदेमंद हो सकती है। अब आप देखिए कि इस तरह के लोगों के नज़रिये से कैसे फ़ायदा उठाया जा सकता है।
एक और सिफ़ारिश, वादों पर अमल करना है। इसे अपना फ़र्ज़ समझिए, नमाज़ की तरह। अगर किसी काम के बारे में आप को शक है कि वह किया जा सकता है या नहीं तो फिर उसका बिल्कुल वादा न करें, उसी काम का वादा करें जिसके बारे में आप को पूरा यक़ीन हो कि उसे किया जा सकता है और फिर उसे ज़रूर पूरा करें। जिस तरह लोगों के बीच जाने से और लोगों के लिए काम करने से आम लोगों में उम्मीद पैदा होती है, भरोसा बहाल होता है, उसी तरह वादों पर अमल न करने से इसका उल्टा नतीजा निकलता है यानी लोगों में उम्मीद ख़त्म होती है। यहां तक कि लोगों को उन कामों के बारे में भी शक होने लगता है जो सच में आप ने कहीं किया हो। मिसाल के तौर पर आप लोगों से वादा करें कि आप के शहर में, आप के मोहल्ले में यह काम करेंगे और फिर न करें, न कर पाएं या फिर न करें। कभी कोई मजबूरी आड़े आ सकती है, तो उस सूरत में लोगों के बीच जाएं और उन्हें सच्चाई बताएं। लेकिन पहले से ही यह न सोच लें कि यह काम नहीं करेंगे और फिर लोगों को जाकर उसकी वजह बता देंगे! यह नहीं होना चाहिए, होना यह चाहिए कि आप अपने वादे पर अमल करें, वादे पर ज़रूर अमल करना चाहिए और उसे ज़रूर पूरा करना चाहिए। ज़ाहिर सी बात है हमें भी मालूम है और आप को भी अच्छी तरह से मालूम है कि साम्राज्यवादी ताक़तों और उनके एजेन्टों की ओर से हमारे दुश्मनों का एक बड़ा मोर्चा इस्लामी जुम्हूरिया के ख़िलाफ़ खुला हुआ है और फ़िलहाल आप के ख़िलाफ़ खुला है क्योंकि आपके हाथ में सरकार है, इस मोर्चे के लोग आप की तरफ़ से छोटे से वादे पर भी अमल न करने का ख़ूब शोर मचाते हैं, और बड़े पैमाने पर प्रोपैगंडा शुरु कर देते हैं। उन्हें बहुत अच्छी तरह मालूम भी है कि प्रोगगंडा कैसे करें और किस तरह लोगों के भरोसे को और आप के साथ लोगों के कोआपरेशन को नुक़सान पहुंचाएं। इस लिए ऐसे वादे न करें जिन पर अमल नहीं किया जा सकता। जो वादा करें उसे हर हाल में पूरा करें।
एक और सिफ़ारिश यह है कि रोज़मर्रा के कामों में पूरी तरह से डूब न जाएं! सरकार के सामने पूरे मुल्क के लिए प्लानिंग होनी चाहिए जो कि यक़ीनी तौर पर मौजूद होगी। अपने सारे काम उसी की बुनियाद पर करें, रोड मैप के हिसाब से आगे बढ़ें। इस तरह से काम करें कि आप के दुश्मन यह न कहें कि सरकार के पास कोई प्लान नहीं है। मतलब आप के सामने एक ऐसा प्लान होना चाहिए जिसके बारे में आप पब्लिक के सामने बात कर सकें, उसके बारे में उन्हें बता सकें। मुल्क के बड़े बड़े मामलों में आप को उसी प्लान की बुनियाद पर आगे बढ़ना चाहिए। अगर यह काम हो गया तो फिर रोज़मर्रा के जो काम होते हैं वह भी अपनी जगह पर होंगे और अंजाम पाते रहेंगे। यह जो हम कहते हैं कि रोज़ाना के कामों में डूब न जाएं तो इसका यह मतलब नहीं है कि मिसाल के तौर पर अगर आबादान (11) का मामला पेश आ जाए तो उस पर ध्यान न दें! नहीं, ध्यान दीजिए, वहां जाइए, बाढ़ का मामला हो या फिर कोई और मामला हो, इस तरह के अचानक सामने आने वाले कामों को करिए और उन्हें हल करिए लेकिन उसी में डूब न जाइए। पूरी प्लानिंग के साथ काम कीजिए। आप का अस्ली ध्यान नेशनल प्लानिंग और पूरे मुल्क के लिए बनाए गए रोडमैप पर होना चाहिए। यह भी एक मुद्दा है।
