इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 28 जुलाई 2024 को निर्वाचित राष्ट्रपति पेज़ेश्कियान को मिले जनादेश के अनुमोदन कार्यक्रम को संबोधित किया। (1)
सुप्रीम लीडर की स्पीचः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा, चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर ज़मीनों पर अल्लाह के ज़रिए बाक़ी रखी गई हस्ती पर।
जनादेश के अनुमोदन का दिन और प्रोग्राम, उस मोटी किताब का आख़िरी पेज है जिसे ईरान की प्यारी क़ौम और ज़िम्मेदारों ने जोश से भरे चुनाव के ज़रिए लिखा है और उसे देश के गौरवशाली कारनामों के शो केस में हमेशा के लिए सजा दिया। ख़ुदा का शुक्र है कि हमारे शहीद राष्ट्रपति मरहूम जनाब रईसी को गवांने के ग़म के माहौल के बावजूद 14वां राष्ट्रपति चुनाव बड़े अच्छे तरीक़े से आयोजित हुआ, सुकून से, शांति से, प्रतिस्पर्धा से, चुनाव के बाद निर्वाचित राष्ट्रपति के साथ प्रतिस्पर्धियों का अच्छा बर्ताव, यह सब बहुत तारीफ़ के लायक़ काम हैं। यह हमारे देश के लिए एक अहम परीक्षा थी और ख़ुदा का शुक्र है कि यह परीक्षा अच्छी तरह से दी गयी और उसका अच्छा फल भी इंशाअल्लाह हमारी प्यारी क़ौम को मिलेगा।
मैं यहाँ पर लगभग दो महीनों तक देश के संचालन में प्रभारी राष्ट्रपति जनाब मुख़बिर और मंत्रिमंडल की भूमिका का ज़िक्र करना और इन लोगों का शुक्रिया अदा करना ज़रूरी समझता हूँ, इन लोगों ने अहम भूमिका निभाई है और ख़ुदा की मदद से देश को बड़ी शांति के साथ और जनता की अच्छी भावनाओं के साथ चुनाव तक पहुंचाया और चुनाव को भी बेहतरीन तरीक़े से आयोजित किया।
हमारे मुल्क में ख़ुदा का शुक्र है कि प्रतिस्पर्धा और पारदर्शिता पर आधारित एक प्रजातंत्र है, लेकिन यह हमें आसानी से और सस्ते में नहीं मिला है, यह हमारे देश में अतीत में मौजूद एक बेहद दुखदायी स्थिति और अराजकता के ख़िलाफ़ जनता के आंदोलन का फल है। हमारे महान इमाम ख़ुमैनी ने इंक़ेलाब की कामयाबी के आरंभ में ही पूरे संकल्प के साथ, मुल्क में एक ऐसी परम्परा स्थापित की जिसकी मिसाल पहले नहीं मिलती और वह जनता की भूमिका, जनता की उपस्थिति और देश के संचालन में जनता का असर है, यह इमाम ख़ुमैनी का एक बेहद महान काम था जो हमारे देश के इतिहास की भी एक अहम घटना है।
इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में प्रजातंत्र तक पहुंचने से पहले तक ईरानी जनता के पास केवल संविधान क्रांति का भी अनुभव था और यह अनुभव नाकाम था। संविधान क्रांति के दौरान जनता ने संघर्ष किया, कोशिश की, जान क़ुरबान की, बहुत संघर्ष हुआ, लेकिन चूंकि एक ताक़तवर, असरदार और लोकप्रिय नेता नहीं था, इसलिए पहले दिन से ही देश में अराजकता फैलने लगी, विदेशियों ने दख़ल दिया, देश के भीतर अपनी मर्ज़ी चलाने वाले मैदान में कूद पड़े, लगभग 15 बरस तक देश में अराजकता थी, उसके बाद क्रूर रज़ाशाही डिक्टेटरशिप को सत्ता मिली यानी संविधान क्रांति पत्र पर दस्तख़त और