इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने बल देकर कहा कि इस्लामी क्रांति ने यूनिवर्सिटी के लिए जो बड़ा काम किया वह यह था कि उसने ईरानी क़ौम को पहचान देकर यूनिवर्सिटी को उसकी पहचान दी। क्रांति से क़ौम को पहचान, आदर्श होने और स्वावलंबन का ज़ज़्बा दिया और उसके सामने क्षितिज को स्पष्ट किया।
मंगलवार को तेहरान में ईरान भर से छात्रों और स्टूडेंट यूनियनों के प्रतिनिधियों ने सुप्रीम लीडर से मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने विश्व क़ुद्स दिवस का ज़िक्र करते हुए कहाः फ़िलिस्तीनी अवाम की बड़ी क़ुर्बानियों और दूसरी तरफ़ ज़ायोनियों के अपराधों की इंतेहा के मद्देनज़र, इस साल का विश्व क़ुद्स दिवस पिछले बरसों से अलग है और इस वक़्त ज़ायोनी शासन फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ हर तरह के नाजायज़ काम और अपराध कर रहा है जबकि अमरीका तथा युरोप भी उसका साथ दे रहे हैं।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फ़िलिस्तीनी क़ौम को ताक़तवर मज़लूम बताया और फ़िलिस्तीनी नौजवानों के संघर्ष व दृढ़ता की ओर इशारा करते हुए, जो फ़िलिस्तीन के मसले को फ़रामोश नहीं होने दे रहे हैं कहाः क़ुद्स दिवस, फ़िलिस्तीन के मज़लूम अवाम के साथ एकजुटता के एलान और उन्हें हौसला देने का मुनासिब मौक़ा है।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने फ़िलिस्तीन के मसले में इस्लामी सरकारों के व्यवहार की आलोचना करते हुए कहाः अफ़सोस की बात है कि आज इस्लामी सरकारें, बहुत बुरे तरीक़े से काम कर रही हैं और वह फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर बात तक करने के लिए तैयार नहीं हैं बल्कि उनमें से कुछ का यह ख़्याल है कि फ़िलिस्तीन की मदद करने का रास्ता ज़ायोनियों से रिश्ते क़ायम करना है जबकि यह बहुत बड़ी ग़लती और ग़लतफ़हमी है।
इस्लामी क्रांति के नेता ने 40 साल पहले मिस्र की सरकार की ओर से हुयी इस बड़ी ग़लती और ज़ायोनियों के साथ संबंध स्थापित करने की ओर इशारा करते हुए कहाः क्या ज़ायोनी सरकार के साथ मिस्र के संबंध स्थापित होने से, फ़िलिस्तीनी क़ौम के ख़िलाफ़ ज़ायोनियों के अपराध और मस्जिदुल अक़सा के अनादर में कोई कमी हुई थी कि अब कुछ इस्लामी सरकारें, अनवर सादात की इस ग़लती को दोहराना चाहती हैं?!
इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने ज़ोर देकर कहा कि संबंध स्थापित करने से ज़ायोनी सरकार को भी कोई फ़ायदा नहीं होगा। उन्होंने कहाः हमें उम्मीद है कि अल्लाह की कृपा से फ़िलिस्तीन में अच्छा और नेक नतीजा सामने आएगा और अपनी सरज़मीं और मस्जिदुल अक़सा पर फ़िलिस्तीनियों का कंट्रोल जल्द ही व्यवहारिक रूप अख़्तियार कर लेगा।
उन्होंने कहा कि आज दुनिया एक नई व्यवस्था की दहलीज़ पर खड़ी है। एक नई वैश्विक व्यवस्था दुनिया के सामने आने वाली है, उस दो ध्रुवीय व्यवस्था के मुक़ाबले में जो 20-25 साल पहले मौजूद थी, अमरीका और सोवियत यूनियन, पूरब और पश्चिम पर आधारित थी और उस एक ध्रुवीय व्यवस्था के मुक़ाबले में भी जिसका एलान 20-25 साल पहले सीनियर बुश ने किया था। बर्लिन की दीवार गिराए जाने और दुनिया से मार्क्सवादी व्यवस्था और सोशलिस्ट सरकारों के अंत के बाद बुश ने कहा कि आज दुनिया नई वैश्विक व्यवस्था की दुनिया और अमरीका की एकध्रुवीय व्यवस्था की दुनिया है। यानी अमरीका, दुनिया का मालिक है, अलबत्ता उन्हें ग़लतफ़हमी थी।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहाः फिर उनकी समझ में आ गया था कि अमरीका दिन ब दिन उस बीस पच्चीस साल पहले के अमरीका की तुलना में, कमज़ोर होता जा रहा है, अंदरूनी तौर पर भी, आंतरिक नीतियों में भी, विदेश नीतियों में भी, अर्थव्यवस्था में भी, सुरक्षा में भी, कुल मिलाकर हर मैदान में अमरीका बीस साल पहले की तुलना में अब कमज़ोर हो चुका है।
सुप्रीम लीडर ने कहाः युक्रेन की हालिया जंग के मामले का बहुत गहराई से से और नए वर्ल्ड आर्डर के परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए और संभवतः इसके बाद जटिल और कठिन हालात बनेंगे और उन नए व जटिल हालात में इस्लामी गणराज्य सहित सभी देशों की ज़िम्मेदारी, उस नई व्यवस्था में भरपूर मौजूदगी है ताकि राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा की हिफ़ाज़त हो सके और देश हाशिए पर न चला जाए।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच में इसी तरह इस्लामी क्रांति के बाद देश की यूनिवर्सिटियों की स्थिति में होने वाले सुधार की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि जब एक क़ौम में अपनी पहचान क़ायम करने और आदर्श बनाने का राष्ट्रीय आंदोलन शुरू होता है तो जिसे सबसे ज़्यादा फ़ायदा हासिल होता है वह यूनिवर्सिटी के नौजवान स्टूडेंट्स है, वह नौजवान स्टूडेंट्स जिनके अपने जज़्बात हैं, अपनी पहचान और पाकीज़गी है।
इस्लामी क्रांति के नेता ने कहा कि यूनिवर्सिटी ने अपने लिए पहचान की ज़रूरत को महसूस किया और यह जज़्बा इस बात का कारण बना कि यूनिवर्सिटी और स्टूडेंट्स पश्चिमी ताक़तों के मुक़ाबले में कमज़ोरी और हीन भावना का शिकार न हों, यह चीज़ इस्लामी क्रांति से पहले के माहौल के बिल्कुल ही विपरीत थी।
उन्होंने कहाः इस्लामी गणराज्य, यूनिवर्सिटी पर गर्व कर सकता है इसलिए कि आज की यूनिवर्सिटी का, क्रांति के आरंभिक दौर की यूनिवर्सिटी की स्थिति से कोई मुक़ाबला नहीं है। बेशक उस वक़्त जज़्बात ज़्यादा थे और जोशीली कार्यवाहियां अंजाम पाती थीं क्योंकि क्रांति का शुरुआती ज़माना था लेकिन आज हमारे देश की यूनिवर्सिटी का, क्रांति के आग़ाज़ के दौर की यूनिवर्सिटी से कोई मुक़ाबला ही नहीं है। यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स की तादाद के लेहाज़ से देखा जाए तो उस वक़्त देश की सभी यूनिवर्सिटियों के कुल स्टूडेंट्स की तादाद डेढ़ लाख थी जबकि आज यूनिवर्सिटियों के स्टूडेंट्स की तादाद दसियों लाख है। इसी तरह उस वक़्त के प्रोफ़ेसरों की तादाद के लेहाज़ से देखा जाए तो उस वक़्त हमें जो रिपोर्टें दी जाती थीं, उनके मुताबिक़ तेहरान की यूनिवर्सिटियों में शिक्षकों की तादाद क़रीब 5 हज़ार थी जबकि आज दसियों हज़ार है जिनमें से बहुत से बहुत ही प्रतिष्ठित हैं।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने यूनिवर्सिटी को, क्रांति के सबसे बुनियादी विषयों में बताया और यूनिवर्सिटी के कारनामों व अहम नतीजों की ओर इशारा करते हुए कहा कि आज ईरान, अपनी यूनिवर्सिटी पर गर्व करता है और नौजवान स्टूडेंट्स को आज देश के मुख्य मुद्दों पर गहराई से सोचने, हर तरह की निराशा व कर्महीनता से बचने और देश के अधिकारियों से क्रांति की उमंगों और हक़ीक़ी व संजीदा कामों की डिमांड करने की ज़रूरत है।
उन्होंने कहा कि बिना चिंतन के ज्ञान का नतीजा, आम तबाही फैलाने वाले हथियारों जैसी चीज़ों के रूप में सामने आता है और सही सोच के लिए उस्ताद और गाइड की ज़रूरत होती है, नमूने के तौर पर स्वर्गीय आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी, वैचारिक मामलों में एक ज़बरदस्त उस्ताद और गाइड थे।
सुप्रीम लीडर ने नहजुल बलागा में अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) के एक कथन की ओर इशारा करते हुए नसीहत को दिल को ज़िन्दा करने वाला बताया और सूरए मरयम की एक आयत का हवाला देते हुए कहाः क़यामत का दिन हसरत का दिन है, इसलिए हमें इस तरह ज़िन्दगी गुज़ारनी चाहिए कि उस सख़्त दिन, कोई काम करने या न करने और कोई बात कहने या न कहने पर हमें हसरत न हो क्योंकि उसकी भरपाई मुमकिन नहीं है।