एक और सिफ़ारिश यह है कि तरजीह दी जाने वाली चीज़ों पर ध्यान दीजिए। ज़ाहिर सी बात है कि सरकार के संसाधनों की भी लिमिट होती है, सारे काम नहीं किये जा सकते, तो फिर हमें यह देखना चाहिए कि तरजीह किस काम को है? अब तरजीह का मतलब क्या है? तरजीह को भी अलग अलग सुर्खियों के तहत रखें। मिसाल के तौर पर हमारे लिए एक सुर्ख़ी है इकॉनामी, एक है साइंस, और एक सुर्ख़ी है सेक्युरिटी और एक सुर्ख़ी है सोशल सेक्युरिटी, एक सुर्ख़ी है कल्चर के नाम की। यह सब अस्ल मुद्दे हैं लेकिन फ़िलहाल मेरी नज़र में तरजीह, इकॉनामी को है। अलबत्ता इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरे मामलों पर ध्यान न दिया जाए! क्यों नहीं, सारे मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिए लेकिन सब से ज़्यादा ध्यान इकॉनामी पर दिया जाना चाहिए जिसके बारे में अभी बात की जाएगी।
जब अहम मुद्दे और तरजीह को तय कर लिया गया तो फिर किसी एक सुर्ख़ी और मुद्दे के तहत किये जाने वाले कामों में भी एक काम को दूसरे पर तरजीह होती है। मिसाल के तौर पर इकॉनामी के मैदान में तरजीह क्या है? कल्चर में तरजीह क्या है? इन सब में भी तरजीह पर ध्यान दिया जाना चाहिए। वैसे मैंने तो कहा कि मेरी नज़र में आज सब से बड़ा और अहम मुद्दा और पहली तरजीह इकॉनामी है। यक़ीनी तौर पर यह आज की बात है और कब तक इकॉनामी ही तरजीह रहेगी? यह नहीं मालूम, लेकिन एक मुद्दत तक तो रहेगी। इकॉनामी के मुद्दे पर गंभीरता के साथ ध्यान दिया जाना चाहिए लेकिन कल्चर के साथ यानी इकॉनामी के मैदान में जो भी काम हो उसके साथ कल्चर के मैदान में भी कोई काम होना चाहिए और यह बहुत ज़रूरी है। इसी तरह डिप्लोमैसी और कल्चर वग़ैरा का विषय भी है। इन मुद्दों पर भी ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है।
इकॉनामी के मामले में तीन बातें हैं जिनका मैं ज़िक्र कर रहा हूं।
एक बात तो यह है कि मुल्क में इकॉनामी के मैदान में काम करने वाले अहम सरकारी लोगों को एक दूसरे के साथ मिल कर काम करना चाहिए। अलबत्ता इस बारे में प्रेसिडेंट साहब ने अपनी तक़रीर में कहा है कि हम बैठ कर बात करते हैं और अगर हमारे नज़रिये में फ़र्क़ होता है तो बातचीत करके एक समझौते पर पहुंचते हैं और फिर सब उसी पर अमल करते हैं। मैं इसी बात पर ज़ोर देना चाहता हूं। कभी कभी इसके उलट हालत नज़र आती है, इस लिए कोशिश करें कि इकॉनामी के मैदान में अलग अलग मुद्दों में एक राय और एक नज़रिये के साथ काम करें। अगर एक राय तक नहीं भी पहुंच सके तब भी जो नज़रिया ज़्यादा बेहतर हो सब मिल कर उसे ही मज़बूत करें। यह न हो कि मुल्क के इकॉनामी के मैदान का कोई बड़ा ओहदेदार चाहे वह प्लानिंग का ओहदेदार हो या फिर प्लान लागू करने वाला एग्ज़ेकटिव ओहदेदार हो, कोई बात कहे और दूसरा कुछ और कहे, मिसाल के तौर पर सब्सिडाइज़्ड फॉरेन करेन्सी कुछ ख़ास कामों के लिए देने का सिलसिला बंद करने के मामले में कोई कुछ कहे और दूसरा ओहदेदार कोई और बात कहे, यह नहीं होना चाहिए, सब को एक ही बात कहना चाहिए सब को एक ही लॉजिक के तहत होना चाहिए।
