21/03/2025
हिदायत की एक चौथी क़िस्म भी है जिसका नाम हमने "मोमिनों के एक गिरोह से मख़सूस हिदायत" रखा है। यह सारे मोमिनों के लिए भी नहीं है बल्कि उनमें से ख़ास लोगों से मख़सूस है। यह बहुत ही आला स्तर की हिदायत है जो पैग़म्बरों और अल्लाह के विशेष दोस्तों से मख़सूस है। सूरए अनआम की आयतें पैग़म्बर से कहती हैं कि "ये वे लोग हैं जिनको अल्लाह ने हिदायत दी है तो आप भी उनके रास्ते और तरीक़े पर चलें" (सूरए अनआम, आयत-90) अल्लाह के चुने हुए बंदे उसकी ओर से कुछ चीज़ें, कुछ इशारे, कुछ ख़ास हिदायतें हासिल करते हैं। आप देखते हैं कि किसी को क़ुरआन की कोई आयत सुनाई जाती है तो उसके आंसू बहने लगते हैं, उसका दिल बदल जाता है, वह कुछ ख़ास चीज़ समझता है। यह वह मख़सूस हिदायत है। इंसान का स्तर जितना ऊपर उठता वह कुछ इशारे हासिल करता है, उस आयत के कुछ लफ़्ज़ उनके लिए एक हिदायत लिए होते हैं जो हमारे लिए नहीं हैं। ये सभी अल्लाह की हिदायतें हैं, हिदायत का यह मानी मुराद है।  इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991
19/03/2025
हिदायत के मानी रहनुमाई करने और रास्ता दिखाने के हैं। अल्लाह की ओर से मिलने वाली हिदायत के कई चरण और कई मानी हैं। एक आम स्तर की हिदायत है जिसमें कायनात की सभी चीज़ें शामिल हैं। यह हिदायत वजूद मिलने से जुड़ी है, यह आम हिदायत है और सब चीज़ें इसके दायरे में आती हैं। जिस स्वभाव के तहत चीटियां या शहद की मक्खियां ख़ास तरीक़े से अपना घर बनाती हैं और सामाजिक तौर पर ज़िंदगी गुज़ारती हैं, उसका स्रोत अल्लाह की ओर से मिलने वाली हिदायत है। हमारी मुराद यह हिदायत नहीं है। हिदायत की एक क़िस्म इंसान से मख़सूस है, एक निहित समझ जो अल्लाह के वजूद और कुछ धार्मिक शिक्षाओं की ओर उसकी रहनुमाई करती रहती है। आप अल्लाह को अक़्ल से पहचानते हैं। फ़ितरत और अक़्ल के अलावा अल्लाह को पहचानने का कोई और ज़रिया नहीं है। यही इंसान की अक़्ल की हिदायत है लेकिन यहां हमारी मुराद यह हिदायत भी नहीं है।  इमाम ख़ामेनेई 1 मई 1991
15/03/2025
अल्लाह से मदद चाहने का मतलब यह है कि मैं ऐब और ग़लतियों का पुतला इंसान, अगर अपनी पूरी सलाहियतों को भी तेरी बंदगी और इबादत में लगा दूं, तब भी मैंने तेरी बंदगी और इबादत का हक़ अदा नहीं किया है, तुझे मेरी अतिरिक्त मदद करनी चाहिए ताकि मैं यह हक़ अदा कर सकूं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्ललाहो अलैहि व आलेही वसल्लम और इमाम अलैहेमुस्सलाम जैसे महापुरूष कहते हैं कि ऐ अल्लाह हम तेरी बंदगी का हक़ अदा नहीं कर सके। हज़रत अली अलैहिस्सलाम और इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम जैसी हस्तियां अल्लाह की बंदगी का हक़, जिसके वह योग्य है, अदा न कर पाने की बात करती हैं जबकि ये हस्तियां अल्लाह की बंदगी में जो काम करती थीं, हम उसके बारे में सोच भी नहीं सकते।   इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991