ईरान में रज़ा ख़ान जैसे क्रूर, बेरहम और पिटठू तानाशाह के सत्ता में आने के बीच लगभग 15 साल से ज़्यादा समय नहीं बीता और रज़ा पहलवी के सत्ता में आते ही ईरानी क़ौम की सारी मेहनत पर पानी फिर गया। प्रथम पहलवी शासन की सब से अहम पहचान, कि जो लगभग 4 बरस तक प्रधानमंत्री और सेना के कमांडर के रूप में था और उसके बाद फिर वह शाह के रूप में शासन करने लगा, एक तरफ़ तो क्रूर तानाशाह की थी जो कमज़ोरों पर अत्याचार करता था और अपनी जनता को दबाव में रखता था लेकिन दूसरी तरफ़ विदेशियों के आगे सिर झुकाए रहता और अपमान सहता था। रज़ा शाह को अंग्रेज़ सत्ता में लाए थे और जो भी अंग्रेज़ों ने चाहा वही हुआ, राजनीति में भी, कल्चर में भी और देश के संचालन में भी, वे लोग जो चाहते थे देश में वही सब हुआः हमारे राष्ट्रीय संसाधन लूट लिए गये, ख़त्म होने वाला तेल का समझौता 30 बरस के लिए बढ़ा दिया गया, जनता का दमन किया गया, जनता के आंदोलन की अहम वजह यानी दीन और दीनी उलमा के ख़िलाफ़ खुल कर कार्यवाही की गयी और फिर आख़िर में जब उन्हें महसूस हुआ कि रज़ा शाह को हिटलर के जर्मनी में दिलचस्पी हो गयी है, दूसरे विश्व युद्ध के आरंभ के साथ ही जर्मनी जो कुछ कर रहा था उसकी वजह से रज़ाशाह जर्मनी में दिलचस्पी लेने लगा था, तो उन्ही अंग्रेज़ों ने जिन्होंने उसे सत्ता में पहुंचाया था, आए और उसका हाथ पकड़ा और कहाः नौकरी ख़त्म! उसे देश निकाला दे दिया और उसके नालायक़ बेटे को उसकी जगह पर बिठा दिया और वही हाल फिर से हो गया। मुहम्मद रज़ा ने भी अपने बाप की राह पकड़ी, यानी जनता का दमन, मुल्क में बेपनाह घुटन, ईरान के प्राकृतिक संसाधनों की लूट में विदेशियों की मदद, ख़ास तौर पर तेल और विदेशियों के सामने सिर झुकाना, यह सब बातें तो किसी ज़माने में हम कहा करते थे लेकिन बाद में जब पहलवी ख़ानदान के लोगों, और इस परिवार से क़रीब रहे लोगों ने किताबें लिखी तो हम ने देखा कि जो बातें हमें पता थीं और हम कहते थे अब वही बातें वो लोग ख़ुद स्वीकार कर रहे हैं, प्रधानमंत्री की नियुक्ति, विदेशियों के आदेश से, विदेशियों की मर्ज़ी से, कौन से हथियार ख़रीदे जाएं, तेल कैसे बेचा जाए, क़ीमत क्या हो और इसी तरह देश संचालन के और सब मामले विदेशियों के हाथों तय होते थे, लेकिन जनता पर बड़ा दबाव रहता था, यह इन लोगों की नीति थी। यह अहम है, इन बातों पर ध्यान ज़रूरी है। नौबत यहां तक पहुंच गयी कि मुहम्मद रज़ा पहलवी ने एक जनतांत्रिक सरकार को जो संयोग से जनता के वोटो से सत्ता में आयी थी, गिराने के लिए, इस सरकार को ख़त्म करने के लिए, अमरीकियों और अंग्रेज़ों से मदद मांगी ताकि वह विद्रोह कराएं ईरान में और उन्होंने विद्रोह कराया और सरकार को गिरा दिया। इससे बड़ी ग़द्दारी और क्या हो सकती है! यह जनतंत्र जो ईरान में आज आप देख रहे हैं, इस तरह के हालात के ख़िलाफ़ जनता के आंदोलन का फल है। ईरानी जनता ने कभी देश संचालन में भूमिका का अनुभव नहीं हासिल किया था, कभी यह रोल नहीं आज़माया था, इस्लामी इंक़ेलाब ने इमाम ख़ुमैनी के हाथों ईरानी जनता को यह उपहार दिया। इसकी क़द्र करनी चाहिए। यह प्रजातंत्र, यह जनता की भागीदारी, इसकी क़द्र की जानी चाहिए।