दूसरी बात यह है कि जैसा कि हमने कहा ख़ुद इकॉनामी में तरजीह को तय किया जाना चाहिए जिसका ज़िक्र बाद में करुंगा।
इकॉनामी के मैदान में तीसरी बात यह है कि इकॉनामी में कुछ बुनियादी बातें हैं जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ख़ुद प्रेसिडेंट साहब को इन अस्ली बातों पर ध्यान देना चाहिए जिसका मैं अभी ज़िक्र करुंगा, उसके बारे में सवाल करें, रिपोर्ट मांगें ताकि काम में प्रोग्रेस को ख़ुद देखें। मिसाल के तौर पर बेसिक इंडीकेटर्स जैसे इन्फ्लेशन रेट के बारे में रिपोर्टों पर ख़ास तौर पर ध्यान दें और यह चीज़ उन मुद्दों में रहे जो हमेशा सामने रहे। या इकॉनामिक ग्रोथ का मुद्दा है जिसके लिए हमारी इकॉनामिक पालीसियों में ग्रोथ का एक रेट तय कर लिया गया है और 8 फ़ीसदी ग्रोथ रेट पर हमारी नज़र होती है तो इस पर हमेशा ध्यान रहना चाहिए। या फिर इन्वेस्टमेंट में ग्रोथ का मामला है। इस मैदान में हम वाक़ई पीछे हैं, सच में पीछे हैं। इन्वेस्मेंट पर ध्यान न देने की वजह से बहुत सी मुश्किलें पैदा हो गयी हैं, ख़ास तौर से इंडस्ट्री के मैदान में, एग्रीकल्चर के मैदान में भी यही हाल है। या फिर रोज़गार में तरक़्क़ी का मामला है या फिर 'पर कैपिटा इनकम' ग्रोथ या फिर समाजी तबक़ों में दूरी का मामला। आप की रिपोर्ट में एक बहुत अहम चीज़ यही थी कि समाज के अलग अलग वर्ग और क्लास के लोगों के बीच दूरी कम हुई है इस पर कई गुना ध्यान दिया जाना चाहिए और इस दूरी को और कम किया जाना चाहिए, कम करने का यह अमल जारी रहना चाहिए और इस पर हर दिन ध्यान दिया जाना चाहिए। अगर इन सुर्ख़ियों पर इन इन्डीकेटर्स पर बारीकी के साथ और लगातार ध्यान न दिया गया तो उन्हें भुला दिया जाएगा और फिर अचानक इन्सान देखेगा कि मिसाल के तौर पर इन्फ़्लेशन या फिर इन्वेस्टमेंट के मामले में हम काफी पीछे हैं। यह भी एक मुद्दा है।
एक और मुद्दा, पैदावार का है यहां उसका ज़िक्र भी हुआ है, मैं भी बर्सों से उसका ज़िक्र कर रहा हूं। इकॉनामी में तरक़्क़ी के लिए हमारी सब से बड़ी तरजीह पैदावार का मामला है। यानी लोगों की हालत में बेहतरी, रोज़गार, लोगों की आमदनी और इसी तरह के दूसरे बहुत से मुद्दे मुल्की पैदावार पर डिपेंड हैं जिसे बहुत अहमियत देने की ज़रूरत है। वाक़ई हर उस चीज़ के सामने खड़े हो जाना चाहिए जो पैदावार को कमज़ोर करे। हर उस चीज़ का गंभीरता के साथ मुक़ाबला करना चाहिए जो मुल्की पैदावार को नाकाम बनाती है, उसका मज़बूती से मुक़ाबला करना चाहिए, चाहे इंडस्ट्री के मैदान में हो या फिर एग्रीकल्चर के फील्ड में।
