आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने नए साल के आग़ाज़ के मौक़े पर अपने हालत को बेहतरीन हालात में बदलने की ईरानी क़ौम की आम दुआ की ओर इशारा करते हुए कहा कि हर बदलाव के लिए अल्लाह से मदद के साथ ही कोशिश और प्रतिरोध का प्रदर्शन भी करना चाहिए।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने दुश्मनों की ओर से बदलाव की पेश की गई परिभाषा और हक़ीक़ी बदलाव के बीच अंतर को बताते हुए कहा कि दुश्मन, बदलाव के नाम पर पूरी तरह सिस्टम के लक्ष्य के ख़िलाफ़ इरादे रखते हैं और अफ़सोस की बात है कि मुल्क के भीतर भी कुछ लोग उनका अनुसरण करके या फिर दूसरे जज़्बे के तहत कुछ बदलाव के साथ वही बातें दोहराते हैं और सिस्टम या संविधान के ढांचे में बदलाव, उन्हीं बातों में शामिल है।

उन्होंने दुश्मनों की ओर से बुनियादी बदलाव, इंक़ेलाब और इसी तरह के दूसरे अलफ़ाज़ सामने आने का अस्ल लक्ष्य, इस्लामी गणराज्य की पहचान को बदलना बताया और कहा कि दुश्मन का लक्ष्य, मुल्क और सिस्टम के मज़बूत पहलुओं को ख़त्म करना, उन अस्ली बातों को भुलाना जो लोगों को इंक़ेलाब और अस्ली जड़ों व इंक़ेलाबी इस्लाम की याद दिलाते हैं जिनमें इमाम ख़ुमैनी का नाम दोहराया जाना, उनकी शिक्षाओं को पेश किया जाना, वेलायते फ़क़ीह का विषय, 22 बहमन (11 फ़रवरी, इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी की तारीख़) और चुनाव में अवाम की भरपूर भागीदारी जैसी बातें शामिल हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस्लामी सिस्टम को एक तानाशाही और पिट्ठु हुकूमत में या फिर ज़ाहरी तौर पर प्रजातांत्रिक लेकिन अस्ल में पश्चिम के इशारों पर चलने वाली हुकूमत में तब्दील करना, साम्राज्यवादियों की विदित बदलाव पर आधारित बातों का अस्ली लक्ष्य बताया और कहा कि वे लोग हर हाल में ईरान पर राजनैतिक व आर्थिक वर्चस्व हासिल करना और उसे लूटना चाहते हैं।

उन्होंने ईरानी क़ौम की भीतर से मज़बूती की नुमायां निशानियों की वज़ाहत करते हुए, विश्व साम्राज्यवाद की दसियों बरस की लगातार दुश्मनी की ओर इशारा किया और कहा कि कौन सा मुल्क और कौन सा इंक़ेलाब है जो दहाइयों तक दुनिया के सबसे ताक़तवर मुल्कों के लगातार वार के सामने डटा रह पाया और उसने घुटने नहीं टेके?

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बग़ावत, पाबंदियों, राजनैतिक दबाव, अभूतपूर्व प्रचारिक हमलों, सुरक्षा के ख़िलाफ़ साज़िशों और अभूतपूर्व आर्थिक पाबंदियों को दुश्मन की निरंतर साज़िशों के कुछ पहलू बताया और कहा कि इन दुश्मनियों के हालात में अमरीका और कुछ यूरोपीय मुल्कों के राष्ट्राध्यक्षों ने उन बलवों का जिसे मामूली तादाद में लोगों ने शुरू किया था, खुल कर सपोर्ट किया और न सिर्फ़ हथियारों से मदद की बल्कि राजनैतिक, आर्थिक, सुरक्षा और मीडिया प्रई कार की मदद की ताकि इस्लामी गणराज्य को कम से कम कमज़ोर ही कर सकें लेकिन व्यवहारिक रूप से इस लक्ष्य के ठीक उलट हक़ीक़त सामने आयी और इस्लामी गणराज्य ने इस वैश्विक साज़िश पर फ़तह हासिल की और दिखा दिया कि वह ठोस व मज़बूत है।

उन्होंने 11 फ़रवरी सन 2023 के जुलूस को इस्लामी व्यवस्था की ठोस भीतरी बुनियाद का प्रतीक, पिछले बरसों के जुलूसों से कहीं ज़्यादा पुरजोश और ज़्यादा तादाद में लोगों की शिरकत पर आधारित बताया और कहा कि मुख़्तलिफ़ मैदानों में ईरानी क़ौम की ज़बरदस्त तरक़्क़ी व कामयाबी, इस भीतरी मज़बूती की कुछ और निशानियां हैं।

उन्होंने आर्थिक नाकाबंदी और अत्यधिक दबाव में तरक़्क़ी को, क़ौम का उज्जवल कारनामा बताया और कहा कि अमरीकियों ने अपनी सारी झूठी बातों के बावजूद यह एक बात सच कही कि ईरानी क़ौम पर उनके आर्थिक दबाव की, पूरी तारीख़ में मिसाल नहीं मिलती।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई के अनुसार साइंस व टेक्नॉलोजी में तरक़्क़ी, नैनो और बायो टेक्नॉलोजी जैसे मैदानों में दुनिया के अग्रणी मुल्कों में शामिल होना, हेल्थ, एरोस्पेस, परमाणु, डिफ़ेन्स, इन्फ़्रास्ट्रक्चर, मेडिकल, रिफ़ाइनरीज़ और दूसरे मैदानों में तरक़्क़ी की ओर इशारा करते हुए कहाः विदेश संबंध के क्षेत्र में भी ईरान को अलग थलग करने की दुश्मन की कोशिशें नाकाम रहीं  और इस्लामी गणराज्य एशिया के साथ अपने संबंधों को सौ फ़ीसद मज़बूत बनाने के साथ ही अब इस इलाक़े के अहम मुल्कों के साथ राजनैतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक व तकनीकी संबंधों को बढ़ावा देने का काम जारी रखेगा।

उन्होंने कहा कि कुछ क्षेत्रीय समझौतों में सदस्यता और अफ़्रीक़ा तथा लैटिन अमरीका से संबंध में मज़बूती भी विदेश संबंध के क्षेत्र में एक कामयाबी है और इसी के साथ यह बात भी याद रहे कि हम यूरोप वालों से ख़फ़ा नहीं हैं और अगर वे अमरीका का अंधा अनुसरण छोड़ दें तो हम उनके साथ काम करने के लिए तैयार हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने ईमान, क़ौमी स्वाभिमान की भावना और मुल्क की क्षमता पर भरोसा को ईरानी क़ौम की तरक़्क़ी के तत्वों में गिनवाया और कहा कि सिस्टम के लोकतंत्र और इस्लाम जैसे दूसरे मज़बूत पहुलओं को और मज़बूत बनाना चाहिए।

उन्होंने मुल्क के मज़बूत पहलुओं का ज़िक्र करने के बाद कमज़ोर व बदलाव के लायक़ पहलुओं का भी ज़िक्र किया और कहा कि कमज़ोर पहलुओं में सबसे ऊपर अर्थव्यवस्था और आर्थिक नीतियों का विषय है जिनमें से बहुत से इंक़ेलाब से पहले की विरासत हैं और कुछ का संबंध इन्क़ेलाब के बाद के दौर से है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मुल्क की अर्थव्यवस्था की एक और कमी, कच्चे तेल पर निर्भरता बतायी और कहा हमें अर्थव्यवस्था को कच्चे तेल के निर्यात पर निर्भरता से निकालना चाहिए और ज़्यादा आय के लिए नॉन पेट्रोलियम कामों पर ध्यान देना चाहिए और अलहम्दोलिल्लाह रिपोर्टों के मुताबिक़ इस सिलसिले में अच्छे काम शुरू हो चुके हैं।

मुल्क की अर्थव्यवस्था की डॉलर पर निर्भरता, दूसरा कमज़ोर पहलू था जिसकी ओर सुप्रीम लीडर ने इशारा किया और कहा कि कुछ मुल्कों ने जिन पर पश्चिम की पाबंदियां लगी हुयी थीं, डॉलर पर अपनी निर्भरता को ख़त्म करके और लोकल करेंसी में काम करके अपनी हालत सुधार ली और हमें भी यही काम करना चाहिए।