हम इस्लामी जम्हूरिया ईरान में इन 40 बरसों से कुछ ज़्यादा समय में दसियों बार चुनाव का आयोजन कर चुके हैं, संसदीय चुनाव, राष्ट्रपति चुनाव, नगर परिषदों का चुनाव, संविधान की विशेषज्ञ परिषद के चुनाव, सुप्रीम लीडर चुनने वाली विशेषज्ञ असेंबली का चुनाव और सारे चुनाव प्रतिस्पर्धा के साथ, पारदर्शिता के साथ, जनता की जोश भरी भागीदारी के साथ, कभी ज़्यादा कभी कम। इसकी अहमियत नहीं है, अहमियत इसकी है कि जनता में जोश है। जनता जोश व उत्साह के साथ पोलिंग बूथों पर आती है, वोट डालती है और यह हमेशा से होता रहा है।
ख़ुदा का शुक्र है कि हालिया चुनाव भी अच्छा हुआ और जनता ने ख़ुदा का शुक्र है योग्य राष्ट्रपति का चयन किया है। आज माननीय ने यहां जो बातें कही हैं, बेहद ठोस, गहरी और इस्लामी प्रजातंत्र के उसूलों की पाबंदी की निशानी हैं। अल्लाह से दुआ है कि वह उनकी मदद करे। हम सब को अपनी हद के हिसाब से इनकी और इनकी सरकार की मदद करना चाहिए ताकि यह बड़े काम कर सकें। जी तो यह तो अस्ली मामले के बारे में हमारी बातें थीं।
मैं अब कुछ सिफ़ारिशें करना चाहता हूँ कि जो सरकार और उन ओहदेदारों से हैं जो इन्शाअल्लाह अहम ओहदे संभालेंगे और इसी तरह यह आम जनता के लिए भी हैं और हम ख़ुद को और दूसरे सभी को यह सिफ़ारिश कर रहे हैं।
पहली सिफ़ारिशः हमारा देश एक बड़ा देश है, हमारा राष्ट्र महान राष्ट्र है। हमारी जनता में, जो लोग नयी सोच रखते हैं, नयी पहल कर सकते हैं, अनुभव रखते हैं, नयी राय के मालिक हैं वो अनगिनत हैं, आप जब दूसरों की बातें सुनें तो इतनी नयी बातें, नयी सोच, नयी पहल, विभिन्न प्रकार और वर्गों के लोगों से सुनने में आती है कि इन्सान हैरत में पड़ जाता है। लिखित सुझाव जो दिये जाते हैं, सामने आकर जो बाते मुझे बताते हैं, आपत्ति के तौर पर जो कहते हैं, सुझाव के रूप में जो बातें पेश करते हैं यह सब कुछ इस लिहाज़ से भी हमारे लिए अच्छी ख़बर है कि इससे नयी सोच, नयी पहल, अच्छे अनुभव और भविष्य की राह का पता चलता है। यह योग्यता हमारे देश में है। मैं कह रहा हूँ कि यह एक विशाल राष्ट्रीय पूंजी है और इससे फ़ायदा उठाया जाना चाहिए। सम्मानीय सरकार और सम्मानीय राष्ट्रपति इन्शाअल्लाह, जनता के लिए, जनता के साथ और जनता के बीच इस विशाल जन संसाधन से लाभ उठाएंगे और उसे उन मक़सदों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करेंगे जिनका ज़िक्र उन्होंने किया है।
यक़ीनी तौर पर इस प्रकार के श्रमबल के साथ ही देश में प्राकृतिक और भौतिक पूंजी भी मौजूद है और बहुत ज़्यादा है। हमारे देश के संसाधन उस से बहुत ज़्यादा हैं जितना हम ने अब तक फ़ायदा उठाया और इस्तेमाल किया है, उससे बहुत ज़्यादा हैं। हम इन श्रम बल और अपने संसाधनों के सहारे बहुत बड़े बड़े काम कर सकते हैं, बस उसके लिए शर्त यह है कि पक्का संकल्प हो, हम गंभीरता के साथ काम को आगे बढ़ाएं और इंशाअल्लाह अच्छे सहयोगियों का चयन करें। यह मेरी पहली सिफ़ारिश है।