एग्रीकल्चर के मैदान में फ़ूड सेक्युरिटी का मामला बहुत अहम है। आज दुनिया के हालात देखें, दुनिया के एक कोने में जंग होती है (12) तो पूरी दुनिया में फूड सेक्युरिटी का मुद्दा खड़ा हो जाता है, मतलब फूड सेक्युरिटी इतनी अहम चीज़ है। हमने तो हमेशा, गेंहूं, बाजरे और चारे की पैदावार में अपने पैरों पर खड़े होने पर ज़ोर दिया है। बहुत से लोग थे जिन्हें एक्सपर्ट कहा जाता है वह कहते थे कि हमें इन्डस्ट्री की तरफ़ बढ़ना चाहिए। हां सही है, हम इन्डस्ट्री के ख़िलाफ़ नहीं हैं, हमने तो मुल्क में इन्डस्ट्री के मैदान में तरक़्क़ी की कोशिश किसी भी दूसरे से बहुत ज़्यादा की है लेकिन फूड सेक्युरिटी का मामला सब से ज़्यादा अहम है, उससे लापरवाही नहीं करना चाहिए। आज आप दुनिया में देख लें अच्छी तरह से पता चल रहा है कि यह चीज़ कितनी अहम है।
इंडस्ट्रियल पैदावार और इंडस्ट्री में एक बड़ी प्राब्लम वर्किंग कैपिटल की कमी है जिसके बारे में मैंने अभी उस दिन के एक्ज़ीबेशन (13) में भी रिपोर्ट देखते वक़्त वहां मौजूद लोगों से बात की थी। सब को यह प्राब्लम है। इसे दूर करना बैंकों की ज़िम्मेदारी है। बैंकों को यह नहीं होने देना चाहिए कि कारख़ानों को वर्किंग कैपिटल की परेशानी हो। यह सही है कि सेंट्रल बैंक कुछ सख़्ती करता है और बैलेंस और बैलेंस शीट के बारे में जो सख़्ती सेंट्रल बैंक की तरफ़ से की जाती है वह भी सही है इस तरह के क़ानून बैंकों के लिए ज़रूरी हैं लेकिन इस तरह के क़ानून आप उन मैदानों के लिए बनाइए जो पैदावार से अलग हैं। आप लोग देख ही रहे हैं कि बैंक ऐसे काम करते हैं जिनका पैदावार से कोई ताल्लुक़ नहीं है, ज़मीनें खरीदी जाती हैं, सोने के सिक्के ख़रीदे जाते हैं, यह बैंक इस तरह के बहुत से काम करते हैं। इस तरह के क़ानून और सख़्तियां इस तरफ़ ले जाएं। आप सब ध्यान रखें कि पैदावार करने वाले कारख़ानों को बैंकों से मिलने वाली सहूलतें और लोन को नुक़सान न पहुंचने पाए, कारखाने बैंकों से मिलने वाले लोन के भरोसे होते हैं। यह भी एक मुद्दा है।
हमने कहा कि इकॉनामी के मैदान में बनाए जाने वाले प्रोग्राम में तरजीही चीज़ें हैं, कुछ का हमने ज़िक्र किया, मिसाल के तौर पर मकान का मामला तरजीह है। रिहाइश का मामला बहुत अहम है। सब से पहली बात तो यह है कि आवास निर्माण से रोज़गार पैदा होता है, घर बनाने के मैदान में सरकार के क़दम रखते ही इस मैदान में काम करने वाले बहुत से लोगों को काम का मौक़ा मिलता है। दूसरी बात यह है कि मकान के सिलसिले में हम दूसरे मुल्कों के सहारे नहीं हैं, हमारे पास अपनी ज़मीन है, ज़रूरी सामान भी हमारे पास है और डिज़ाइनिंग भी हम ख़ुद ही करते हैं। इस बुनियाद पर, रिहाइश के मुद्दे पर काम करना चाहिए। इस मैदान में हम बहुत पीछे हैं और उसका नतीजा भी आप देख ही रहे हैं कि घर की क़ीमत और किराया आसमान छू रहा है, लोग वाक़ई तकलीफ़ में हैं। इकॉनामी के मैदान में एक अहम तरजीह, लोगों के लिए घर का मामला है।
एनर्जी के मैदान में, यही पेट्रो रिफाइनरियों का जो मामला है उस पर मैंने पिछली सरकार के वक़्त से ही बार बार ज़ोर दिया है (14) यह भी एक अहम काम है। मुझे पता चला है कि आप ने यहां काम शुरु कर दिया है लेकिन इस पर ध्यान रहे इसे आगे बढ़ाएं, यह अहम है।
माइन्स के मैदान में आप को वैल्यू एडेड माइन्स का सिलसिला आगे बढ़ाया जाना चाहिए, हम माइन्स के मैदान में भी बहुत पीछे हैं। पिछले बर्सों में मुझे तरह तरह की रिपोर्टें मिलती थीं जिन्हें मैं, सरकारों के पास भिजवा देता था, ओहदेदारों को भेज देता था लेकिन सच बात यह है कि माइन्स के मैदान में सही तौर पर काम नहीं हुआ है, इस मैदान में काम की ज़रूरत है। हमारे मुल्क में बेहतरीन और तरह तरह के माइन्स हैं, लेकिन यह माइन्स या तो अछूते ही पड़े हैं या फिर हम उनमें खुदाई करके वहां का कच्चा माल एक्सपोर्ट कर देते हैं। दूसरे लोग हमारे यहां से पत्थर, ले जाते हैं उस पर काम करते हैं फिर वही पत्थर यहां लाकर कई गुना ज़्यादा क़ीमत में हमें ही बेचते हैं! आज हमारे यहां की कुछ इमारतों में जो पत्थर इस्तेमाल होते हैं कभी कभी वही होते हैं जो हमारे यहां से ले जाए गये होते हैं। मिसाल के तौर पर किरमान में पत्थर की माइन्स बेमिसाल हैं, वहां के पत्थर को इटली ले जाते हैं, वहां उस पर काम होता है, उसे सजाया संवारा जाता है, उससे अलग अलग चीज़ें बनायी जाती हैं और फिर हम जाकर उसी को कई गुना ज़्यादा क़ीमत में ख़रीद कर ईरान लाते हैं और अपनी इमारतों में लगाते हैं। माइन्स का मुद्दा भी तरजीह में शामिल है।
इसी तरह ट्रांस्पोर्टेशन के मैदान में भी ट्रांज़िट के बेहद अहम रास्तों को पूरा करना बहुत ही अहम है, जैसे वही नार्थ साउथ, ईस्ट और वेस्ट के कॉरीडोर की जो बात की जा रही है वह बहुत अहम है। हमारे मुल्क की पोज़ीशन को पुराने ज़माने से ही एक पुल की तरह देखा गया है जिसकी मिसाल नहीं मिलती। नार्थ व साउथ को एक दूसरे से जोड़ने का मामला हो या ईस्ट को वेस्ट से मिलाने का मुद्दा हो ईरान की पोज़ीशन बिल्कुल अनोखी है। मतलब आप जब दुनिया का नक़्शा देखें तो हमारा मुल्क इस लिहाज़ से बेमिसाल नज़र आता है। इस बुनियाद पर ट्रांज़िट के रास्ते और इसी तरह मुल्क के अंदर ट्रांस्पोर्टेशन का मामला काफ़ी अहम मामलों में से है।
इकॉनामी के मैदान में एक और अहम तरजीह यही समुद्र का मामला है जिसके बारे में जनाब ने (15) बात की। मैं कई बर्सों से समुद्र के मामले में धयान देने पर ज़ोर देता रहा हूं , हां कुछ छोटे मोटे काम हुए भी हैं लेकिन जो करना चाहिए था वह नहीं किया गया। समुद्र बहुत अहम है, समुद्र, समुद्र का पानी, समुद्र से निकलने वाली चीज़ें, बंदरगाहें, और समुद्र के आस पास कॉलोनियां यह सब हमारे मुल्क के लिए बड़ी दौलत है, हमारे मुल्क के नार्थ में भी समुद्र है और साउथ में भी समुद्र है जो हमारे मुल्क की ख़ास बात है। हमें इस पोज़ीशन से फ़ायदा उठाना चाहिए।
