इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने 12 फ़रवरी 2025 को मुल्क के रक्षा उद्योग के माहिरों और वैज्ञानिकों के आविष्कारों की नुमाइश का मुआयना करने के बाद, अपने ख़ेताब में इस उद्योग की अहमियत पर रौशनी डाली और अधिकारियों को कुछ निर्देश दिए। (1)
स्पीचः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा सबसे चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।
अज़ीज़ भाइयो और बहनो! सबसे पहले तो मैं इमाम महदी अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस की मुबारकबाद पेश करता हूँ, यह हक़ीक़त में विश्व स्तर पर पूरी मानवता की ईद है। न्याय व इंसाफ़ की ख़ुशख़बरी और न्याय क़ायम होने की उम्मीद इतिहास में हमेशा से पूरी मानवता की आरज़ू और उम्मीद का केन्द्र बिन्दु रही है। मानव इतिहास का कोई भी दौर आपको ऐसा नहीं मिलेगा जिसमें लोग न्याय व इंसाफ़ की प्रतीक्षा में न रहे हों और उनके मन में किसी मुक्तिदाता की आरज़ू न रही हो। शिया मत के मुताबिक़, यह आरज़ू निश्चित तौर पर पूरी होगी। हज़रत इमाम महदी के वजूद पर शिया और सुन्नी किसी को शक नहीं है, इस पर सब एकमत हैं, लेकिन शियों की ख़ुसूसियत यह है कि वे इमाम महदी (अल्लाह उन्हें जल्द प्रकट करे) को आपकी सभी ख़ास ख़ुसूसियतों से, आपके नाम के साथ और आपके पिता और आपकी माँ के नाम से पहचानते हैं। यह हमारी ख़ुसूसियत है। उम्मीद है कि इंशाअल्लाह हमें आपका दीदार नसीब हो!
मैं इसी के साथ इस्लामी इंक़ेलाब की सालगिरह की मुबारकबाद भी पेश करता हूँ। यह दिन हमारी क़ौम के लिए और हमारे इतिहास के लिए एक बड़ी ईद का दिन है। जो भी इस्लामी इंक़ेलाब से पहले, शाही दौर में ईरान के हालात का जानकार हो, वह सच्चे मन से इस बात की पुष्टि करेगा कि इस्लामी इंक़ेलाब ईरानी क़ौम के लिए एक ऐतिहासिक ईद है और हमारे अवाम जिस तरह यह ईद मनाते हैं दुनिया में कही भी आपको इस तरह नज़र नहीं आएगी। दुनिया में बड़े बड़े इंक़ेलाब आए, लेकिन इंक़ेलाब आने के 46 बरस हो जाएं और हर साल उसकी सालगिरह पर आम लोग, सशस्त्र बल के लोग नहीं, सरकारी लोग नहीं, बल्कि आम लोग बाहर आएं, ख़ुशियां मनाएं, इंक़ेलाब से लगाव का इज़हार करें और इस दिन को महान दिन समझें, दुनिया में कहीं नहीं है। यह सिर्फ़ यहाँ से मख़सूस है। दूसरी क्रांतियों के बारे में भी हम जानते हैं, उनकी तारीख़ हमें मालूम है, उनसे जुड़े लोगों को भी हम जानते हैं, उनके प्रभाव और नतीजे भी हमारे सामने हैं, उन क्रांतियों के प्रति उन मुल्कों की क़ौमों और अवाम का रवैया कैसा रहा, इसको भी अच्छी तरह जानते हैं। यह स्थिति जो ईरान में है कि इस्लामी इंक़ेलाब की सालगिरह के दिन अवाम के मुख़्तलिफ़ वर्गों के लोग, औरतें, मर्द, बच्चे बूढ़े जवान सभी कई घंटों के लिए सड़कों पर निकल पड़ें, इस ठंड और ठिठुरन वाली सर्दी के मौसम में, मौसम की ख़राबी के बावजूद सड़कों पर आ जाएं, यह सिर्फ़ ईरान से मख़सूस है।
