ख़ूज़िस्तान प्रांत के शहीदों पर राष्ट्रीय सम्मेलन की आयोजक कमेटी ने रहबरे इंक़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई से मुलाक़ात की। 24 फ़रवरी 2024 को इस मुलाक़ात में आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने ख़ूज़िस्तान प्रांत और शहीदों के विषय पर अहम बिंदुओं को रेखांकित किया।
तक़रीरः
बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व नबी हज़रत अबिल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे ज़्यादा पाक, पाकीज़ा और चुनी हुई नस्ल पर ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर।
प्यारे भाई बहनो, प्रांत के सम्मानीय अधिकारियो, अज़ीज़ व सम्मानीय धर्मगुरूओ! आप सबको ख़ुश आमदेद कहता हूं। इमाम महदी अलैहिस्सलाम -जिन पर हमारी जानें कुर्बान- के शुभ जन्म दिवस की मुबारकबाद और बहुत बड़ी ईद की मुबारकबाद पेश करता हूं। इंशाअल्लाह इस बड़े, ऐतिहासिक और बहुत अहम दिन में ये मुलाक़ात, आप सबकी कोशिशों में बर्कत का सबब बनेगी जिन में से कुछ कोशिशों का ज़िक्र किया गया, जो कला संबंधी काम हुए हैं, उनके कुछ नमूने हमने यहाँ देखे।(2) अल्लाह का शुक्र है कि अज़ीज़ शहीदों की याद ने हमारे इमामबाड़ें को रौनक़ दी है, मैं ख़ास तौर पर अज़ीज़ शहीदों के परिवारों का स्वागत करता हूं।
शहीदों की याद मनाने की अहमियत
शहीदों की याद, प्रेरणादायक भी है और हक़ की अदायगी भी है। ईरानी समाज और ईरानी क़ौम पर शहीदों का बहुत ज़्यादा हक़ है। उनके सिलसिले में जो कम से कम काम किया जा सकता है वो यही है कि हम इन अज़ीज़ों की याद मनाएं। आपका काम यानी ख़ूज़िस्तान के 24000 शहीदों की याद मनाने के लिए प्रोग्राम तैयार करना, 24000 एक बड़ी और अहम तादाद है, बहुत ही मुनासिब और सही समय पर किया जाने वाला काम है।
ख़ूज़िस्तान, पाकीज़ा डिफ़ेन्स के दौरान ईरानी क़ौम का फ्रंटलाइन का मज़बूत मोर्चा
ख़ूज़िस्तान के बारे में संक्षेप में कुछ अर्ज़ करूं। पाकीज़ा डिफ़ेंस में, कि ये 8 साल, ईरानी क़ौम का एक बड़ा इम्तेहान था, ख़ूज़िस्तान ने फ्रंटलाइन मोर्चे का किरदार अदा किया, ये बहुत अहम बात है। वाक़ई ख़ूज़िस्तान, फ्रंटलाइन का मज़बूत मोर्चा था। ख़ुर्रमशहर एक तरह से, आबादान दूसरी तरह से, देज़फ़ूल किसी और तरह से, अहवाज़ एक और तरह से। शादगान, हमीदिये, सूसेनगेर्द जैसे मुख़्तलिफ़ शहरों और दूसरी जगहों के प्रतिरोध और दृढ़ता, जिनमें से कुछ को हमने क़रीब से देखा है और कुछ के बारे में सुना है, वाक़ई हमारी तारीख़ में, जहां तक हम जानते हैं, एक बेमिसाल चीज़ है। अरब क़बीलों, बख़्तियारी क़बीलों और लुर क़बीलों ने हक़ीक़त में नुमायां किरदार अदा किया या देज़फ़ूल के अवाम ने भी, उन भीषण बमबारियों के साए में! देज़फ़ूल एक तरह से, आबादान दूसरी तरह से, अहवाज़ किसी और तरह से और ख़ुर्रमशहर तो ख़ैर ख़ूज़िस्तान में दृढ़ता का केन्द्र और प्रतिरोध का सेंटर था। उन साहसिक कारनामों ने इन शहरों के नाम को और ख़ूज़िस्तान के नाम को अमर कर दिया और ईरानी क़ौम के इस बड़े इम्तेहान के नतीजे को इसी दृढ़ता और प्रतिरोध ने तय किया।
हम पहले भी कह चुके हैं (3) सद्दाम को वह्म था कि चूंकि ख़ूज़िस्तान के अवाम का एक हिस्सा अरब है इसलिए वे इराक़ी फ़ौज का बड़ी विनम्रता से स्वागत करेंगे, हुआ इसके ठीक विपरीत, अरब घरानों ने, चाहे वो शहर के भीतर के हों या देहातों के, ये काम नहीं किया। किसी ऑप्रेशन के दौरान हम दोपहर के वक़्त एक गांव में गए कि वहाँ वज़ू करें और नमाज़ पढ़ें, वहाँ रहने वालों में दो तीन अरब परिवारों के अलावा कोई नहीं था, उस मरुस्थल में, उस ख़तरनाक इलाक़े में, दुश्मन की फ़ौज के बीच वो लोग इस्लामी गणराज्य के हक़ में नारे लगा रहे थे और उनकी औरतें, मर्द और बच्चे हमारा स्वागत कर रहे थे, जो वज़ू करने और नमाज़ पढ़ने गए थे। ख़ूज़िस्तान ने उस इलाक़े में इस तरह का काम किया। आईआरजीसी के वीर कमांडर, फ़ौज के मूल्यवान कमांडर, शहीद जहाँआरा, शहीद अली हाशेमी, शहीद सैयद हुसैन अलमुल-हुदा, इनमें से हर एक अलग-अलग तरह से, तरह-तरह के कामों से, अपनी दृढ़ता से, अपने प्रतिरोध से, राष्ट्रीय नायक की पंक्ति में शामिल हो गए।
ख़ूज़िस्तान, पाकीज़ा डिफेंस के दौर में ईरानी क़ौम की एकता का प्रतीक
ख़ूज़िस्तान के बारे में एक और बात जो हम पहले भी अर्ज़ कर चुके हैं (4) यह है कि ख़ूज़िस्तान ईरानी क़ौम की एकता का प्रतीक बन गया। यानी मुल्क के कोने-कोने से, दिल, जिस्म, इरादा सब ख़ूज़िस्तान में, इस्लामी ईरान की रक्षा के लिए इकट्ठा हो गए, एक दूसरे से जुड़ गए। अगरचे जंग का इलाक़ा उत्तर से दक्षिण तक फैला हुआ था लेकिन दुश्मन का मुख्य लक्ष्य और बड़ा मैदान ख़ूज़िस्तान का यही संवेदनशील व अहम इलाक़ा था, यहाँ ईरानी क़ौम ने ख़ुद को दिखा दिया, ख़ूज़िस्तान ईरानी क़ौम की नुमायां ख़ुसूसियतों के प्रदर्शन का प्रतीक बन गया, पाठ का मतलब यह है। ये हाथों का आपस में मिलना, दिलों का आपस में मिलना, एक साथ काम, कोशिश, सोच, इरादा, पाकीज़ा डिफ़ेंस के उन बड़े नतीजों को सामने लाया। ये हमारा आज का भी पाठ है और हमारे भविष्य का भी पाठ है। सभी अहम मामलों में, इरादे एक दूसरे के साथ हों, सारे हाथ एक दूसरे के साथ हों, जिस्म और जानें भी एक दूसरे के साथ हों, पाठ का मतलब यह है। सभी प्रांतों ने अपने बेहतरीन जवानों को ख़ूज़िस्तान भेजा, ईरानी क़ौम के सबसे नुमायां जवानों ने ख़ूज़िस्तान में कमाल कर दिखाया।
ख़ूज़िस्तान में पाकीज़ा डिफ़ेंस के वाक़यों को आर्ट और कल्चर के सांचे में ढालने की ज़रूरत
ये वाक़ए ख़ूज़िस्तान में जंग के बरसों के दौरान भी और उससे पहले, बाद में और आज तक हो रहे हैं। मैं ये अर्ज़ करना चाहता हूं कि ख़ूज़िस्तान प्राकृतिक स्रोतों का गढ़ है, ख़ूज़िस्तान खेती के उत्पादों का स्रोत है, तेल की पैदावार का स्रोत है, औद्योगिक पैदावार का स्रोत है, इस बहुत ही अहम अतीत की वजह से, कल्चरल प्रोडक्ट का स्रोत है, ईरानी क़ौम के कल्चरल और पहचान देने वाले सबक़ का स्रोत है, ऐसे सबक़ जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। इनमें से जिस इलाक़े में भी, जिनमें से कुछ को हमने क़रीब से देखा और कुछ के बारे में सुना है, उत्तरी ख़ूज़िस्तान से, दश्त अब्बास मरुस्थल से लेकर ख़ुर्रमशहर तक और ख़ुर्रमशहर से लेकर दूसरे इलाक़ों तक, बहुत से वाक़ए हुए हैं जो सैकड़ों डॉक्यूमेंट्री फ़िल्मों, सैकड़ों फ़िल्मों, सैकड़ों टीवी सीरियलों और सैकड़ों दिलचस्प किताबों का मटीरियल बन सकते हैं और उन्हें इतिहास में दर्ज होना चाहिए। दोस्तों ने वहाँ (5) बताया और यहाँ भी इशारा किया कि चार फ़िल्में तैयार हुयी हैं, बहुत अच्छी बात है लेकिन 400 फ़िल्में बननी चाहिए और ये हो सकता है, मुमकिन है। कोई भी इंसान ख़ूज़िस्तान के वाक़यों के बारे में जितना ग़ौर करेगा, जितनी तफ़सीली जानकारी होगी, महसूस करेगा कि यहाँ बड़े पैमाने पर कल्चरल काम का शून्य है जिसे भरना चाहिए। ये जो वाक़ए ख़ूज़िस्तान में हुए हैं, बड़े बड़े ऑप्रेशन, फ़त्हुल मुबीन ऑप्रेशन, बैतुल मुक़द्दस ऑप्रेशन, ख़ैबर ऑप्रेशन और दूसरे बड़े ऑप्रेशन जो यहाँ हुए हैं, उनका बैकग्राउंड, उन आप्रेशनों के दौरान होने वाले वाक़ए और उन आप्रेशनों के नतीजे, बड़े कल्चरल व कलात्मक कामों का मटीरियल बन सकते हैं। ये एक बात हुयी।
ख़ूज़िस्तान में पाकीज़ा डिफ़ेंस के दौरान घटने वाले वाक़ए, अवाम के इरादे और इस्लामी ईमान के संगम का प्रतीक
एक दूसरा मूल व अहम बिन्दु भी है और वो यह है कि जो कुछ ख़ूज़िस्तान में हुआ, वो अवाम के इरादे और इस्लामी ईमान के संगम का प्रतीक था, यानी अवाम का इरादा, जवानों की बहादुरी, माँ बाप और जीवन साथी की ओर से बलिदान, इन सबकी झलक ख़ूज़िस्तान में नज़र आयी, इस्लामी ईमान था, यानी वो चीज़ जिसने ख़ूज़िस्तान के नुमायां वाक़यों को, पूरे मुल्क के लिए एक नमूने के तौर पर वजूद दिया, इस्लाम और अवाम के संगम का प्रतीक था। इस्लामी ईमान और अवाम के इरादे और हौसले के संगम का प्रतीक था। इस हक़ीक़त को देखकर कोई भी शख़्स इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की ओर से "इस्लामी गणराज्य" शब्दावली के चयन में उनकी सूझबूझ को समझ सकता था, इस्लाम को भी जान लेता था और ईरानी क़ौम के लोकतंत्र को भी साफ़ तौर पर समझ लेता था।
इस्लामी गणराज्य, अवाम और इस्लाम की इमाम ख़ुमैनी की गहरी समझ का नतीजा
बुज़ुर्गों के दरमियान, चाहे वो हमारे ज़माने के हों या हमारे क़रीब के ज़माने के हों, हमने किसी को ऐसा नहीं पाया जिसने इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की तरह क़ौम पर भरोसा किया और क़ौम की पहचान को पूरी गहराई से समझा और महसूस किया हो। इंक़ेलाब के बिलकुल आग़ाज़ के दिनों से इमाम ख़ुमैनी, ईरानी क़ौम की ओर इशारा करते थे। सन 1962 में, आंदोलन शुरू हुआ, इमाम ख़ुमैनी अपने हाथों से दक्षिणी क़ुम के मरुस्थल की ओर इशारा करते थे और कहते थे कि अगर हम ईरान के अवाम से कहें तो ईरानी क़ौम, इस मरुस्थल को अपने वजूद से भर देगी, (6) वो अवाम को पहचानते थे। उस वक़्त ऐसे लोग भी थे जो कहते थे कि इन लोगों पर भरोसा नहीं किया जा सकता जबकि इमाम ख़ुमैनी अवाम पर भरोसा करते थे। ये अवाम की पहचान थी। और इस्लाम की पहचान, इमाम ख़ुमैनी ने इस्लाम को ऐसी नज़र से पहचाना जो संपूर्ण, व्यापक और ऊंची नज़र थी। वो इस्लाम की एक ऐसी विचारधारा की नज़र से देखते थे जो इंसान की आत्मा को उत्थान और ऊंचाई दे सकती है और इंसानी समाज को महान बना सकती है, आगे बढ़ा सकती है, ऊंचा उठा सकती है, चरम पर पहुंचा सकती है। वो इस्लाम को मानव समाज के संचालन के लिए काफ़ी समझते थे, वो इस्लाम को सिर्फ़ मिनारों से अज़ान देने, इबादतगाहों और मस्जिदों में इबादत करने और लोगों को दिलों को ठीक करने का ज़रिया नहीं मानते थे बल्कि वो इस्लाम को राजनीति के मैदान में, मामलों को बेहतर बनाने के मैदान में, अवाम के मामलों के संचालन के मैदान में और इंसानियत के आम मार्गदर्शन के मैदान में सरगर्म और फ़ायदेमंद समझते थे, उनका नज़रिया ये था, "इस्लामी गणराज्य"।
अवाम और इस्लाम के संगम से इस्लामी गणराज्य का दिन प्रतिदिन मज़बूत होना और उसकी तरक़्क़ी
देखिए, ये नज़रिया, बहुत गहरा और सही नज़रिया है, यही है जिससे ख़ूज़िस्तान में ऐसे चमत्कार हुए और पूरे मुल्क में इस अज़ीम आंदोलन ने, इस्लामी गणराज्य सिस्टम की तरक़्क़ी की, इस्लामी गणराज्य की तरक़्क़ी की राह समतल की और यह यथावत जारी है। अवाम और इस्लाम को जोड़ने की इस सोच ने इस्लामी गणराज्य को मज़बूती दी, इस सोच ने इस्लामी गणराज्य को स्थायित्व दिया, उसे बाक़ी रखा, उसकी रक्षा की, उसे दिन प्रतिदिन मज़बूत बनाया। इस्लामी गणराज्य के दुश्मनों का मसला यह है कि वो उसे पहचानते नहीं हैं, न अवाम को सही तरह से पहचानते हैं और न ही इस्लाम को पहचानते हैं। उन्होंने इस्लामी गणराज्य और ईरानी क़ौम के ख़िलाफ़ साज़िश की, योजना बनायी, चाल चली, अंदाज़ा लगाया, भविष्यवाणी की, उन्होंने कहा कि इस्लामी गणराज्य अपनी उम्र के 40 साल पूरे नहीं कर पाएगा!(7) ये बात अमरीकियों ने कही थी, उन्हें यक़ीन था कि उनकी साज़िशें और चालें कामयाब हो जाएंगी। उनके अंदाज़ों और इच्छाओं के बरख़िलाफ़, इस्लामी गणराज्य रुका नहीं, मुल्क की तरक़्क़ी रुकी नहीं, इस्लामी ईरान, मुंहज़ोरियों के सामने झुका नहीं, उसने मक्कारियों के सामने घुटने नहीं टेके और पूरी कामयाबी के साथ अपना रास्ता जारी रखा, हमने बहुत सी रुकावटों को पार कर लिया है और अल्लाह की मदद से ईरानी क़ौम इस वक़्त मौजूद बहुत सी दूसरी रुकावटों को भी पार कर लेगी।
ग़ज़ा के वाक़ए में दो अहम बिन्दु सामने आए
1 इस्लामी ईमान
एक बात मैं ग़ज़ा के बारे में भी अर्ज़ कर दूं। आज इस्लामी दुनिया सही अर्थों में ग़ज़ा के लिए शोकाकुल है। घटिया ज़ायोनी शासन, इस पागल कुत्ते के हाथों ग़ज़ा में जो जुर्म हो रहे हैं, उन्हें सभी जानते हैं। इन वाक़यों से दो बातें ज़ाहिर हो गयीं: एक इस्लामी ईमान की ताक़त है। ग़ज़ा में प्रतिरोध फ़ोर्सेज़ ने जो दृढ़ता दिखाई है और उन्हें ख़त्म करने की ओर से दुश्मन को मायूस कर दिया है, उसका स्रोत इस्लाम की ताक़त है। ये सब्र जो ग़ज़ा के मज़लूम अवाम ने बमबारियों में और दबाव में दिखाया है, उसका स्रोत इस्लामी ईमान है। तो इस्लामी ईमान यहाँ नुमायां हो गया, ऐसा कुछ हुआ कि जो ख़बरें मिली हैं और आप लोगों ने देखीं उसमें क्या चीज़ है जो इस बात का सबब बनती है कि उस पर ईमान रखने वाले लोग इस तरह की भयानक व बड़ी बड़ी मुश्किलों के सामने दृढ़ता दिखाने में कामयाब रहते हैं, इस्लाम ने अपने आपको दिखा दिया।
2 पश्चिमी सभ्यता व कल्चर की ख़ूंख़ार व पाखंडी हक़ीक़त
दूसरी चीज़ यह कि पश्चिमी सभ्यता ने भी अपनी अस्लियत को ज़ाहिर कर दिया। पश्चिमी सभ्यता जो दिखावा, दोमुखी व्यवहार, झूठ बोलकर हमेशा इंसान, मानवाधिकार वग़ैरह के दावे करती है और एक मुजरिम को मौत की सज़ा दिए जाने की मुख़ालेफ़त करती है, मिसाल के तौर पर किसी ने जुर्म किया है, फ़र्ज़ कीजिए कि कई लोगों को क़त्ल किया है, उससे बदला लेना चाहते हैं, मौत की सज़ा देना चाहते हैं तो उनके एतेराज़ शुरू हो जाते हैं। "जनाब! मौत की सज़ा, मौत की सज़ा" इन तीन चार महीनों में ज़ायोनी फ़ौज के हाथों 30000 लोगों का क़त्ल होता है, ये लोग देखते भी हैं, लेकिन मानो कुछ हुआ ही नहीं! उनके कुछ लोग, सब नहीं, ज़बानी तौर पर कहते हैं कि मिसाल के तौर पर इस्राईल ऐसा क्यों कर रहा है, क़त्ले आम कर रहा है, ज़बानी तौर पर कोई बात कह देते हैं लेकिन व्यवहारिक तौर पर उसी की मदद करते हैं, उसे हथियार देते हैं, उसकी ज़रूरत के सामान पूरे करते हैं और अमरीका पूरी ढिठाई से ग़ज़ा के लोगों पर की जा रही बमबारी को बंद करने से संबंधित सभी प्रस्तावों को वीटो कर देता है! यहाँ पश्चिमी सभ्यता का अस्ली चेहरा सामने आ गया, पश्चिमी सभ्यता ये है। पश्चिमी सभ्यता, ज़ाहिरी तौर पर सूट बूट पहने हुए पश्चिमी राजनेताओं की अस्लियत यह है, उनका ज़ाहिर, मुस्कुराहट लिए हुए है लेकिन भीतरी हक़ीक़त एक पागल कुत्ते और ख़ूंख़ार भेड़िए की है। पश्चिमी सभ्यता ये है, पश्चिम की लिबरल डेमोक्रेसी ये है। ये न लिबरल है और न ही डेमोक्रेटिक, ये झूठ बोलते हैं और पाखंड से अपने काम आगे बढ़ा रहे हैं।
हमें उम्मीद है कि इंशाअल्लाह दुनिया के लोग, इन वाक़यों में हक़ीक़त को और समझेंगे, इस्लाम को भी बेहतर तरीक़े से पहचानेंगे और पश्चिम को सही तरह से पहचानेंगे। हमें यक़ीन है कि ये पश्चिमी सभ्यता, ये जाली चीज़ मंज़िल तक नहीं पहुंचेगी और जारी नहीं रह पाएगी। इंशाअल्लाह इस्लाम का सच्चा कल्चर और सही तर्क, इन सब पर हावी हो जाएगा, इंशाअल्लाह वो दिन दूर नहीं।
आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत और बर्कत हो।
1-इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में ख़ूज़िस्तान प्रांत में वलीए फ़क़ीह के प्रतिनिधि और अहवाज़ के इमामे जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद अब्दुल नबी मूसवीफ़र्द और ख़ूज़िस्तान वलीए अस्र ब्रिगेड के कमांडर और इस कॉन्फ़्रेंस के सेक्रेट्ररी हसन शाहवारपूर ने रिपोर्टें पेश कीं।
2-इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस कॉन्फ़्रेंस के प्रबंधकों की ओर से इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में लगायी गयी नुमाइश का मुआयना किया।
3-किरमान और ख़ूज़िस्तान के अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़ों से मुलाक़ात में ख़ेताब (23/12/2023)
4-किरमान और ख़ूज़िस्तान के अवाम के मुख़्तलिफ़ तबक़ों से मुलाक़ात में ख़ेताब (23/12/2023)
5-इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में लगी हुयी नुमाइश
6-सहीफ़ए इमाम ख़ुमैनी, जिल्द-1, पेज-87,
7-जुलाई 2017 में पेरिस में एमकेओ के आतंकवादियों की ओर से आयोजित बैठक में अमरीका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन के बयान की ओर इशारा