बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी प्रशंसा दुनियाओं के पालनहार, अल्लाह के लिए है, दुरूद व सलाम हो हमारे पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद और उनके पवित्र घराने पर।

प्यारे भाइयो और बहनो! आप सब का दिल से स्वागत है। मैं दिल की गहराइयों से आप सबका शुक्रिया अदा करता हूं कि आपने यह प्रोग्राम रखा और यह बड़ा ही फ़ायदेमंद क़दम उठाया। इमाम बारगाह (मुलाक़ात व तक़रीर के स्थान) में आने से पहले मैंने वह प्रदर्शनी देखी, जो सेवाएं अंजाम पाई हैं वह बहुत ही अच्छी हैं। इस तरह के काम, इन सेमिनारों में ज़्यादा से ज़्यादा होने चाहिए और इंशा अल्लाह, ख़ुदा आपको इन्हें अंजाम देने में कामयाब करे।

ईलाम प्रांत की विशेषताएं:

(1) पवित्र प्रतिरक्षा के दौर में अग्रणी और दुश्मन के मुक़ाबले में एक मज़बूत क़िला

सद्दाम शासन द्वारा ईरान पर थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध के समय ईलाम प्रांत एक मज़बूत क़िला था। यह बात सही है कि इस प्रांत के कुछ शहर और कुछ इलाक़े जंग के दोनों पक्षों और एक समय में दुष्ट मुनाफ़िक़ों(2) के क़ब्ज़े में आते-जाते रहे लेकिन यह प्रांत पहाड़ की तरह, उसी मीमक चोटी की तरह - मैं उस चोटी पर गया था और मैंने वहां प्यारे संघर्षकर्ताओं के काम को क़रीब से देखा था - सद्दाम की दुश्मन फ़ौज के सामने डट गया था। सबसे पहले तो यह कि यह प्रांत, देश की किसी भी जगह से पहले, जंग की लपेट में आया, जैसा कि दोस्तों ने भी बताया। दुश्मन ने तेहरान और अन्य जगहों पर बाक़ायदा हमला करने से पहले, ईलाम पर हमला किया। सबसे पहले शहीद भी वही शहीद शम्बेई(3) हैं, जनाब ने बताया कि जंग शुरू होने से पहले ईलाम में शहीद हुए, इसका मतलब यह है कि पूरा ईलाम प्रांत, पवित्र प्रतिरक्षा में सबसे आगे रहने वालों में से एक है।

(2) बासी दुश्मन की तरफ़ से ईलाम में अभूतपूर्व घटनाएं

फिर ईलाम प्रांत में कुछ अभूतपूर्व घटनाएं हुईं जिनके बारे में खेद के साथ कहना पड़ता है कि ख़ुद हमारे लोगों को भी नहीं पता है, दूसरों, बाहर वालों और अन्य राष्ट्रों की तो बात ही छोड़ दीजिए जो हमारे देश की घटनाओं के बारे में जानने में दिलचस्पी रखते हैं, उनको छोड़ ही दीजिए, ख़ुद हमारे लोगों को इन घटनाओं के बारे में कुछ ज़्यादा मालूम नहीं है। इन्हीं में से एक घटना, सन 1987 में, 12 फ़रवरी 1987 को जवानों के फ़ुटबॉल के मैच पर बमबारी है। ईलाम के जवानों ने, ईलाम की दो टीमों ने क्रांति की सफलता की सातवीं वर्षगांठ का जश्न मनाने के लिए एक मैच रखा था और लोग भी इकट्ठा हो गए थे। वे मैच देख रहे थे कि उनके सिरों पर इराक़ी जहाज़ आ गया, क़रीब से, यानी यह देखते हुए भी कि यहां क्या प्रोग्राम चल रहा है, ऐसा नहीं कि उन्होंने यूंही बम गिरा दिया और वह संयोग से फ़ुटबॉल के ग्राउंड पर गिर गया, नहीं! जान बूझ कर यहां पर बम गिराया और दस खिलाड़ी शहीद हो गए! रेफ़्री शहीद हो गया, कई बच्चे शहीद हो गए, कई दर्शक शहीद हो गए, यह कोई छोटी घटना नहीं है, यह एक बड़ी घटना है। उचित होगा कि इस तरह की घटनाओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सामने लाया जाए, बताया जाए, बार बार ज़िक्र किया जाए। यह हमारे शहीद खिलाड़ियों की मज़लूमियत का संदेश है, उनका अपराध यह था कि उन्होंने इस्लामी गणराज्य और क्रांति की कामयाबी की सालगिरह के लिए मैच रखा था।

