आयतुल्लाह ख़ामेनईः इन हालिया वार्ताओं के बारे में भी एक बात कहता चलूं, आप लोग भी समस्याओं को जानते ही हैं। इन्हीं वार्ताओं में, जो हाल ही में जारी थीं, हमारे कूटनयिकों ने बड़ी मेहनत की, हमारे कुछ कूटनयिक तो इस मामले में सच में बड़ी अच्छी तरह से उभर कर सामने आए, लेकिन अमरीकी, अपने शत्रुतापूर्ण रुख़ पर बुरी तरह से अड़े रहे और उन्होंने एक क़दम भी आगे नहीं बढ़ाया। वे काग़ज़ पर या अपने वादों में कहते हैं कि हां हम पाबंदियां हटा लेंगे लेकिन उन्होंने नहीं हटाईं और नहीं हटाएंगे। वे शर्त रखते हैं और कहते हैं कि अगर आप चाहते हैं कि पाबंदियां ख़त्म हो जाएं तो अभी, इसी समझौते में एक जुमला बढ़ा दीजिए जिसका अर्थ यह हो कि इन विषयों के बारे में हम आपसे बाद में बात करेंगे और समझौता करेंगे। अगर आपने यह जुमला नहीं बढ़ाया तो इस वक़्त एक दूसरे से सहमति नहीं कर सकते। यह जुमला क्या है? यह जुमला एक बहाना है अगले हस्तक्षेपों के लिए, ख़ुद परमाणु समझौते के लिए और परमाणु समझौते की समय सीमा बढ़ाने के लिए, अन्य मामलों में हस्तक्षेप के लिए, मीज़ाइल के लिए और क्षेत्र के लिए कि अगर बाद में आपने कहा कि नहीं, हम इस बारे में बात नहीं करेंगे, मिसाल के तौर पर देश की नीति या संसद इस बात की इजाज़त नहीं देती तो वे कहेंगे, ठीक है, आपने उल्लंघन किया है इस लिए सब कुछ ख़त्म! कोई समझौता नहीं! इस वक़्त उनकी नीति और उनका तरीक़ा यह है, वे पूरी तरह से कायरतापूर्ण और दुष्टतापूर्ण रवैया अपनाते हैं और उन्हें अपने वादों को तोड़ने में भी किसी तरह की कोई शर्म नहीं है, बिलकुल भी नहीं।