गुरूवार 25 जुलाई 2024 को वेबसाइट Khamenei.ir ने निर्वाचित राष्ट्रपति डाक्टर मसऊद पिज़िश्कियान से विस्तृत इंटरव्यू लिया, जिसके कुछ भाग यहां पेश किए जा रहे हैं।
सवालः जनाब डाक्टर पिज़िश्कियान! अनेक विभागों के साथ ज़्यादा से ज़्यादा सहयोग से मुल्क के मामलों को आगे बढ़ाने और सिस्टम की आम नीतियों को लागू करने के बारे में आपके नज़रिए और साथ ही हाल ही में संसद मजलिसे शूराए इस्लामी के सदस्यों से मुलाक़ात में इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की ओर से मंत्रीमंडल के गठन की प्रक्रिया में संसद और सरकार के बीच समन्वय और सहयोग पर ताकीद किए जाने के बाद, आपके पास समन्य और सार्थक सहयोग को व्यवहारिक बनाने का क्या प्रोग्राम है?
जवाबः बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीमः सीधे रास्ते के उसूलों में से एक उसूल मुसलमानों के बीच एकता व समरस्ता है; आप क़ुरआन मजीद को देखिएः " और जो शख़्स ख़ुदा से वाबस्ता हो गया वह ज़रूर सीधे रास्ते पर लगा दिया गया" (सूरए आले इमरान, आयत-101) आप जब आयतों को देखते हैं तो हमेशा मुसलमानों के दरमियान एकता की ताकीद की गयी है। आज हमारे मुल्क के किसी हिस्से में मुश्किलें हैं तो इसकी वजह वे मतभेद हैं जिन्हें हम बढ़ावा दे रहे हैं। हमें इन मतभेदों को ख़त्म करना चाहिए।
मंत्रीमंडल के सदस्यों को संसद में पेश करने की प्रक्रिया में यह काम करने के लिए हमने सभी गिरोहों, दलों और राजनैतिक शख़्सियतों से कहा कि वे अपने मद्देनज़र ऐसे लोगों का, जो सरकार की मदद कर सकते हैं, नाम पेश करें ताकि राष्ट्रीय सहमति बन सके। इनमें से हर एक ने, चाहे वो सुधारवादी हों, सिद्धांतवादी हों या उनके किसी राजनैतिक धड़े से कोई संबंध न हो, या राजनैतिक शख़्सियत हों, लिस्ट पेश की। अब इन सूचियों से छांटकर हर पद के लिए चार पाँच लोगों की शार्ट लिस्ट तैयार की जा रही है।
सवालः "एक अच्छी ख़ूबी जो आप में है और जो चुनावी अभियान के दौरान भी लोगों ने देखी, वह हाशिए में न पड़ना और उकसाने से बचना और माहौल को शांतिपूर्ण रखना था। चूंकि मुल्क के संचालन के लिए सुकून और उकसावे से दूरी ज़रूरी है, तो अगले चार साल में, जब मुल्क की कार्यपालिका की लगाम आपके हाथों में होगी, इस सुकून को बरक़रार रखने के लिए आपकी क्या योजना और विचार हैं?"
जवाबः हमारे पास इस्लामी इंक़ेलाब के नेता की ओर से पेश की गयीं जनरल नीतियां हैं, चुनावी बहसों में भी, मैंने कहा था कि ये नीतियां सही रास्ते का मार्गदर्शन करने वाली हैं और हमारी मंज़िल को तय करती हैं। इसके बाद, एक प्रोग्राम है जो हमारे माहिर लोगों, प्रबंधकों और ज़िम्मेदारों को इन नीतियों की दिशा में लिखना चाहिए। स्वाभाविक तौर पर अगर हम इसको क़ुबूल करें और एक क़ानून बनाएं जो सिस्टम की नीतियों की दिशा में हो और ख़ुद को उस पर अमल करने के लिए प्रतिबद्ध समझें और फिर उस दिशा में आगे बढ़ना चाहें, तो मतभेद व झगड़ा निरर्थक है।
जब तक हम किसी निश्चित निर्णय और लक्ष्य पर न पहुंच जाएं, तब तक हमारी अपनी रूचि और टेस्ट, ख़याल और कोई ख़ास दिशा हो सकती है लेकिन जब वह नीति और क़ानून में बदल जाए तो मतभेद करने और उसे न मानने से अराजकता के सिवा कुछ और नतीजा नहीं निकलेगा। मैं और मेरी सरकार और सभी दूसरे विभाग, अगर उन नीतियों पर क़ायम रहे और जो प्रोग्राम हम लिखें वे उन नीतियों की दिशा में हो, तो मतभेद या फूट और झगड़ा निरर्थक है। अगर कोई कहे कि इस क़ानूनी रास्ते से बेहतर भी एक रास्ता है तो उसकी भी इल्मी तरीक़ों से समीक्षा की जा सकती है।
मुल्क की दिशा उस लक्ष्य की ओर होनी चाहिए जिसके ज़रिए हमें मुल्क में कामयाब होना है। उन आम नीतियों में मौजूद चीज़ें, बहुत क़ीमती लक्ष्य हैं। नतीजे में संसद, सरकार, न्यायपालिका और दूसरे विभाग और सुरक्षा विभाग सबको उन आम नीतियों के लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक दूसरे से पूरा सहयोग करना चाहिए।
सवालः जनाब डाक्टर पिज़िश्कियान साहब! आपने चुनावी अभियान के दौरान बार बार बल दिया कि अवाम और मुल्क के मसलों और मुश्किलों का हल आपकी सरकार की पहली प्राथमिकता होगी, इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने भी इस बिंदु का सपोर्ट किया और इससे सहमति जतायी। अलबत्ता इस्लामी इंक़ेलाब के नेता चुनाव से पहले भी इस मसले पर बल देते थे और आपकी कामयाबी के बाद भी उन्होंने इस मसले पर बल दिया। उन्होंने कुछ सूचकांक और इंडीकेटर्ज़ का ज़िक्र किया और सांसदों से मुलाक़ात के दौरान मंत्रीमंडल के सदस्यों के मानदंडों के बारे में यह जुमला कहा कि कौन मैदान में उतरना चाहता है और आर्थिक, सांस्कृतिक और ऐसे ही दूसरे मैदानों को अपने हाथ में लेना चाहता है। इस लक्ष्य को हालिस करने और अवाम की मुश्किलों को हल करने के लिए एक प्रभावी व उपयोगी सरकार के गठन के लिए आप अपने मंत्रीमंडल और सरकार में इन मानदंडों और इस नज़रिए को किस तरह व्यवहारिक करेंगे?