14/03/2025
"व इय्याका नस्तईन" और सिर्फ़ तुझ ही से मदद चाहते हैं। किस चीज़ में तुझसे मदद चाहते हैं? इस चीज़ में कि हम सिर्फ़ तेरी ही बंदगी करें, किसी दूसरे की नहीं। अल्लाह के अलावा किसी की बंदगी न करना ज़बान से तो बहुत आसान है लेकिन अमल में यह सबसे मुश्किल कामों में है; व्यक्तिगत ज़िंदगी में भी बहुत कठिन है और सामाजिक ज़िंदगी में भी कठिन है, एक क़ौम की हैसियत से भी कठिन है और आप इसकी कठिनाइयों को देख रहे हैं कि जब इस्लामी गणराज्य ने बड़ी ताक़तों के मुक़ाबले में तौहीद का पर्चम उठा रखा है, इससे भी ज़्यादा कठिन हमारे भीतर के उस शैतान और सरकश को भगाना है, यह उससे भी ज़्यादा कठिन है। इच्छाओं और वासनाओं की तुलना में अमरीका से मुक़ाबला आसान है, इच्छाओं से लड़ना कठिन है, उस जंग की बुनियाद भी यह जंग है।   इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991
13/03/2025
हम तेरी इबादत करते हैं; इस 'हम' के दायरे में कौन लोग हैं? उसमें एक मैं हूँ। मेरे अलावा, समाज के बाक़ी लोग हैं; 'हम' के दायरे में पूरी इंसानियत का हर शख़्स है न सिर्फ़ तौहीद को मानने वाले बल्कि वे भी हैं जो तौहीद को नहीं मानते और अल्लाह की इबादत करते हैं। जैसा कि हमने कहा कि उनकी फ़ितरत में अल्लाह की इबादत रची बसी है, उनके भीतर जिससे वे अंजान हैं, अल्लाह की इबादत करने वाला और अल्लाह का बंदा है; हालांकि उनका ध्यान इस ओर नहीं है। इससे भी ज़्यादा व्यापक दायरा हो सकता है जिसमें पूरी कायनात को शामिल माना जाए यानी पूरी कायनात अल्लाह की बंदगी का मेहराब हो। मैं और कायनात के सभी तत्व, सारे जीव-जन्तु तेरी इबादत करते हैं; यानी कायनात का हर ज़र्रा, अल्लाह की बंदगी की हालत में है, यह वह चीज़ है कि इंसान अगर इसे महसूस कर ले तो समझिए वह बंदगी के बहुत ऊंचे दर्जे पर पहुंच गया है। वह तौहीद के इस नग़मे को पूरी कायानात में सुनता है, यह एक हक़ीक़त है। मुझे उम्मीद है कि अल्लाह की बंदगी और इबादत में हम ऐसे स्थान पर पहुंच जाएं कि इस सच्चाई को महसूस कर सकें।   इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991
12/03/2025
इस आयत के अंतर्गत एक अहम बिन्दु यह है कि यह बंदगी, इंसान की फ़ितरत में मौजूद है; इंसान अपने स्वभाव के तक़ाज़े के तहत ताक़त के एक बिन्दु, ताक़त के एक ऐसे केन्द्र की ओर आकर्षित होता है जिसे वह अपने से श्रेष्ठ समझता है और उसके सामने समर्पित हो जाता है। यह इंसान की रूह और उसके वजूद में है। चाहे इस ओर उसका ध्यान हो या न हो। दुनिया की सारी बंदगी, अल्लाह की बंदगी है; यहाँ तक कि मूर्ति पूजने वाला भी अपने दिल में, अल्लाह को पूजता है; लेकिन जिस चीज़ की वजह से उसका यह काम ग़लत हो गया है वह उस श्रेष्ठ ताक़त की पहचान में ग़लती है। धर्मों का रोल यह है कि वे इंसान के सोए हुए ज़मीर को जगाएं, उसकी आँख खोलें और कहें कि वह श्रेष्ठ ताक़त कौन है। उस हद तक जितना इंसान का दिमाग़ उसे समझने की सलाहियत रखता है। इमाम ख़ामेनेई 24 अप्रैल 1991
12/03/2025
इंसान दुआ से, अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाकर, रोज़े से ख़ुद को भूल जाने की इस ग़फ़लत से मुक्ति पा सकता है और अगर यह ग़फ़लत दूर हो जाए तो उस वक़्त इंसान को अल्लाह का सवाल याद आता है और हम ध्यान देते हैं कि अल्लाह हमसे सवाल करेगा।
12/03/2025
मुल्क के हज़ारों की तादाद में स्टूडेंट्स ने बुधवार 12 मार्च 2025 की शाम को तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। यह सालाना मुलाक़ात हर साल रमज़ान के मुबारक महीने में होती है।   
10/03/2025
अल्लाह के भुला देने का मतलब यह है कि अल्लाह उसे अपनी रहमत और रहनुमाई के दायरे से निकाल देता है।
09/03/2025
रमज़ान का महीना ज़िक्र का महीना है, क़ुरआन का महीना है और क़ुरआन ज़िक्र की किताब है। 'ज़िक्र' का क्या मतलब है? ज़िक्र, ग़फ़लत और फ़रामोशी की ज़िद्द है।
08/03/2025
7 रमज़ानुल मुबारक 1446 हिजरी क़मरी मुताबिक़ 8 मार्च सन 2025 को मुल्क के अधिकारियों ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से मुलाक़ात की। इस मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने रमज़ान के मुबारक महीने की फ़ज़ीलतों के बारे में बड़ी अहम चर्चा की और देश विदेश के मुद्दों की समीक्षा की। 
05/03/2025
अब रहमत का रहीमी पहलू। 'रहीम' शब्द से रहमत का जो अर्थ समझा जाता है, वह दूसरी तरह की रहमत है; ख़ास तरह की रहमत है, ऐसी रहमत जो सृष्टि के एक ख़ास समूह से मख़सूस है और वह समूह मोमिनों और अल्लाह के नेक बंदों का समूह है। जब हम कहते हैं 'अर्रहीम' अल्लाह का रहीम के नाम से गुणगान करते है- तो हक़ीक़त में हम अल्लाह की ख़ास रहमत की ओर इशारा करते हैं और वह मोमिनों से मख़सूस रहमत है; वह क्या है? वह ख़ास मार्गदर्शन, गुनाहों की माफ़ी, भले कर्मों का अज्र, अल्लाह की मर्ज़ी पर राज़ी रहना है जो मोमिनों से मख़सूस है। हालांकि इस रहमत का दामन सीमित है और एक समूह से मख़सूस है लेकिन हमेशा बाक़ी रहने वाली है, यह इस दुनिया से मख़सूस नहीं है, जारी रहेगी; इस लोक से परलोक तक, बर्ज़ख़ के दौरान, (मरने के बाद और क़यामत से पहले का चरण) क़यामत तक और स्वर्ग तक। इमाम ख़ामेनेई 13 मार्च 1991
09/04/2024
रहमान अल्लाह की आम रहमत है जिसका दायरा संसार की सभी चीज़ों पर फैला हुआ है लेकिन कम मुद्दत के लिए यानी क़यामत से पहले तक, रहीम यानी अल्लाह की वो रहमत जो मोमिनों से मख़सूस है और किसी ख़ास वक़्त तक सीमित नहीं है बल्कि हमेशा है।
09/04/2024
सवालः अगर किसी शहर में शव्वाल (ईद) का चाँद दिखाई न दे लेकिन रेडियो और टीवी पर चाँद के नज़र आने की ख़बर दी जाए तो क्या ये काफ़ी है या और छानबीन करना वाजिब है? जवाबः अगर उस ख़बर से यक़ीन हासिल हो जाए या चाँद होने का इत्मेनान हो जाए या वलीए फ़क़ीह की ओर से चाँद होने का हुक्म जारी किया गया हो तो ये काफ़ी है और छानबीन की ज़रूरत नहीं है।