उन्होंने आर्थिक मामलों में अवाम की भागीदारी की ओर से लापरवाही को एक और कमज़ोर पहलू बताया और अधिकारियों, माहिरों और मुल्क के भविष्य से लगाव रखने वालों को अर्थव्यवस्था में पब्लिक की भागीदारी के रास्ते तलाश करने की सिफ़ारिश की और कहा कि जिस मैदान में भी पब्लिक ने भाग लिया, उसमें हमने तरक़्क़ी की, जैसे पवित्र डिफ़ेन्स और राजनैतिक मामले इसकी मिसालें हैं, इसलिए अर्थव्यवस्था में पब्लिक की भागीदारी का तरीक़ा स्पष्ट हो जाने से, इस मैदान में भी हम कामयाब हो जाएंगे।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने हाइब्रिड वॉर और इस सिलसिले में दुश्मन के हथकंडों से पब्लिक को आगाह करना ज़रूरी बताया और कहा कि हाइब्रिड वॉर में, फ़ौजी हमला नहीं होता बल्कि प्रोपैगन्डा करने वाले विदेशी और उनके स्वदेशी पिट्ठू बहकावा पैदा करके लोगों के धार्मिक व रानजैतिक विचारों पर हमला करते हैं ताकि फ़ैक्ट्स को पूरी तरह से उलटा दिखाकर क़ौम के इरादे को कमज़ोर दिखाएं और जवानों के मन में उम्मीद की किरन के बुझा दें और उन्हों भविष्य, काम और तरक़्क़ी की ओर से नाउम्मीद कर दें।

उन्होंने दुश्मनों के दावों को ख़ारिज करते हुए कहा कि दुश्मन का मोर्चा बरसों से चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है कि हम इस्लामी गणराज्य को घुटनों के बल लाना चाहते हैं और इसके मुक़ाबले में वरिष्ठ नेतृत्व कहता है कि तुम कुछ बिगाड़ नहीं सकते, यह बात को दोहराना नहीं बल्कि यह प्रतिरोध और अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ हक़ बात पर डटे रहना है।

उन्होंने कर्मभूमि में पब्लिक की मुसलसल मौजूदगी की सराहना करते हुए पब्लिक की जागरुकता और प्रतिरोध का हालिया नमूना, हालिया हंगामों से मुक़ाबला बताया और कहा कि पब्लिक ने उन सभी लोगों को जिन्होंने हंगामों को हवा दी या हंगामा मचाने वालों का समर्थन किया, थप्पड़ रसीद किया और अल्लाह की मदद से आगे भी ईरानी क़ौम अपने दुश्मनों को थप्पड़ जड़ती रहेगी।

 

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने प्रतिरोध के मोर्चे का समर्थन जारी रखने पर बल देते हुए युक्रेन जंग में ईरान के शामिल होने के दावों को झूठा बताते हुए कहा कि हम युक्रेन जंग में शिरकत के दावों को पूरी तरह ख़ारिज करते हैं और इसका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि युक्रेन जंग अमरीका ने, पूरब की ओर नैटों के दायरे को बढ़ाने के लिए शुरू की थी और इस वक़्त जब युक्रेन के अवाम मुश्किलों में घिरे हुए हैं, जंग से सबसे ज़्यादा फ़ायदा अमरीका और उसकी हथियार बनाने वाली कंपनियां हासिल कर रही हैं और यही वजह है कि वे जंग के अंत के लिए ज़रूरी कामों में रुकावट डाल रही हैं।

उन्होंने क्षेत्र में अमरीकियों की बौखलाहट की ओर इशारा करते हुए कहा कि इलाक़े में इस्लामी जुम्हूरिया की नीति पूरी तरह साफ़ है और हम जानते हैं कि क्या कर रहे हैं लेकिन अमरीकी बौखलाहट का शिकार हैं क्योंकि अगर वे क्षेत्र में रुकते हैं तो उन्हे अफ़ग़ानिस्तान की तरह दूसरी क़ौमों की दिन ब दिन बढ़ती नफ़रतों का सामना करना पड़ेगा और वह क्षेत्र को छोड़ कर बाहर निकलने पर मजबूर होंगे और अगर वह चले जाते हैं तो वे चीज़ें उनके हाथ से निकल जाएंगी जिनकी लालच में वह यहाँ आए थे और यह बौखलाहट उनकी खुली कमज़ोरी की निशानी है।

इस प्रोग्राम की शुरूआत में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के मुतवल्ली हुज्जतुल इस्लाम वलमुस्लेमीन मरवी ने अपनी स्पीच में कहा कि मारेफ़त के साथ ज़ियारत को बढ़ावा देना, मशहद के आस पास के इलाक़ों सहित ज़रूरतमंद लोगों की मदद, इस रौज़े के सामाजिक प्रोग्रामों को बढ़ावा देना, ज़ियारत में आसानी, ज़ायरों की सेवा वग़ैरह इमाम रज़ा के रौज़े के अहम कामों में शामिल हैं।