ईलाम प्रांत में बासी शासन के अपराधों से पूरी दुनिया को बाख़बर करने की ज़रूरत

दुष्ट सद्दाम किस ताक़त के सहारे निश्चिंत होकर इस तरह के खुले अपराध करता था? उसकी पीठ पर कौन लोग थे? जो लोग, उस दिन इस ख़ूंख़ार भेड़िये का समर्थन कर रहे थे, वही आज मानवाधिकार की बात करते हैं, आज अपने आपको पूरी दुनिया में मानवाधिकार का ठेकेदार समझते हैं! इन ताक़तों की हरकतों में इतनी ज़्यादा बेशर्मी और निर्लज्जता है! किसे इन लोगों की इज़्ज़त उतारनी चाहिए? किसे इन सच्चाइयों को बयान करना चाहिए? हमारे कलाकारों पर, हमारे लेखकों के कंधों पर भारी ज़िम्मेदारी है, भारी फ़र्ज़ है। ये चीज़ें आर्ट के सांचे में दुनिया के साममे पेश की जानी चाहिए, फ़िल्में बनाई जानी चाहिएं। स्टेडियम की इस घटना के बारे में कहानी, फ़िल्म, किताब, क़िस्सा तैयार होना चाहिए, ये काम किए जाने चाहिएं।

(3) कई कई शहीद वाले अनेक परिवार

ईलाम प्रांत की एक और ख़ासियत यह है कि इसमें दो शहीद, तीन शहीद, चार शहीद, पांच शहीद यहां तक कि दस-दस शहीद पेश करने वाले अनेक परिवार मौजूद हैं। दस शहीदों वाला एक परिवार, नौ शहीदों वाला एक परिवार, आठ शहीदों वाला एक परिवार, पांच शहीदों वाले, छः शहीदों वाले अनेक परिवार यहां मौजूद हैं। क्या यह बात ज़बान से कह देना आसान है? इसकी कल्पना भी इंसान को हैरत में डाल देती है। ईलाम इस तरह का है, इस तरह के परिवार मौजूद हैं और बताया गया है कि इन परिवारों के कुछ सदस्य यहां भी उपस्थित हैं। अल्लाह आप सबको अपनी रहमत और कृपा का पात्र बनाए, इंशा अल्लाह।

(4) अवाम के हर तबक़े की भरपूर भागीदारी

ईलाम की एक और विशेषता, सभी वर्गों की भरपूर उपस्थिति थी, वहां के प्रमुख धर्मगुरू मरहूम शैख़ अब्दुर्रहमान हैदरी से लेकर, जो वहां ऊपर मीमक पर भी हमारे साथ थे, हम जब आए तो मरहूम शैख़ अब्दुर्रहमान भी हमारे साथ वहां थे, मैं कई बार ईलाम आया हूं, राष्ट्रपति बनने से पहले भी और बाद में भी, वे मौजूद रहते थे, जब तक ज़िंदा थे, जंग के मैदान में थे, हथियार उठाते थे और सही अर्थ में लड़ाई के लिए तैयार रहते थे, ईलाम के विभिन्न क़बीलों और आम जनता तक, जो लोग लड़ सकते थे, वे मैदान में मौजूद थे, आम लोग भी प्रतिरोध कर रहे थे। अभी एक साहब ने कहा कि लोग, अपने शहर से कहीं और नहीं गए, इसे मैंने अपनी आंखों से ईलाम शहर में देखा है। दुश्मन के जहाज़ एक निर्धारित समय पर आते थे और लगातार शहर पर बमबारी करते थे, उस वक़्त ईलाम ख़ाली होता था, कोई भी नहीं होता था, लोग आस-पास के जंगलों और रेगिस्तानों में चले जाते थे और वहीं रहते थे, फिर जब बमबारी ख़त्म हो जाती थी वे शहर में लौट आते थे। मतलब यह कि शहर से बाहर जाना और फिर शहर में वापस आना, लोगों के लिए हर दिन का एक साधारण काम बन गया था लेकिन उन्होंने शहर नहीं छोड़ा, प्रांत और घर को नहीं छोड़ा, डटे रहे।