मेरी दूसरी सिफ़ारिश जेहादी काम से संबंधित है। मैं तो यह कह रहा हूँ कि जेहादी जज़्बे से समस्याओं के पहाड़ को भी हटाया जा सकता है। जेहादी काम का क्या मतलब है? यानी बिना थके, बिना किसी फल की आशा और बिना एहसान जताए काम करना, अपना मक़सद मानवीय ज़िम्मेदारी निभाना और अल्लाह के लिए काम करना समझना और आगे बढ़ते रहना, यह है जेहादी काम का मतलब। यक़ीनी तौर पर क़ानूनी और विभागीय दायरे हैं जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए, लेकिन जेहादी काम क्वालिटी है, काम का तरीक़ा है। 100 फ़ीसद क़ानून के दायरे में रह कर भी जेहादी काम किया जा सकता है और ग़ैर जेहादी काम भी 100 फ़ीसद क़ानूनी दायरे में रह कर किया जा सकता है, बहुत से हैं जो क़ानून की पाबंदी करते हैं, लेकिन काम आगे नहीं बढ़ता, काम नहीं होता। मोहतरम प्रेसिडेंट साहब कुछ दिनों पहले इसी बारे में बात कर रहे थे कि बहुत से विभागों में कर्मचारी बैठा रहता है जिसकी कुछ ज़िम्मेदारियां हैं, वह जवाबदेह है, लेकिन सुबह से शाम तक उसके काम का नतीजा, कुछ ख़ास नहीं होता, किसी काम का नहीं होता, इस बारे में मुझ से बात कर रहे थे जो सही बात है। जेहादी काम इसके विपरीत होता है। हम ने जेहादी काम के ज़रिए अपने देश में बड़े बड़े कारनामे अंजाम दिये हैं, 8 बरसों तक चलने वाला हमारा पाकीज़ा डिफ़ेंस जेहादी काम की मदद से जारी रहा, इन 30-40 बरसों में दुश्मनों की तरफ़ से तरह तरह की साज़िशों को जेहादी काम की मदद से नाकाम बनाया गया है। शहीद रईसी (रिज़वानुल्लाह अलैह) जेहादी काम करने वाले आदमी थे, सच में न दिन देखते थे न रात, सच में वह जो कुछ करते थे उस पर उन्हें तारीफ़ की ख़्वाहिश नहीं थी, इसे हमने क़रीब से देखा है, यह महसूस किया है। सही अर्थ में वो कोशिश करते थे, काम करते थे, जो कुछ उनसे बन पड़ता था करते थे, बहुत से लोगों को पता भी नहीं चलता था, यानी ऐसे काम नहीं होते थे जो जनता की नज़रों के सामने आएं, लेकिन वह काम करते थे। यह हमारी दूसरी सिफ़ारिश थी जो जेहादी काम के बारे में थी, एक मुजाहिद की तरह मैदान में क़दम रखना और दूर से आदेश देकर काम कराने से बचना। अगर कोई बड़ा अधिकारी दूर से काम कराना चाहे तो यह नहीं होता, काम के लिए मैदान में उतरना पड़ता है।
अगली सिफ़ारिशः देश के अहम विभागों में सहयोग। इसके बिना तो काम ही नहीं हो सकता। संसद को चाहिए कि वह सरकार की मदद करे, सरकार को चाहिए कि वह संसद की संवेदनशीलता का ध्यान रखे, न्यायपालिका को जहाँ भी ज़रूरत हो सक्रिय और उपस्थित रहना चाहिए, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ को उनके कर्तव्य के लिहाज़ से जहाँ भी सरकार को ज़रूरत हो, जहाँ भी जनता को ज़रूरत हो वहाँ मौजूद रहे, सब को अपना रोल अदा करना चाहिए। यह जो तीनों पालिकाओं के प्रमुखों की बैठकें होती हैं वह बहुत अच्छा मौक़ा है। मैंने पहले भी महत्वपूर्ण विभागों के प्रमुखों से सिफारिश की है, इस वक़्त भी जो लोग बैठे हैं उनसे सिफ़ारिश करता हूँ कि तीनों पालिकाओं के प्रमुखों की बैठकों और विचार विमर्श को गंभीरता से लें, यह काम, बहुत अच्छा काम है, यह हमारा अनुभव है जिससे बरसों हमें फ़ायदा हुआ है।
अगली सिफ़ारिश, प्राथमिकताओं का ध्यान रखना है। यक़ीनी तौर पर सब को पता है कि मैं, सांस्कृतिक मामलों में बहुत संवेदशनशील हूँ, सांस्कृतिक और सामाजिक मुद्दे बहुत ज़्यादा अहम हैं, शायद सब से ज़्यादा इसका महत्व है, लेकिन आज, समय के लिहाज़ से, प्राथमिकता आर्थिक मुद्दों को है। एक योजनाबद्ध आर्थिक प्रयासों की ज़रूरत है। यक़ीनी तौर पर पिछली सरकार में कुछ काम हुए हैं जो अच्छे हैं और उन्हें जारी रहना चाहिए, और उनके अलावा और भी नये काम किये जाने चाहिए।
आर्थिक मुद्दों में, राष्ट्रीय मुद्दों के स्तर पर भी इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए, देश की करेंसी की क़ीमत, उत्पादन, निवेश, व्यापार के माहौल मतलब यह कि बुनियादी मुद्दों पर ही ध्यान दिया जाना चाहिए और इसके साथ ही जनता की आर्थिक स्थिति में सुधार पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए जो इस वक़्त की ज़रूरत और जल्दी नतीजा देने वाला काम है। इस बारे में बहुत कुछ किया जा सकता है, और इंशाअल्लाह किया जाएगा। यक़ीनी तौर पर दोनों मैदानों में काम हुए हैं और अच्छा यह होगा कि यह काम जारी रहें।
अगली सिफ़ारिश, चुनाव की वजह से जनता की भावना से पैदा होने वाले माहौल के बारे में है, यह सिफ़ारिश जनता और राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं से है। ज़ाहिर सी बात है कि चुनाव एक चुनौती वाला काम है, चुनाव में दो पक्ष होते हैं और दोनों के अपने अपने समर्थक होते हैं, तो चैलेंज पैदा होते हैं, दो धुव्र बनाने की इच्छा पर ध्यान नहीं देना चाहिए, न ही उसके हिसाब से कुछ काम करना चाहिए, यह मेरी अहम सिफ़ारिश है। वो भावनाएं जो चुनाव के दौरान एक दूसरे से बहस पर तैयार करती थीं, जारी न रहने पाएं, इन भावनाओं को जारी न रहने दें। जी चुनाव की ख़ूबी यही तो हैः एक को वोट मिलता है, एक को वोट नहीं मिलता, यह चुनाव का परिणाम है। चुनाव का मतलब यही है, मिसाल के तौर पर एक वह जिसे आप चाहते हैं जीत जाता है, कोई किसी और को चाहता था वह नहीं जीतता, यह स्वाभाविक है, इससे नफ़रत नहीं पैदा होनी चाहिए, इसे मतभेद, फूट और दूरी की वजह नहीं बनना चाहिए। इस्लामी जम्हूरिया ईरान में विभिन्न विचारधारा के लोग, इंक़ेलाब के शुरु से अब तक विभिन्न प्रकार के विचार रखने वाले लोग आगे आए, पीछे गये, आज जो जीते हैं, कल नहीं जीतेंगे इसके उलट भी यही है, यह वही है जिसका ज़िक्र कुरआन में किया गया है कि “यह दिन हैं जिन्हें हम लोगों के लिए अदलते