09/04/2024
रहबरे इंक़ेलाब इस्लामी आयतुल्लाह ख़ामेनेई के कार्यालय ने एक बयान जारी किया है कि बुधवार 10 अप्रैल 2024 को शौवाल महीने का पहला दिन और ईदे फ़ित्र है। 
03/04/2024
अगर सारे बच्चों को भी क़त्ल कर दिया तो कोई ग़म नहीं फ़िरऔन को क़त्ल करने के लिए मूसा ज़िंदा रहेगा
01/04/2024
हमारा ध्यान रहे, हमें बिना हड्डी के फिसलने वाले इस शारीरिक अंग ज़बान की ओर से चौकन्ना रहना चाहिए और जान लेना चाहिए कि ये बहुत अहम है।
01/04/2024
अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम की पूरी ज़िंदगी सरापा ख़ालिस जेहाद है। बचपन में इस्लाम लाने से लेकर 63 साल की उम्र में शहादत तक ज़िंदगी का एक भी लम्हा ख़ालिस जेहाद से ख़ाली नहीं। इस्लाम के इतिहास में इतनी सेवाएं करने वाली कोई और हस्ती नहीं है। इमाम ख़ामेनेई 20 मई 1987
26/03/2024
शेर में पैग़ाम होना चाहिए। जो अच्छा पैग़ाम हो सकता है वह दीन का पैग़ाम है, अख़लाक़ का पैग़ाम है और सभ्यता पैग़ाम है। इमाम ख़ामेनेई  25 मार्च 2024
25/03/2024
जब भूखा खाना खा लेता है तो जी भर जाता है और जब प्यासा पानी पी लेता है तो जी भर जाता है लेकिन अल्लाह के पैग़म्बर फ़रमाते हैं कि नमाज़ से मेरा जी कभी नहीं भरता।
22/03/2024
सहर का वक़्त, अल्लाह से अकेले में बात करने का वक़्त है। हमें इस वक़्त की, इस मौक़े की क़द्र समझना चाहिए, ख़ास कर आप लोगों को जो जवान हैं।
22/03/2024
हज़रत ख़दीजा शुरू से इस्लाम पर ईमान लाईं। उन्होंने अपनी सारी दौलत दावते इस्लाम और इस्लाम के प्रचार पर ख़र्च कर दी। अगर हज़रत ख़दीजा की मदद न होती तो शायद इस्लाम के सफ़र और इस्लाम के प्रचार में बड़ी रुकावट पेश आती। बाद में रसूले ख़ुदा और दूसरे मुसलमानों के साथ शेअब-ए-अबू तालिब में जाकर रहीं और वहीं उन्होंने आख़िरी सांस ली। इमाम ख़ामेनेई 27 जून 1986
21/03/2024
आप बहुत देखते हैं ऐसे जवानों को जो दुनिया से चले जाते हैं। तो इस सफ़र की मंज़िल निश्चित नहीं है कि आप जो आगे बढ़ रहे हैं, आप का कहाँ तक आगे बढ़ना और कहाँ गिरना तय है।
20/03/2024
हम ख़याल रखें कि अपने काम में, अपनी बातों में, अपने वादों में सच्चे रहें, ये चीज़ अमल से समझ में आती है, ज़िंदगी में होने वाले बदलाव से समझ में आती है।
19/03/2024
ख़याल रखो कि तुम्हारी लड़खड़ाहट तुम्हारे मुंह के बल गिर पड़ने का कारण न बन जाए, लड़खड़ाहट तो हो ही जाती है लेकिन ख़याल रखो कि गिर न पड़ो।
18/03/2024
अमरीका, इस्लामी इंक़ेलाब को मानने के लिए क्यों तैयार नहीं है? इसलिए कि उसके हित ख़तरे में पड़ जाएंगे। इस वक़्त भी वो कह रहा है, खुलकर बिना किसी झिझक के कह रहा है कि ईरान के इस्लामी इंक़ेलाब और इस्लामी गणराज्य ने इलाक़े में हमारे हित को ख़तरे में डाल दिया है।
17/03/2024
आज के काल को कल पर न टालो, जो कुछ तुम्हें लगता है कि अंजाम देना ज़रूरी है, उसे आज ही कर डालो, अगर कल हुआ तो कल के ख़ुद अपने काम होंगे।
12/03/2024
रमज़ानुल मुबारक के पहले दिन 12 मार्च 2024 को इमाम ख़ुमैनी इमाम बारगाह में क़ुरआन से उन्सियत की महफ़िल के नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने क़ुरआन और तिलावत के विषय पर तक़रीर की। उन्होंने ग़ज़ा की जंग के बारे में भी कुछ बिंदु बयान किए।
24/04/2023
रमजान का महीना अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाने का महीना भी है और जेहाद का महीना भी। इस्लाम के आग़ाज़ में जंगे बद्र और फ़त्हे मक्का रमज़ान में थी। हालिया बरसों में क़ुद्स दिवस ईरानी क़ौम के संघर्ष का दिन रहा और इस साल बड़े पैमाने पर दूसरे राष्ट्रों ने भी इसमें साथ दिया। इमाम ख़ामेनेई 22 अप्रैल 2023
19/04/2023
ऐ परवरदिगार! मोहम्मद व आले मोहम्मद के सदक़े में हमें, जो मुल्क के किसी भी इलाक़े और क्षेत्र में हैं, तौफ़ीक़ दे कि तेरी मर्ज़ी व ख़ुशी के मुताबिक़ कर्म करें।
18/04/2023
ऐ परवरदिगार! तुझे मोहम्मद व आले मोहम्मद का वास्ता इस मुबारक महीने के आख़िरी दिनों में पूरी ईरानी क़ौम पर मेहरबानी व रहमत नाज़िल कर। इस्लामी दुनिया को, शिया जगत को अपनी ख़ुसूसी मेहरबानी से नवाज़।
17/04/2023
ऐ परवरदिगार! तुझे मोहम्मद व आले मोहम्मद का वास्ता, तू अपनी ख़ुशनूदी के असबाब हमें अता कर। इस मुबारक महीने में हमें अपनी रमहत और मग़फ़ेरत से महरूम न कर।
16/04/2023
ऐ परवरदिगार! तुझे मोहम्मद व आले मोहम्मद का वास्ता हम सबको ग़फ़लत की नींद से जगा दे।
15/04/2023
ऐ परवरदिगार! हम में से हर एक की, हमारी क्षमता भर, हमारी पोज़ीशन के मुताबिक़ और उस रोल के मुताबिक़ जो हम अदा कर सकते हैं, असत्य के मोर्चे के ख़िलाफ़, सत्य के मोर्चे की जीत में मदद कर।
14/04/2023
ऐ परवरदिगार! हमें उस रास्ते की जो ईरानी क़ौम की व्यापक हिदायत का सबब बने और इस्लामी दुनिया की इज़्ज़त का सबब बने, हिदायत कर।
13/04/2023
ऐ पालने वाले! ईरानी क़ौम की तरक़्क़ी की सच्ची नीयतों और आशिक़ दिलों, हक़ीक़त के आशिक़ों को उनकी उमंगों और बड़ी आरज़ूओं को पूरी करने की ताक़त दे।
12/04/2023
पालने वाले! हमें भटकने और गुमराही से बचा। ऐ परवरदिगार! ईरानी क़ौम के हाथों को उसके दुश्मनों से ज़्यादा ताक़तवर बना दे, उसे उसके दुश्मनों पर फ़तह दे।
11/04/2023
ऐ परवरदिगार! मोहम्मद व आले मोहम्मद के सदक़े में, थोपी गयी जंग के शहीदों की पाक आत्माओं को और बलिदान देने वालों की यादों को हमारे मन और हमारे इतिहास में अमर कर दे।
10/04/2023
ऐ परवरदिगार! इन दिनों और इन रातों की बरकत का वास्ता, अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम के पाक ख़ून की बरकत का वास्ता, हमारी क़ौम को दिन ब दिन सच्ची नजात व कामयाबी के क़रीब कर दे।
09/04/2023
पालने वाले! हमारे भाइयों को, चाहे वे दुनिया में जहाँ भी हैं, कामयाब कर। ऐ परवरदिगार! इस्लाम के दुश्मनों को और मुसलमान क़ौमों के दुश्मनों को, वे दुनिया में जहाँ कहीं भी हैं, रूसवा और नाकाम कर।
ताज़ातरीन