जवाबः इस वक़्त मुल्क में मसला यह है कि हम लोगों को अपने संबंधों, दोस्ती या अपने मद्देनज़र मानदंड के मुताबिक़ चुनते हैं लेकिन इल्मी लेहाज़ से कुछ मानदंड हैं जो शायद हमारे दिमाग़ में न समाएं। हमने कहा कि यूनिवर्सिटियों के मैनेजमंट के प्रोफ़ेसर ऐसे मानदंड तैयार करें जिनके ज़रिए हम इन लोगों को चुन सकें। कुछ मानदंड तैयार किए गए जिनका हमने एलान भी किया। फिर हमने सभी से कहा कि अगर किसी को इन मानदंडों को लेकर कोई आपत्ति हो तो वो बताए ताकि अगर कुछ कम हैं तो उन्हें बढ़ाया जाए और अगर कोई मानदंड ग़लत है तो उसे ख़त्म किया जाए। आख़िरकार हमने कुछ मानक तैयार कर लिए।
मिसाल के तौर पर कितने साल काम किया है, मिसाल के तौर पर जो काम अंजाम दिया है उसका असर कितना रहा है, मिसाल के तौर पर ईमानदारी और किसी तरह का नकारात्मक रिकार्ड न होना। तो पहला क़दम यह था कि मानक तय करें।
दूसरी बात यह थी कि हम उन कसौटियों को समाज के सभी सक्रिय व अहम लोगों के सामने पेश करें और कहें कि वे जिन लोगों को जानते हैं, इन कसौटियों के मुताबिक़, उनका नाम हमारे पास भेजें। तीसरा क़दम यह था कि इन पहचनवाए गए लोगों को इन मानकों के आधार पर छांटा जाए और उन्हें नंबर दिए जाएं। और फिर जब वे छांट लिए जाएं तो इस्लामी इंक़ेलाब के नेता से ज़रूरी परामर्श किया जाए ताकि हम उस अस्ल नतीजे तक पहुंच सकें जिसे हम तलाश कर रहे हैं। हमने अपनी पूरी कोशिश की कि सभी राय और धड़ों की इन मानकों के आधार पर समीक्षा करें और मद्देनज़र लोगों को चुनें ताकि हम अपना काम कर सकें।
सवालः मंत्रीमंडल के लिए जिन लोगों को चुनना है उनके सिलसिले में आपकी कसौटियां और प्राथमिकताएं क्या थीं?
जवाबः क़ानून की पाबंदी, सच्चाई, ईमानदारी, लोकप्रियता, आम नीतियों पर यक़ीन, क़ानून पर भरोसा और इस्लामी गणराज्य सिस्टम पर भरोसा। बहरहाल अगर कोई शख़्स ईमानदार और सच्चा न हो तो उसे चुना नहीं जा सकता। अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम ने मालिक अशतर से फ़रमायाः ऐ मालिक! हक़ के मामले में बीच का रास्ता अपनाओ क्योंकि अगर तुम बहुत ज़्यादा बारीकी से काम लेना चाहोगे तो उस पर कोई पूरा नहीं उतरेगा, अगर इंसाफ़ को अली की तरह लागू करना चाहोगे तो नहीं कर पाओगे। इसलिए वे सिफ़ारिश करते हैं कि न्याय को फैलाने और अवाम को राज़ी रखने वाले काम करने की कोशिश करो यानी वह काम जिसमें बहुमत की रज़ामंदी व ख़ुशी हो। अगर आप बहुत ज़्यादा संवेदनशीलता का प्रदर्शन करेंगे तो मासूम इंसान ढूंढ नहीं पाएंगे।
सवालः आज कल मुल्क और अवाम के सबसे बड़े मुद्दों में से एक आर्थिक स्थिति है। आप और आपकी आर्थिक टीम के पास लोगों पर से आर्थिक बोझ कम करने और ईरानी फ़ैमिलियों की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने के लिए कौन सी अस्ली, त्वरित और मध्यकालिक प्राथमिकताएं और प्रोग्राम हैं।
जवाबः हमारे मुल्क में ऊर्जा का असंतुलन है और इस वक़्त हम पेट्रोल ख़रीदने के लिए 8 अरब डालर ख़र्च कर रहे हैं। यह सिलसिला कब तक चल सकता है? एक और मिसाल बिजली की खपत की है। हम जितनी ऊर्जा और बिजली वग़ैरह इस्तेमाल कर रहे हैं, ये इल्मी व वैज्ञानिक नज़र से सही काम नहीं है। एक ओर हम अपने कारख़ानों को बिजली की आपूर्ति नहीं कर सकते और दूसरी ओर हम बिजली, गैस और ऊर्जा के दूसरे संसाधनों का जितना मन करता है इस्तेमाल करते हैं। तो सबसे पहले हमें अपने व्यवहार को मुल्क में पैदा होने वाले इस असंतुलन के सिलसिले में सही करना होगा। यह चीज़ समन्वय व समरस्ता से मुमकिन है।
सवालः तो जैसा आप कह रहे हैं, असमन्वय को हल करने के लिए, तनाव आपकी सरकार की रेड लाइन है?
जवाबः अगर हम आपस में समन्वित हों और हम एक दूसरे को क़ुबूल करें तो एक दूसरे की मदद करेंगे।
सवालः यह सही है कि पिछले कुछ बरसों में मुल्क की सबसे बड़ी मुश्किल अर्थव्यवस्था रही है और इसने मुल्क के प्रबंधकों, नीति निर्धारकों और अवाम का ध्यान अपनी ओर केन्द्रित कर रखा है लेकिन अहम आर्थिक मुद्दों के साथ संस्कृति का मुद्दा भी असाधारण अहमियत रखता है और इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने हालिया बरसों में अर्थव्यवस्था के साथ साथ संस्कृति के विषय पर भी बल दिया है। आख़िरी सवाल के तौर पर हम यह जानना चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था जैसे मुल्क के सभी मुद्दों तथा तुरंत ध्यान खींचने वाले मुद्दों के साथ ही आप अपनी सरकार की सांस्कृतिक प्राथमिकताओं और नीतियों को कैसे बयान करेंगे?
जवाबः मैं जब एक प्रबंधक, माहिर या धार्मिक ज़िम्मेदार की हैसियत से किसी को बर्ताव, नैतिकता या किसी ख़ूबी की शिक्षा देना चाहूं तो सबसे पहले इंसानियत और नैतिकता मेरे अपने भीतर मौजूद होनी चाहिए। इसलिए अगर कल्चर को ठीक करना है तो उसकी शुरूआत हमें ख़ुद से करनी होगी। अल्लाह क़ुरआन में पैग़म्बरे इस्लाम (सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम) से फ़रमाता हैः "ऐ रसूल! यह अल्लाह की बड़ी मेहरबानी है कि आप इन लोगों के लिए इतने नर्म मेज़ाज हैं। वरना अगर आप कठोर स्वभाव के और संगदिल होते तो ये सब आपके गिर्द व पेश से दूर हो जाते।" (आले इमरान, आयत-159) यह मेरे जैसों की बात नहीं है, यह बात अल्लाह ने कही है और इसमें किसी तरह का शक व संदेह नहीं है। अल्लाह अपने पैग़म्बर से फ़रमा रहा है कि अगर आप दुर्व्यवहार करते तो कोई भी आपके आस पास इकट्ठा न होता। फिर हम जैसों की तो कोई हैसियत ही नहीं है।
तो कल्चर के मामले में सबसे पहले हमें ख़ुद को ठीक करना चाहिए। ज़रूरी नहीं कि हम दूसरों की कमियों को ढूंढें, पहले हम अपनी कमियों को ढूंढें। अगर मैं एक ठीक आदमी हूं और मेरा अख़लाक़ अच्छा हो, अगर मैं लोगों का भला चाहता हूं और लोग यह समझ जाएं कि मैं उनका भला चाहता हूं तो फिर ऐसा नहीं है कि वे मुझे न चाहें। इसलिए कल्चर के सिलसिले में हमें दूसरों की कमियां निकालने के बजाए ज़्यादातर ख़ुद पर ध्यान देना चाहिए। दर्द भी हम ख़ुद हैं और इलाज भी हम ख़ुद हैं।
डाक्टर साहब! आपकी इजाज़त से में कुछ लफ़्ज़ कहूंगा, आपके मन में जो पहली चीज़ आती है, वह बताएं।
परचम- ईरान
अवाम- एकता व समरस्ता
क़ासिम सुलैमानी -गौरव, आज़ादी और ईरानी ग़ैरत
डाक्टर साहब हम बहुत शुक्रगुज़ार हैं।
अल्लाह आपको कामयाब करे।