2024/03/20

तक़रीरः

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार व रसूल हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे पाक, सबसे पाकीज़ा, चुनी हुयी नस्ल और ख़ास तौर पर इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर।

आप सब को ईदे नौरौज़ मुबारक! हर साल यह मुलाक़ात इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में हुआ करती थी, आज हम इस नेमत से महरूम हैं इस लिए दूर से ही अपना सलाम पेश करते हैं “रूहानी सफ़र में मंज़िल की दूरी का कोई अर्थ नहीं होता”।(1) सलाम हो आप पर ऐ अल्लाह की ज़मीन में उसके अमानतदार, अल्लाह के बंदों पर उसकी हुज्जत, मैं गवाही देता हूँ कि आपने अल्लाह की राह में जेहाद का हक़ अदा किया, उसकी किताब पर अमल किया, उसके नबी की सुन्नत की  पाबंदी की, यहां तक कि अल्लाह आपको अपनी बारगाह में बुला लिया और अपने अख़तियार से अपने क़रीब कर लिया और आपके दुश्मनों पर हुज्जत को साबित कर दिया। उस स्पष्ट हुज्जत के अलावा जो अल्लाह की सारी मख़लूक़ के लिए आपके पास है।(1) सलाम हो आप पर ऐ अबुल हसन ऐ अली इब्ने मूसा अर्रज़ा।

मैं एक बार फिर ईदे नौरोज़ की आप सब भाइयों और बहनों को बधाई पेश करता हूँ, पूरी ईरानी क़ौम को मुबारकबाद पेश करता हूँ। प्रकृति की बहार और रूहानियत की बहार का एक साथ आगमन यह अर्थ रखता है कि अल्लाह ने अपने करम के दोनों पलड़े लोगों के सामने पेश कर दिए हैं। हालांकि इन दोनों में फ़र्क़, ज़मीन और आसमान जितना है। आज प्रकृति की बहार की ठंडी हवा और रूहानियत की बहार की ठंडी हवाएं अल्लाह के सभी मोमिन बंदों के लिए मौजूद हैं। पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से कहा गया है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने बड़े सहाबियों से कहा कि बहार की हवा के सामने तन को न ढांको। (3) क्योंकि बहार की हवा, इस महीने का पवन, माहौल को ताज़ा देता है और इसी तरह तन को भी ताज़गी प्रदान करता है और इसी तरह फलने फूलने और बढ़ने व खिलने का सहारा भी बनता है, यही चीज़ रूहानी बहार की हवाओं में भी होती है। रमज़ान, रूहानी बहार का पवन है जो इंसानों की रूहों को नूरानियत और ताज़गी देता है और इससे इंसानों की तरक़्क़ी का रास्ता बनता है। रमज़ान के महीने में अल्लाह से वही बंदा क़रीब होता है जो ग़फ़लत में न पड़ा हो। रमज़ान का रूहानी पवन क्या है? “रोज़ा” है। रमज़ान का एक पवन है रोज़ा है, शबे क़द्र है, रमज़ान के महीने में रात दिन व सुबह की ख़ास दुआएं हैं। दुआए अबू हम्ज़ा है, यह सब रूहानी पवन हैं जो ठोस संकल्प रखने वाले इंसानों की रूह को महसूस होते हैं और उससे इंसानों की रूह फलती फूलती है, ताज़गी पाती है और खिल जाती हैं, इंसान में दीन पर अमल और उसके बारे में मालूमात हासिल करने का शौक़ बढ़ता है, यह पवन, इंसान को रूहानी आलस्य से, रूहानी लापरवाही से बाहर निकाल देता है और इंसान को नेक बंदा बना देता है।

आप रमज़ान के महीने में नेक कामों की तरफ़ बढ़ते हैं, और नेक बंदे बन जाते हैं। ख़ुदा ने इस दुनिया में भी अपने नेक बंदों से वादा किया है कि “ज़मीन के वारिस मेरे नेक बंदे होंगे”। (4) यह नेक बंदे को दुनिया में मिलने वाला इनाम है। आख़ेरत में भी से लोगों के साथ होंगे जिन पर अल्लाह ने ख़ास इनाम किया है यानी नबियों, सच्चों, शहीदों और नेक बंदों के साथ और यह बहुत अच्छे साथी हैं।”(5) वहां भी नेक बंदा, पैग़म्बरों के साथ रहेगा, सच्चों के साथ होगा, शहीदों के साथ होगा। रमज़ान के महीने में इस तरह की ताक़त है, यह कला है कि वह खुली आंखों वाले को, जानकार को, ग़फ़लत न करने वाले को इस तरह के रूहानी दर्जे पर पहुंचा देता है। हमें उम्मीद है कि अल्लाह ने चाहा तो हमारी क़ौम और पूरी इस्लामी क़ौम और वह सारे बंदे जिनके दिल में ख़ुदा बसता है, रूहानीयत से फ़ायदा उठाएंगे, खुद को बेहतर बनाएंगे और तरक़्क़ी करेंगे।

मैं इस साल के नारे के बारे में कुछ बातें बयान करूंगा और एक बात, एक दो बातें मुल्क के राष्ट्रीय और सार्वजनिक हितों के बारे में कहूँगा जो क़ौम को बताना ज़रूरी है।

इस साल के नारे के बारे में (6) यह कहना है कि जिस चीज़ को साल का नारा कहा जाता है, वह दरअस्ल ऐसा जज़्बा होता है जिस पर ध्यान केन्द्रित कर दिया जाता है और जो मुल्क की बुनियादी रणनीति का हिस्सा होता है। साल का नारा आम तौर पर मुल्क की बुनियादी नीति का हिस्सा होता है। एक तो इसलिए कि मुल्क के ज़िम्मेदारों का ध्यान, उनका प्रयास और उनकी कोशिशें उस हिस्से पर केन्द्रित हों, और दूसरे इस यह होता है कि जनता का ध्यान इस ओर आकर्षित जाता है और लोग उसकी मांग करते हैं, इसी लिए हम साल के लिए एक नारा देते हैं और यह कई बरसों से चला आ रहा है।

बीते कुछ बरसों के दौरान साल के नारे में जिस चीज़ पर ख़ास तौर से ध्यान दिया जाता रहा है वह आर्थिक मुद्दा है। पिछले साल हमारा नारा “महंगाई पर लगाम और पैदावार में वृद्धि” था। सरकारी रिपोर्टों से कि जिनकी पुष्टि भी हो चुकी है, यह पता चलता है कि इस मैदान में अच्छे काम हुए हैं, अलबत्ता हम जो चाहते हैं उससे काफ़ी दूर है। अभी और कोशिश किये जाने की ज़रूरत है। इस लिए मैं यहीं पर कह दूं कि सन 1402 हिजरी शम्सी के नारे पर अमल इस साल भी हमारी मांगों में शामिल है, हमारी बुनियादी ज़िम्मेदारियों का हिस्सा है, उन कामों में शामिल है जिनके लिए हम सब मुल्क के ज़िम्मेदारों और कार्यकर्ताओं को कोशिश करना चाहिए। अब रही बात इस साल के नारे की तो उस पर यक़ीनन ज़्यादा ज़ोर है। इस साल का नारा “अवाम की भागीदारी से पैदावार में छलांग” है। पैदावार में तेज़ रफ़्तार तरक़्क़ी शायद बड़ा काम और कुछ लोगों की नज़र में नामुमकिन काम लगे, लेकिन मेरा यह मानना है कि इस नारे के दूसरे हिस्से यानि “अवाम की भागीदारी” के मद्देनज़र, यह काम हो सकता है। अगर हमारे अंदर यह दम हो कि हम जनता के संकल्प को, जनता की पूंजी को, उनके सुझावों को, उनकी सक्रियता को, आर्थिक मैदानों तक ला सकें, यानी आर्थिक मैदान में देश की जनता को काम करने पर तैयार कर सकें तो फिर पैदावार में तेज़ रफ़्तार तरक़्क़ी भी होगी।

बेशक अर्थ व्यवस्था, मुल्क का एक बुनियादी मुद्दा है। विभिन्न कारणों से हमारी एक कमज़ोरी, आर्थिक समस्याएं हैं। अगर मुल्क की अर्थ व्यवस्था अच्छी हो जाए, तो मुल्क के हर मैदान पर उसका असर होगा, यह कहा जा सकता है कि उसका जनता के दीन व दुनिया सब पर असर होगा। कोई यह न कहे कि जी बहुत से देश हैं जिनकी स्थिति अच्छी अर्थ व्यवस्था और पूंजी के लिहाज़ से ठीक ठाक है लेकिन वहां की जनता की हालत ठीक नहीं है, इसकी वजह दूसरी है, क्योंकि वहां न्याय पर ध्यान नहीं दिया जाता, क्योंकि वहां दीनी तालीम और दीन पर ईमान को महत्व नहीं दिया जाता, जनता की बदहाली की वजह यह है। बहरहाल अर्थ व्यवस्था एक बेहद प्रभावशाली कारक है।

बर्सों से दुश्मन कोशिश कर रहे हैं कि हमारे मुल्क की अर्थ व्यवस्था को घुटनों पर ला दें, दुश्मन बड़ी गंभीरता से इस काम में लगे हैं, हम ने इस चीज़ को, इतने बर्सों के दौरान अमरीका और उसके दूसरे साथियों के शत्रुतापूर्ण रवैये में साफ़ तौर पर महसूस किया है। उनका मक़सद ईरान की अर्थ व्यवस्था को तबाह कर देना है, उनका मक़सद अर्थ व्यवस्था के मैदान में मुल्क को घुटने टेकने पर मजबूर कर देना है। यक़ीनी तौर पर हमारे युवाओं के संकल्प और हमारे मुल्क में जनता और ओहदेदारों की ओर से अनथक प्रयासों की वजह से दुश्मन कामयाब नहीं हो सका और अल्लाह की मदद से कभी कामयाब नहीं हो पाएगा। लेकिन दुश्मन, आर्थिक क्षेत्र में इस्लामी जुम्हूरिया ईरान के पीछे लगा हुआ है, सक्रिय है, हमें भी सक्रिय रहना चाहिए, हमें भी लगे रहना चाहिए, हमें मज़बूत इरादे के साथ इस राह में आगे बढ़ना चाहिए, सही नज़रिये और रात दिन अनथक कोशिश करके।

