उन्होंने इलाक़े के मौजूदा मसलों और ग़ज़ा, लेबनान तथा वेस्ट बैंक के वाक़यों को इतिहास लिखने वाले वाक़यात बताया और कहा कि अगर शहीद सिनवार जैसे लोग न होते जो ज़िंदगी के आख़िरी लम्हे तक लड़े या शहीद हसन नसरुल्लाह जैसे अज़ीम इंसान न होते जो जेहाद, अक़्ल, बहादुरी और बलिदान को एक साथ जंग के मैदान में ले आए तो इलाक़े का भविष्य कुछ दूसरा ही होता। 

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने क्षेत्र के वाक़यों की मौजूदा प्रक्रिया को न सिर्फ़ ज़ायोनी शासन बल्कि पश्चिमी संस्कृति व सभ्यता के लिए एक बड़ी शिकस्त बताया और कहा कि ज़ायोनी सोच रहे थे कि वे बड़ी आसानी से रेज़िस्टेंस फ़्रंट को ख़त्म कर देंगे लेकिन आज 50 हज़ार से ज़्यादा निहत्थे और आम इंसानों और इसी तरह रेज़िस्टेंस के कुछ बड़े नेताओं के क़त्ल और अमरीका की ओर से ख़र्च किए जाने वाले बेहिसाब पैसे और ज़ायोनी शासन की भरपूर मदद व सपोर्ट के बावजूद, जिसकी वजह से उसे पूरी दुनिया में नफ़रत और ज़िल्लत का सामना करना पड़ा यहाँ तक कि ख़ुद अमरीकी यूनिवर्सिटियों में अपराधियों के ख़िलाफ़ रैलियां निकाली गयीं, रेज़िस्टेंस मोर्चे और हमास, इस्लामी जेहाद, हिज़्बुल्लाह और दूसरे रेज़िस्टेंस संगठनों के जवान उसी ताक़त और जज़्बे के साथ लड़ रहे हैं और यह ज़ायोनी शासन के लिए एक बड़ी शिकस्त है। 

उन्होंने आगे कहा कि इससे भी बड़ी हार पश्चिमी संस्कृति व सभ्यता की हुयी और 2 टन वज़नी बमों और अनेक तरह के हथियारों से 10 हज़ार से ज़्यादा बेगुनाह व बेक़ुसूर बच्चों का क़त्ले आम ऐसी स्थिति में हुआ कि पश्चिमी राजनेताओं ने आँख उठाकर भी नहीं देखा और यह पश्चिम के उन झूठे और मानवाधिकार की रक्षा का बड़ा बड़ा दावा करने वाले राजनेताओं की बड़ी रुसवाई और पश्चिमी सभ्यता की अविश्वस्नीयता का सबब है और इसने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि यह उनके लिए सबसे बड़ी हार है। 

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ज़ायोनी सरकार का सपोर्ट करने वाले मोर्चे को शैतानी मोर्चा क़रार दिया और कहा कि इस शैतानी मोर्चे के मुक़ाबले में, रेज़िस्टेंस मोर्चा डटा हुआ है और अल्लाह की मदद से फ़तह रेज़िस्टेंस मोर्चे की ही है। 

उन्होंने अपने ख़ेताब में इसी तरह फ़ार्स प्रांत को धर्म, बहादुरी और कला के संगम का सबसे बड़ा प्रतीक बताया और अतीत से लेकर आज तक इस इलाक़े के नुमायां शहीदों और शहीद मासूमा करबासी को श्रद्धांजलि पेश करते हुए जो हाल ही में लेबनान में ज़ायोनी शासन के हमले का निशाना बनकर शहीद हुयीं, कहा कि फ़ार्स प्रांत के शहीदों की कान्फ़्रेंस के ज़रिए बहादुरी, कला और धर्म के सुंदर संगम को अमर बना देना चाहिए। 

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने पहलवी शासन काल में शीराज़ और फ़ार्स प्रांत से धर्म को ख़त्म करने की कोशिशों की ओर इशारा करते हुए कहा कि सख़्त मुग़ालते में थे उस वक़्त के लोग जो यह सोच रहे थे कि शीराज़ में आर्ट फ़ेस्टिवल जैसी ओछी हरकतों से इस शहर को अहले बैत के हरम और धर्म व ईमान के केन्द्र से बेहयाई के स्थान में बदल देंगे। अलबत्ता आज भी उसी मशीनरी का कुछ बचा खुचा कचरा हमारे अज़ीज़ मुल्क में कला को अध्यात्म और बहादुरी से दूर करने की कोशिश कर है लेकिन जो चीज़ मुल्क व क़ौम को तरक़्क़ी दिलाती है वह बहादुरी और कला है। 

उन्होंने फ़ार्स प्रांत के 15 हज़ार शहीदों को श्रद्धांजलि पेश करने की कान्फ़्रेंस की प्रबंधन कमेटी को आर्ट और कल्चर से संबंधित प्रोडक्ट्स के प्रभाव की समीक्षा करने पर बल दिया और कहा कि हमारे नौजवानों को मुल्क के शानदार अतीत ख़ास तौर पर इंक़ेलाब के बाद के वाक़यों व सच्चाइयों जैसे तेहरान में अमरीका के जासूसी के अड्डे पर क़ब्ज़े या बासी दुश्मन के मुक़ाबले में 8 साल की जंग की वजह को जानने और समझने की ज़रूरत है जिसके लिए इंक़ेलाब के वाक़यों को सही और अच्छे तरीक़े से पेश करना ज़रूरी है।