उन्होंने स्टूडेंट्स के माहौल के स्वरूप को ख़ुशियों से भरा, उत्साह पैदा करने वाला, शौक़ पैदा करने वाला और चुनौती पूर्ण माहौल बताया और इस मुलाक़ात में स्टूडेंट्स यूनियनों के प्रतिनिधियों की ओर से पेश किए गए सुझावों पर काम किए जाने पर बल दिया और कहा कि हर सुझाव में वैचारिक व समीक्षात्मक गहराई होने के साथ ही उसे वास्तविक व ठोस तथा मुश्किलों को हल करने में सहायक होना चाहिए।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने पिछले बरसों की तुलना में इंसाफ़ के सिलसिले में उनके नज़रिए में बदलाव के सिलसिले में एक यूनियन के प्रतिनिधि की बात के जवाब में कहा कि बदलाव ये है कि इंसाफ़ के सिलसिले में नाचीज़ का इसरार और बढ़ गया है।

उन्होंने इस साल के रमज़ानुल मुबारक को तिलावत की सभाओं के आम होने सहित समाज में आध्यात्मिक पहलुओं के ज़्यादा उभरने के लेहाज़ से बहुत अच्छा महीना बताया और स्टूडेंट्स से इस महीने में हासिल होने वाली पाकीज़गी और अध्यात्म को बाक़ी रखने की सिफ़ारिश करते हुए कहा कि इस लक्ष्य को व्यवहारिक बनाने का रास्ता, गुनाहों से दूरी है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपने ख़िताब के एक दूसरे हिस्से में इल्म को यूनिवर्सिटी का मुख्य स्तंभ बताया और यूनिवर्सिटी के तीन मुख्य फ़रीज़े विद्वान की तरबियत, इल्म का प्रोडक्शन और विद्वान की तरबियत तथा इल्म के प्रोडक्शन को दिशा दिए जाने की ओर इशारा करते हुए कहा कि दुनिया की यूनिवर्सिटियां तीसरे फ़रीज़े यानी विद्वान की तरबियत और इल्म के प्रोडक्शन को दिशा देने में मुश्किल का शिकार हैं जिसकी वजह से उनके प्रोडक्ट्स साम्राज्यवादी व ज़ायोनी ताक़तों के हाथों का खिलौना बन जाते हैं।

उन्होंने चांसलरों, प्रोफ़ेसरों, स्टूडेंट्स और सिलैबस सहित यूनिवर्सिटी के सभी तत्वों की ओर से इन तीनों फ़रीज़ों पर ध्यान दिए जाने पर बल देते हुए ईरान की विश्व स्तरीय हैसियत को मुल्क की विज्ञान और टेक्नॉलोजी के क्षेत्र में तरक़्क़ी की देन बताया और कहा कि इस हैसियत की रक्षा करते हुए मुल्क को इल्म व साइंस के लेहाज़ से समृद्ध बनाना चाहिए हालांकि साम्राज्यवादी ताक़तें ईरान के लिए इस हैसियत व ताक़त को पसंद नहीं करतीं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने आज से बेहतर कल को मुल्क और सिस्टम का बड़ा अहम लक्ष्य बताया और बल दिया कि इस बुनियादी लक्ष्य को हासिल करने के लिए उमंगों को तय करना चाहिए।

उन्होंने मुल्क और सिस्टम की मौजूदा पोज़ीशन की पहचान को उमंगों और बेहतर कल की ओर आगे बढ़ने की राह में पहला क़दम बताया और कहा कि लोग इस अस्ल व निर्णायक हक़ीक़त से ग़ाफ़िल हैं कि मौजूदा इंक़ेलाबी सिस्टम, सरकश शाही दौर के ख़िलाफ़ मुसलसल कठिन व जटिल संघर्ष का नतीजा है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने पहलवी शासन के दौर की हक़ीक़त को बयान करते हुए कहा कि उस दौर में ईरान के अवाम पर मुख़्तलिफ़ तरह की बुराइयों में डूबी एक फ़ैमिली की हुकूमत थी और समाज की व्यवस्था चलाने में भी पूरी तरह से निरंकुशता थी और आज के दौर के विपरीत मुल्क के मसलों के हल में अवाम की कोई भागीदारी नहीं थी।

उन्होंने सामाजिक पहचान के लेहाज़ से पहलवी दौर के ईरान को राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मैदानों में बेगानों का पिट्ठू बताया और उस स्थिति को शर्मनाक बताते हुए कहा कि सन 1940 के दशक के आग़ाज़ से अनेक विशेषज्ञों ने उस बहुत ही कटु वास्तविकता के ख़िलाफ़ संघर्ष शुरू किया जिसका नतीजा तेल के राष्ट्रीयकरण का अभियान था और वो अभियान भी 18 अगस्त को अमरीका और ब्रिटेन की बग़ावत में ग़ुन्डों और बदमाशों के ज़रिए कुचल दिया गया।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि इल्मी लेहाज़ से भी अगरचे पहलवी दौर में यूनिवर्सिटियों में अच्छे टीचर्ज़ थे लेकिन यूनिवर्सिटियों से इल्म, विज्ञान, उद्योग और टेक्नॉलोजी के लेहाज़ से भरोसेमंद प्रोडक्ट्स हासिल नहीं हुए थे।

उन्होंने कहा कि इंक़ेलाब की इबारत गणतंत्र और इस्लाम पर आधारित है और इस्लामी गणराज्य की उमंगों को दो शीर्षकों के तहत बयान किया जा सकता हैः इस्लामी तौर-तरीक़े पर मुल्क चलाना और देश संचालन के लिए दुनिया के लोगों के सामने एक आइडियल पेश करना।

उन्होंने इस्लामी तरीक़े पर मुल्क चलाने की व्याख्या करते हुए कहा कि इसका मतलब भौतिक व आध्यात्मिक तरक़्क़ी के एक ऐसे रास्ते पर लगातार चलना है जिसमें किसी तरह से पसपाई न हो।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस्लामी गणराज्य के दूसरे लक्ष्य यानी मुल्क चलाने का एक आइडियल दुनिया के सामने पेश करने को हक़ीक़त में दुनिया के लोगों के लिए हमदर्दी व शुभचिंता बताया और कहा कि ये लक्ष्य कुछ पहलुओं से किसी हद तक व्यवहारिक हो चुका है और ऐसे बहुत से वाक़ए जो आप नौजवानों को जोश में ले आते हैं और आप क्षेत्र सहित विश्व स्तर पर फ़ख़्र करते हैं, आपके मुल्क, समाज और क्रांति से उनका संबंध है। 

उन्होंने अपने ख़ेताब के आख़िरी हिस्से में स्टूडेंट यूनियनों से अपेक्षाओं को बहुत ज़्यादा बताया और उनसे कुछ सिफ़ारिशें कीं।

उन्होंने कुछ यूनिवर्सिटियों की ऐसी कोशिशों की आलोचना की जिनमें ईरानी स्टूडेंट्स की पहचान को पश्चिम के अनुसरण पर निर्भर बताया जाता है। उन्होंने कहा कि स्टूडेंट यूनियनों को इस तरह की कोशिशों के मुक़ाबले में भरपूर तरीक़े से डट जाना चाहिए।