इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मंगलवार की शाम तेहरान में मुल्क के आला अधिकारियों से मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में उन्होंने दुनिया में राजनैतिक बदलाव को बहुत तेज़ और साथ ही इसको इस्लामी गणराज्य के दुश्मनों के मोर्चे को कमज़ोर करने वाला बताया और कहा कि इस मौक़े से फ़ायदा उठाने के लिए हमें अपनी विदेश नीति को और सरगर्म करना चाहिए और नई पहल करना चाहिए।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने नए वर्ल्ड ऑर्डर में ईरान विरोधी मोर्चे की कमज़ोरी की निशानियों को बयान करते हुए कहा कि दुनिया में ईरान के सबसे बड़े विरोधियों में से एक अमरीका है और फ़ैक्ट्स बताते हैं कि ओबामा का अमरीका बुश के अमरीका से, ट्रम्प का अमरीका ओबामा के अमरीका से, और इन साहब (बाइडन) का अमरीका ट्रम्प के अमरीका से ज़्यादा कमज़ोर है।
उन्होंने इस बारे में आगे कहा कि अमरीका में दो तीन साल पहले के चुनाव में जो दो धड़े बन गए थे वो अब भी उसी शिद्दत के साथ मौजूद हैं, अमरीका, ज़ायोनी सरकार के संकट को हल नहीं कर सका, अमरीका ने एलान किया था कि वह ईरान के ख़िलाफ़ संयुक्त अरब गठजोड़ बनाने का इरादा रखता है लेकिन वह जो कुछ चाहता है आज उसके बरख़िलाफ़ बातें सामने आयी हैं और अरब मुल्कों के साथ ईरान के संबंध बढ़ते जा रहे हैं।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने आगे कहा कि अमरीका राजनैतिक दबाव और पाबंदियों के ज़रिए एटमी मसले को अपने प्लान के मुताबिक़ ख़त्म करना चाहता था लेकिन वह यह भी नहीं कर सका।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अमरीका के कमज़ोरी की ओर बढने की मिसालें पेश करते हुए कहा कि अमरीका ने युक्रेन जंग शुरू कराई, लेकिन यह जंग उसके और उसके यूरोपीय घटकों के बीच खाई पैदा होने का कारण बन गयी क्योंकि उस में मार उन्हें खानी पड़ रही है जबकि फ़ायदा अमरीका उठा रहा है।
उन्होंने कहा कि अमरीका, लैटिन अमरीका को अपना बैक यार्ड समझता है लेकिन वहाँ कई अमरीका विरोधी सरकारें सत्ता में आयी हैं। अमरीका, वेनेज़ोएला में पूरी तरह बदलाव लाना चाहता था यहाँ तक कि इस मुल्क के लिए पैसों, हथियारों और फ़ौजी ताक़त से नक़ली राष्ट्रपति भी तैयार कर दिया, लेकिन वह नाकाम रहा।
अमरीकी डॉलर की ऐसी कमज़ोरी कि कुछ मुल्क स्थानीय करेंसियों या किसी अन्य करेंसी में व्यापार कर रहे हैं, एक दूसरी दूसरी मिसाल थी, जिसका हवाला देते हुए इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने कहा कि इन बातों से साबित होता है कि अमरीका, जो इस्लामी सिस्टम के दुश्मनों में सबसे ऊपर है, मुसलसल कमज़ोर हो रहा है।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस्लामी गणराज्य के दूसरे दुश्मन यानी ज़ायोनी सरकार के बारे में कहा कि अपनी पचहत्तर साल की उम्र में इस सरकार को कभी भी आज जैसी ख़तरनाक मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ा था। उन्होंने ज़ायोनी सरकार में बिखराव के आसार की कुछ मिसालें पेश कीं।
उन्होंने कहा कि ज़ायोनी सरकार में राजनैतिक भूंचाल आया हुआ है और पिछले चार साल में चार प्रधान मंत्री बदल गए, वहाँ राजतैनिक गठजोड़ बनते ही बिखर जाता है, पूरे ज़ायोनी शासन में गहरा मतभेद पाया जाता है जिसकी एक निशानी कुछ शहरों में लाखों की तादाद में लोगों की शिरकत से होने वाले प्रदर्शन हैं और ज़ायोनी, कुछ मीज़ाइल फ़ायर करके इन कमज़ोरियों की भरपाई करना चाहें तो यह मुमकिन नहीं है।
उन्होंने ज़ायोनी सरकार के जल्द ही बिखरने के सिलसिले में ज़ायोनी अधिकारियों की मुसलसल चेतावनियों को ज़ायोनियों के कमज़ोर होने की एक और निशानी बताया और अपनी एक भविष्यवाणी की ओर इशारा करते हुए कहा कि हमने कहा था कि वे अगले पच्चीस साल नहीं देख पाएंगे लेकिन लगता है कि उनको तो (मिट जाने की) कुछ ज़्यादा ही जल्दी है।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने फ़िलिस्तीनी गुटों की ताक़त के दसियों गुना बढ़ जाने और ओस्लो तथा यासिर अरफ़ात के अपमानित फ़िलिस्तीन के प्रतिरोध के शेरों वाले फ़िलिस्तीन में बदल जाने को, ईरान विरोधी मोर्चे के कमज़ोर होने और प्रतिरोध के मोर्चे के मज़बूत होने की एक और निशानी बताया।
उन्होंने अपनी स्पीच के एक दूसरे भाग में मुल्क के भीतर दुश्मनों की साज़िश पर चर्चा की और कहा कि ईरान के भीतर कुछ साज़िशें थीं और रहेंगी और औरत के मसले को बहाना बनाकर और पश्चिम की ख़ुफ़िया एजेंसियों की मदद से पिछले (हिजरी शम्सी) साल में जो हंगामे हुए थे, वे उन्हीं साज़िशों की मिसाल हैं।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने पश्चिमी मुल्कों में औरतों की अफ़सोसनाक हालत की ओर, जिसमें औरत सुरक्षित नहीं है, इशारा करते हुए कहा कि ये मुल्क, जिनमें से कुछ में ख़ुद उन्हीं के एतराफ़ के मुताबिक़, औरतें सड़कों पर या फ़ौजी कैंपों और छावनियों तक में सुरक्षित नहीं हैं और मिसाल के तौर पर एक पर्दा करने वाली मुसलमान औरत, जो शिकायत लेकर अदालत में गयी थी, मुजरिम के हमले से क़त्ल और शहीद हो जाती है, इस्लामी गणराज्य पर, जो औरत को बेहतरीन दर्जा देता है, सवालिया निशान खड़ा करते हैं।
उन्होंने इस बात का ज़िक्र करते हुए कि औरत का मसला सिर्फ़ पहनावा नहीं है, शिक्षा, रोज़गार, राजनैतिक व सामाजिक सरगर्मियों के मैदानों और अहम ओहदों पर ईरानी औरतों और लड़कियों की भरपूर मौजूदगी और इंक़ेलाब से पहले की जिद्दो जेहद, पवित्र डिफ़ेन्स और उसके बाद के दौर में औरतों की सरगर्म मौजूदगी की तरफ़ इशारा किया।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस सिलसिले में हिजाब की शरई और क़ानूनी पाबंदी की व्याख्या करते हुए कहा कि पहनावे के मसले में हिजाब एक सरकारी नहीं बल्कि एक शरई और क़ानूनी पाबंदी है और हिजाब न करना शरई लेहाज़ से भी हराम है और राजनैतिक लेहाज़ से भी।
उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि ऐसी बहुत सी औरतें जो पर्दा नहीं करतीं, इस काम के पीछे काम करने वाले हाथों यानी दुश्मन की ख़ुफ़िया एजेंसियों से बाख़बर नहीं हैं, कहा कि अगर वे जान लें कि हिजाब न करने और पर्दे की मुख़ालेफ़त के लिए उकसाने के पीछे कौन लोग और कौन सी एजेंसियां हैं तो वे ये काम नहीं करेंगी, अलबत्ता जिस तरह दुश्मन ने प्लानिंग और साज़िश के साथ यह काम शुरू किया है, ओहदेदारों के पास भी योजना और प्रोग्राम होना चाहिए, जो उनके पास है और ग़ैर उसूली और बिना योजना वाले कामों से दूर रहना चाहे।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी स्पीच में, जारी (हिजरी शम्सी) साल के आख़िर (फ़रवरी-मार्च 2024) में होने वाले संसद और विशेषज्ञ असेंबली के इलेक्शन की अहमियत पर भी चर्ची की और कहा कि चुनाव, क़ौमी ताक़त का प्रतीक हो सकते हैं और अगर उनका सही तरीक़े से आयोजन न हो तो उससे मुल्क, क़ौम और ओहदेदारों की कमज़ोरी का पता चलता है और हम जितने कमज़ोर होंगे, दुश्मनों का हमला और दबाव भी उतना ही ज़्यादा होता जाएगा।
उन्होंने इसी तरह सभी ओहदेदारों और विभागों की ओर से साल भर इन्फ़लेशन पर कंट्रोल और प्रोडक्शन को बढ़ाने पर ध्यान केन्दित किए जाने और इस सिलसिले में संकल्प से काम लिए जाने पर बल दिया और साल के नारे को व्यवहारिक बनाने के लिए कुछ ज़रूरी बातों तथा अहम आर्थिक निर्देशों का ज़िक्र किया।
इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने सरकार के कामों और प्रोग्रामों की एक रिपोर्ट पेश की और कहा कि सन 1401 हिजरी शम्सी की हीरो, ईरानी क़ौम थी जिसने अपने प्रतिरोध से हाइब्रिड जंग में दुश्मनों को नाकाम बनाकर अज़ीम कारनामा अंजाम दिया।