मुल्क की अर्थ व्यवस्था को फलने फूलने के लिए, मुल्क के सभी हिस्सों में गतिविधियां करना और सक्रियता ज़रूरी है, सब को कोशिश करना चाहिए, मुल्क के बुनियादी ढांचे को इस्तेमाल किया जाना चाहिए और अवामी सुझावों और पहल से भी लाभ उठाया जाना चाहिए और इसके साथ ही, आर्थिक मैदानों में काम करने वालों की मैनेजमेंट की योग्यता और मैनेजमेंट के दिग्गजों की योग्यता से भी फ़ायदा उठाना चाहिए, पढ़े लिखे नौजवानों से सही अर्थों में काम लेना चाहिए, स्टार्टअप कंपनियों की मदद की जानी चाहिए, यह सब साधन हैं, तरीक़े हैं। अगर उन सब पर ध्यान दिया जाए, तो यक़ीनी तौर पर मुल्क की अर्थ व्यवस्था फलने फूलने लगेगी अलबत्ता ओहदेदारों की निरंतर कोशिशों से। वैसे अल्लाह का शुक्र है कि मौजूदा सरकार जो मेहनत और कोशिशों के लिहाज़ से सच्ची बात यह है कि अच्छे नंबर की हक़दार है, और यह सरकार अच्छी कोशिश कर रही है। जी तो यह वह चीज़ है जो इस साल के नारे में हमारे मद्दे नज़र रही है। हमारा यह मानना है कि अर्थ व्यवस्था के मामले पर ध्यान दिया जाना चाहिए और इस राह में कामयाबी के लिए, सही अर्थों में जनता की भागीदारी से लाभ उठाया जाना चाहिए, मैं चाहता हूँ कि सारे विभाग इस राह में एकजुट हो जाएं। यह हमारे ओहदेदारों का कमाल है कि वह अल्लाह की मदद से इसका रास्ता तलाश करें और यह काम अंजाम दें।

यह साल, सातवीं विकास योजना की शुरुआत का पहला साल है। (7) सातवीं विकास योजना इसी साल शुरु होगी। जी सातवीं विकास योजना का आम मक़सद, न्याय के साथ आर्थिक तरक़्क़ी है। लेकिन इस योजना के आख़िर में कुछ ऐसे मक़सद का ज़िक्र किया गया है जो काफ़ी अहम हैं जैसे महंगाई को एक डिजिट का करना, बजट के ढांचे में सुधार, टैक्स सिस्टम में बदलाव, बुनियादी ज़रूरी चीज़ों का कम से कम 90 फ़ीसद हिस्सा मुल्क के अंदर तैयार करना, यह सब बड़े बड़े काम हैं। सिंचाई के पानी के सही इस्तेमाल को और बेहतर बनाना, जो हमारे मुल्क की एक समस्या है और सातवीं विकास योजना में उस पर ध्यान दिया गया है, और इसी तरह दूसरे बड़े नेशनल प्रोजेक्ट हैं। जी तो अगर हम इन मक़सदों को पूरा करना चाहते हैं तो मेरे ख़्याल में यह काम जनता की भागीदारी के बिना संभव ही नहीं है, यह सारे काम जनता की उपस्थिति के साथ होने चाहिए। मैं चाहता हूँ कि ईरानी क़ौम इस पर ध्यान दे, यक़ीनी तौर पर हर एक की अपनी योग्यता होती है, सब एक तरह के नहीं होते, सब एक जैसे नहीं होते, मदद भी एक तरह की नहीं होगी, लेकिन जनता की तरफ़ से की जाने वाली मदद, जिस के बारे में प्लानिंग की जानी चाहिए, हमारे इन मक़सदों को पूरा करने में हमारा साथ दे सकती है।(8) इस तैयारी के एलान पर शुक्रिया, मुझे यक़ीन है कि जनता तैयार है, बस मैदान में उपस्थिति का रास्ता मिलना चाहिए और मैदान में इस तैयारी को दिखाया जाए, जैसा कि पाकीज़ा डिफ़ेंस के दौरान इसका प्रदर्शन हुआ। पाकीज़ा डिफ़ेंस के दौरान जनता ने हर लिहाज़ से अपनी तैयारी को साबित किया। हमें हर समस्या के मामले में अल्लाह की मदद से यही काम करना चाहिए। चाहे ज्ञान विज्ञान का मामला हो, नैतिकता की बात हो, कला, संस्कृति का मामला हो, मुल्क के दूसरे अहम कामों में भी यही जनता की आम तैयारी काम कर देती है और ज़रूरी भी है, लेकिन फ़िलहाल हमारी चर्चा, अर्थ व्यवस्था के मैदान की तैयारी के बारे में है।

मेरा यह मानना है कि जनता और उनकी योग्यता बहुत ज़्यादा है। अभी कुछ दिन पहले इसी इमाम बारगाह में एक प्रदर्शनी थी ताकि मैं प्राइवेट सेक्टर की चीजों को और जो चीज़ें जनता ने ख़ुद अपनी समझ और अपनी पूंजी से बनायी थीं उन्हें क़रीब से देखूं (9) मैं यहां आया और लगभग 4 घंटे या शायद 4 घंटे से ज़्यादा वक़्त यहां गुज़ारा, जनता के कामों को अच्छी तरह से देखा, हैरत हो रही थी, बहुत अच्छा था, उससे पता चल रहा था कि पैदावार और आर्थिक क्षेत्र में जनता में कितनी सूझबूझ है। बहुत से युवा थे, युवाओं ने यहां तक़रीर भी की कि किस तरह उन्होंने अपनी नयी सोच और पहल से अर्थ व्यस्था के क्षेत्र में बड़े बड़े काम किये हैं। तो योग्यता है, गुंजाइश है, इन योग्यताओं को इस्तेमाल किया जाना चाहिए, बड़े उद्योगों में, पानी की प्रडक्टीविटी को बेहतर बनाने में, तेल के मैदान में, हैंडीक्राफ़्ट्स में, परिवहन में, इन सभी क्षेत्रों में नयी सोच रखने वाले रचनाकार युवाओं ने मेहनत की है, काम किया है, बड़े बड़े काम किये हैं।

     हमारे यहां यक़ीनी तौर पर अर्थ व्यवस्था के मैदान में, विदेशी काम भी हैं और होना भी चाहिए और उसके बिना, आर्थिक काम आगे नहीं बढ़ सकता। यहां मैं यह बात सरकारी ओहदेदारों से कह रहा हूँ, विदेशी मामलों में जिन मुल्कों से हमारे आर्थिक संबंध हैं, और यह जो सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर होते हैं और उनका कोई असर भी नहीं होता, उन्हें क़ानूनी और अमली समझौतों में बदलें, जिस पर काम हो सके, जिसका असर हो, इस काम को गंभीरता से आगे बढ़ाया जाना चाहिए।

प्रोडक्टीविटी के सिलसिले में एक और मुद्दा है जिस पर मैं चर्चा नहीं करुंगा, अगर ज़िंदगी रही तो किसी और वक़्त प्रोडक्टीविटी पर बात करुंगा। हमारे मुल्क में प्रोडक्टीविटी कम है, हम जितना लगाते हैं, चाहे पानी का मामला हो या बिजली का, चाहे वक़्त और उम्र का, जितनी पूंजी हम लगाते हैं उसके हिसाब से उसका फ़ायदा नहीं मिलता। यह सब वो चीज़ें हैं जिन्हें ठीक किया जा सकता है, यह अनुभव की बात है, इस मैदान में भी इंशाअल्लाह काम किया जाना चाहिए।

यह बातें तो इस साल के नारे से बारे में थी। वैसे इस साल हमने जो नारा दिया है वह एक साल के लिए ही नहीं है, एक साल के लिए नहीं बल्कि जारी रहेगा। यह ऐसे काम भी नहीं हैं जो एक साल में पूरे हो जाएं, इस साल, 1403 हिजरी शम्सी, में मुल्क के ओहदेदार पहला क़दम उठाएं, प्लानिंग करें और फिर इन्शाअल्लाह यह सिलसिला जारी रहे। यह तो इस बारे में बात थी।

वैसे एक और मुद्दा है जिस पर मुल्क का दर्द रखने वाले सोचते हैं और उन्हें उसकी फ़िक्र रहती है, वह यह कि अगर हम जनता की दौलत को, जनता के संसाधनों को, आर्थिक मैदान में इस्तेमाल करेंगे तो हो सकता है कि उससे ग़लत फ़ायदा उठाया जाने लगे, भेदभाव हो और समाज के वर्गों में अंतर बढ़ जाए और उससे भ्रष्टाचार वग़ैरा का मौक़ा मिले कि जैसा पहले हो चुका है। यक़ीनन यह चिंता सही है। अतीत में ऐसे लोग थे जिन्होंने सरकारी सुविधाओं से फ़ायदा उठाया, लोन से फ़ायदा उठाया, विदेशी मुद्रा से फ़ायदा उठाया, मगर उस काम के लिए नहीं जिसके लिए उन्हें यह सब दिया गया था, रास्ता बदल लिया, ग़लत फ़ायदा उठाया। करप्शन हुआ, भेदभाव हुआ, यह भी है, इसी वजह से ज़रूरत है कि ओहदेदार अपनी आंखें खुली रखें, बारीकी से देखें और जो भी करें बहुत ध्यान से करें। यह बेहद ज़रूरी कामों में है और इस पर निगरानी बहुत ज़रूरी है। इस चर्चा को जो इस साल के नारे के बारे में और आर्थिक मुद्दे पर थी, यहीं पर ख़त्म करते हैं।

एक दो बातें मुल्क के आम मुद्दों के बारे में भी कहता चलूं। पहली बात यह है कि आज हमारे राष्ट्रीय हित और उज्जवल भविष्य, “उम्मीद” और “ईमान” पर निर्भर है। मैंने इससे पहले सन 1402 हिजरी शम्सी में इस बारे में विस्तार से चर्चा की है।(10) अब मैं यहां पर इस बात पर फिर ज़ोर देना चाहता हूँ, उम्मीद और ईमान। अगर दिलों में उम्मीद की किरण बुझ जाए तो कोई भी काम नहीं होगा। हमारे पास तरक़्क़ी की इतनी गुंजाइश है, इतने ढेर सारे योग्य युवा हैं, काम के लिए और आगे बढ़ने के लिए हमारी पूरी क़ौम तैयार है, हमारे पास इतने बेमिसाल प्राकृतिक संसाधन हैं, हमारी भौगोलिक स्थिति भी बेमिसाल है, हम तरक़्क़ी कर सकते हैं, बड़ी तरक़्क़ी कर सकते हैं। इन्क़ेलाब की शुरुआत से आज तक हमने बहुत तरक़्क़ी की है, अब दुश्मन इस सच्चाई को छुपाते हैं और कुछ लोगों को उसे सही तौर पर बयान करने का तरीक़ा नहीं आता, लेकिन हमारे पास इससे और भी ज़्यादा तरक़्क़ी करने का मौक़ा है, लेकिन यह तरक़्क़ी उसी वक़्त होगी जब हम और आप भविष्य से उम्मीद रखें, आशा रखें, यह जानते हों कि तरक़्क़ी की जा सकती है, काम किया जा सकता है, आगे बढ़ा जा सकता है।