बदलते रहते हैं”। (2) यह परीक्षा है। मैं कहता हूँ कि यह जो सारे चुनाव हुए हैं, उन में ईरानी जनता जीती है, हमारे यहाँ हार किसी की नहीं हुई है। जो लोग मैदान में आए, किसी एक प्रत्याशी का समर्थन किया और उस प्रत्याशी को जीत नहीं मिली, तो यह लोग हारे नहीं हैं, यह लोग भी जीते हैं, यह लोग ईरानी जनता का हिस्सा हैं न! ईरानी जनता की जीत हुई है। इस बुनियाद पर चुनाव के दौरान की बहस व चर्चा के बीच अगर दिल में कुछ द्वेष पैदा हो गया हो, मनमुटाव हो गया हो तो उसे अब जारी नहीं रहना चाहिए। न उस प्रत्याशी को जिसे जीत मिली है, बड़ाई का एहसास होना चाहिए और न ही उस प्रत्याशी को निराश होना चाहिए जिसे हार मिली है। किसी को भी नहीं। न इस प्रत्याशी को बड़ाई का और न ही दूसरे को तुच्छता का आभास होना चाहिए। यह हमारी अगली सिफ़ारिश है जो दर अस्ल सभी राजनीतिक, सामाजिक व चुनावी कार्यकर्ताओं आदि से है।
अगली सिफ़ारिश “मुल्क के अंदर मौजूद क्षमताओं की क़द्र और उन पर भरोसा करना” है। यह सिफ़ारिश देश के बड़े ओहदेदारों से हैं जिनके हाथ में देश का संचालन होगा। उन्हें चाहिए कि देश की क्षमताओं को महत्व दें। “हम कर सकते हैं” एक हमेशा रहने वाला नारा है, सच्चाई भी यही है। लेकिन हमारी इस बात का यह मतलब नहीं है कि वे विदेशी क्षमताओं से लाभ ही न उठाएं, कोई भी समझदार इंसान यह बात नहीं कहेगा। सारे संसाधनों को इस्तेमाल करना चाहिए, देश के विदेश के, दोस्तों के। कभी कभी तो हमारे दुश्मन भी कोई ऐसा काम कर जाते हैं जो हमारे फ़ायदे में होता है, उससे भी फ़ायदा उठाया जाना चाहिए। फ़ायदा उठाना चहिए, लेकिन मुल्क की क्षमताओं की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए, देश के किसी मुद्दे को, किसी विदेशी मुद्दे पर निर्भर नहीं करना चाहिए, यह हमारा कहना है, अतंरराष्ट्रीय स्तर पर जो काम भी कर सकते हैं वह करें, अच्छे काम करें, सम्मान व ताक़त बढ़ाने वाले काम करें, अच्छे लोगों का काम है तो वह भी करें, लेकिन मुल्क की क्षमता, मुल्क की ताक़त, मुल्क की नयी सोच की अनदेखी न की जाए, इस पर मैं ज़ोर देता हूँ और इसकी मिसालें वैसे बहुत ज़्यादा हैं।
अगली सिफ़ारिश, विदेश नीति के बारे में है। विदेश नीति के बारे में सब से पहली बात जो मैं कहना चाहता हूँ वह यह हैः अंतरराष्ट्रीय और विशेषकर क्षेत्रीय स्तर पर घटने वाली घटनाओं पर हमारा देश व्यवहार सक्रिय हो, असरदार प्रतिक्रिया दिखाए, रक्षात्मक नहीं। विभिन्न प्रकार की घटनाएं, राजनीति के मैदान में, साइंस के मैदान में, साइंस के क्षेत्र में असाधारण और हैरत-अंगेज़ अविष्कार वग़ैरा के मामले में, मिसाल के तौर पर जैसे एआई, दुनिया में इस मैदान में काम हो रहा है, इसके सिलसिले में सक्रिय व्यवहार अपनाएं, पीछे न रहें, असरदार काम करें। दुनिया में जो कुछ हो रहा है उसकी अनदेखी, इलाक़े में जो कुछ हो रहा है उसकी अनदेखी करना सही नहीं है। जो भी हो उसके प्रति हमारा एक स्टैंड होना चाहिए, और इस रुख़ को खुल कर, पारदर्शिता और पूरी ताक़त के साथ, सम्मानीय ढंग से प्रकट करना चाहिए ताकि दुनिया को उसके बारे में पता चले और उसकी समझ में आए कि इस बारे में इस्लामी जम्हूरिया ईरान का क्या कहना है। 