और इस साल इस्लामी इंक़ेलाब की सालगिरह का जश्न इंक़ेलाब के सबसे अच्छे जश्नों में था, सबसे अहम जश्नों में से था। अवाम ने सोमवार के दिन सचमुच आंदोलन किया। यह जो अवाम सड़कों पर आए, नारे लगाए, बातें की, मीडिया के सामने अपने विचार व्यक्त किए और यह पूरे मुल्क में हुआ, एक अवामी आंदोलन था, एक राष्ट्रीय अभियान था, इसी इस्लामी इंक़ेलाब की सालगिरह के ख़िलाफ़, इस सालगिरह के जश्न के मालिकों के ख़िलाफ़ जो अवाम हैं और इस इंक़ेबाल के नायक के ख़िलाफ़ जो इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह है, दुश्मन के प्रचारिक हमलों और प्रोपैगंडों की यलग़ारों के दौरान लोग इस तरह ज़ाहिर हों, यह राष्ट्रीय आंदोलन था। ताज़ा और खिले हुए चेहरों के साथ नौजावनों का आना, पूरे मुल्क में सिर्फ़ तेहरान में नहीं, सिर्फ़ बड़े शहरों में ही नहीं, ग्रामीण बस्तियों तक में लोगों ने इसी तरह भाग लिया, कुछ शहरों में बहुत ठंड थी, मौसम अच्छा नहीं था, इसके बावजूद लोग निकले, यह ईरानी राष्ट्र की एकता का पैग़ाम था। हक़ और इंसाफ़ की बात यह है कि ईरानी अवाम ने बहुत बड़ा कारनामा अंजाम दिया। उन मूर्खतापूर्ण धमकियों के मुक़ाबले में जो एक के बाद एक लगातार ईरानी क़ौम को दी जा रही हैं, ईरानी अवाम ने अपनी पहचान, अपनी शख़्सियत, अपनी क्षमता और अपनी दृढ़ता दिखा दी और यह आंदोलन सम्मानीय राष्ट्रपति की स्पीच से पूरा हो गया। उन्होंने अवाम की ज़बान में, अवाम के दिल की बात, जिसका बयान ज़रूरी था, कह दी। मैं हमेशा अपने संबोधकों से, अज़ीज़ नौजवानों से जिन्हें मैं दिल की गहराई से चाहता हूँ, कहता हूँ कि काम सही वक़्त पर करना चाहिए। ईरानी अवाम ने सोमवार के दिन वक़्त पर काम किया। जब अंजाम देना चाहिए था, उसी वक़्त अंजाम दिया, जिस वक़्त ख़ुद को दिखा देना ज़रूरी था, उसी वक़्त दुनिया को दिखा दिया। अल्लाह इस क़ौम पर रहमत नाज़िल फ़रमाए! उम्मीद है कि इंशाअल्लाह इस बहादुर, समझदार और जागरुक क़ौम का भविष्य दिन ब दिन ज़्यादा उज्जवल होगा।
वह नुमाइश जो आज मैंने निकट से देखी उन बेहतरीन नुमाइशों में से थी जो मैं कभी कभी देखता हूँ। सचमुच वह एक घंटा जो मैंने इस नुमाइश में गुज़ारा, बहुत अच्छा और आनंददायक था। मुल्क की रक्षा के लिए जो काम हो रहा है, उस संदर्भ में इस नुमाइश ने उन कोशिशों को चिन्हित किया जो अंजाम पा रही हैं। आप में से एक एक शख़्स और डिफ़ेंस विभागों में, चाहे वह रक्षा उद्योग का विभाग हो या दूसरे विभाग हों, काम करने वाले सभी लोग इस नुमाइश में जो फ़ख़्र के क़ाबिल चीज़ें प्रदर्शित की गयी हैं, उनकी तैयारी में भागीदार हैं, मैं उन सबका दिल की गहराई से शुक्रिया अदा करता हूँ और ईरानी अवाम को भी आप में से एक एक शख़्स का शुक्रगुज़ार होना चाहिए। क़ौम की रक्षा और उसकी सुरक्षा आम बात नहीं है।
आज हमारे मुल्क की रक्षा शक्ति का लोहा माना जा रहा है। आज ईरान की रक्षा ताक़त का हर कोई ज़िक्र कर रहा है, ईरान के दोस्त, इस रक्षा ताक़त पर फ़ख़्र करते हैं और ईरान के दुश्मन, इस रक्षा शक्ति से डरे हुए हैं। यह बात मुल्क और क़ौम के लिए बहुत अहम है। अहम बात यह है कि किसी ज़माने में दुनिया में मुंहज़ोरी करने वाले थे, ग़ुंडागर्दी करने वाले थे और आज भी हैं, एक वक़्त ऐसा था कि हमें रक्षा संसाधनों की ज़रूरत थी और हम कई गुना क़ीमत अदा करने के लिए भी तैयार थे, लेकिन हमसे साफ़ कहते थे, "नहीं बेचेंगे" और जो लोग ईरान के हाथ बेचना चाहते थे, उनको इसकी इजाज़त भी नहीं देते थे। कहते थे, "ईरान के हाथ नहीं बेचेंगे।" आज वही मुंहज़ोर ताक़तें ईरान से कहती हैं कि "न बेचो" उस "नहीं बेचेंगे" के चरण और इस "न बेचो" के चरण में बहुत ज़्यादा फ़र्क़ है। हमारे वैज्ञानिकों ने, हमारे काम करने वालों ने, हमारे मेहनत करने वालों ने, हमारे माहिरों ने, हमारी प्रतिभावान हस्तियों ने, हमारे प्रतिभाशाली नौजवानों ने और हमारे इन बहादुर मर्दों ने यह फ़ासला तय कर लिया। आज रक्षा के मैदान में हमारी पोज़ीशन अच्छी है। इस प्रदर्शनी में हमारी आँखों के सामने उससे कहीं अधिक चीज़ें आईं, जो हम जानते थे या जो हमने सुन रखा था। अहम बात यह है कि ये काम प्रतिबंधों के दौरान किए गए। यह प्रगति और विकास उस दौरान हुआ है जब हम पर प्रतिबंध थे। यानी उस समय में जब वे कहते थे कि "हम नहीं बेचेंगे", उस समय में जब वे हमें कुछ भी देने के लिए तैयार नहीं थे। आज भी वे एक-दूसरे से कहते हैं कि यह कल-पुर्ज़ा या उपकरण ईरान के हाथ नहीं लगना चाहिए। लेकिन हमारे युवा उससे बेहतर तैयार कर रहे हैं। मैंने बहुत अच्छी स्थिति देखी, अल्लाह का शुक्र है, बहुत अच्छा लगा। मैं आप में से एक-एक का, आपके अधिकारियों, आपके मेधावी लोगों, आपके सम्मानीय प्रोफ़ेसरों, आपके प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, सबका दिल की गहराई से शुक्रिया अदा करता हूँ।
मैं कुछ बातें बयान करना चाहता हूँ। पहली बात तो यह है कि आज हमने जो प्रगति की है, उसने हमारी रक्षा शक्ति का स्तर बढ़ा दिया है लेकिन इससे हमारे अंदर यह सोच पैदा नहीं होनी चाहिए कि अल्लाह का शुक्र है, बस मामला ख़त्म हो गया, नहीं! बल्कि, चूंकि हमने शुरुआत शून्य से की है, इस लिए, हालांकि बहुत काम हुआ है, बहुत प्रयास किए गए हैं लेकिन अभी भी हम बहुत से मामलों में अग्रिम पंक्ति तक नहीं पहुंच पाए हैं। हमें अगली पंक्ति तक पहुँचना है। क्यों? इस लिए कि ये जो हमारा बुरा चाहने वाले हैं, ये कुछ मामलों में अग्रिम पंक्ति में हैं, इसलिए हमें, हमारा बुरा चाहने वालों से अपना बचाव करने में सक्षम होना चाहिए और यह तभी होगा जब हम अग्रिम पंक्ति में पहुंचेंगे। बात यह है। क़ुरआन ने हमें इस संबंध में हमें अहम शिक्षा दी है। "और उनसे बचाव के लिए जो भी तुमसे हो सके ..."(2) "जो भी तुमसे हो सके" यह शब्द बहुत अहम है। यानी आप जो भी कर सकते हैं, जितना संभव हो, उतना ख़ुद को तैयार रखें! इसका मतलब यह है कि यह काम, जो हमने कुछ साल पहले शुरू किया था और हमने इसके विभिन्न अच्छे परिणाम भी देखे, जिनमें से कुछ का उल्लेख सम्मानीय मंत्री ने किया, कुछ हमने इस प्रदर्शनी में देखे और सुने, उसे बढ़ाने की ज़रूरत है। उसे जारी रखना ज़रूरी है। यह पहली बात हुई। तो यह प्रगति रुकनी नहीं चाहिए। हमें इसी से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। मिसाल के तौर पर कभी हमने मिसाइलों की एक्युरेसी से निशाने को भेदने के संबंध में एक स्तर और सीमा निर्धारित की थी लेकिन अब हमें लगता है कि यह स्तर व सीमा काफ़ी नहीं है! आगे जाने की ज़रूरत है, तो हमें और आगे बढ़ना चाहिए! यह पहली बात कि प्रगति जारी रहनी चाहिए।
दूसरी बात यह है कि अगर आप चाहते हैं कि प्रगति जारी रहे तो आविष्कार और नई चीज़ें बनाने को अपना लक्ष्य बनाएं। आविष्कारों पर अपना ध्यान केंद्रित करें। सिर्फ़ पुराने तरीक़ों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। नए काम और आविष्कारों की कोई सीमा नहीं होती। आविष्कार ज़रूरी हैं। यह काफ़ी नहीं है कि जो चीज़ दूसरों ने बनाई है, हम भी वही बना लें, या उसे पूर कर दें या उससे थोड़ा बेहतर बना लें। यह काफ़ी नहीं है। आप वह काम करने की कोशिश कीजिए जो किसी ने नहीं किया