हमारे मुल्क में उम्मीद पैदा करने वाली चीज़ों की ख़ुदा के शुक्र से कोई कमी नहीं है, वह चीज़ें जिनसे इंसान के दिल में उम्मीद पैदा हो वह हमारे मुल्क में बहुत ज़्यादा हैं, यही उद्योग के क्षेत्र में जो वैज्ञानिक विकास हुआ है, स्वास्थ्य के मैदान में, अंतरिक्ष में, राजनीति में, विदेश नीति में और सुरक्षा के मैदान में जो कुछ किया जा रहा है, यह जो हमारे मुल्क में सुरक्षा है, 11 फ़रवरी को पूरे मुल्क में कितने करोड़ लोग रैली करते हैं, ख़ुदा के शुक्र से पूरी तरह सुरक्षित होते हैं, चुनाव होते हैं, पूरी सुरक्षा के साथ, दुनिया में बहुत कम जगहें इस तरह की होंगी जहां हमारे मुल्क की तरह स्थिरता, सुरक्षा, जनता की भागीदारी, तेज़ रफ़्तार व आश्चर्यजनक तरक़्क़ी होगी। जी तो यह सब उम्मीद पैदा करने वाली चीज़ें हैं। इन से हमारे दिलों में उम्मीद पैदा होती है, सम्मान का, गर्व का आभास, हमारी जनता में बढ़ता है।

इस वक़्त भी युवाओं के हज़ारों गुट, मुल्क के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न मैदानों में काम कर रहे हैं, कुछ के बारे में हमें संक्षेप में मालूमात है, कुछ के बारे में पूरे विस्तार से हमें पता है। सही अर्थों में योग्य, जोश से भरे, उत्साह से भरे युवाओं की हज़ारों टीमें काम कर रही हैं, रिसर्च कर रही हैं, औद्योगिक अध्ययन कर रही हैं। उद्योग में, कृषि में काम कर रही हैं। स्वास्थ्य के मैदान में, मेडिकल के मैदान में काम कर रही हैं, रिसर्च कर रही हैं। धार्मिक शिक्षा केन्द्रों में, पढ़े लिखे और योग्य युवा, दीनी मैदान में रिसर्च कर रहे हैं, नये काम, नयी बातें। पूरे मुल्क में सांस्कृतिक गतिविधियां जारी हैं, विभिन्न क्षेत्रों में, लेखन में, किताबों के प्रकाशन में, शेर व शायरी में, सिनेमा में, कला, पेंटिंग, विजुअल आर्टस के मैदान में, दीन की तबलीग़, दीनी कामों में, समाज में जोश भरने के लिए सब काम कर रहे हैं। यह जो अरबईन के मौक़े पर, 15 शाबान, ग़दीर वग़ैरा के मौक़े पर पूरे मुल्क में विशाल रैलियां निकलती हैं, यह इन्ही नौजवानों का काम है। यह सब उम्मीद पैदा करते हैं, इनसे पता चलता है कि हमारे युवा सक्रिय हैं। अफ़सोस की बात है कि प्रचार की हमारी शक्ति जितनी होनी चाहिए उतनी नहीं है कि जिसकी मदद से जो कुछ हो रहा है वह सब जनता के सामने पेश किया जा सके। यह सब मुल्क के अंदर उम्मीद की मशालें हैं, मुल्क में जोश व जज़्बे की निशानियां हैं। इससे पता चलता है कि हमारी पूरी क़ौम, ख़ास तौर पर हमारे नौजवान, ताज़ा दम, सक्रिय, नयी सोच वाले और उम्मीद रखने वाले हैं।

जी लेकिन इसके साथ ही कुछ लोग ऐसे भी नज़र आते हैं जो मेरी नज़र में अंजान हैं, इस लिए निराशा की बातें करते हैं, युवाओं में उम्मीद का इन्कार करते हैं, इसके साथ ही यह भी कोशिश करते हैं कि युवाओं के दिलों में उम्मीद ख़त्म कर दें। क्यों? इससे किसको फ़ायदा मिलेगा? अपना क़लम चलाते हैं ताकि यह साबित करें कि भविष्य से उम्मीद नहीं रखी जा सकती! यह भी है, यह वो चीज़ें हैं जिन्हें मैंने ख़ुद देखा है। आलेख लिखते हैं, दलीलें लाते हैं कि भविष्य से कोई उम्मीद नहीं रखी जा सकती, अच्छा लेकिन क्यों? उम्मीद की इतनी सारी वजहों के बावजूद उम्मीद क्यों नहीं रखी जा सकती? ऐसा लगता है जैसे घात लगा कर बैठें हैं ताकि मौक़ा मिलते ही युवाओं के दिलों की उम्मीद को ख़त्म कर दें, उसे मार दें। दुश्मन बरसों से यह काम कर रहा है लेकिन कामयाब नहीं हुआ। बरसों से तरह तरह के प्रोपैगंडों से, भांति भांति के प्रचारिक हथकंडों और इसी तरह के कामों से यह कोशिश की जा रही है और हमारी कमज़ोरियों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है। जी हां हमारे मुल्क में कुछ कमज़ोरियां हैं, वह उसे दस गुना बढ़ा कर पेश करते हैं, तरक़्क़ी है, उस पर कुछ नहीं बोलते, कभी कभी तो इन्कार ही कर देते हैं! मिसाल के तौर पर हमारे फ़ौजी अधिकारी, डिफेंस का कोई उपकरण, कोई मिसाइल बनाते हैं, उसे फ़ायर करते हैं, लेकिन उनके प्रोपैगंडों में कहा जाता है कि यह झूठ है, जबकि सब के सामने उसे फ़ायर किया जाता है! यानी दुश्मन यह सब कर रहा है लेकिन क्या वजह है कि कुछ लोग मुल्क के अंदर भी यही काम करें? मेरी नज़र में कुछ लोगों से यह भूल हो जाती है, हमे इस तरह की भूल नहीं करनी चाहिए, यह ग़लती नहीं करनी चाहिए।

