उन्होंने इस मुलाक़ात में अपने ख़ेताब में ग़ज़ा पट्टी के हालात की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह वाक़ेया दो पहलुओं से अभूतपूर्व है। यह ज़ायोनी सरकार के पहलू से भी अभूतपूर्व है क्योंकि इस तरह की निर्दयता, अपराध, हैवानियत, बच्चों का क़त्ल, घटियापन, बेरहमी, मरीज़ों और अस्पलातों पर बंकर बस्टर बम गिराने की कोई मिसाल कभी नहीं देखी गयी। उन्होंने कहा कि ग़ज़ा का वाक़ेया फ़िलिस्तीनी अवाम और फ़िलिस्तीनी मुजाहिदों के पहलू से भी बेनज़ीर है क्योंकि इस तरह के सब्र, दृढ़ता और दुश्मन को बदहवास कर देने की मिसाल भी नहीं देखी गई।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने कहा कि अगरचे फ़िलिस्तीनी अवाम तक खाना-पानी, दवाएं और ईंधन नहीं पहुंच पा रहा है लेकिन वो पहाड़ की तरह डटे हुए हैं और यही घुटने न टेकना, उन्हें फ़ातेह बना रहा है क्योंकि अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है और उनकी फ़तह की निशानियां आज दिखाई दे रही हैं।

उन्होंने भारी मात्रा में हथियारों, जंगी उपकरणों व संसाधनों के होते हुए ज़ायोनी सरकार की बेबसी को इस बेनज़ीर टकराव का एक और अहम पहलू बताया और कहा कि इस वाक़ए में ज़ायोनी सरकार की हार, अमरीका की भी हार है और आज दुनिया में कोई भी ज़ायोनी सरकार और अमरीका या ब्रिटेन के बीच अंतर नहीं मानता और सभी जानते हैं कि ये सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं।

उन्होंने युद्ध विराम के लिए यूएन सेक्युरिटी काउंसिल के कई प्रस्तावों को वीटो किए जाने को अमरीकी सरकार का बेशर्मी से भरा क़दम और बच्चों, औरतों, मरीज़ों, बूढ़ों तथा दूसरे निहत्थे लोगों पर बमबारी में ज़ायोनी सरकार का हाथ बटाना क़रार दिया।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने आगे कहा कि फ़िलिस्तीनी क़ौम, सत्य के मोर्चे और रेज़िस्टेंस फ़्रंट की बड़ी कामयाबी, पश्चिम और अमरीका को बेनक़ाब करना और मानवाधिकार की रक्षा के उनके सभी झूठे दावों की क़लई खोलना है क्योंकि इस्राईल, अमरीका के सपोर्ट के बिना इतने ज़्यादा अपराध नहीं कर सकता था और आज पूरी दुनिया के सभी लोगों के लिए अमरीका और ब्रिटेन का शैतानी चेहरा पूरी तरह ज़ाहिर हो चुका है।

उन्होंने कहा कि सरकारों और क़ौमों की ज़िम्मेदारी, रेज़िस्टेंस फ़ोर्सेज़ की हर तरह से मदद करना है और रेज़िस्टेंस के मोर्चे की मदद करना सभी का फ़रीज़ा है जबकि ज़ायोनी सरकार की मदद करना जुर्म और ग़द्दारी है।

उन्होंने कुछ इस्लामी मुल्कों की ओर से ज़ायोनी सरकार की आपराधिक मदद पर अफ़सोस जताते हुए कहा कि मुसलमान क़ौमें इस बात को कभी नहीं भूलेंगी।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ज़ायोनी सरकार को वस्तुओं, तेल और ईंधन की सप्लाई पर रोक लगाए जाने को जिसने ग़ज़ा के अवाम की पानी की सप्लाई पर भी रोक लगा रखी है, इस्लामी मुल्कों की जिम्मेदारियों में गिनवाया।

उन्होंने कहा कि मुसलमान अवाम को अपनी अपनी सरकारों से मांग करनी चाहिए कि वो ज़ायोनी अपराधियों को किसी भी तरह की मदद न दें, उनसे हर तरह का संपर्क ख़त्म कर दें और अगर स्थायी तौर पर ज़ायोनी सरकार से संबंध ख़त्म करना उनके लिए संभव न हो तो कम से कम अस्थायी तौर पर इस संबंध को खत्म करके इस दुष्ट, ज़ालिम और ख़ूंख़ार सरकार पर दबाव डाले।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कहा कि आज पूरी दुनिया के ज़मीर को चोट पहुंची है, अमरीका और यूरोप में लोग सड़कों पर आ रहे हैं और उनकी कुछ राजनैतिक हस्तियां, यूनिवर्सिटियों के चांसलर और वैज्ञानिक, अपनी सरकारों की ओर से ज़ायोनी सरकार का सपोर्ट किए जाने पर एतेराज़ कर रहे हैं लेकिन इसके बावजूद, कुछ सरकारें इस निर्दयी व जल्लाद सरकार की मदद कर रही हैं। उन्होंने कहा कि अल्लाह की मदद से निश्चित तौर पर सत्य के मोर्चे की फ़तह होगी और क़ाबिज़ ज़ायोनी सरकार जड़ से ख़त्म हो जाएगी और हमें उम्मीद है कि आप जवान, उस निश्चित भविष्य को अपनी आँखों से देखेंगे।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपने ख़ेताब के एक भाग में, 1 मार्च को आगामी संसदीय चुनाव की ओर इशारा करते हुए कहा कि क़ौम, बेहतरीन अंदाज़ में यानी पुरजोश शिरकत, मुख़्तलिफ़ धड़ों और नज़रियों के बीच वास्तविक प्रतिस्पर्धा, सही ढंग और पूरी तरह शांति जैसी चार ख़ूबियों के साथ चुनाव के आयोजन के लिए ख़ुद को तैयार करे।

उन्होंने इस्लामी गणराज्य में चुनाव और इसके मक़सद की अहमियत को बयान करते हुए कहा कि सिस्टम का इस्लामी और लोकतांत्रिक होना, दोनों ही चुनाव से जुड़ा हुआ है क्योंकि लोकतंत्र और अवाम की सत्ता सहित मुल्क को संचालन में अवाम के इरादे को लागू करने के लिए चुनाव के सिवा कोई और रास्ता नहीं है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने चुनाव न होने की स्थिति को तानाशाही आ जाने या अराजकता, अशांति और हंगामा होने का कारण बताया और कहा कि चुनाव ही ऐसा सही रास्ता है जो अवाम की सत्ता को व्यवहारिक बना सकता है।