इकॉनामी और दूसरे मैदानों में मैं अपनी बात अगर एक जुमले में कहना चाहूं तो यह कहूंगा कि हमारे मुल्क में क़ुदरती और मानव संसाधन जो हैं उन्हें बर्बाद न होने दीजिए, यह हरगिज़ न होने दीजिए। मुख़बिर साहब सही कहते हैं कि हमारे पास ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जिनमें से किसी एक चीज़ से पूरे मुल्क को चलाया जा सकता है सच में यह हमारी राष्ट्रीय संपदा है इसे बर्बाद न होने दें।
एक और चीज़ जिसकी मैं हमेशा सिफ़ारिश करता हूं यह है कि किसी काम को अधूरा न छोड़ें। यह बहुत होता है कि जब हम जोश में होते हैं, या इस तरह की हमारी हालत होती है तो हम पूरे जोश और शौक़ से कोई काम शुरु करते हैं, कुछ क़दम आगे बढ़ते हैं, फिर धीरे धीरे सुस्त पड़ जाते हैं और काम रुक जाता है। इससे डरें और कामों को अधूरा न रहने दें। यह सही है कि बहुत सी प्राब्लम्स पहले की हैं और अब उनका ढेर लग गया है और इन सबको निपटाना सख़्त है और उसमें वक़्त लगेगा लेकिन आप सब्र व संयम से काम लें सब्र से डटे रहें। अल्लाह ने चाहा तो आप लोग जेहादी सतह पर काम करके इन सारी प्राब्लम्स को ख़त्म कर देंगे। बहरहाल जो कुछ कहा गया है अगर आप वह करने में कामयाब होते हैं तो यह साबित हो जाएगा कि तेरहवीं सरकार, पूरी तरह से फ़ायदेमंद, एक्टिव और अवाम की मुश्किलों को ख़त्म करने वाली हुकूमत होगी, इस तरह से आप ख़ुदा को भी खुश करेंगे और मुल्क के अवाम को भी, इन्शाअलल्लाह।
यह कुछ बातें थीं और हमने जो ज़रूरी समझा उसका ज़िक्र कर दिया। इन्शाअल्लाह ख़ुदा आप सब की मदद करे, मैं आप लोगों के लिए दुआ करता हूं, हमेशा दुआ करता हूं। ख़ुदा इमाम ख़ुमैनी और हमारे पाकीज़ा शहीदों को आप सब से , हम से ख़ुश रखे और हमें इस बात की तौक़ीफ़ दे कि हम इन लोगों और अवाम के बारे में अपनी ज़िम्मेदारियों पर अच्छी तरह से अमल कर सकें।
वस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातोहू।
(1) हुकूमत के हफ़्ते के मौक़े पर होने वाली इस मुलाक़ात की शुरुआत में प्रेसिडेंट सैयद इब्राहीम रईसी, डिप्टी प्रेसिडेंट मुहम्मद मुख़बिर, समेत कई बड़े ओहदेदारों ने रिपोर्ट्स पेश कीं।
(2) सूरए यासीन, आयत 11
(3) सूरए अंबिया, आयत 10
(4) तेहरान यूनिवर्सिटी के हॉस्टल की घटनाओं पर हंगामों के जवाब में अवाम की 14 जूलाई 1999 में शानदार रैली
(5) 30 दिसंबर 2009 में मुल्क के ख़िलाफ़ साज़िश के बाद अवाम की ज़बरदस्त रैली
(6) 28 अगस्त 2022 को इस्फ़हान में आयतुल्लाह मुहम्मद अली नासेरी का जुलूसे जनाज़ा।
(7) 18 जूलाई 2022 में ग़दीर के मौक़े पर तेहरान के लोगों ने वली अस्र रोड पर दस किलोमीटर के इलाक़े में जश्न मनाया जिसमें दसियों लाख लोगों ने शिरकत की।
(8) प्रेसिडेंट के रूस के दौरे की तरफ़ इशारा है।
(9) सूरए कहफ़, आयत 110
(10) 28 अगस्त 2021 में प्रेसिडेंट और उनकी कैबिनेट से सुप्रीम लीडर की पहली मुलाक़ात
(11) 23 मई 2022 में आबादान के मेट्रोपोल टॉवर के गिरने की ओर इशारा है।
(12) रूस और युक्रेन की जंग की बात है
(13) इस मुलाक़ात के मौक़े पर सरकार के अलग अलग इदारों के कामों की एक्ज़ीबेशन लगायी गयी।
(14) 29 अगस्त 2018 की तक़रीर में भी इसका ज़िक्र किया था
(15) वाइस प्रेसिडेंट , डॉक्टर मुहम्मद मुख़बिर