हो। प्रकृति में बहुत सारी चीज़ें हैं, बहुत सी ऐसी संभावनाएँ हैं जिनसे हम अभी अवगत नहीं हैं। एक समय था जब लोग बिजली के बारे में नहीं जानते थे। यह ऊर्जा दुनिया में हमेशा से थी, विद्युत ऊर्जा प्रकृति में मौजूद थी लेकिन इंसान उसे नहीं पहचानता था, बाद में इसकी खोज की गई और इसका पता चला। इसी तरह की अरबों ऊर्जाएं प्रकृति में मौजूद हैं। आप ख़ुद देखते हैं, आप वैज्ञानिक प्रगति को देख रहे हैं, हर दिन प्रगति हो रही है। एक समय था जब इंटरनेट नहीं था, फिर वह अस्तित्व में आ गया। फिर उसकी कई प्रकार की व्यापक विशेषताएँ सामने आईं। एक समय था जब आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) नहीं था, फिर वह सामने आ गया, ये सब वास्तविकताएँ हैं। कुछ लोग किसी एक चीज़ पर ध्यान केंद्रित कर देते हैं, उनके दिमाग़ में एक बिजली चमकती है और वे उस पर काम करना शुरू कर देते हैं। परिणाम हासिल करते हैं। आपको भी ऐसा ही करना चाहिए। आविष्कार और नए काम का मतलब यह है। जो काम पहले से हो चुके हैं, उन्हें पूरा करना नया काम नहीं है। दोनों में फ़र्क़ है। अगर आप सच्ची प्रगति करना चाहते हैं तो नया काम करें। यह दूसरी बात है।
इस मैदान में युवा, मोमिन, क्रांतिकारी और प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों से काम लिया जाए। ऐसे युवाओं को इस पर लगाया जाए जिनमें ऊर्जा और बुद्धिमत्ता है। मैं "मोमिन" इसलिए कहता हूँ क्योंकि ईमान, इंसान को ऊर्जा प्रदान करता है और उसे सही और सीधे रास्ते पर बाक़ी रखता है। "क्रांतिकारी" इसलिए कहता हूँ क्योंकि वह इस महान परिवर्तन में विश्वास रखता हो। यह महान राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन जो क्रांति की बरकत से देश में आया है। ये लोग नए काम कर सकते हैं।
तीसरी अहम बात यह है कि कैडिट कॉलेजों (रक्षा विश्वविद्यालयों) की शोधों में देश की रक्षा आवश्यकताओं को ध्यान में रखें। यानी लक्ष्य, रक्षा जरूरतों को पूरा करना और कमियों को दूर करना हो। मैं यह क्यों कह रहा हूँ? इस लिए कि देश के कुछ विश्वविद्यालयों में प्रोफ़ेसरों और वैज्ञानिकों का ध्यान शोध पत्र (रिसर्च पेपर) लिखने और उन्हें प्रकाशित करने पर होता है। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि इस शोध पत्र से कौन सी कमी पूरी होगी। कभी-कभी ऐसा शोध पत्र लिखा जाता है जिससे अपनों से ज़्यादा दूसरे लाभ उठाते हैं, मानो यह शोध पत्र दूसरों की ज़रूरत पूरा करने के लिए लिखा गया है। सशस्त्र बलों के अनुसंधान केंद्रों में इस बात का ध्यान रखें कि यह गिरावट न आने पाए। बस यह देखें कि हमें कहाँ ज़रूरत है, हमारी रक्षा आवश्यकता क्या है? इस पर ध्यान दें और इस पर काम करें, इस पर शोध और रिसर्च करें।
आज जो कुछ आपके पास है, यह अच्छी सोच, यह शोध की शक्ति, यह निर्माण की क्षमता, यह आविष्कार और नए काम करने की योग्यता, यह अल्लाह की दी हुई नेमत है। इन नेमतों का शुक्र अदा करें और इन्हें अल्लाह का उपहार समझें। "हमारे पास जो भी नेमत है, वह तेरी ही दी हुई है, तेरे सिवा कोई पूज्य नहीं।"(3) सभी नेमतें अल्लाह की दी हुई हैं, अल्लाह का शुक्र अदा करें। इन नेमतों पर अल्लाह का शुक्र, ज़बान और दिल से अदा करने के अलावा यह भी है कि उस ऊर्जा से काम लें जो अल्लाह ने आपको प्रदान की है।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।