पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने फ़रमायाः सब्र की तीन क़िस्में हैं, मुसीबत पर सब्र, इताअत (व इबादत) पर सब्र और पाप व अल्लाह की नाफ़रमानी पर सब्र (नाफ़रमानी से बचना)। तो जो शख़्स मुसीबत में सब्र से काम लेता है और सुकून के साथ उस मुसीबत को बर्दाश्त कर लेता है, उसे अल्लाह 300 दर्जे अता करता है जिनमें एक से दूसरे दर्जे के बीच ज़मीन से आसमान तक का फ़ासला है। जो इताअत पर सब्र दिखाता है, अल्लाह उसे 600 दर्जे अता करता है जिनमें हर दर्जे का दूसरे दर्जे के बीच फ़ासला, ज़मीन की तह से अर्श तक का फ़ासला है और जो शख़्स गुनाह पर सब्र करता है (गुनाह से ख़ुद को बचाता है) अल्लाह उसे 900 दर्जे अता करता है जिनमें दो दर्जों के बीच का फ़ासला, ज़मीन की आख़िरी तह से अर्श के आख़िरी तबक़े का फ़ासला है।(अल-काफ़ी, जिल्द-2, पेज-191)

इमाम ख़ामेनेई

24/10/2021