मैं अपने प्यारे युवाओं से सिफ़ारिश करता हूँ कि युवाओं को दुश्मनों की साज़िशों से आगे आगे चलना चाहिए, युवा दुश्मन की साज़िशों से आगे रहें। दुश्मन आप को निराश करना चाहता है, तो आप लोग निराश करने के लिए दुश्मन जितनी कोशिश रहा है उससे ज़्यादा कोशिश उम्मीद पैदा करने के लिए करें, युवाओं के दिल में उम्मीद के फूल खिलाने की ज़्यादा कोशिश करें। दुश्मन देश में भी और विदेश में भी, यह चाहता है कि कुछ आवाज़ें लोगों के कानों तक न पहुंचें, आप दुश्मन की इस कोशिश के मुक़ाबले में, यह आवाज़ें लोगों के कानों तक पहुंचाएं। आज कल तो हर एक के पास तरह तरह के साधन हैं। यह एक बात थी।

राष्ट्रीय हित के बारे में दूसरी बात, जनता के दिलों को एकजुट रखने का मुद्दा है, जनता के संकल्प और इरादों में एकता बनाए रखने का मामला है। इस मैदान में अफ़सोस हमारे मुल्क में समस्याएं हैं, पिछड़ापन है, समाजी रिश्ते और एकता बहुत अहम है, इस मामले में हम से लापरवाही हुई है, हम ख़ुद ही अपने हाथों से, अपनी राष्ट्रीय एकता को नुक़सान पहुंचाते हैं। इस लापरवाही में हम सब भागीदार हैं, हम सब का फ़र्ज़ है कि राष्ट्रीय एकता को, जनता में एकता को, जनता और अधिकारियों में एकता को बचाए रखें, हर रोज़ उसे अधिक मज़बूत करें। यह पहले दिन से ही इस्लामी व्यवस्था की ठोस नीति रही है। इमाम ख़ुमैनी ने पहले दिन से ही जिन चीज़ों पर ज़ोर दिया है उनमें से एक एकता का मुद्दा था। कुछ लोगों में पार्टी के मामलो में राजनीति के मैदान में मतभेद पैदा हो जाता था, इमाम ख़ुमैनी उन्हें डांटते थे और कहते थेः “जो भी कहना है, अमरीका के ख़िलाफ़ कहो”। (11) किसी भी देश में वैचारिक मतभेद, पंसद में फ़र्क़, राजनीतिक मतभेद, एक स्वाभाविक चीज़ है लेकिन नफ़रत फैलाना दूसरी चीज़ है। जी! एक नज़रिया आप का है, एक दूसरे किसी का है, दोनों एक जैसे नहीं हैं, कोई बात नहीं, लेकिन इसे नफ़रत फ़ैलाने की वजह नहीं बनना चाहिए, लोगों के दिलों में एक दूसरे से नफ़रत नहीं पैदा करना चाहिए, एक दूसरे का दुश्मन नहीं बनाना चाहिए, यह नहीं होना चाहिए कि हर एक दूसरे के ख़िलाफ़, जैसे भी  हो, अपमान जनक काम करें, परेशान करें, कभी तो झूठ बोलें और आरोप भी लगाए! तो यह बहुत बड़ी समस्या है। मेरी नज़र में अंदरूनी प्रतिस्पर्धा की अपनी जगह है, यह सही है कि हमारे मुल्क में राजनीति और दूसरे मैदानों में एक दूसरे से मुक़ाबला है, यह अपनी जगह, लेकिन हम सब को एक दूसरे के साथ रहना चाहिए, एक दूसरे का साथ देना चाहिए। एक घर में हो सकता है दो भाईयों की अलग अलग पसंद हो, लेकिन उनका रिश्ता तो ख़त्म नहीं होता, गाली गलौज, झूठ, अपमान जैसे कामों की नौबत नहीं आनी चाहिए, इस पर सब को ध्यान देना चाहिए। यह भी एक बुनियादी और अहम मुद्दा है। मैं ज़ोर देता हूँ, सिफ़ारिश करता हूँ अपने प्यारों युवाओं से कि वह कोशिश करें कि समाज के अंदर नफ़रत न फैलायी जाए। जी हां पंसद में फ़र्क़ होता है, कोई बात नहीं, लेकिन सब लोगों को भाइयों की तरह एक साथ रह कर समाज के आम मुद्दों पर और मुल्क के दुश्मनों के मुक़ाबले में, इस्लामी जुम्हूरिया के विरोधियों के सामने, ईरानी क़ौम के दुश्मनों के मुक़ाबले में एक साथ खड़े होना चाहिए और एक साथ आगे बढ़ना चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अहम मामलों में आज कल सब से ऊपर फ़िलिस्तीन और ग़ज़ा का मामला है, इस बारे में भी कुछ बातें कहता चलूं। “प्रतिरोध” पश्चिमी एशिया में अब एक बुनियादी हक़ीक़त है कि जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर कई आयामों से नज़र डाली जा सकती है।

सब से पहली बात यह कि ग़ज़ा के मसले से यह साबित हो गया कि दुनिया में कैसे अत्याचारों और अंधकारों का राज है। यह पश्चिमी दुनिया, यह सभ्य कही जाने वाली दुनिया, जो मानवाधिकार और इस तरह की चीज़ों का दावा करती है, उसने यह साबित कर दिया कि वहां के लोगों पर, उनकी ज़िंदगी पर, उनकी सोच पर उनके कामों पर अंधेरों का कितना राज है। 30 हज़ार से ज़्यादा लोगों का जनसंहार होता है, नवजात बच्चे से लेकर युवाओं तक, बूढ़ों तक, महिलाओं, मर्दों तक, बीमारों तक को क़त्ल कर दिया जाता है, थोड़े से समय में 30 हज़ार से ज़्यादा लोगों को मार दिया जाता है, उनके घरों को तबाह कर दिया जाता है, उनके मुल्क का बुनियादी ढांचा तबाह हो जाता है और सभ्य दुनिया तमाशा देखती है, न सिर्फ़ यह कि रोकती नहीं, बल्कि मदद भी करती है! ग़ज़ा की जनता पर ज़ायोनी शासन के बर्बर हमले के शुरआती दिनों में ही अमरीकियों ने लगातार आना जाना शुरु कर दिया था, युरोपीय भी एक एक करके आने जाने लगे थे, इस मुजरिम ज़ायोनी शासन के प्रति अपने समर्थन और उसका साथ देने का खुल कर एलान किया, सिर्फ़ एलान ही नहीं किया, बल्कि हथियार भेजे, चीज़ें भेजीं, तरह तरह की मदद भेजी। आज की दुनिया का काला सच यह है, हम आज इस तरह की दुनिया में रह रहे हैं। तो यह एक पहलू है जिससे आज की इस दुनिया की हालत का पता चलता है।

दूसरे पहलू से अगर हम देखें तो यह मसला, रेज़िस्टेंस फ़्रंट के गठन की उपयोगिता का सुबूत है। कुछ लोग कहते थे कि पशिचमी एशिया में रेज़िस्टेंस फ़्रंट बनाने की क़्या ज़रूरत है, अब यह साबित हो गया कि रेज़िस्टेंस फ़्रंट इस इलाक़े में, एक बहुत ही ज़रूरी चीज़ है, और हर दिन इस मोर्चे को मज़बूत किया जाना चाहिए। स्वाभाविक  बात है कि जिन लोगों की अंतरात्मा जाग रही है, इस इलाक़े में, जब वह ज़ायोनियों का ज़ुल्म देखें, जो कि 70 बरसों से जारी है, तो चुप न बैठें, हाथ पर हाथ धरे बैठे न रहें, प्रतिरोध की सोचें, रेज़िस्टेंस फ़्रंट को इस लिए बनाया गया है, फ़िलिस्तीनी क़ौम और फ़िलिस्तीन के समर्थकों के ख़िलाफ़ अपराधी ज़ायोनियों के निरंतर जारी रहने वाले ज़ुल्म से मुक़ाबले के लिए यह रेज़िस्टेंस फ़्रंट बना है।

एक और पहलू से भी अगर हम इस मसले को देखें तो हमें नज़र आता है कि इन हालिया कुछ महीनों में, रेज़िस्टेंस फ़्रंट ने अपनी सही स्थिति का प्रदर्शन कर दिया। शायद अमरीकियों को, पश्चिमी देशों को, इलाक़े की सरकारों को, इस इलाक़े में रेज़िस्टेंस फ़्रंट की ताक़त का, जितनी है उतना अंदाज़ा नहीं था, अब उनकी समझ में आ गया। आप ज़रा फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध को देखें! ग़ज़ा की जनता का सब्र व संयम देखें! हमास और दूसरे फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध गुटों का संकल्प और जोश देखें! लेबनान, यमन और इराक़ में प्रतिरोध के संकल्प की इस ताक़त पर ग़ौर करें! यह प्रतिरोध इस तरह का है। प्रतिरोध ने अपनी हस्ती, अपनी योग्यताओं और अपनी हालत का प्रदर्शन कर दिया, दुनिया को दिखा दिया कि प्रतिरोध किसे कहते हैं? इन लोगों ने अमरीका के सारे अनुमानों को उलट पलट दिया। इस इलाक़े में अमरीकियों का यह प्रयास था कि यहां उपस्थित रह कर इस इलाक़े पर हुकूमत करें, चाहे इराक़ हो, सीरिया हो, या लेबनान, या कोई और इलाक़ा, एक ग़लतफ़हमी की वजह से वह इस तरह की योजना बनाए बैठे थे, प्रतिरोध की ताक़त ने उनका खेल बिगाड़ दिया, यह दिखा दिया कि यह नहीं हो सकता और अमरीकी इस इलाक़े में टिक नहीं सकते, उन्हें इलाक़े से जाने पर मजबूर होना पड़ेगा।

