इस्लामी गणराज्य ईरान की इमाम अली अलैहिस्सलाम आर्मी युनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन समारोह को संबोधित करते हुए इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के महत्व को बयान किया। 10 अक्तूबर 2023 को उन्होंने फ़िलिस्तीन के हालात पर बात करते हुए कहा कि ज़ायोनी सरकार को इंटेलीजेंस और सामरिक पहलू से इतना बड़ा नुक़सान पहुंचा है कि जिसकी भरपाई आसान नहीं है। 7 अक्तूबर के बाद का ज़ायोनी शासन इस तारीख़ से पहला वाला ज़ायोनी शासन नहीं रह गया है। (1)
आयतुल्लाह ख़ामेनेई की स्पीच का अनुवाद पेश हैः
बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार और हमारे नबी हज़रत अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा और उनकी सबसे नेक, सबसे पाक, चुनी हुयी, हिदायत याफ़्ता, हिदायत करने वाली, मासूम और सम्मानित नस्ल, ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर।
मैं ईरान के उन नौजवानों और ईरानी क़ौम की आंखों के तारों पर सलाम भेजता हूं जिनका आज ग्रेजुएशन है और इसी तरह उन स्टूडेंट्स को भी मुबारकबाद देता हूं जिनको आज मुल्क की आर्मी आफ़ीसर्ज़ युनिवर्सिटियों में एडमिशन मिला है और उनका पहला दिन है। अपने प्यारे भाईयों और कमांडरों की रिपोर्टों पर उनका शुक्रिया अदा करता हूं और आप लोगों ने जो ख़ूबसूरत तराना पेश किया उस पर भी मैं आप का शुक्र गुज़ार हूं।
सब से पहली जो बात मैं आप नौजवानों से कहना चाहता हूं वह यह है कि आप आर्म्ड फ़ोर्सेज़ में काम कर रहे हैं और आप ने इसे चुना है, यह मुल्क को चलाने और हमारे इस प्यारे देश को संभालने के सिलसिले में बेहद अहम विभाग है, यह गौरव आप को मिला है। सुरक्षा संबंधी काम, चाहे सेना में हो, या आईआरजीसी में हो या फिर पुलिस में है, उन कामों में गिना जाता है जो देश की अहम ज़िम्मेदारियों और राष्ट्रीय कर्तव्यों की लिस्ट में सब से ऊपर होते हैं, आप ने यह ज़िम्मेदारी क़ुबूल की है। आप ने आर्म्ड फ़ोर्सेज़ में शामिल होने का फ़ैसला करके अपने और अपने घरवालों के लिए गौरव हासिल कर लिया है।
सशस्त्र बल, नेशनल सेक्युरिटी के लिए फ़ौलादी ढाल समझे जाते हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा की फ़ौलादी ढाल! और राष्ट्रीय सुरक्षा, उन सभी चीज़ों की बुनियाद है जो मुल्क की तरक़्क़ी में प्रभावशाली रोल रखती हैं। सुरक्षा नहीं होगी तो कुछ भी न होगा। अगर किसी मुल्क में अपनी हिफ़ाज़त की ताक़त न होगी, तो फिर उसके पास इसके सिवा कोई रास्ता नहीं होगा कि वह इस ताक़त और उस ताक़त की छत्रछाया में रहे, उसे किसी न किसी ताक़त से जुड़े रहने पर मजबूर होना पड़ेगा, इसका क्या मतलब है? यानी वह अपनी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को दांव पर लगाएगा। अगर यह नहीं करेगा, यानी अगर अपनी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को दांव पर नहीं लगाएगा तो फिर उसकी राजनीतिक बातों को दुनिया में कोई सुनेगा नहीं, आर्थिक मैदान में तरक़्क़ी होगी, तो भी इस आर्थिक विकास को बाक़ी रखने वाली चीज़ उसके पास नहीं होगी, उसे जारी रखने की गारंटी नहीं होगी। ग़ौर करें कि सेक्युरिटी कितनी अहम चीज़ है! और आप सब सुरक्षा के रखवाले हैं, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय पहचान और राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का क़िला हैं। अब आप लोग इस जगह पहुंच गये हैं। इस बुनियाद पर सही अर्थों में आप को मुबारकबाद देना चाहिए।
ख़ुदा का शुक्र है हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने बड़ा इम्तेहान पार किया है। कभी कहीं की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ बस वर्दी, मेडल और दिखावे के लिए होती हैं लेकिन हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ नहीं, उन्होंने मैदान में इम्तेहान दिया है और सिर उठा कर निकली हैं, बहुत से अहम इम्तेहान दिये हैं और सिर ऊंचा करके बाहर निकली हैं। जिनमें सब से अहम इम्तेहान, 8 बरसों तक चलने वाली थोपी गयी जंग थी, हमारे मुल्क पर जंग थोप दी गयी थी, वह भी ऐसी जंग जो सही अर्थों में विश्व युद्ध थी। अब तक का आख़िरी इम्तेहान, दाइश के फ़ितने से मुक़ाबला था, वह भी बहुत अहम था। थोपी गयी जंग के दौरान हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने अपने मुल्क की एक एक इंच ज़मीन और इस्लाम की हुक्मरानी की हिफ़ाज़त की, उन्होंने उस दौर के पूरब पश्चिमी की संयुक्त साजिश को नाकाम बना दिया, हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने यह काम किया है। उस दौर में, दुनिया में पूरब व पश्चिम की राजनीतिक व सैनिक ताक़तों ने किसी न किसी तरह हमलावर सद्दाम की मदद की थी, लेकिन आर्म्ड फ़ोर्सेज़ ने मुल्क की ज़मीन और पवित्र इस्लामी हुकूमत को बचाने में कामयाब रहीं, यह काम कर दिखाया। दाइश के फ़ितने में जो दर अस्ल, अमरीका की ओर से एक शैतानी प्लान था, दाइश को अमरीकियों ने बनाया ताकि इस इलाक़े की स्टैब्लिटी को ख़त्म कर दें, कि जिसका अस्ल निशाना ईरान था, इस मौक़े पर भी हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़, निशाना बनने वाले देश की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के साथ मिल कर, इस फ़ितने की आग बुझाने में कामयाब रहीं, इस प्लान को फ़ेल करने में कामयाब रहीं। यह सब फ़ख़्र की बात है, यह आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के सीने पर सजे गोल्ड मेडल हैं। मेरे प्यारो! अपनी क़द्र कीजिए, इस ज़िम्मेदारी की क़द्र कीजिए। आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के अतीत पर फ़ख़्र कीजिए और उस भविष्य पर भी जो आप के हाथ में है, जो आप की मुट्ठी में है, अपने पूरे वजूद के साथ सोचिए और उस हिसाब से काम कीजिए।
डिफेंस युनिवर्सिटियां माहिर, बहादुर और उपयोगी मैन पावर तैयार करने के केन्द्र होते हैं, माहिर, बहादुर, उपयोगी। यह मैन पावर, इन अहम ख़ूबियों के साथ, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की युनिवर्सिटियों में तैयार की जाती है और उन्हें आगे बढ़ाया जाता है। मैं यूनिवर्सिटियों को बहुत सिफ़ारिश करता हूं, आज भी कुछ सिफ़ारिशें करुंगा जिनमें से कई सिफ़ारिशें पहली भी की जा चुकी हैं। सब से पहली सिफ़रिश यह है कि नॉलेज और रिसर्च को मज़बूत बनाया जाए, युनिवर्सिटियों को नॉलिज और रिसर्च के मैदान में जितना हो सके समृद्ध बनाएं। उसके बाद हौसला, दीन और अख़लाक़ की सतह को बढ़ाएं, यह भी मेरी अहम सिफ़ारिश है। रिपोर्टों में बताया गया है कि इस मैदान में बेहतरी आयी है, मैं मान लेता हूं लेकिन ज़ोर देता हूं कि इसी तरह इस राह पर आगे बढ़ते रहना चाहिए। हमारे कैडिट कॉलेज के स्टूडेंट्स को, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के किसी भी हिस्से में हों, उन में जज़्बा, दीन और अख़लाक़ के पहलू से लगातार बेहतरी आती रहनी चाहिए। उसके बाद मेरी यह सिफ़ारिश है कि स्टूडेंट्स की क्लासेज़ और रहने की जगहों को बेहतर किया जाए। आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के ज़िम्मेदार इस तरफ़ ध्यान दें। वर्कशाप, क्लास, हॉस्टल, ज़िंदगी के लिए ज़रूरी सहूलतों के लिहाज़ से हर दिन पहले से ज़्यादा बेहतर होना चाहिए। एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स के नॉलेज की सतह पर ध्यान दिया जाए। कभी कभी यह भी सुनने में आता है कि कुछ युनिवर्सिटियों में एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स पढ़ाई लिखाई और दिमाग़ी योग्यताओं में पीछे होते हैं। इसी तरह दूसरी सिफ़ारिशें हैं जो मैं हमेशा करता हूं। यह तो युनिवर्सिटियों के बारे में मेरी सिफ़ारिशें थीं।
अभी कुछ दिनों से एक अहम फ़ौजी और राजनैतिक मुद्दे ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है और वह प्यारे फ़िलिस्तीन की घटनाएं हैं।(2) हम इन बातों की तरफ़ से, इन अहम मामलों की ओर से लापरवाही नहीं कर सकते, उसे नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते। अच्छी बात यह है कि हमारे मुल्क के ओहदेदारों ने इस मामले में सही और अच्छा रुख़ अपनाया है। मैं आप सब से और ईरान की क़ौम और इस्लामी मुल्कों के अपने सभी भाइयों से इस बारे में कुछ बातें कहना चाहता हूं।
सब से पहली बात तो वही है जो पिछले दो-तीन दिनों से सभी विश्लेषणों में कही जा रही है और वह यह कि 7 अक्तूबर से जो कुछ हुआ है उससे अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन को फ़ौजी पहलू से भी और इंटेलिजेंस के लिहाज़ से भी ऐसी हार हुई है जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती, हार का तो सब ने कहा है लेकिन मेरा ज़ोर इस पर है कि “इस हार की भरपाई नहीं की जा सकती”। मैं यह कह रहा हूं कि तबाही लाने लाने वाले इस भूकंप ने अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के कुछ अस्ली स्तंभों को तबाह कर दिया है कि जिन्हें फिर से बनाना इतना आसान नहीं होगा। इस बात की संभावना बहुत कम है कि ज़ायोनी शासन अपने बड़े बड़े दावों के बावजूद, पूरी दुनिया में पश्चिम की ओर से जो उसकी मदद की जा रही है उसके बावजूद इन स्तंभों को फिर से बनाने में कामयाब हो जाए। मैं कह रहा हूं कि शनिवार 7 अक्तूबर के बाद से ज़ायोनी शासन, वह पहले वाला ज़ायोनी शासन नहीं रह गया, और उसे जो चोट पहुंची है उसकी पीड़ा को इतनी आसानी से ख़त्म नहीं किया जा सकता।
दूसरी बात जो मेरी नज़र में बहुत अहम है वह यह है कि ख़ुद ज़ायोनी अपनी हरकतों से इस मुसीबत के ज़िम्मेदार हैं। जब ज़ुल्म व जुर्म, हद से गुज़र जाए तो फिर तूफ़ान के लिए तैयार रहना चाहिए। तुम ने फ़िलिस्तीनी क़ौम के साथ क्या किया? फ़िलिस्तीनियों का बहादुरी और बलिदान के साथ उठाया गया यह क़दम, ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़ा करने वाले ज़ायोनी दुश्मन के उन अपराधों का जवाब था जो बरसों से जारी हैं और हालिया महीनों में उन में बहुत तेज़ी आ गयी थी, ग़लती ज़ायोनी शासन के मौजूदा ज़िम्मेदारों की है। दुनिया की हिस्ट्री में, इस हालिया समय में यानी इन 100 या उससे कुछ ज़्यादा बरसों की मुद्दत में, जहां तक हमें मालूम है, किसी भी मुसलमान कौम को इस तरह के दुश्मन का सामना नहीं रहा जिस तरह के दुश्मन का आज फ़िलिस्तीनियों को सामना है, मुस्लिम क़ौमों और मुस्लिम मुल्कों को दुश्मनी में इतनी बुराई, इतनी दुष्टता इतनी निर्दयता और बेरहमी का सामना नहीं रहा। बहुत से अवसरों पर दुनिया की क़ौमों पर ज़ुल्म हुआ है, लेकिन उनका दुश्मन इतना बेशर्म, इतना दुष्ट, इतना बेरहम नहीं था, कोई भी मुसलमान क़ौम, फ़िलिस्तीनी क़ौम जैसे दबाव में, घेराबंदी में, ज़रूरी चीज़ों के भारी अभाव में नहीं रही और न है, न आज इस दुनिया में कहीं उसकी मिसाल मिलती है और न ही आज इस अर्से में जो हमारी नज़र देख पाती है, इस तरह के हालात नज़र आते हैं। पश्चमी सरकारें, ख़ास तौर पर अमरीका और ब्रिटेन ने इस जाली, ज़ालिम व ख़ूंखार सरकार जितनी दुनिया में किसी दूसरी सरकार की मदद नहीं की है न ही इतना साथ दिया है, पहले अंग्रेज़ों ने मदद की बाद में अमरीकियों ने, उनके साथ ही दुनिया की बहुत सी सरकारों ने, जब पूर्वी ब्लॉक था, सोवियत यूनियन और दूसरे देश, सब ने इस ज़ालिम सरकार की मदद की है।
और इस ज़ालिम हुकुमत का रवैया यह था कि उसने फ़िलिस्तीनी औरतों-मर्दों पर रहम नहीं किया, बच्चों-बूढ़ों पर रहम नहीं किया, मस्जिदुल अक़्सा के सम्मान का ख़्याल नहीं रखा, उसने ज़ायोनी कालोनियों में रहने वालों को पागल कुत्तों की तरह फ़िलिस्तीनियों पर छोड़ दिया, नमाज़ियों को पैरों तले रौंदा गया, तो इतने ज़ुल्म और अपराधों पर एक क़ौम क्या करे? एक ग़ैरतमंद क़ौम, एक पुरानी तारीख़ रखने वाली क़ौम, फ़िलिस्तीनी क़ौम आज और कल की क़ौम नहीं है, कई हज़ार साल की क़ौम है, इतने ज़ुल्म पर उसकी प्रतिक्रिया क्या हो? ज़ाहिर सी बात है कि वह तूफ़ान खड़ा कर देगी, जैसे ही उसे मौक़ा मिलेगा वह तूफ़ान लाएगी। ज़ालिम ज़ायोनियो! ग़लती ख़ुद तुम्हारी है, इस तूफ़ान की वजह ख़ुद तुम हो, ख़ुद तुमने यह मुसीबत मोल ली है। इस क़िस्म के दुश्मन के सामने एक ग़ैरतमंद व बहादुर क़ौम के पास इसके अलावा और क्या रास्ता बाक़ी रह जाता है।
तीसरी बात! यह दुष्ट और ज़ालिम दुश्मन, अब जब उसे तमांचा लगा, तो विक्टिम कार्ड खेल रहा है, दूसरे भी उसकी इसमें मदद कर रहे हैं, साम्राज्यवादी देशों का मीडिया उनकी मदद कर रहा है, ताकि यह साबित किया जाए कि वह मज़लूम है। वैसे यह भी उनके अंदाज़े की ग़लती है जिसके बारे में मैं बात करुंगा, यह ख़ुद को पीड़ित और मज़लूम दिखाना, ढोंग और झूठ है। अगर फ़िलिस्तीनी मुजाहिद, ग़ज्ज़ा की घेराबंदी तोड़कर बाहर निकलने में कामयाब हो गये, ख़ुद बाहर आ गये और ज़ायोनियों के फ़ौजी और ग़ैर फ़ौजी ठिकानों तक पहुंच गये तो अब यह ज़ायोनी शासन मज़लूम हो गया? यह अतिग्रहणकारी शासन, जो भी हो, पीड़ित तो नहीं, ज़ालिम है, अतिक्रमणकारी है, जाहिल है, बकवास करने वाला है, यह सब कुछ है लेकिन पीड़ित नहीं है, ज़ालिम है। कोई भी इस दुष्ट राक्षस को पीड़ित बना कर पेश नहीं कर सकता।
चौथी बात! इस विक्टिम कार्ड की आड़ में क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन फिर से अपने ज़ुल्म को कई गुना अधिक शिद्दत से आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। ग़ज़्ज़ा पर हमला, आम लोगों के घरों पर हमला, आम नागरिकों पर हमला, ग़ज्ज़ा के लोगों का जनसंहार, यह विक्टिम कार्ड एक बहाना है ताकि वह इसकी आड़ में अपना ज़ुल्म कई गुना बढ़ा ले, पीड़ित बन कर वह अपने इन अपराधों को सही ठहराने की कोशिश कर रहा है। मैंने कहा कि यह भी उसके अंदाज़े की ग़लती है। क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन के ओहदेदार, फ़ैसला करने वाले और उनका साथ देने वाले यह जान लें कि उनके इसी काम की वजह से वह ज़्यादा बड़ी मुसीबत में फंसने वाले हैं, जान लें कि इस क़िस्म के ज़ुल्म के मुक़ाबले में उनके बदनुमा चेहरे पर ज़्यादा ज़ोरदार तमांचा लगेगा। फ़िलिस्तीन के बहादुर नौजवानों का संकल्प, हथेली पर जान रख कर आगे बढ़ने वाले फ़िलिस्तीनियों का ठोस इरादा, इन अपराधों से और मज़बूत होगा, आज यह हालात हैं। वह दिन गये जब कुछ लोग आते थे कि ज़बानी बातें करके, ज़ालिम के साथ उठ-बैठ कर फ़िलिस्तीन में अपने लिए पोज़ीशन हासिल कर लें, वह ज़माना गुज़र चुका है। आज फ़िलिस्तीनियों की आंखें खुली हैं, नौजवान जाग रहे हैं, फ़िलिस्तीन में प्लानिंग करने वाले पूरी महारत के साथ अपना काम कर रहे हैं। इस बुनियाद पर दुश्मन का यह अंदाज़ा भी ग़लत है कि अगर वह विक्टिम कार्ड खेलेगा तो इससे वह अपने अपराधिक हमले जारी रख सकेगा। यक़ीनी तौर पर इस्लामी दुनिया को इन अपराधों पर चुप नहीं रहना चाहिए, प्रतिक्रिया दिखानी चाहिए।
आख़िरी बातः ज़ायोनी शासन के हिमायतियों और ख़ुद इस ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़ा करने वाली हुकूमत के कुछ ओहदेदारों ने इन दो-तीन दिनों में कुछ बकवास की है और यह बकवास जारी भी है जिसमें एक यह है कि इस कार्यवाही के पीछे इस्लामी जुम्हूरिया ईरान का हाथ है, यह उनकी ग़लतफ़हमी है। हम फ़िलिस्तीनियों का साथ दे रहे हैं, उनके संघर्ष के साथ खड़े हैं, हम फ़िलिस्तीन के सूझ-बूझ रखने वाले और रणनीतिकार बहादुर नौजवानों का माथा और बाज़ू चूमते हैं और उन पर फ़ख़्र करते हैं, यह बात अपनी जगह लेकिन जो लोग यह कहते हें कि फ़िलिस्तीनियों का यह क़दम, ग़ैर फ़िलिस्तीनियों के सहारे है, उन्होंने फ़िलिस्तीनी क़ौम को समझा ही नहीं है, उन्हें पहचाना ही नहीं, उन्होंने फ़िलिस्तीनी क़ौम को कम समझा लिया है, उनकी ग़लती यही है, यहां भी वह अंदाज़े की ग़लती कर रहे हैं। यक़ीनी तौर पूरी इस्लामी दुनिया का फ़र्ज़ है कि वह फ़िलिस्तीनियों का साथ दे और अल्लाह की इजाज़त से इस्लामी दुनिया मदद भी करेगी लेकिन यह काम, ख़ुद फ़िलिस्तीनियों का है, सूझ बूझ रखने वाले रणनीतिकार, बहादुर नौजवान, जान हथेली पर रख कर घूमने वाले जवानों ने बहादुरी की यह दास्तान लिखी है और इन्शाअल्लाह यह कारनामा, फ़िलिस्तीन को छुटकारा दिलाने की राह में एक बड़ा क़दम होगा।
वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू।