ईलाम प्रांत के तीन हज़ार शहीदों की याद में सेमीनार की आयोजक कमेटी के सदस्यों से मुलाक़ात में सुप्रीम लीडर की तक़रीर, जो 21 नवम्बर 2021 को हुई थी, गुरुवार 2 दिसम्बर 2021 की सुबह इस सेमिनार के आयोजन स्थल पर जारी की गई।

इस मुलाक़ात में आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने प्रतिरोध, देश की रक्षा में भरपूर भागीदारी और कई कई शहीदों की क़ुरबानी पेश करने वाले अनेक परिवारों को ईलाम प्रांत की बेजोड़ विशेषताओं में शुमार किया और कहाः ईरान पर सद्दाम शासन की ओर से थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध के दौरान ईलाम एक मज़बूत क़िले की तरह था, कुछ समय तक इसके कुछ इलाक़े दुश्मन के क़ब्ज़े में भी चले गए थे लेकिन यह पहाड़ की तरह डटा रहा।

उन्होंने 23 जनवरी 1987 को फ़ुटबॉल के एक मैच पर बमबारी में ईलाम के कई खिलाड़ियों और दर्शकों की शहादत को, शहीद खिलाड़ियों की मज़लूमियत की मिसाल क़रार दिया और इस बात का ज़िक्र करते हुए कि सद्दाम, मानवाधिकार के वैश्विक दावेदारों के समर्थन से ये अपराध कर रहा था, कहाः कलाकारों और लेखकों को चाहिए कि इन सच्चाइयों को दुनिया के सामने लाएं और मानवाधिकार के झूठे दावेदारों की क़लई खोल दें।

इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने ईलाम के लोगों के प्रतिरोध की भावना और भयानक बमबारियों के बावजूद अपने घर और शहर को न छोड़ने के संकल्प की तरफ़ इशारा करते हुए कहाः जंग का दबाव इन लोगों की सलाहियतों के परवान चढ़ने में रुकावट नहीं बन सका और इन्हीं बमबारियों के बीच शहीद रेज़ाई नेजाद जैसे जीनियस युवा की परवरिश हुई और जब दुश्मन ने उन्हें देश की तरक़्क़ी में मददगार समझा तो उनकी पत्नी और छोटी बच्ची के सामने उनकी हत्या कर दी। आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने शहीद और शहादत के विषय को दुनिया में प्रचलित जंगों में सैनिकों की मौत से अलग विषय बताया और कहाः शहीद और मुजाहिद अल्लाह की राह में भौगोलिक सीमाओं की मूल्यवान रक्षा के अलावा अहम आध्यात्मिक सरहदों यानी आस्था, नैतिकता, धर्म, संस्कृति और पहचान की सीमाओं की भी हिफ़ाज़त करता है और अल्लाह से किए गए वादे को पूरा करते हुए अल्लाह से अपनी जान का सौदा करता है।

उन्होंने इसी तरह कहाः निष्ठा, अल्लाह पर भरोसे, विनम्रता, ईश्वरीय नियमों के पालन और युद्ध बंदियों के साथ दयापूर्ण बर्ताव जैसी अहम विशेषताएं और कुल मिला कर इस्लामी जीवन शैली हमारे योद्धाओं और शहीदों में पूरी तरह से स्पष्ट है और इन रौशन व पाठदायक बिंदुओं वाली तस्वीर कलात्मक कामों के साथ दुनिया की आंखों के सामने लाई जानी चाहिए।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने शहीदों की याद मनाए जाने का लक्ष्य, उनका संदेश सुनना बताया और कहाः शहीदों का संदेश यह है कि अल्लाह की राह में डर और दुख नहीं है और दुश्मन के उकसावों से प्रभावित हुए बिना पूरी ताक़त और मज़बूत क़दमों से आगे बढ़ना चाहिए।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि जिहाद किए बिना और कठिनाइयां झेले बिना कोई भी राष्ट्र बुलंदी और चोटी पर नहीं पहुंच सकता, कहा कि ईरानी राष्ट्र को शहीदों का संदेश सुनने के बाद अपनी एकता, जज़्बे और संघर्ष को बढ़ाना चाहिए और अधिकारियों को भी समाज और शहीदों की ओर से देश को उपलब्ध कराई गई सुरक्षा के बारे में ज़िम्मेदारी का अधिक एहसास करना चाहिए।