एक और बात, इस मुद्दे पर नज़र डालने के लिए एक और पहलू यह है कि ज़ायोनी शासन की हालत भी सब के सामने खुल कर आ गयी, सब को पता चल गया कि ज़ायोनी शासन, न केवल यह कि अपनी हिफ़ाज़त में ही संकट में पड़ा है बल्कि संकट से बाहर आने में भी संकट में फंसा है, दलदल में फंस गया है, अब वह उस दलदल से निकल नहीं पा रहा है। ग़ज़ा में घुस कर ज़ायोनी शासन ने ख़ुद को दलदल में फंसा लिया है, आज अगर वह ग़ज़ा से निकलता है तो उसकी हार होगी और अगर नहीं निकलता है तब भी हार ही होगी, ज़ायोनी शासन की अब यह हालत है। यह जो उनके फ़ैसलों में विरोधाभास है और जिस तरह की बौखलाहट का वह शिकार हैं, उसकी वजह से ख़ुद ज़ायोनी शासन के अंदर भी नेताओं के बीच गहरे मतभेद पैदा हो गये हैं और वह इसी लिए कुछ फ़ैसला ही नहीं कर पा रहे हैं, आज ज़ायोनी शासन फ़ैसले की ताक़त नहीं रखता और यह चीज़ उसे तबाही से और ज़्यादा इन्शाअल्लाह क़रीब करेगी।

और अब अमरीका। अमरीका ने ग़ज़ा के बारे में सब से बुरा रास्ता अपनाया, अमरीका ने ग़ज़ा में जहां तक हो सकता था सब से बुरी पोज़ीशन और भूमिका अपनायी, वह काम किया कि आज पूरी दुनिया उससे नफ़रत करती है। यह लोग जो लंदन, पेरिस और दूसरे युरोपीय मुल्कों और ख़ुद अमरीका में सड़कों पर निकल कर फ़िलिस्तीन के लिए प्रदर्शन करते हैं, वह लोग दर अस्ल अमरीका से नफ़रत का एलान करते हैं, अमरीका पूरी दुनिया में घृणित हो गया है, इलाक़े में अमरीका से नफ़रत की जा रही थी लेकिन अब उसमें 10 गुना वृद्धि हो गयी है। इलाक़े के मुद्दों के बारे में उनकी समझ भी ग़लत है और इस समझ के आधार पर जो फ़ैसले करते हैं वह भी ग़लत ही होते हैं। इस इलाक़े के हर हिस्से में, यमन में, इराक़ में, सीरिया में, लेबनान में, प्रतिरोध के बहादुर मुजाहिदों की तरफ़ से जो भी किया जाता है, अमरीकियों की नज़र और उनके समीकरणों में उसे ईरान से जोड़ा जाता है, निश्चित रूप से अमरीकियों के यह ग़लत समीकरण एक न एक दिन उसे घुटनों पर ला देंगे। जनता को पहचानते ही नहीं। क़ौमों का, इन क़ौमों के बहादुर नौजवानों का अपमान करते हैं। इन लोगों की अपनी समझ है, उनका अपना इरादा है, संकल्प रखते हैं, यह नौजवान बहादुर हैं।

हम यक़ीनी तौर पर प्रतिरोध का समर्थन करते हैं। जहां तक हमारे लिए संभव है हम रेज़िस्टेंस फ़्रंट का समर्थन और मदद करते हैं, उनके कामों की तारीफ़ करते हैं, लेकिन वह ख़ुद फ़ैसले करते हैं, ख़ुद कार्यवाही करते हैं और इसका उन्हें हक़ भी हासिल है। हमारा मानना है कि ज़ायोनी शासन को पैदा करके इस इलाक़े की जनता पर बहुत बड़ा ज़ुल्म किया जा रहा है, यह बहुत बड़ा ज़ुल्म है जो दसियों बरस से जारी है, इस अत्याचार का सिलसिला बंद होना चाहिए। जो भी इस बड़े जेहाद में, इन्सानी जेहाद में, इस्लामी जेहाद में, अंतरात्मा के जेहाद में, क़दम रखता है, हम उसका साथ देंगे, उसका समर्थन करेंगे, उसकी मदद करेंगे और अल्लाह की मदद से अपने मक़सद में कामयाब भी होंगें।

वस्सलाम अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातुहू

  1. हाफ़िज़, दीवान, गज़लें
  2. कामिलुज़्ज़ियारात पेज 39
  3. मौलवी, मसनवी मानवी, दफ़्तरे अव्वल, हदीसः बेहारुलअनवार, जिल्द 59 पेज 271
  4. सूरए अंबिया, आयत 105
  5. सूरए नेसा, आयत 69
  6. “जनता की भागीदारी से पैदावार में छलांग” नये साल के आरंभ में रहबरे इन्क़ेलाब का पैग़ाम (20/03/2024)
  7. सातवीं विकास योजना सन 1403 हिजरी शम्सी से सन 1407 हिजरी शम्सी तक।
  8. उपस्थित लोगों का नाराः “ हे आज़ाद लोगों के रहबर! हम तैयार हैं, तैयार हैं”।
  9. इमाम ख़ुमैनी इमाम बारगाह में मुल्की पैदावार की प्रदर्शनी का निरीक्षण। (2024-01-29)
  10. इमाम ख़ुमैनी की 34वीं बरसी के मौक़े पर रहबरे इन्क़ेलाब की तक़रीर।  (2023-06-04)
  11. सहीफ़ए इमाम, जिल्द 11, पेज 121, तेहरान आईआरजीसी के बीच तक़रीर (1979-11-25)