इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने 31 मार्च 2025 को ईदुल फ़ित्र के दिन इस्लामी सिस्टम के अधिकारियों और इस्लामी मुल्कों के राजदूतों और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों से ख़ेताब किया जिसमें इस्लामी जगत के मुद्दों और प्राथमिकताओं के बारे में बात की। (1)
स्पीचः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा और मासूम नस्ल और उनके चुने हुए साथियों और जो भलाई में उनका पालन करे उन पर, क़यामत के दिन तक।
इस्लामी जगत को, ईरानी अवाम को, मौजूद लोगों को, मेहमानों और इस्लामी मुल्कों के राजदूतों को ईदुल फ़ित्र मुबारक हो। हक़ीक़त यह है कि आज इस्लामी दुनिया को ऐसी चीज़ों की ज़रूरत है जो उसे एकजुट करें, उसे एक सरगर्म और प्रभावी इकाई बनाए। ईदुल फ़ित्र उन्हीं में से एक है। हम ईदुल फ़ित्र की नमाज़ के क़ुनूत में यह दुआ पढ़ते हैं: "और मोहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहि वआलेही वसल्लम) के लिए इज़्ज़त, ज़ख़ीरा, शराफ़त और महानता का स्रोत क़रार दे।" इस 'मज़ीद' शब्द के बहुत गहरे मानी हैं- यानी ईदुल फ़ित्र इस्लामी और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही वसल्लम की महानता में दिन ब दिन इज़ाफ़ा होने का ज़रिया है। पैग़म्बरे इस्लाम का दीन, उनका रास्ता जो उन्होंने इंसानियत के सामने पेश किया, वह दिन ब दिन फैले और बढ़े। ईदुल फ़ित्र की यह ख़ुसूसियत है। लेकिन यह कब होगा? जब लोग इकट्ठा न हो, दुआ न करें, अल्लाह से दिल की बात न करें, सभा न करें, तो फिर यह ख़ुसूसियत बाक़ी नहीं रहती। हम ईदुल फ़ित्र की बुनियाद रखते हैं अपने कर्म से, अपने व्यवहार से उसे इस्लाम और मुसलमानों के लिए बर्कत का स्रोत बनाते हैं। अगर इस्लामी जगत में एकता हो, साहस हो, बसीरत हो तो ईदुल फ़ित्र सही मानी में 'मज़ीद' बन जाएगी।
आज दुनिया में बहुत तेज़ी से वाक़ए हो रहे हैं- चाहे हमारा क्षेत्र हो या दुनिया के दूसरे क्षेत्र हों- तेज़ रफ़्तार से हो रहे इस बदलाव का तक़ाज़ा है कि जो लोग ख़ुद को विश्व स्तर पर होने वाले वाक़यों का हिस्सा समझते हैं या उसका उन पर प्रभाव पड़ता है, वे जागरुक और होशियार रहते हुए समीक्षा करें और अपना स्टैंड स्पष्ट करें। आज यह इस्लामी सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि वे अपने अवाम, अपने दोस्तों, दुश्मनों और आने वाली चुनौतियों पर नज़र रखें।
इस्लामी जगत एक बड़ी ताक़त है। हम मुसलमान न सिर्फ़ तादाद में ज़्यादा हैं, बल्कि भौगोलिक और प्राकृतिक संसाधन के लेहाज़ से भी दुनिया के महत्वपूर्ण भाग के मालिक हैं। अगर इस्लामी दुनिया अपनी इस पोज़ीशन से फ़ायदा उठाना चाहती है तो उसे बुनियादी क़दम उठाने की ज़रूरत है और वह है एकता।
एकता का मतलब यह नहीं कि सारी सरकारें एक हो जाएँ, एकता का मतलब यह नहीं कि सभी राजनैतिक दल एक जैसा विचार अपनाएँ। इस्लामी दुनिया की एकता का मतलब यह है कि सबसे पहले अपने साझा हितों को पहचानें, सबसे पहले यह समझें कि उनके साझा हित क्या हैं। हम अपने हित इस तरह तय न करें कि उससे आपस में झगड़े, टकराव और मतभेद पैदा हो जाएँ। इस्लामी दुनिया एक परिवार है, एक इकाई है। इस्लामी सरकारों को इस सोच को अपनाना और आगे बढ़ना चाहिए।
इस्लामी गणराज्य ईरान सभी इस्लामी देशों की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाता है, जैसा कि राष्ट्रपति महोदय ने भी कहा। हम सभी एक मूल और व्यापक मोर्चे पर हैं। अगर हम एक-दूसरे से सहयोग करें, आपस में समरसता रखें और इस्लामी दुनिया की एकता के बनाए रखें, तो हमलावर, ज़ालिम और अत्याचारी ताकतें इस्लामी देशों पर हमला नहीं कर सकेंगी, मनमानी नहीं कर सकेंगी और न ही ग़ुंडा टैक्स वसूल सकेंगी। आज दुर्भाग्य से ग़ुंडा टैक्स वसूल करना, आम बात है। बड़ी ताक़तें कमज़ोर देशों से ग़ुंडा टैक्स वसूल करती हैं और इसे खुलकर स्वीकार भी करती हैं। हमें इस्लामी दुनिया को अमरीका और उस जैसी अन्य ताक़तों की ग़ुंडा टैक्स वसूली का निशाना नहीं बनने देना चाहिए।
हमें मजलूमों के हक़ के लिए आवाज़ उठानी चाहिए। आज इस्लामी दुनिया का एक हिस्सा बुरी तरह घायल है, फ़िलिस्तीन घायल है, लेबनान घायल है। इस क्षेत्र में जो अत्याचार हो रहे हैं, वे कभी-कभी इतिहास में बेमिसाल हैं। हमें याद नहीं आता कि हमने जो इतिहास देखा है और जिसके बारे में पढ़ा है, उसमें कभी सिर्फ़ दो साल के अंदर बीस हज़ार बच्चों को शहीद किया गया हो! यह कोई मज़ाक नहीं है। इस्लामी दुनिया को यह सब देखना चाहिए, समझना चाहिए और फ़िलिस्तीनियों के दुख-दर्द को अपना दुख-दर्द समझना चाहिए और अपनी ज़िम्मेदारी महसूस करना चाहिए। अगर इस्लामी दुनिया एकजुट हो जाए तो वह यह ज़ुल्म रोक सकती है। जंग की भी ज़रूरत नहीं, बस अगर एकता और एकजुटता हो, समरसता हो, इस्लामी सरकारों की एक आवाज़ हो तो दुश्मन ख़ुद ही होश में आ जाएंगे।
दुआ है कि अल्लाह इस ईदे फ़ित्र को पूरे इस्लामी जगत के लिए मुबारक बनाए और इस्लामी देशों के नेताओं को यह तौफ़ीक़, यह जज़्बा और ताक़त दे कि वे सही अर्थ में "उम्मते इस्लामी" (इस्लामी उम्मा) बना सकें।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत और बरकत हो।