(5) कठिन हालात के बावजूद क्षमताओं का परवान चढ़ना

अब यह देखिए कि उसी बमबारी में और उन्हीं कठिन हालात में शहीद रेज़ाई नेजाद जैसे एक जीनियस की परवरिश होती है। शहीदे रेज़ाई नेजाद, विज्ञान के शहीद, एटमी शहीद, जिनकी वैज्ञानिक रैंकिंग ऐसी थी कि दुश्मन को लगा कि यह इंसान इस्लामी गणराज्य की तरक़्क़ी व प्रगति में मददगार है और इसे रास्ते से हटा देना चाहिए। वे उन्हें उनकी पत्नी और छोटी सी बेटी के सामने शहीद कर देते हैं। इस नौजवान वैज्ञानिक ने अपना बचपन ईलाम में इन्हीं बमबारियों और कठिन हालात में गुज़ारा था, इसका मतलब यह है कि दुश्मन का दबाव और युद्ध का दबाव, इन लोगों की योग्यताओं के परवान चढ़ने में ज़रा सी भी रुकावट नहीं डाल सका, यह बहुत अहम है। प्रिय शहीद रेज़ाई नेजाद जैसे लोगों का, जो विज्ञान के शहीद हैं और विज्ञान के मैदान में ख़ास स्थान रखते हैं, आध्यात्मिक दर्जा भी है, इसका सुबूत ख़ुद शहादत है क्योंकि शहादत यूंही किसी को नहीं मिलती।

यह जो शहीद हुआ है, जिसे शहादत का दर्जा दिया गया है, उसके वुजूद में, उसकी रूह में, उसके कर्म में कुछ चीज़ें होनी ज़रूरी हैं जिनके बिना इंसान को यह दर्जा नहीं दिया जाता। इस जवान साइंटिस्ट में यह आध्यात्मिक दर्जा पाया जाता था कि वह शहीद हुआ, उसके बिना वह शहीद नहीं हो सकता था।

आस्था, नैतिकता और पहचान की रक्षा में शहादत की झलकियां

एक अहम बात यह है कि कहा जाता है कि ईलाम प्रांत ने तीन हज़ार और कुछ शहीद पेश किए हैं और अन्य प्रांतों ने भी अपनी आबादी और अपने हालात के हिसाब से काफ़ी शहीद पेश किए हैं। हमें शहादत के अर्थ को सही ढंग से समझना चाहिए। शहादत के अर्थ के बारे में यह समझना चाहिए कि शहादत, सिर्फ़ जंग की क़ुर्बानी बनना नहीं है। दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपने देशों की जंगों में हिस्सा लेते हैं और मारे जाते हैं, उनमें से बहुत से लोग अपने देशों की भौगोलिक सीमाओं की रक्षा के लिए एक देश प्रेमी और वतन परस्त इंसान के रूप में यह काम करते हैं - कुछ लोग किराए के सैनिक होते हैं, कुछ लोग इस हैसियत से भी मारे जाते हैं - हमारा शहीद ऐसा नहीं है, हमारे योद्धा का मामला, जो जंग के मैदान में जाता है और वह या शहीद होता है या उसके शरीर का कोई अंग जंग की भेंट चढ़ जाता है। सिर्फ़ भौगोलिक सीमा की बात नहीं है, वह आस्था की सीमाओं, नैतिकता की सीमाओं, धर्म की सीमाओं, संस्कृति की सीमाओं, पहचान की सीमाओं की रक्षा और इन अहम आध्यात्मिक सीमाओं की रक्षा के लिए मैदान में जाता है, अलबत्ता देश की भौगोलिक सीमाओं की रक्षा भी मूल्यवान चीज़ है और इसे मूल्यों में गिना जाता है लेकिन यह कहां और इस अर्थ और इन अहम व ऊंचे अर्थों से जुड़ना कहां! हमारे शहीदों का मामला यह है।

अपनी जान देकर अल्लाह से किया गया वादा पूरा करते हैं शहीद

अगर हम इससे भी बढ़ कर शहादत के विषय पर नज़र डालना चाहें तो हमारा शहीद वास्तव में क़ुरआने मजीद की इस आयत का प्रतीक है कि “सच्चाई यह है कि अल्लाह ने जन्नत की क़ीमत पर ईमान वालों से उनकी जान और माल को ख़रीद लिया है।”(5) यानी वह अपनी जान देकर अल्लाह से सौदा करता है, शहीद यह है। या क़ुरआने मजीद की वह आयत कि जिसमें कहा गया हैः “ईमान वालों में वो मर्द भी हैं, जिन्होंने अल्लाह से वादा किया था, उसे सच्चाई से पूरा कर दिखाया, उनमें से कुछ शहीद हो गए हैं और कुछ (इसी के) इंतेज़ार में हैं।”(6) इन लोगों ने अल्लाह से किए गए अपने वादे और उसे दिए गए वचन को पूरी सच्चाई से निभाया। शहीद यह है, यानी यह अल्लाह से वादा करना है, अल्लाह से सौदा करना है, इसी लिए आप देखते हैं कि अल्लाह की राह में जेहाद के मैदान के योद्धा और दुनिया के आम सैनिकों में फ़र्क़ है। आप लोगों में से जो लोग जंग के मैदान में थे और उस वक़्त आपने देखा होगा और निश्चित रूप से देखा होगा, कुछ के बारे में किताबों में पढ़ा होगा कि पवित्र प्रतिरक्षा के दौरान, या प्रतिरक्षा के अन्य मैदानों में जैसे पवित्र रौज़ों की रक्षा वग़ैरा के दौरान जब मोमिन योद्धा, जंग के मैदान में लड़ रहा होता है तो आम परिस्थितियों के मुक़ाबले में उसकी निष्ठा ज़्यादा होती है, ईश्वर पर उसका भरोसा ज़्यादा होता है, उसकी विनम्रता ज़्यादा होती है, वह ईश्वरीय आदेशों व नियमों का ख़याल ज़्यादा रखता है।

हमारे योद्धाओं व शहीदों का अमल इस्लामी जीवन शैली की तसवीर

दुनिया में आम तौर पर यह होता है कि जब कोई सेना किसी शहर पर क़ब्ज़ा करती है तो उसके फ़ौजियों के लिए लूट-मार, लोगों का माल छीनना, ज़ुल्म और इस तरह की चीज़ें बड़ी सामान्य होती हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं है, यहां अल्लाह की राह में जेहाद करने वाला सैनिक अगर जंग के मैदान में जीत भी जाए तो उसकी निष्ठा और अल्लाह के आदेश के पालन में ज़रा सी भी कमी नहीं होती बल्कि जीत के समय, जीत पर ख़ुदा का शुक्र अदा करने के लिए वर इन चीज़ों का अधिक ध्यान रखता है। हमारे सैनिक, जब दुश्मन सैनिक को क़ैद करते थे, उसी दुश्मन को जो हमारे सिपाही को क़ैदी बनाने के बाद, उस कैम्प में पहुंचाने तक, जहां उन्हें रखा जाता था, कई बार मानो मारना और ज़िंदा होना पड़ता था, इतनी यातनाएं दी जाती थीं -सभी जानते हैं कि कैम्प में क़ैदी फ़ौजियों के साथ क्या किया जाता है- मगर वही लोग जब हमारे क़ैदी बनते थे तो अगर वे घायल होते थे तो हमारे सैनिक उनका इलाज करते थे, अगर प्यासे होते थे तो उन्हें पानी पिलाते थे, उनके साथ अपने लोगों जैसा ही व्यवहार करते थे, ये सब वास्तव में बड़ी अहम चीज़ें हैं।

हमारे सैनिकों और शहीदों के रवैये में इस्लामी जीवन शैली एक बड़ी अहम चीज़ है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। इन शहीदों की ज़िंदगी में सीखने और प्रेरणा देने वाले इतने ज़्यादा बिंदु हैं कि सच में इस बात की ज़रूरत है कि हमारे कलाकार इन हालात की एक कलात्मक तस्वीर बना कर दुनिया को दिखाएं और दुनिया को ईरानी सैनिक से परिचित कराएं, उन्हें अपने कलात्मक व बड़े कामों के माध्यम से दुनिया की आंखों के सामने ले आएं।

शहीदों का संदेश सुनना यानी मज़बूती से आगे बढ़ना और इस संबंध में देश का फ़र्ज़

शहीदों को याद करने का यह मौक़ा आपने उपलब्ध कराया तो इस से शहीदों का पैग़ाम सुनने के लिए हमारे कान खुल जाने चाहिएं। शहीद हमसे कह रहे हैं: “और वे इस बात पर ख़ुश हैं कि जो ईमान वाले उनके पीछे दुनिया में रह गए हैं और अभी उनसे नहीं जुड़े हैं, उनके लिए न तो कोई डर है और न ही वे दुखी होंगे।”(7) यह रास्ता, वह रास्ता है जिस पर डर और दुख नहीं है, ख़ुदा का रास्ता है, इस रास्ते पर अडिग रहना चाहिए, इस राह पर ताक़त से आगे बढ़ना चाहिए, दुश्मनों के बहकावों से इस राह में लड़खड़ाना नहीं चाहिए। ईरानी राष्ट्र को अपने शहीदों का संदेश सुन कर अपनी एकता, अपनी एकजुटता, अपनी प्रेरणा और अपनी कोशिशों को बढ़ा देना चाहिए। हमारे लिए शहीदों का संदेश यह है। इस्लामी गणराज्य के अधिकारियों को इन सेमिनारों में शहीदों का संदेश सुन कर उस सुरक्षा के बारे में ज़्यादा ज़िम्मेदारी महसूस करनी चाहिए जो शहीदों ने हमें मुहय्या कराई है और हमारे हवाले की है, सभी को ज़िम्मेदारी महसूस करनी चाहिए और सभी को ध्यान भी देना चाहिए कि बिना कोशिश के, बिना अल्लाह की राह में जिहाद किए हुए और बहुत सी कठिनाइयां झेले बिना कोई भी राष्ट्र कहीं नहीं पहुंच सकता, अब अगर हमारे लिए कठिनाइयां हैं तो इंशा अल्लाह, इन कठिनाइयों को सहन करने से ईरानी राष्ट्र चरम पर पहुंचेगा, चोटी पर पहुंचेगा।

हमें उम्मीद है कि अल्लाह आप सबको कामयाब करेगा और ईलाम व देश के सभी शहीदों को अपनी दया व क्षमा से नवाज़ेगा और इमाम ख़ुमैनी को, जिन्होंने हमारे लिए यह रास्ता खोला और देश में इस सार्वजनिक मार्गदर्शन को अस्तित्व प्रदान किया, उनके पवित्र नेताओं, इतिहास के बड़े मार्गदर्शकों, पैग़म्बरों व इमामों के साथ रखे और इंशा अल्लाह आपको कामयाब करे।

ये जो बातें लोगों ने यहां बयान की हैं - ये प्रस्ताव और ये आवेदन - इनमें से ज़्यादातर काम, सरकारी विभागों के हैं, उनसे कहा जाना चाहिए, इंशा अल्लाह आप लोग इन्हें देखिए, हम भी कहेंगे।

वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातोह

 

(1) इस मुलाक़ात की शुरुआत में ईलाम प्रांत में सुप्रीम लीडर के प्रतिनिधि और सेमिनार की नीति निर्धारक कमेटी के प्रमुख अल्लाह यार करीमी तबार, प्रांत के गवर्नर और सेमिनार की कार्यकारी समिति के प्रमुख मुहम्मद नौज़री, प्रांत में आईआरजीसी के कमांडर और सेमिनार के महासचिव ब्रिगेडियर जमाल शाकरमी ने तक़रीर की।

(2) आतंकी संगठन MKO जिसे ईरान में मुनाफ़ेक़ीन या मिथ्याचारियों के संगठन के नाम से जाना जाता है।

(3) शहीद रूहुल्लाह शम्बेई, 11 सितम्बर 1980 को, जब थोपा गया युद्ध अभी औपचारिक रूप से शुरू नहीं हुआ था, मेहरान शहर के बहरामाबाद नामक सीमावर्ती इलाक़े में इराक़ की बासी सेना को ईरान की ओर बढ़ने से रोकने के दौरान शहीद हुए।

(4) 23 जुलाई 2011 को शहीद दारयूश रेज़ाई नेजाद की उनके घर के सामने हत्या कर दी गई।

(5) सूरए तौबा, आयत 111

(6) सूरए अहज़ाब, आयत 23

(7) सूरए आले इमरान, आयत 170

(7) सूरए आले इमरान, आयत 170