13वीं सरकार ने इस बारे में अच्छे काम किये हैं। अल्लाह रहमत करे, सेवा की राह में शहीद होने वाले मरहूम अमीर अब्दुल्लाहिया पर, (3) बहुत अच्छे राजनयिक थे, बहुत अच्छे वार्ताकार थे, अच्छी कोशिश और काम करते थे, मैं क़रीब से उनकी गतिविधियों को देखता था, अच्छे जा रहे थे, अच्छा काम कर रहे थे। इस तरह की कोशिश और काम इन्शाअल्लाह जारी रहना चाहिए।
विदेश नीति के बारे में एक बात यह है कि हम विदेशी संबंधों में कुछ प्राथमिकताएं रखते हैं, एक तरजीह हमारे पड़ोसी हैं। हम उन देशों में शामिल हैं जिनके विभिन्न प्रकार के कई पड़ोसी देश हैं, यह हमारे मुल्क की एक ख़ूबी भी है। हमारे चारों तरफ़ लगभग 14 पड़ोसी हैं, यह हमारे लिए एक अच्छा अवसर है। हमें पड़ोसियों के साथ संबंधों पर काम करना चाहिए, कोशिश करना चाहिए, यह हमारी एक तरजीह है।
एक और तरजीह, उन देशों से संबंध है जो हमारी कूटनीति का दायरा बढ़ा सकते हैं, जैसे अफ़्रीक़ी देश, एशियाई देशा, यह देश हमारी कूटनीति के मैदान को बड़ा करते हैं, इन देशों से संबंध हमारी प्राथमिकताओं में से है।
एक और तरजीह उन देशों के साथ मज़बूत संबंध रखना है जिन्होंने दबाव के इन कड़े बरसों में हमारा साथ दिया, हमारी मदद की, चाहे यूएनओ में हो, या उससे बाहर, या फिर काम के मैदान में, आर्थिक सहयोग वग़ैरा के क्षेत्र में, जिन देशों ने हमारा साथ दिया, हमें उनका शुक्रिया अदा करना चाहिए, हमें उनसे अपने संबंध मज़बूत करने चाहिए, यह नीति हमारी तरजीह है, इसी तरह के बहुत से काम हैं इस क्षेत्र में जिन्हें तरजीह हासिल है।
यक़ीनी तौर पर यह नहीं है कि हम कहें कि हमारे अंदर कुछ देशों के प्रति विरोध और दुश्मनी की भावना है, मिसाल के तौर पर युरोपीय देश कि जिनका ज़िक्र मैंने प्राथमिकताओं में नहीं किया, नहीं ऐसा नहीं है। यह जो मैंने युरोपीय देशों का प्राथमिकताओं में ज़िक्र नहीं किया तो उसकी वजह यह है कि इन देशों ने हालिया कुछ बरसों के दौरान हमारे साथ अच्छा रवैया नहीं अपनाया, हमारे प्रति उनका रवैया अच्छा नहीं रहा। प्रतिबंधों के मामले में, तेल के मामले में, विभिन्न मामलों में, मानवाधिकार जैसे बेबुनियाद बहानों के तहत हमारे साथ बुरा रवैया अपनाया, अगर उनका इस तरह का रवैया न हो तो फिर यह देश भी हमारी प्राथमिकताओं में शामिल हैं। यह देश भी उन देशों में शामिल हैं जिनसे संबंध व संपर्क हमारी तरजीह है। यक़ीनी तौर पर कुछ देश हैं जिनकी तरफ़ से हमे दी जाने वाली तकलीफ़ों को, उन की शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियों और व्यवहार को हम भूलेंगे नहीं। यह तो इस मामले पर बात हुई। यह मेरी सिफ़ारिशें थीं जिनका मैंने ज़िक्र किया।
आख़िरी बात भी कहता चलूं जो ग़ज़्ज़ा के बारे में है जो अब अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है। किसी ज़माने में फ़िलिस्तीन का मुद्दा, केवल इस्लामी देशों का मुद्दा था, आज फ़िलिस्तीन और ग़ज़्ज़ा का मामला, एक सर्वाजनिक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है। यह मुद्दा आज, अमरीकी कांग्रेस के अंदर से लेकर, यूएनओ और पेरिस ओलंपिक्स और पूरी दुनिया में छाया हुआ है और फैल चुका है। ज़ायोनी शासन, अपराधियों के गैंग का बेहद ख़राब रूप है जो वह ज़ाहिर कर रहा है और सामने ला रहा है। यह सरकार नहीं है, यह अपराधियों का गिरोह है, क़ातिलों का, आतंकवादियों का एक गुट हैं। यह लोग, हत्या, क्रूरता, अपराध, अजीब अजीब तरह के अपराधों में, दुनिया में अपराध के इतिहास में नये नये अध्याय जोड़ते हैं, यह लोग नये अध्याय बनाते हैं। आज ज़ायोनियों के भारी बम उन लोगों पर गिराए जाते हैं कि जिन्होंने एक गोली भी नहीं चलायी है, झूले में मौजूद बच्चे, पांच साल, छह साल के बच्चों पर, महिलाओं पर, अस्पतालों में भरती बीमारों पर, इन लोगों ने तो एक गोली भी नहीं चलायी होती है, लेकिन इन पर बम गिराए जा रहे हैं, क्यों? यह अपराध वह है जिसकी मिसाल नहीं मिलती। प्रतिरोध मोर्चे की ताक़त हर दिन बढ़ रही है और खुल कर सामने आ रही है, ज़ायोनी दुश्मन, अमरीका की पूरी मदद के बावजूद, कुछ ग़द्दारों की तरफ़ से दी जाने वाली हर तरह की मदद के बावजूद, प्रतिरोध मोर्चे को ख़त्म नहीं कर सके, उन्हें हरा नहीं सके। जो मक़सद एलान किया गया था वह हमास को जड़ से ख़त्म करना था, आज हमास, हमास और जेहाद, कुल मिलाकर फ़िलिस्तीन का प्रतिरोध मोर्चा, पूरी ताक़त से खड़ा है, यह लोग उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए तो ग़ज़्ज़ा की निहत्थी जनता पर बम बरसा रहे हैं! दुनिया को इस बारे में गंभीर फ़ैसला करना चाहिए। सरकारों को, क़ौमों को, राजनीतिक व वैचारिक हस्तियों को, विभिन्न स्तरों पर फ़ैसला करना चाहिए। इस तरह की सच्चाइयों के मद्देनज़र इन्सान की समझ में आता है कि कुछ दिनों पहले अमरीकी कांग्रेस ने अपने माथे पर कैसा भयानक कलंक लगा लिया कि जो इस अपराधी की तक़रीर सुनी,(4) और यह बहुत शर्म की बात है।
उम्मीद है कि अल्लाह फ़िलिस्तीन की मज़लूम क़ौम को विजयी करेगा। दुआ है कि अल्लाह इस्लामी जम्हूरिया ईरान की महान व जोश से भरी प्यारी जनता को उसके ऊंचे लक्ष्यों तक पहुंचा देगा। ख़ुदा से दिल से दुआ है कि हमारे नये राष्ट्रपति और उनकी सरकार की मदद करे ताकि वो जो चाहते हैं वह काम कर सकें, जिनका एलान करते हैं और जो कहते हैं वह कर सकें, इन्शाअल्लाह यह बड़े बड़े काम हो जाएंगे और ईरानी राष्ट्र का सम्मान बढ़ाएंगे। अल्लाह से इमाम ख़ुमैनी, शहीदों, शहीद सुलैमानी, शहीद रईसी और उनके साथियों के लिए ऊंचे दर्जे की दुआ है और अल्लाह से दुआ है कि वह हमें भी शहीदों के कारवां से मिला दे।
वस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातुहू