नए हिजरी शम्सी साल 1403 (20 मार्च 2024 से 20 मार्च 2025 तक) के आग़ाज़ पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई का नौरोज़ का पैग़ाम

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

ऐ दिलों और निगाहों को पलटने वाले! ऐ रात और दिन का नेज़ाम चलाने वाले! ऐ साल और हालात को बदलने वाले! हमारी हालत को सबसे अच्छी हालत में बदल दे।

अज़ीज़ मिल्लते ईरान की सेवा में ईदे नौरोज़ और नए साल की मुबारकबाद पेश करता हूँ जो इस साल रमज़ानुल मुबारक, दिलों की बहार और अध्यात्म की बहार के साथ आया है। मैं ख़ास तौर पर वतन के लिए क़ुर्बानियां पेश करने वालों के परिवारों और नौरोज़ मनाने वाली सभी क़ौमों की सेवा में मुबारकबाद पेश करता हूं।

इस मौक़े पर मैं अज़ीज़ शहीदों और शहीदों के इमाम को याद करना चाहूँगा जिन्होंने ईरानी क़ौम के लिए ये रास्ता खोला। मेरी दुआ है कि ईरानी क़ौम इन दोनों बहारों, प्रकृति की बहार और अध्यात्म की बहार, दोनों से फ़ायदा उठाए। 

इस लम्हे ख़त्म होने वाले साल 1402 पर हम एक नज़र डालें और इसी तरह जिस साल में हम दाख़िल हुए हैं उस पर भी एक निगाह दौड़ाएं। सन 1402 ज़िंदगी के दूसरे सभी बर्सों की तरह मिठास, कड़वाहट, पसंदीदा व नापसंदीदा बातों से भरा रहा। यही दुनिया और ज़िंदगी का स्वभाव है। मुल्क के भीतरी मामलों में भी देखा जाए तो साइंस, टेक्नॉलोजी और इन्फ़्रास्ट्रक्चरल कामों में पूरे मुल्क में बहुत ज़्यादा तरक़्क़ी हुयी और ये चीज़ मीठी बातों और अच्छी ख़बरों में शामिल थी। दूसरी ओर अवाम के आर्थिक मसले, कटु ख़बरों का हिस्सा रहे। क़ुद्स दिवस और 22 बहमन (11 फ़रवरी) की रैलियों में अवाम की शानदार शिरकत, इन विशाल प्रदर्शनों का शांतिपूर्ण ढंग से आयोजन, साल के आख़िर में शांतिपूर्ण व पारदर्शी चुनावों का आयोजन और दूसरे वाक़यों में अवाम की भरपूर भागीदारी, पिछले साल की अच्छी ख़बरों और पसंदीदा बातों में शामिल रही। शहीद क़ासिम सुलैमानी की बर्सी के मौक़े पर किरमान की दुखद घटना, साल के अंतिम दिनों में बलोचिस्तान में बाढ़, इन महीनों के दौरान सुरक्षाकर्मियों और सुरक्षा के रखवालों को पेश आने वाले वाक़ए, कटु घटनाओं का हिस्सा थे और सबसे कटु घटना ग़ज़ा का वाक़ेया था जो हमारे अंतर्राष्ट्रीय मसलों में से एक है। इस साल हमारे सामने इससे ज़्यादा कड़वा कोई वाक़ेया नहीं रहा। विदेशी मुद्दों की बात की जाए तो मुख़्तलिफ़ आर्थिक व राजनैतिक मैदानों में सरकार की अंतर्राष्ट्रीय सरगर्मियां मीठी ख़बरों और पसंदीदा वाक़ेयों का हिस्सा रहीं और ग़ज़ा का वाक़ेया, जिसके बारे में हमने अर्ज़ किया, सबसे कड़वे वाक़यात में बल्कि हमारे विदेशी मुद्दों में सबसे कड़वा वाक़ेया था। अल्लाह से दुआ करते हैं कि वो कड़वाहट की भरपाई करे और ईरानी क़ौम और मुसलमान क़ौमों के लिए मीठे वाक़यात को जारी रखे और जो कुछ इस्लामी जगत के लिए भलाई व बर्कत तथा ईरानी क़ौम के लिए भलाई व बर्कत का सबब है, उन्हें प्रदान करे।

सन 1402 के नारे के संबंध में, जो इंफ़्लेशन पर कंट्रोल और पैदावार को बढ़ावा देने के बारे में था, अच्छे काम अंजाम पाए हैं। नारे के दोनों हिस्सों के सिलसिले में काम हुए हैं। कुछ कामयाबी भी मिली लेकिन उतनी नहीं जितनी अपेक्षित और वांछित थी। इंशाअल्लाह आज की स्पीच में उनकी तफ़सील मिल्लते ईरान के सामने पेश करुंगा। जो भी काम हुआ, अच्छा हुआ लेकिन उसे जारी रहना चाहिए और ये नारा, ऐसा नारा नहीं है कि हम अपेक्षा रखें कि एक ही साल में इस पर उचित तरीक़े से काम हो जाएगा। ये नारा जारी रहेगा। जो साल हमारे सामने है और जिसमें हम दाख़िल हो चुके हैं, इसमें बहुत सारे काम हैं जो अंजाम पाने चाहिएं और हमें ख़ुद को उनका पाबंद समझना चाहिए, मुल्क के अधिकारियों को भी, सरकार, संसद, न्यायपालिका, दूसरे विभागों और अवाम को भी। हम सभी को मुख़्तलिफ़ मैदानों में इन कामों के संबंध में ख़ुद को पाबंद समझना चाहिए लेकिन इस साल मुल्क का सबसे अहम मुद्दा अर्थव्यवस्था है। मुल्क का मूल रूप से कमज़ोर पहलू अर्थव्यवस्था का मुद्दा है। हमें इन मैदानों में पूरी तनमयता से काम करना चाहिए। इस मसले के माहिरों की राय का अध्ययन करके मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि मुल्क के आर्थिक मसलों के हल की अस्ल कुंजी पैदावार, घरेलू पैदावार और राष्ट्रीय पैदावार का विषय है। यही वजह है कि पिछले कुछ बरसों से हम प्रोडक्शन पर ताकीद कर रहे हैं। अगर पैदावार को बढ़ावा मिले और राष्ट्रीय पैदावार की ओर बढ़ने का अमल सही तरीक़े से अंजाम पाए तो इंफ़्लेशन, रोज़गार और राष्ट्रीय मुद्रा की वैल्यू जैसे बहुत ही अहम आर्थिक मुद्दे, बहुत अच्छे तरीक़े से समाधान की ओर बढ़ने लगेंगे। इसलिए प्रोडक्शन का मसला, अहम मसला है और इसी वजह से इस साल भी पैदावार के मुद्दे पर बल दे रहा हूं और मुझे उम्मीद है कि इंशाअल्लाह इस साल प्रोडक्शन में छलांग देखने को मिलेगी। मुझे पूरा यक़ीन है कि ये छलांग अवाम की भागीदारी और अवाम के सहयोग के बिना मुमकिन नहीं होगी। अगर हम पैदावार में लंबी छलांग लगाना चाहते हैं तो हमें अर्थव्यवस्था को पब्लिक की भागीदारी पर आधारित बनाना होगा, पैदावार के मैदान में अवाम को पूरी तरह से शामिल करना होगा और इसमें अवाम की भागीदारी की राह में मौजूद रुकावटों को दूर करना होगा। प्राइवेट सेक्टर में बड़ी क्षमताएं पायी जाती हैं जिसके बारे में मैं तफ़सील से अर्ज़ करुंगा। इन क्षमताओं को हरकत में लाना होगा, उन्हें मुल्क और अवाम के हित में उपयोग में लाना होगा। इसलिए मैंने इस मौक़े पर इस साल का नारा यह रखा हैः "अवाम की भागीदारी से पैदावार में छलांग" यह इस साल का नारा है। हमें उम्मीद है कि इंशाअल्लाह ये नारा बेहतरीन तरीक़े से व्यवहारिक होगा। इंशाअल्लाह मुल्क के प्रोग्राम तैयार करने वाले योजना बनाएं, बुद्धिजीवी लोग वैचारिक सहयोग दें और आर्थिक मैदान में सरगर्म लोग अमली तौर पर इस काम में भाग लें। अल्लाह से ईरान की अज़ीम और प्यारी क़ौम की तौफ़ीक़ की दुआ करता हूं, इमाम महदी अलैहिस्सलाम -उन पर हमारी जानें क़ुर्बान- की बारगाह में विनम्रता से सलाम पेश करता हूं और उनके जल्द से जल्द प्रकट होने के लिए अल्लाह से दुआ करता हूं कि जो इंसानियत के लिए पीड़ाओं से छुटकारे के अर्थ में है।

आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।