इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के ज़ायरों और स्थानीय लोगों के बीच इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने 21 मार्च 2023 को अपनी तक़रीर में तब्दीली के विषय पर बात की कि दुश्मन क्या तब्दीली चाहता है और रहबरे इंक़ेलाब के मद्देनज़र कौन सी तब्दीली है। आपने अपने ख़ेताब में इस्लामी जुम्हूरिया को अलग अलग मैदानों में मिलने वाली कामयाबियों का जायज़ा लिया और नए साल के नारे और नाम के परिप्रेक्ष्य में अहम अनुशंसाएं कीं। (1)
स्पीच का अनुवाद पेश हैः
बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम
अरबी ख़ुतबे का तर्जुमाः सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार, हमारे पैग़म्बर, हमारे महबूब अबिल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी सबसे ज़्यादा पाक, पाकीज़ा और पसंदीदा नस्ल, ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की हुज्जत इमाम महदी पर जिनपर हमारी जानें क़ुरबान हों।
सबसे पहले तो हम अल्लाह के शुक्रगुज़ार हैं कि कई साल की महरूमी के बाद उसने एक बार फिर यह मौक़ा दिया कि हम इस शहर के प्रिय अवाम और सम्मानीय ज़ायरों की सेवा में, जो मुल्क के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों से यहाँ आए हैं, हाज़िर हों। निश्चित तौर पर यह जगह हमारे प्रिय व विशाल मुल्क की सबसे अच्छी व श्रेष्ठ जगह है। मैं अल्लाह का शुक्रगुज़ार हूं कि इस अहम मरकज़ में, रूहानी मरकज़ और अल्लाह के फ़रिश्तों के नाज़िल होने की जगह पर आप प्रिय, मोमिन व जोश व जज़्बे से भरे अवाम, स्थानीय लोगों और ज़ायरों से मुलाक़ात कर रहा हूं।
इन दो तीन बरसों में महामारी थी जिसे अलहम्दो लिल्लाह बड़ी हद तक कंट्रोल कर लिया गया है। यहाँ मैं अपनी ज़िम्मेदारी समझता हूं कि उन सब लोगों का शुक्रिया अदा करूं जिन्होंने इस महामारी को कंट्रोल करने की कोशिश की। उन वैज्ञानिकों का जिन्होंने मुल्क की मुख़्तलिफ़ लेबोरेट्रीज़ में इस मनहूस वायरस की पहचान की और इसके लिए वैक्सीन तैयार की। उन लोगों का जिन्होंने मुल्क के मेडिकल सेंटर्ज़ में इस वैक्सीन का प्रोडक्शन किया और इसे बड़ी तादाद में तैयार किया। उन डाक्टरों और नर्सों का जिन्होंने इस वैक्सीन को हमारे अवाम तक पहुंचाने और वैक्सीनेशन में मदद की और कोशिश की या अपने मरीज़ों की देखभाल की, उन लोगों का जिन्होंने स्वयंसेवी के तौर पर डाक्टरों और नर्सों के साथ मरीज़ों की मदद की, उन लोगों का जिन्होंने इस बीमारी से बचने के ज़रूरी उपकरण तैयार करने में मदद की, सहयोग दिया जैसे वैक्सीन और दूसरी ज़रूरी चीज़ें बनाईं। उन सबका शुक्रिया अदा करना ज़रूरी समझता हूं। हम दुआ करें कि अल्लाह इस बला को इंशाअल्लाह हमारी प्रिय क़ौम, मुसलमान क़ौमों और दुनिया के सभी लोगों से दूर कर दे।
अगर हमारे मोहतरम भाई और बहनें इन आवाज़ों को थोड़ा कम करें तो मैं वो बातें पेश करूं जो मैंने आपके सामने पेश करने के लिए तैयार की हैं। इन शोर को कम करने के लिए आप लोग बुलंद आवाज़ से दुरूद भेजें।
मैंने आज के लिए जो विषय चुना है वह साल के आग़ाज़ की दुआ से लिया गया है। साल के आग़ाज़ की दुआ में हम पढ़ते हैं: (ऐ साल और हालात को बदलने वाले! ऐ दिन और रात का नेज़ाम चलाने वाले! हमारी हालत को बेहतरीन हालत में बदल दे।) (2) मेरी आज की बात हालत में बदलाव, स्थिति में बदलाव के बारे में है। बेशक अल्लाह से दुआ करनी चाहिए लेकिन ख़ुद भी कोशिश करना ज़रूरी है। अल्लाह से दुआ मांगना, गिड़गिड़ाना और मांगना उस वक़्त क़ुबूल होता है जब इंसान उस रास्ते पर क़दम बढ़ाए, जो वह ख़ुदा से मांग रहा है। अपनी बीमारी के लिए हम दुआ करते हैं लेकिन डाक्टर के पास भी जाते हैं और अल्लाह हमारी दुआ क़ुबूल करता है। हम बदलाव अल्लाह से चाहते हैं लेकिन हमें ख़ुद भी कोशिश करनी चाहिए, हमारी कोशिश इस बात का सबब बनती है कि अल्लाह अपनी मेहरबानी और करम हमारे शामिले हाल करे और उस दुआ को क़ुबूल कर ले।
मैंने इससे पहले कई पब्लिक स्पीचेज़ में समाज में, सिस्टम में और मुल्क में बदलाव के बारे में बात की है, आज इस बारे में और भी तफ़सील के साथ बात करुंगा, यह इस बात की अहमियत के लिए ज़रूरी है। देखिए बुनियादी मुद्दों को पब्लिक के सामने पेश किया जाना चाहिए, पब्लिक को बुनियादी ज़रूरतों के बारे में आगाह होना चाहिए, इस तरह से विचार सक्रिय होंगे। नए नए विचार, जवान विचारक, उन अहम मुद्दों के बारे में जो पब्लिक के सामने आते हैं, सरगर्म हो जाते हैं, उन्हें ज़रूरी हद तक पहुंचाते हैं, इसलिए अहम मुद्दों को, जिनमें यही बदलाव का मुद्दा भी शामिल है, पेश करते हैं। अगर पब्लिक किसी मुद्दे का स्वागत न करे तो वह सोच व्यवहार में नहीं बदल पाएगी बल्कि हवा में कुछ लहरों की हालत में सीमित रह जाएगी। कभी इंसान कुछ कहता है और फिर वह चीज़ भुला दी जाती है या काग़ज़ पर कुछ लाइनों की शक्ल में बाक़ी रह जाती है। बड़ी मांगों को व्यवहारिक बनाने के लिए विचारकों और पब्लिक के सामने रखना चाहिए। तो मैं आज यह मुद्दा उठा रहा हूं और कुछ पहलुओं से इस पर बातचीत करुंगा, लेकिन इस बहस को जारी रखना आपके ज़िम्मे है, आप जवानों के ज़िम्मे है, आप विचारकों के ज़िम्मे है, आप यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स और उस्तादों के ज़िम्मे है, बैठिए और इस मुद्दे पर बहस कीजिए।
इस सिलसिले में जो सबसे पहली बात मैं पेश करना चाहता हूं वह बदलाव की व्याख्या है। बदलाव से क्या मुराद है? तबदीली का मतलब है बदल जाना। हम किस चीज़ को बदलना चाहते हैं? सबसे अहम बात यह है। इस्लामी सिस्टम के दुश्मन भी बदलाव की बात करते हैं, वे लोग भी बदलाव चाहते लेकिन उनके मद्देनज़र बदलाव, उस चीज़ के बिल्कुल बरख़िलाफ़ है, जो हमारे मद्देनज़र है। वह उस बदलाव की बात करते हैं और अफ़सोस कि मुल्क के भीतर भी कुछ लोग उनकी पैरवी या नक़ल करते हुए वही बात दूसरे अल्फ़ाज़ में पेश करते हैं। मिसाल के तौर पर संविधान में बदलाव या इस्लामी सिस्टम के ढांचे में बदलाव, ये वही ग़ैरों की बात है, वही दुश्मनों की बात है लेकिन मुल्क के कुछ लोग कभी ग़फ़लत और लापरवाही की वजह से और कभी कुछ दूसरे जज़्बे की वजह से इस बात को दोहराते हैं। जो चीज़ दुश्मन चाहता है और उसने उसका नाम बदलाव रखा है वह इस्लामी गणराज्य की पहचान को बदलना है। इस्लामी ईरान के दुश्मन, साम्राज्यवाद और ज़ायोनीवाद हैं, ये इस्लामी गणराज्य की पहचान के मुख़ालिफ़ हैं, अगर वे कहते हैं बदलाव, चेंज, ढांचे, इंक़ेलाब वग़ैरह में बदलाव तो उनका मक़सद यह है कि इस्लामी गणराज्य की पहचान बदल जाए। उनका लक्ष्य उन सभी चीज़ों को ख़त्म कर देना है जो लोगों को इंक़ेलाब और इस्लाम की याद दिलाती हैं, शुद्ध इस्लाम, क्रांति लाने वाला इस्लाम। वे इमाम ख़ुमैनी का नाम दोहराए जाने के ख़िलाफ़ हैं, वे इमाम ख़ुमैनी की शिक्षाओं के पेश किए जाने के ख़िलाफ़ हैं, वे ‘विलायते फ़क़ीह’ के ख़िलाफ़ हैं, वे 11 फ़रवरी (इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी की तारीख़) के मुख़ालिफ़ हैं, वे क़ुद्स दिवस के ख़िलाफ़ हैं, इस्लामी गणराज्य में चुनाव और उसमें अवाम की भरपूर भागीदारी के मुख़ालिफ़ हैं। वे हर उस चीज़ के मुख़ालिफ़ हैं जिसमें क्रांति लाने वाले इस्लाम और इस्लामी गणराज्य की निशानी का रंग गहरा है, वे इन चीज़ों को बदलना चाहते हैं। अगर वे ढांचे में बदलाव की बात करते हैं, चेंज की बात करते हैं तो उनका मक़सद यह है कि इन चीज़ों को ख़त्म कर दें जो इत्तेफ़ाक़ से हमारे मुल्क के मज़बूत पहलू हैं, इस्लामी गणराज्य के मज़बूत पहलू हैं। संक्षेप में यह कि दुश्मन का लक्ष्य इस्लामी गणराज्य को, साम्राज्यवाद की मनपसंद हुकूमत में बदलना है। वे ईरान में ये चाहते हैं कि यहाँ एक ऐसी हुकूमत सत्ता में आए जैसी साम्राज्यवाद चाहता है। एक तानाशाही हुकूमत जिसमें एक शख़्स जो उनके इशारे पर काम करे, वह तख़्त पर बैठे या पश्चिम की ज़ाहिरी डेमोक्रेसी वाली हुकूमत जो अस्ल में झूठी और धोखेबाज़ डेमोक्रेसी है, सत्ता में आए लेकिन उनकी मर्ज़ी के मुताबिक़ काम करे, उनकी मुट्ठी में रह कर उनके इशारों पर काम करे, उनके हुक्म पर अमल करे, वो ये चाहते हैं। साम्राज्यवाद ईरान में एक ऐसी हुकूमत चाहता है जिसे वह धमका सके, लालच दे सके और धमकी व लालच के ज़रिए अपनी इच्छाओं को पूरा कर सके, मुल्क को लूट सके, राजनैतिक या आर्थिक वर्चस्व हासिल कर सके, वो ये चाहते हैं। दुश्मन जिस बदलाव की बात करता है, इस्लामी गणराज्य के दुश्मन जिस बदलाव की बात पेश करते हैं, वह इस तरह का बदलाव और चेंज है।
जो बात मैं बदलाव और चेंज के तौर पर पेश करता हूं वह उस बदलाव से बिल्कुल अलग है जिसे दुश्मन अपनी ज़बान से दोहराता रहता है। बदलाव से जिस चीज़ का मैं इरादा करता हूं वह बुरी चीज़ों व पहलुओं में सुधार है चाहे वह इस्लामी सिस्टम में हों, चाहे ईरानी समाज में हों। हमारे यहाँ कुछ कमियां हैं, कमज़ोर पहलू हैं, कुछ कमज़ोरियां हैं, उन कमज़ोरियों की पहचान करनी चाहिए, उन पहलुओं को चिन्हित करना चाहिए और फिर ठोस इरादे के साथ -मैं अर्ज़ करुंगा कि यह कोई आसान काम भी नहीं है- कमज़ोरियों को दूर करना चाहिए और उन्हें ताक़त में बदल देना चाहिए, इसकी कुछ मिसालें हैं, बाद में अर्ज़ करुंगा।
अलबत्ता यह बड़ा सख़्त व कठिन काम है और इसके लिए राष्ट्रीय आत्मविश्वास की ज़रूरत है। अगर किसी क़ौम को अपनी सलाहियतों पर भरोसा है, अपनी क्षमताओं पर यक़ीन है तो वह बदलाव की कार्यवाही करने की ताक़त रखती है, जिस क़ौम में आत्मविश्वास है वह बदलाव के क़दम को अच्छी तरह उठा सकती है, उस क़ौम के अधिकारी भी बदलाव की बात करने की हिम्मत कर सकते हैं और बदलाव के लिए क़दम उठा सकते हैं। तो अलहम्दो लिल्लाह हमारी क़ौम में आत्म विश्वास है, हमारी क़ौम के पास आत्म सम्मान है, आत्म विश्वास है, वह स्वाधीनता की इच्छुक है, वह बहादुर है जिसकी मिसालें आप सभी ने देखी हैं और मैं बाद में कुछ और मिसालें पेश करुंगा। हमारी क़ौम ने मुख़्तलिफ़ मैदानों में दिखाया है कि उसे अपने आप पर भरोसा है, अपनी सलाहियतों पर भरोसा है।
तो यह एक चीज़ हुयी कि अगर हम चाहते हैं कि बदलाव आए तो हमें राष्ट्रीय आत्म विश्वास की ज़रूरत है, यह पहली चीज़। दूसरी चीज़ यह कि हमें चौकन्ना रहने की ज़रूरत है। अगर हम चौकन्ना नहीं रहेंगे, ग़ाफ़िल रहेंगे तो मुमकिन है कि बदलाव के नाम पर, चेंज के नाम पर हम अपने मज़बूत पहलुओं को ही नुक़सान पहुंचा बैठें। यह चीज़ें हमें कभी कभी नज़र आती हैं। कुछ लोग हैं जो सिस्टम के हमदर्द हैं, इस्लामी सिस्टम और इंक़ेलाब से लगाव रखते हैं लेकिन कभी कभी लापरवाही कर जाते हैं, कोई अच्छा काम करने के चक्कर में कोई सुधारवादी काम करने के चक्कर में लापरवाही करते हुए मज़बूत पहलुओं को नुक़सान पहुंचा देते हैं। इस बात पर ध्यान रहना चाहिए कि मज़बूत पहलुओं को नुक़सान न पहुंचे। तो इस अहम प्वाइंट को भी याद रखें।
अगर हम चाहते हैं कि हमारे मज़बूत पहलुओं को चोट न पहुंचे तो हमें उनकी पहचान करनी होगी। हमारे समाज के मज़बूत पहलू क्या हैं? हमें उनकी सही तरीक़े से पहचान करनी होगी, ग़ौर करना होगा, पहचानना होगा। मैं उनमें से कुछ का ज़िक्र करता हूं। अलबत्ता यह बड़ी लंबी बहसें हैं, विचारकों का तबक़ा और ख़ास तौर पर आप जवान बैठिए, सोचिए और इन पर काम कीजिए। प्रिय जवानो! मुझे आपसे बहुत ज़्यादा उम्मीद है। (3) (बहुत शुक्रिया मेरी बात ध्यान से सुनिए) आज मैं मज़बूत पहलुओं के सिर्फ़ एक पहलू के बारे में संक्षेप में अर्ज़ करुंगा, बाक़ी आपके ज़िम्मे।
ईरानी क़ौम और हमारे इस्लामी समाज के मज़बूत पहलुओं में से एक सबसे अहम पहलू हमारे इस्लामी समाज का भीतरी ढांचा मज़बूत व ठोस होना है, इसके बारे में सोचिए, यह बहुत अहम है, इस्लामी सिस्टम और ईरानी क़ौम के भीतरी ढांचे की मज़बूती। मैंने इससे पहले भी एक स्पीच में (4) इस सिलसिले में संक्षेप में कुछ बातें पेश की थी, आज ज़रा तफ़सील के साथ पेश करुंगा। इस्लामी सिस्टम के ढांचे की यह मज़बूती, इस्लामी सिस्टम के ढांचे की यह ताक़त, इस्लामी सिस्टम और ईरानी क़ौम की यह भीतरी मज़बूती ईमान की वजह से है। ईरान के अवाम मोमिन हैं, यहाँ तक कि वे लोग भी जो ज़ाहिर में ऐसे नज़र आते हैं कि कुछ इस्लामी आदेशों का ठीक तरह से पालन नहीं करते होंगे, मगर उनके मन में ईमान ठीक है, वे अल्लाह पर ईमान रखते हैं, धर्म पर आस्था रखते हैं, क़ुरआन पर ईमान रखते हैं, पवित्र इमामों पर ईमान रखते हैं, ईमान वाले लोग हैं। ईरानी क़ौम, ईमान वाली क़ौम है, आत्म सम्मान वाली क़ौम है, आत्मविश्वास वाली क़ौम है, इन बातों की वजह से ईरानी क़ौम का भीतरी ढांचा मज़बूत हुआ। इस मज़बूती को हम कहाँ से पहचान सकते हैं, देख सकते हैं और सही तरीक़े से महसूस कर सकते हैं? इस मज़बूती की निशानियां क्या हैं? मैं इनमें से दो तीन निशानियों की तरफ़ इशारा करता हूं।
पहली निशानी, कई दशकों से लगातार जारी दुश्मनी पर ईरानी क़ौम का क़ाबू पाना है। आप किस मुल्क को जानते हैं, किस इंक़ेलाब को जानते हैं जो बरसों तक दुनिया के सबसे ताक़तवर मुल्कों के हमलों के सामने डटा रहा हो और उसने घुटने न टेके हों? ईरानी क़ौम, दुश्मन की साज़िशों की इस लंबी ज़ंजीर और उसके हथकंडों के मुक़ाबले में मज़बूती से खड़ी रहने में कामयाब रही, बग़ावत के मुक़ाबले में, पाबंदी के मुक़ाबले में, राजनैतिक दबाव के मुक़ाबले में, मीडिया के हमलों के मुक़ाबले में, ईरानोफ़ोबिया और इंक़ेलाब के ख़िलाफ़ जो मीडिया हमले उन्होंने शुरू किए हैं वे अभूतपूर्व स्तर के हैं, ऐसा कभी नहीं हुआ था। सेक्युरिटी के ख़िलाफ़ साज़िशों के मुक़ाबले में ईरानी क़ौम के अलावा कौन सी क़ौम उनके मुक़ाबले में डट सकती है या डटी रही है? यह भीतरी मज़बूती है, इससे पता चलता है कि ईरानी क़ौम का बुनियादी ढांचा एक मज़बूत ढांचा है। सबकी आँखों के सामने की एक साफ़ मिसाल, इन हालिया हंगामों की है कि अबसे कुछ महीने पहले हंगामे कराए गए और उस साज़िश में सभी (दुश्मन) शामिल हुए, यह अहम बिन्दु है। अमरीका जैसे मुल्क के राष्ट्रपति ने मुल्क के भीतर होने वाले हंगामों का खुलकर सपोर्ट किया। कुछ यूरोपीय मुल्कों के राष्ट्राध्यक्षों ने भी उन हंगामों का, जो ईरानी क़ौम का एक बहुत छोटा हिस्सा, बहुत ही मामूली सा हिस्सा कर रहा था, सपोर्ट किया, सिर्फ़ जबानी नहीं बल्कि हथियारों से सपोर्ट किया, पैसों से मदद की, सुरक्षा के पहलू से सपोर्ट किया। उन हंगामों का तरह तरह से सपोर्ट किया, मतलब यह कि हक़ीक़त में उन्होंने ख़ुद को इस बात के लिए तैयार कर लिया था कि अपने ख़्याल में इस्लामी गणराज्य को कम से कम कमज़ोर तो कर ही दें। लक्ष्य, इस्लामी गणराज्य को कमज़ोर करना था, लेकिन जो कुछ मैदान में हुआ, वह उस चीज़ के बिल्कुल बरख़िलाफ़ था जो वे चाह रहे थे। इस्लामी गणराज्य ने दिखा दिया कि वह मज़बूत है, कमज़ोर नहीं है। उसने ऐसे हंगामों और ऐसी अंतर्राष्ट्रीय साज़िश को कंट्रोल किया और दुनिया को दिखा दिया कि वह मज़बूत है। सन 1401 (हिजरी शम्सी) की 22 बहमन (11 फ़रवरी सन 2023) पिछले कुछ बरसों की बाईस बहमन से कहीं ज़्यादा पुरजोश रही और इसमें भाग लेने वालों की तादाद ज़्यादा थी, यह चीज़ ईरानी क़ौम की भीतरी मज़बूती को ज़ाहिर करती है। तो हम ने कहा कि ईरानी क़ौम मज़बूत व ठोस ढांचा रखती है, यह जो हमने कहा कि बड़ी साज़िशों के मुक़ाबले में प्रतिरोध व दृढ़ता, यह उसकी एक निशानी है।
एक दूसरी निशानी ईरानी क़ौम की ज़बर्दस्त तरक़्क़ी व कामयाबी है। वे नहीं चाहते कि ये चीज़ें दोहरायी जाएं। दुश्मन इन बातों के दोहराए जाने से, इन बातों को बयान किए जाने से बहुत सख़्त नाराज़ और चिढ़ा हुआ है लेकिन यह हक़ीक़त है। हमने काफ़ी तरक़्क़ी व कामयाबी हासिल की है जिनमें से कुछ की तरफ़ मैं इशारा करुंगा और ये सारी तरक़्क़ी पाबंदियों के दौर में हुयी है, आर्थिक नाकाबंदी के दौरान हुई है, उस वक़्त तक के सबसे कठोर आर्थिक दबाव के दौरान हुयी है, ये बात ख़ुद अमरीकियों ने कही है। अमरीकियों ने कहा कि हम ने ईरान पर जो आर्थिक दबाव डाला है, उसकी पूरे इतिहास में कोई मिसाल नहीं मिलती, वह सही कह रहे हैं, अपनी सभी झूठी बातों के बावजूद, यह बात वो सही कह रहे हैं। अभूतपूर्व आर्थिक दबाव था। ऐसे हालात में ईरानी क़ौम ने तरक़्क़ी की। विज्ञान के मैदान में तरक़्क़ी की, टेक्नॉलोजी के मैदान में तरक़्क़ी की, विज्ञान के कुछ मैदानों में तो ईरान दुनिया के अग्रणी मुल्कों की लाइन में शामिल हो गया, कहीं दुनिया के टॉप पाँच मुल्कों में से एक, कहीं दुनिया के टॉप दस मुल्कों में से एक, कहीं दुनिया के टॉप तीन मुल्कों में से एक, दुनिया के 200 मुल्कों के बीच। विज्ञान के मैदान में, टेक्नॉलोजी के मैदान में, हमारी तरक़्क़ी व कामयाबी ऐसी है, नैनो और बायो टेक्नॉलोजी में, मुख़्तलिफ़ मैदानों में, स्वास्थय के मैदान में, ईरान की तरक़्क़ी दुनिया के विकसित देशों से भी बेहतर रही है। कोरोना वायरस के मामले में यह चीज़ साफ़ तौर पर सामने आयी। परमाणु क्षेत्र में, एरोस्पेस के मैदान में, डिफ़ेन्स में, डिफ़ेन्स में ईरान की तरक़्क़ी की बात सभी करते हैं और इसको मानते हैं ताकि इस्लामी गणराज्य के ख़िलाफ़ कोई हथकंडा तैयार कर सकें, वे मानते हैं कि ईरान डिफ़ेन्स में, हथियारों के लेहाज़ से आगे बढ़ गया है। हमने बायो टेक्नॉलोजी में ज़बरदस्त तरक़्क़ी की है, दुनिया ने इसकी सराहना की है, दुनिया के वैज्ञानिकों ने हमारे वैज्ञानिकों को सराहा, हमारे युवा वैज्ञानिकों को सराहा।
मुल्क के इन्फ़्रास्ट्रक्चर के मैदान में तरक़्क़ी, सड़कों के निर्माण में, रेलवे लाइन बिछाने में, बांध बनाने में, पानी की सप्लाई में -जैसे यही ग़दीर वॉटर सप्लाई प्रोजेक्ट जिसका हाल ही में उद्घाटन हुआ है, (5) रिफ़ाइनरियां बनाने में, अस्पताल बनाने में और इनमें से ज़्यादातर काम इसी पिछले हिजरी शम्सी साल में हुए, दक्षिणी पार्स गैस फ़ील्ड के एक हिस्से में पूरा का पूरा यानी सौ फ़ीसदी काम ईरानियों ने किया है, ऐसी तरक़्क़ी हुयी, कब? जब इतनी पाबंदियां हैं, इतना आर्थिक दबाव है। तरल गैस के प्रोडक्शन में तरक़्क़ी, बहुत अहम कामों में से एक थी -जिससे मुल्क के लिए रास्ता खुलेगा इंशाअल्लाह- यह काम भी हालिया दौर में ही हुआ है, इससे पहले भी काफ़ी बड़े काम अंजाम पाए हैं। विदेश संबंध के मैदान में तरक़्क़ी! पश्चिम वालों ने दबाव डाला कि ईरान को अलग थलग कर दें, अमरीका और यूरोप वालों ने दबाव डाला कि ईरान अलग थलग पड़ जाए। विदेश नीति में अलग थलग पड़ने का मतलब है मुल्कों से संबंध ख़त्म हो जाना, जब दूसरे मुल्क किसी मुल्क से संबंध न रखें तो कहा जाता है कि वह मुल्क अलग थलग पड़ गया, जो कुछ हुआ, उसका नतीजा बिल्कुल उलटा था। जी हाँ पश्चिम वालों से हमारा संबंध कमज़ोर हुआ, अमरीका से तो हमारे संबंध थे ही नहीं, यूरोप से भी हमारे संबंध कमज़ोर हो गए। लेकिन हमने एशिया से अपने संबंधों को सौ फ़ीसदी से ज़्यादा मज़बूत किया, हम इस के बाद भी यही सिलसिला जारी रखेंगे। हम एशिया के अहम मुल्कों के साथ अपने राजनैतिक, आर्थिक, तकनीकी, इल्मी और वैज्ञानिक संबंध जारी रखेंगे। हम अनेक समझौतों में शामिल हैं। दुश्मन हमें अलग थलग करना चाहता है, ईरानी कौम की कोशिशें और सलाहियतें इस बात का कारण बनीं कि हम क्षेत्र के कई अहम समझौतों में शामिल हो जाएं। हम अलग थलग नहीं हुए बल्कि इसके बरख़िलाफ़ और भी निखर कर सामने आए। इलाक़े की हुकूमतों और क़ौमों के साथ हमारे संबंध मज़बूत हुए। अफ़्रीक़ा और लैटिन अमरीका से मज़बूत रिश्ते, हमारी निश्चित पॉलिसी का हिस्सा हैं और इंशाअल्लाह हम इस नीति को आगे बढ़ाएंगे। अलबत्ता हम यूरोप से भी ख़फ़ा नहीं हैं। जो भी यूरोपीय मुल्क और यूरोपीय सरकार, आँख मूंद कर अमरीका की नीतियों का अंधा अनुसरण नहीं करती, हम उसके साथ भी काम करने के लिए तैयार हैं।
ये सारी तरक़्क़ी हुयी है। ये तरक़्क़ी ईरानी क़ौम और इस्लामी सिस्टम की ढांचागत मज़बूती की निशानी है। ये तरक़्क़ी और कामयाबी ईमान के साए में हासिल हुयी है, राष्ट्रीय सम्मान के जज़्बे के साए में, मुल्क की आंतरिक सलाहियतों को इस्तेमाल करने की ज़रूरत के एहसास साए में, यानी हमारी क़ौम और हमारे अधिकारियों ने महसूस किया कि उन्हें मुल्क की ख़ुद अपनी सलाहियतों की ज़रूरत है, पहले दूसरों पर निर्भर थे, विदेशियों पर निर्भर थे, वे समझ गए कि दूसरों पर निर्भरता का कोई भरोसा नहीं, किसी दिन है किसी दिन नहीं है। मुल्क की आंतरकि सलाहियतों पर भरोसा करना चाहिए। जब हमने रेज़िस्टेंट इकानामी का एलान किया तो कहा कि रेज़िस्टेंट इकानामी भीतर से उगने वाली और बाहर की ओर फैलने वाली है।(6) भीतर से पैदा होने वाली है यानी मुल्क की भीतरी सलाहियतों और क्षमताओं को अर्थव्यवस्था की सेवा में आना चाहिए और साथ ही यह बाहर भी फैलने वाली है, यानी हम सभी मुल्कों के साथ आर्थिक संबंध के लिए तैयार हैं। इस चीज़ को हमने महसूस किया, ईरानी क़ौम ने भी महसूस किया, हमारी जवान नस्ल ने भी महसूस किया और हमारे अधिकारियों ने भी महसूस किया कि उन्हें मुल्क की अपनी सलाहियतों पर निर्भर रहना चाहिए।
तो हमारे मज़बूत पहलू काफ़ी हैं, जिनमें आंतरिक मज़बूती की बात मैंने की, तरक़्क़ी की भी बात की, यह चीज़ें मौजूद हैं और भी बहुत सी चीज़ें हैं जिनके बारे में यहाँ बात करने का वक़्त अब नहीं है। ये हमारे ताक़तवर पहलू हैं इन्हें नुक़सान नहीं पहुंचना चाहिए। इस्लामी सिस्टम, इस्लामी गणराज्य है, न प्रजातंत्र को नुक़सान पहुंचना चाहिए और न “इस्लामी” को नुक़सान पहुंचना चाहिए। मज़बूत पहलुओं को ज़्यादा नुमायां करना चाहिए, ज़्यादा बढ़ावा देना चाहिए, लेकिन उनके साथ कुछ कमज़ोर पहलू भी हैं। बदलाव, कमज़ोर पहलुओं में सुधार चाहता है, मैं कमज़ोर पहलुओं के बारे में संक्षेप में बात करुंगा, दो तीन बातें अर्ज़ करुंगा।
अगर हमारे मुल्क में चार पाँच बड़े कमज़ोर पहलू हों तो उनमें एक अर्थव्यवस्था का मसला है। मुल्क की अर्थव्यवस्था निश्चित तौर पर हमारे कमज़ोर पहलुओं में से एक है। अलबत्ता बहुत सी आर्थिक नीतियां, पहले की विरासत हैं, पहले वाले यानी इंक़ेलाब से पहले वाले, कुछ इंक़ेलाब के बाद के भी हैं। इनमें से कुछ आर्थिक मुश्किलों और आर्थिक इन्फ़्रास्ट्रक्चर का तअल्लुक़ इंक़ेलाब से पहले से है, कुछ का तअल्लुक़ इंक़ेलाब के बाद से है। शायद कहा जा सकता है कि हमारी अर्थव्यवस्था की सबसे अहम मुश्किल उसे सरकार के सिपुर्द करना है। सन 1980 के दशक में हमारा सबसे ज़्यादा ध्यान इस बात पर था कि मुल्क की अर्थव्यवस्था की कुंजी सरकार के हवाले कर दें, इससे हमारी अर्थव्यवस्था को नुक़सान पहुंचा। इसका संबंध ख़ुद हमसे है, ये काम ख़ुद हमने किया। शायद हमारी अर्थव्यवस्था का सबसे कमज़ोर पहलू, उसका हद से ज़्यादा सरकार के हाथ में होना है। जब लोग आर्थिक प्रबंधन और आर्थिक सरगर्मियों से दूर कर दिए जाते हैं, बड़े काम, अहम कंपनियां, मुल्क के लिए दौलत पैदा करने वाले काम, हुकूमत के अख़्तियार में आ जाते है और पब्लिक में से आर्थिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों के अख़्तियार में नहीं आते तो फिर वही मुश्किलें सामने आती हैं जिन्हें हम आज अपनी अर्थव्यवस्था में देख रहे हैं। हमारी सबसे बड़ी मुश्किल, अर्थव्यवस्था का सरकारी होना है।
आर्टिकल 44 की आर्थिक नीतियों को पेश करने और नोटिफ़िकेशन जारी करने में हमने माहिर लोगों की मदद से इस मसले पर बड़ी मेहनत से काम किया, यानी माहिर लोगों ने काम किया और नीतियों का नोटिफ़िकेशन जारी किया गया। उन नीतियों में कहा गया था कि अवाम की ज़रूरत के आर्थिक कामों और प्रबंधन को अवाम के हवाले किया जाए। अलबत्ता कुछ विभाग ऐसे हैं जिनमें अवाम काम करना नहीं चाहते या उन्हें सरकारी विभाग के हाथ में ही होना चाहिए, वह तो अलग रहे, लेकिन अहम आर्थिक क्षेत्र अवाम के अख़्तियार में होने चाहिए। हमने बार बार यह बात कही कि सरकारी विभाग, सरकारी कंपनियां, सेमी गवर्नमेंट कंपनियां, प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों और विभागों से प्रतिस्पर्धा न करें और लोगों को प्रोडक्शन करने दें। जब हमने कामों की सारी बागडोर हुकूमत के हाथ में दी थी तो हमने इस नीयत से यह काम किया था कि आर्थिक इंसाफ़ क़ायम होगा लेकिन आर्थिक इंसाफ़ क़ायम नहीं हुआ। हम ग़लत सोच रहे थे कि अगर अर्थव्यवस्था की कुंजी सरकार के हाथ में हो तो आर्थिक इंसाफ़ वजूद में आएगा, यह ग़लती थी और ऐसा नहीं हुआ। सरकार आर्थिक मामलों में अपना कंट्रोल कम करे, निगरानी बढ़ाए, हस्तक्षेप कम करे, निगरानी बढ़ाए, देखभाल करे। हमारी अर्थव्यवस्था का एक बड़ा ऐब, शायद यही सबसे बड़ा ऐब है। यह बात सत्ता में आने वाली अनेक सरकारों से ताकीद के साथ कही गयी कि पब्लिक के हवाले कीजिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अगर हुआ भी तो ग़लत तरीक़े से हुआ। अवाम के हित में उनके हवाले करने के बजाए कुछ मौक़ों पर इस तरह उनके हवाले किया गया कि अवाम को नुक़सान हुआ। यह इस बात का सबब बना कि यह काम अंजाम न पाए। आज भी माननीय सरकार को जो काम करने चाहिए, उनमें से एक यह है कि वह बख़ूबी ग़ौर करके, ज़रूरी निगरानी के साथ आर्थिक प्रबंधन को अवाम के हवाले करे।
हमारी अर्थव्यवस्था में एक और बड़ी कमी कच्चे तेल की आय पर निर्भरता है। हम कच्चा तेल एक्सपोर्ट करते हैं जबकि कच्चे तेल का कंट्रोल हमारे हाथ में नहीं है। जो हमारे तेल को इम्पोर्ट करता है -जब यूरोप वाले हमारे तेल को ख़रीदते और इम्पोर्ट करते थे- वे तेल के उस इम्पोर्ट से हमसे ज़्यादा मुनाफ़ा कमाते थे जबकि तेल हमारा था और हमने उसे तेल के कुंओं से बाहर निकाल पर बेचा था। वह जो रेवेन्यु लेता था और उसे जो मुनाफ़ा हासिल होता था वह तेल के मालिकों से ज़्यादा था, इस वक़्त भी ऐसा ही है। हमें कच्चे तेल के एक्सपोर्ट पर अपनी अर्थव्यवस्था की निर्भरता को ख़त्म कर देना चाहिए और नॉन पेट्रोलियम कामों पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। अलहम्दोलिल्लाह, जैसा कि रिपोर्टों में है, नॉन पेट्रोलियम एक्सपोर्ट और नॉन पेट्रोलियम आर्थिक सरगर्मियों की ओर क़दम उठ चुका है और अच्छे काम अंजाम पा रहे हैं।
हमारी अर्थव्यवस्था की एक मुश्किल डॉलर पर निर्भरता है। कुछ मुल्कों ने, जिन पर पाबंदियां लगी थीं, डॉलर पर अपनी निर्भरता को ख़त्म कर दिया और उनकी हालत बेहतर हो गयी। इस वक़्त हम ऐसे कई मुल्कों को जानते हैं -मैं उनका नाम नहीं लेना चाहता- जो पश्चिमी पाबंदियों का शिकार थे और स्विफ़्ट से, जो पश्चिम का एक अंतर्राष्ट्रीय सिस्टम है, उनका संपर्क ख़त्म हो गया, उन्होंने डॉलर को किनारे कर दिया और स्थानीय करेंसी में सौदे किए और एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट किया, उनकी हालत बेहतर हो गयी, हमें भी यही काम करना चाहिए।
अर्थव्यवस्था के सिलसिले में जो बातें मुझे पेश करनी चाहिए -ये हमारे बुनियादी मुद्दे हैं और मैं चाहता हूं कि पबल्कि इस पर ध्यान दे, पब्लिक में ये बाते मंज़ूर हों और फैल जाएं- उनमें से एक बड़ा मुद्दा जिस पर हमें अर्थव्यवस्था की हालत को ठीक करने के लिए ध्यान देने की ज़रूरत है, तेज़ रफ़्तारी से लगातार विकास है। हमारा आर्थिक विकास कमज़ोर था। हमने सरकारों को जो आर्थिक नीतियां पेश की थीं, उनमें 8 फ़ीसदी आर्थिक विकास की दर का लक्ष्य रखा था, जबकि सन 2010 के दशक के अनेक बरसों में हमारा आर्थिक विकास शून्य से नीचे था। कुल मिलाकर जब सरकारें बदलीं और दूसरी हुकूमत ने बागडोर संभाली तब भी आर्थिक विकास बहुत कम था, मैं सटीक आंकड़े नहीं पेश करना चाह रहा हूं, मिसाल के तौर पर क़रीब एक फ़ीसदी या उससे भी कम। हमें तेज़ रफ़्तार से लगातार आर्थिक विकास की ज़रूरत है। ऐसा न हो कि एक साल तो विकास हो, उसके बाद फिर रुक जाए। ये तेज़ रफ़्तार से लगातार विकास हम कब हासिल कर सकते हैं? जब हम अवाम की मदद और उनको रास्ता दिखाकर प्रोडक्शन बढ़ाने में कामयाब होंगे। माननीय सरकारी अधिकारी और इसी तरह संसद में पब्लिक के प्रतिनिधि, अर्थव्यवस्था में प्रोड्यूसर (मैन्युफ़ैक्चरर) का रोल अदा करने के लिए पब्लिक को प्रेरित करेंगे और उन्हें रास्ता दिखाएंगे, प्राइवेट सेक्टर के लिए भरोसा पैदा करेंगे ताकि वह पूंजिनिवेश करे, काम करे, निजी सेक्टर यह काम कर सकता है।
सन 1401 हिजरी शम्सी में बहमन महीने (फ़रवरी 2023) में टेक्नॉलोजी के मैदान में मुल्क के कुछ अहम लोगों ने नाचीज़ से (इमाम ख़ुमैनी) इमामबाड़े में मुलाक़ात की थी (7) उनमें से कुछ लोगों ने कुछ बातें कीं, अहम बिन्दु बयान किए, कुछ फ़ैक्ट्स बताए और जो नमूने उन्होंने वहाँ दिखाए वे हैरतअंगेज़ हैं, इससे ईरानी क़ौम की सलाहियत का पता चलता है। हमारे पास बेपनाह सलाहियतें हैं, हम बड़े बड़े काम कर सकते हैं। अगर अर्थव्यवस्था के मामले में, क़ौम की सलाहियतों से फ़ायदा उठाया जाए तो लोगों की आर्थिक हालत निश्चित तौर पर बेहतर हो जाएगी, इन्फ़्लेशन की हालत भी बेहतर हो जाएगी। हम ने साल के नारे में इन्फ़्लेशन पर कंट्रोल और प्रोडक्शन में वृद्धि को रखा है।(8) ʺ इन्फ़्लेशन पर कंट्रोल और प्रोडक्शन में वृद्धिʺ इन्फ़्लेशन पर कंट्रोल, प्रोडक्श्न में वृद्धि पर टिका है और प्रोडक्शन में वृद्धि, पब्लिक के हाथों में है। अगर लोग आगे आएं, कमर कस लें तो यह काम मुमकिन है और व्यवहारिक हो सकता है।
हमारी जो एक बड़ी ग़लती है वह यह है कि हमने पब्लिक की भागीदारी की राहों के बारे में नहीं सोचा। मैं यहीं पर माननीय ओहदेदारों, माहिरों और मुल्क के भविष्य से लगाव रखने वालों को सिफ़ारिश करता हूं कि वे बैठें और आर्थिक मामलों में पब्लिक की भागीदारी के रास्ते तलाश करें। जिस फ़ील्ड़ में भी पब्लिक ने भाग लिया, हमने उसमें विकास किया। पाकीज़ा डिफ़ेन्स में अवाम शामिल हुए, हमने फ़त्ह हासिल की, मुल्क के मामलों में जहाँ भी लोग शामिल हुए, वहाँ हम फ़ातेह रहे, आर्थिक मामलों में भी ऐसा ही है। अगर लोग शामिल होंगे, अवाम शामिल होंगे तो उस मैदान में भी हम फ़ातेह होंगे, कामयाब हो जाएंगे। अलबत्ता सवाल यह है कि अवाम किस तरह शामिल हों? आर्थिक मैदान में अवाम के भाग लेने का रोडमैप उन्हें दिखाना चाहिए। मैंने पिछले बरसों में छोटी कंपनियां बनाने और छोटी कंपनियों की मदद करने पर बल दिया था, सिफ़ारिश की थी (9) इस सिलसिले में कुछ नाकाम तजुर्बे भी सामने आए, कुछ काम भी हुए लेकिन वे ठोस व मुकम्मल काम नहीं थे, इस तरह के काम होने चाहिए।
हमारी आर्थिक मुश्किलों में से एक, विदेश व्यापार में भरपूर तरीक़े से सरगर्म न होना है। मुल्क के भीतर प्रोडक्शन की हमारी गुंजाइश ज़्यादा है। चाहे वह कृषि का मैदान हो या उद्योग का मैदान हो। दुनिया की मंडिया बहुत बड़ी हैं। हम अपने विदेशी व्यापार को बहुत फैला सकते हैं और इंशाअल्लाह वह काम कर सकते हैं जिसका सीधे तौर पर पब्लिक की आर्थिक स्थिति और पब्लिक के दस्तरख़ान पर असर पड़े, यह अहम कामों में से एक है। आज विदेशी व्यापार में हम इतना काम नहीं कर रहे जितना करना चाहिए। हमारे कुछ तरीक़े ग़लत हैं, उन्हें बदलने की ज़रूरत है, उनमें बदलाव की ज़रूरत है, सुधार की एक जगह, यही विदेश व्यापार का मुद्दा है।
नॉलेज बेस्ड कंपनियों की मदद, जिस पर मैंने ताकीद की थी और अलहम्दोलिल्लाह उस पर अमल भी किया गया, अलबत्ता इतना काम नहीं हुआ जितने हमने चाहा था लेकिन बहरहाल नॉलेड बेस्ड कंपनियों को बढ़ावा मिला। नॉलेज बेस्ड कंपनियों ने काफ़ी काम किया, उनकी कोशिशें भी बढ़ीं और प्रोडक्ट्स भी बढ़े, साथ ही उनकी आय भी बढ़ी, छोटी कंपनियां बनाना, बड़े कारख़ानों को नॉलेज बेस्ड करना, ये ऐसे फ़ायदेमंद क़दम हैं जो इस बदलाव में मददगार हैं।
एक दूसरा विभाग, जिसमें बदलाव की ज़रूरत है, जिस पर मोहतरम संसदों को ध्यान देना चाहिए, क़ानून बनाने के क्षेत्र में बदलाव है। क़ानून साज़ी की आम नीतियों का नोटिफ़िकेशन जारी हो चुका है। (10) इन नीतियों पर ध्यान दिया जाना चाहिए और क़ानून बनाने की प्रक्रिया, जिस शक्ल में आज है, उससे ज़्यादा ठोस व बेहतर तरीक़े से अंजाम पानी चाहिए। एक चीज़ जिस पर मुख़्तलिफ़ सरकारों में, क़रीब हर दौर में, सरकार और संसद के बीच मतभेद रहा है। इस वक़्त तो कार्यपालिका और विधि पालिका दोनों ही मिल कर काम कर रहे हैं और एक दूसरे के क़रीब हैं। कुल मिलाकर मौजूदा दौर में यह शिकवा पाया जाता है कि कभी संसद में सालाना बजट के क़ानून में निश्चित ख़र्च पास हो जाते हैं और उनके लिए अनिश्चित आय स्रोत को रखा जाता है, यह चीज़ बजट में घाटे का कारण बनती है और बजट का घाटा, जैसा कि हमने कहा, अर्थव्यवस्था की बड़ी मुश्किलों में से एक है, यह भी हल होना चाहिए। मुख़्तलिफ़ मैदानों में कुछ दूसरी कमियां और कमज़ोरियां भी हैं जिनके बारे में इंशाअल्लाह किसी और मौक़े पर बात करेंगे।
मुल्क में बदलाव की ओर सफ़र के मुक़ाबले में -कि बदलाव के इस सफ़र का लक्ष्य मज़बूत पहलुओं को और ठोस करना और कमज़ोर पहलुओं को दूर करना है- इस्लाम और इस्लामी गणराज्य के दुश्मनों की नीति है, ये लोग बदलाव के इस बिन्दु के बिलकुल ख़िलाफ़ हरकतें कर रहे हैं, काम कर रहे हैं, क़दम उठा रहे हैं, उनका लक्ष्य मज़बूत पहलुओं को नुक़सान पहुंचाना है। जैसा कि मैंने पहले भी इशारा किया, हमें मजबूरन उन्हें अवाम को बताना होगा, पब्लिक को मालूम होना चाहिए। जिस वक़्त सद्दाम ने पाकीज़ा डिफ़ेन्स के दौर में हम पर हमला किया, उस वक़्त इस बात को पब्लिक तक पहुंचाया गाया और हमने अवाम को बताया कि मुल्क में जंग शुरू हो गयी है, यानी पब्लिक को जंग जैसी बड़ी घटना के बारे में बताया गया।
अलबत्ता आज इस हाइब्रिड वॉर में फ़ौजी हमला नहीं है, दुश्मन फ़ौजी हमला नहीं करता, कुछ दूसरे काम करता है, यहाँ भी लोगों की नोटिस में लाना ज़रूरी है ताकि उन्हें पता चले कि दुश्मन किन रास्तों से और किन नीतियों के साथ आता है और लोग पूरी समझ और जानकारी के साथ घटनाओं को देख सकें। जब हमारे प्रिय अवाम हालात से आगाह हो जाएंगे तो जो भी वाक़ेया और घटना हो, वे पूरी जानकारी और गहरी समझ के साथ उस वाक़ए को देखेंगे।
जी हाँ हाइब्रिड वॉर में फ़ौजी हमला नहीं होता लेकिन धार्मिक व सियासी विचारों पर हमला होता है, दुश्मन का हमला धार्मिक और सियासी विचारों पर होता है। यह जो ‘सूरए क़ुल आउज़ो बेरब्बिन नास’ में ‘ख़न्नास’ (11) कहा गया है, इसमें ख़न्नास यही प्रोपैग़न्डा करने वाले विदेशी और मुल्क में उनके पिट्ठु हैं, ये उकसाते हैं, फ़ैक्ट्स को उलटा दिखाते हैं, उनका मक़सद क़ौम के इरादे को कमज़ोर करना है, उनका मक़सद उम्मीद के चेराग़ को बुझाना है, वे जवानों के दिल में उम्मीद के शोले को ख़ामोश करना चाहते हैं और उन्हें मायूस करना चाहते हैं। मायूसी यानी बंद गली, जब जवान विकास की ओर से नाउम्मीद हो गया, भविष्य की ओर से मायूस हो गया तो वह अपने सामने बंद गली देखने लगता है और जो अपने सामने बंद गली महसूस करता हो, उससे सही काम की उम्मीद नहीं रखी जा सकती। वे मतभेद फैलाना चाहते हैं, वे मुल्क में दो ब्लॉक बनाना चाहते हैं, वे क़ौमी ताक़त के हक़ीक़ी सॉफ़्टवेयर को क़ौम के हाथ से ले लेना चाहते हैं, उसे बेअसर बनाना चाहते हैं, ये सॉफ़्टवेयर अवाम के ईमान, अवाम की मज़हबी वैल्यूज़, अवाम के राष्ट्रीय संस्कार और उनकी आस्थाएं हैं। अगर वे ये काम कर ले गए तो फिर वे मुल्क में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश करेंगे, अशांति पैदा करने की कोशिश करेंगे, अगर उनसे हो सका तो सिविल वॉर शुरू करवाएंगे, अलबत्ता वे मुंह की खा चुके हैं और आगे भी ऐसा ही होगा।
हाइब्रिड वॉर में दुश्मन, मीडिया को इस्तेमाल करता है, सांस्कृतिक साधन को इस्तेमाल करता है, सुरक्षा के तत्वों को काम में लाता है, घुसपैठ का हथकंडा अपनाता है, आर्थिक तत्वों से फ़ायदा उठाता है, इन सभी एलिमेन्ट्स को इस्तेमाल करता है ताकि क़ौम की नाकाबंदी कर सके, ताकि क़ौम को मायूस कर सके, क़ौम को उसकी सलाहियतों की ओर से ग़ाफ़िल कर सके। दुश्मन कोशिश करता है कि क़ौम को सूचना तक पहुंच के रास्ते से दूर कर दे। “रेडियो और टीवी की बात न सुनो, उनकी ख़बरें झूठी हैं, अधिकारियों व ओहदेदारों की रिपोर्टों पर ध्यान न दो, उनकी रिपोर्टें झूठी हैं, रहबरे इंक़ेलाब की बात न सुनो, रहबरे इंक़ेलाब की बातें घिसी पिटी हैं।” घिसी पिटी हैं? बरसों से दुश्मन का मोर्चा गला फाड़ रहा है कि हम इस्लामी गणराज्य को घुटनों पर लाना चाहते हैं, उसके मुक़ाबले में रहबरे इंक़ेलाब का स्टैंड है कि तुम कुछ बिगाड़ नहीं सकते! यह घिसी पिटी बात नहीं है, यह एक ही बात को दोहराना नहीं है, यह दृढ़ता है। अल्लाह ने हमें हुक्म दिया है -पैग़म्बरे इस्लाम को दिया गया हुक्म, सभी के लिए हुक्म है, हमारे लिए हुक्म है (12) ʺतो (ऐ रसूल) जिस तरह आपको हुक्म दिया गया है (सीधे रास्ते पर) साबित क़दम रहें आप भी और वे लोग भी जिन्होंने (कुफ़्र व नाफ़रमानी) से तौबा कर ली है और आपके साथ हैंʺ (सूरए हूद, आयत-112) यह दृढ़ता है, यह हक़ बात को मन में रखना, महफ़ूज़ रखना और उस पर डटे रहना है, यह घिसी पिटी बात नहीं है। अवाम ने उन सभी लोगों को जिन्होंने हालिया हंगामों में लोगों को वरग़लाया या हंगामों का सपोर्ट किया, ईरानी क़ौम ने उन सभी को थप्पड़ रसीद किया और अल्लाह की मदद व ताक़त से आगे भी ईरानी क़ौम अपने दुश्मनों को थप्पड़ रसीद करती रहेगी।
मैं पूरे यक़ीन से कहता हूं कि ईरानी क़ौम मज़बूत है, ईरानी क़ौम तरक़्क़ी कर रही है, ईरानी क़ौम अपनी कमियों को दूर कर सकती है, वह बदलाव लाने की ताक़त रखती है, वह कमियों को दूर कर सकती है, ईरानी क़ौम प्रतिरोध के मोर्चे का सपोर्ट करती है। हम प्रतिरोध के मोर्चे की मदद करने का खुल कर एलान करते हैं और युक्रेन जंग में मौजूदगी को साफ़ लफ़्ज़ों में रद्द करते हैं। उन्होंने झूठा दावा किया कि ईरान, युक्रेन जंग में शामिल है, हरगिज़ ऐसा नहीं है, हमारी कोई शिरकत नहीं है। युक्रेन की जंग अस्ल में अमरीका ने पूरब की ओर नेटो का दायरा बढ़ाने के लिए शुरू करायी, इस जंग की राहें अस्ल में अमरीका ने समतल कीं, इस वक़्त भी युक्रेन की जंग से सबसे ज़्यादा मुनाफ़ा, सबसे ज़्यादा फ़ायदा अमरीका हासिल कर रहा है। बेचारे युक्रेन के अवाम मुश्किलों का सामना कर रहे हैं और जंग का फ़ायदा अमरीका के हथियार बनाने वाले कारख़ाने उठा रहे हैं, इसीलिए वे युक्रेन की जंग ख़त्म करने में सहयोग नहीं कर रहे हैं, अमरीका उन कामों की राह में रुकावट डाल रहा है जिन्हें इस जंग के अंत के लिए अंजाम पाना चाहिए, वह ऐसा नहीं होने दे रहा है, वह युक्रेन जंग के अंत की बात से नाराज़ हो जाता है।
ख़ैर, मैंने अपनी बात के अंत में, सिस्टम की कुछ कमियों की ओर इशारा किया, कुछ कमियां हम अवाम में भी हैं, जिन्हें हमें दूर करना चाहिए। हम अवाम के बीच कुछ ऐब हैं जो इत्तेफ़ाक़ से आर्थिक मामलों से संबंधित हैं, इनमें से एक संसाधनों का ग़लत इस्तेमाल और फ़ुज़ूलख़र्ची है। हम बेजा इस्तेमाल करते हैं, पानी का बेजा इस्तेमाल करते हैं, रोटी को बर्बाद करते हैं, बिजली का बेजा इस्तेमाल करते हैं, गैस का बेजा इस्तेमाल करते हैं, फ़ुज़ूलख़र्ची करते हैं। कुछ मुल्कों की, जिनकी आबादी हमारे मुल्क से कई गुना ज़्यादा है, गैस की खपत हम से कम है, उनकी पेट्रोल की खपत हमसे कम है। हमारी पेट्रोल की खपत बहुत ज़्यादा है, गैस की खपत ज़्यादा है, हम फ़ुज़ूलख़र्ची करते हैं, पानी बर्बाद करते हैं, रोटी फेंक देते हैं, यह बहुत बड़ा ऐब है, हमें इसे दूर करना चाहिए। मैंने आज से कई साल पहले, इस बात की ओर तवज्जो दिलाई थी।
हम अवाम की दूसरी मुश्किल हद से ज़्यादा विलासिता की ज़िन्दगी का रुझान है। इसी वजह से शादियां मुश्किल हो गयी हैं, शादी की उम्र में नौजवान –चाहे लड़का हो या लड़की– शादी नहीं कर पा रहे हैं, क्यों? इसलिए कि माँ बाप को अपने रिश्तेदारों का ख़याल है कि इतना मेहर होना चाहिए, इस तरह की लग्जरी चीज़े हों, इस तरह का रिसेप्शन हो, शादी के ख़र्च बढ़ गए हैं। इस विलासिता के कंप्टीशन से बाहर निकल आइये। कुछ लोगों ने लग्जरी ज़िन्दगी का कंप्टीशन शुरू कर रखा है, अपने आपको इस कंप्टीशन से बाहर निकालिये, यह हमारा ऐब है।
हमारा एक और बड़ा ऐब यह है कि हम मुल्क के प्रोडक्टस के इस्तेमाल के संबंध में कट्टर नहीं हैं, बहुत सी चीज़ों में कट्टर होना बुरा होता है, लेकिन इस मामले में यह अच्छी चीज़ है। हमें स्दवेशी प्रोडक्ट्स को लेकर कट्टर होना चाहिए। एक चीज़ है जो मुल्क के भीतर बनी है, उस जैसी विदेशी चीज़ भी है- अलबत्ता इम्पोर्टर को उस चीज़ का इम्पोर्ट नहीं करना चाहिए था, लेकिन उसने इम्पोर्ट कर दिया- कभी उस स्वदेशी प्रोडक्ट की क्वालिटी उस विदेशी प्रोडक्ट की क्वालिटी से कम नहीं है, कभी उससे बेहतर भी होती है, लेकिन हम विदेशी चीज़ की ओर झुक जाते हैं, क्यों? आप उस ईरानी कारीगर की मदद क्यों नहीं करते? उस स्वदेशी प्रोडक्ट को ईरानी कारीगर ने बनाया है, अगर आप उसे नहीं ख़रीदेंगे तो वह कारीगर बेरोज़गार हो जाएगा। आप विदेशी प्रोडक्टस ख़रीदते हैं और उसे स्वदेशी प्रोडक्ट पर प्राथमिकता देते हैं, यह बहुत बड़ा ऐब है और हम पर यह एतेराज़ सही है। ये ख़ुद हमारे अपने ऐब हैं। सारे ऐब सिर्फ़ सिस्टम और मुल्क चलाने वाले विभाग के नहीं हैं, कुछ ऐब हममें भी हैं।
कुछ जगहों पर नज़रअंदाज़ करना और माफ़ करना ज़रूरी है, लेकिन हम ऐसा नहीं करते। एक मामूली से मतभेद पर एक दूसरे का गरेबान पकड़ लेते हैं, क्यों? मुमकिन है दो के बीच किसी विषय पर -मिसाल के तौर पर एक सियासी मामले में- मतभेद हो, हुआ करे, एक दूसरे से झगड़ा क्यो करें? क्यों एक दूसरे का गरेबान पकड़ें? समाज में दो ब्लॉक क्यों बने? नज़रअंदाज़ करना चाहिए। कुछ जगहों पर नज़रअंदाज़ करना चाहिए। यह भी हमारी मुश्किलों में से है।
उन सभी लोगों को मेरी अहम सिफ़ारिश, जो लोगों से बात करने की सलाहियत रखते हैं और उनके पास मीडिया है, चाहे वह साइबर स्पेस हो, सोशल मीडिया हो, प्रिंट मीडिया हो, या रेडियो और टीवी हो- यह है कि उम्मीद पैदा करें। दुश्मन हमारे नौजवानों को नाउम्मीद करने की कोशिश कर रहा है, इसके जवाब में हमें उम्मीद पैदा करनी चाहिए। मुल्क में उम्मीद पैदा करने वाली चीज़ें कम नहीं हैं, यही बातें जो मैंने अर्ज़ कीं और उनसे दसियों गुना ज़यादा बाते हैं जो सबकी सब उम्मीद का सबब हैं और इंसान में उम्मीद भरती हैं। सभी की ज़िम्मेदारी है कि वे उम्मीद जगाएं, इस पर गंभीरता से अमल करें।
उम्मीद पैदा करना ख़ुद को फ़रेब देना नहीं है। कुछ लोग सोचते हैं कि उम्मीद पैदा करने का मतलब कमज़ोरियों को छिपाना है, अपने आप को धोखा देना है! नहीं, कमज़ोरियों को भी बयान किया जाना चाहिए, इसमें कोई ऐब नहीं है, लेकिन कमज़ोरियां बयान करने के साथ ही उम्मीद भी पैदा की जानी चाहिए, रौशन भविष्य और रौशन क्षितिज को नज़रों के सामने रखा जाए और दिखाया जाए। अलहम्दोलिल्लाह हमारी हालत, अच्छी हालत है। हमें आज इस आयत को मद्देनज़र रखना चाहिएः “कमज़ोरी न दिखाओ, ग़मगीन न हो, तुम ही ग़ालिब व बर्तर हो अगर तुम मोमिन हो” (13) तुम्हारा ईमान तुम्हारी बर्तरी का सबब है, तुम्हारे हावी होने का सबब है। हमारी हालत के बिल्कुल ख़िलाफ़ आज इस इलाक़े में हमारे कट्टर दुश्मन यानी अमरीकी सरकार की हालत है। हम जानते हैं कि हम इलाक़े में क्या कर रहे हैं, हमारी नीति साफ़ व ज़ाहिर है, हमारा रास्ता साफ़ है। अमरीकी चकराए हुए हैं और बौखलाहट का शिकार हैं कि इलाक़े में रुकें या बाहर निकल जाएं। अगर वे रुकते हैं तो उनके ख़िलाफ़ क़ौमों की नफ़रत दिन ब दिन बढ़ती जाएगी। अमरीकी, ताक़त के साथ एक्टिव मिलिट्री फ़ोर्स के साथ अफ़ग़ानिस्तान में घुस आए, बीस साल अफ़ग़ानिस्तान में रहे, अफ़ग़ान क़ौम को नाराज़ किया, उसकी नज़र में नफ़रत का पात्र बन गए और वहाँ से निकलने पर मजबूर हो गए। अगर रुके रहें तो नफ़रत बढ़ती है। अगर बाहर निकल जाएं तो वे चीज़ें उनके हाथ से निकल जाएंगी जिसकी लालच में वे यहाँ आए थे, यहाँ उनकी लालच वाली चीज़ें हैं, सीरिया में अमरीकियों की लालच वाली चीज़ें हैं, इराक़ में हैं, इस पूरे इलाक़े में हैं, अगर वे उन्हें छोड़कर चले जाएं तो वे चीज़ें उनके हाथ से निकल जाएंगी, उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा है कि क्या करें, रुके रहें या चले जाएं? वे चकराए हुए हैं और बौखलाहट का शिकार हैं। हम अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं कि हमारा रास्ता साफ़ है, हमारे पास समझ है, अलहम्दो लिल्लाह हमारे क़दम मज़बूत और जमे हुए हैं जबकि हमारा दुश्मन कमज़ोरी का शिकार है।
ऐ अल्लाह! दिन ब दिन इन कामयाबियों में इज़ाफ़ा कर। ऐ परवरदिगार! हमारे महान इमाम ख़ुमैनी को, जिन्होंने हमारे लिए यह रास्ता खोला, अपने प्यारे बंदों के साथ महशूर कर। ऐ परवरदिगार! हमारे प्यारे शहीदों को, जिन्होंने इस अज़ीम आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने में कामयाबी हासिल की, अपने पैग़म्बर और इस्लाम के आग़ाज़ के दौर के शहीदों के साथ महशूर कर। ऐ परवरदिगार! अपने वली, अपनी हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के दिल को -हमारी जानें उन पर क़ुरबान हों- हमसे राज़ी कर दे। उनकी दुआ और शिफ़ाअत को हमारे शामिले हाल कर दे। हमारी क़ौम को हमेशा कामयाब, ताक़तवर और सौभाग्यशाली क़रार दे।
अल्लाह का सलाम और रहमत हो आप सब पर।
1 मुलाक़ात के आग़ाज़ में इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के मुतवल्ली हुज्जतुल इस्लाम वलमुस्लेमीन अहमद मरवी ने कुछ बातें बयान कीं।
2 ज़ादुल मआद, पेज 328, ऐ साल और हालात को बदलने वाले! ऐ दिन और रात का नेज़ाम चलाने वाले! हमारे हाल को बेहतरीन हाल में बदल दे।
3 दर्शकों के नारे
4 विशेषज्ञ असेंबली के सदस्यों से मुलाक़ात (23/2/2023)
5 ग़दीर वॉटर सप्लाई प्रोजेक्ट, जिसका उद्घाटन 2/9/2022 को हुआ, मुल्क में पानी की सप्लाई का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है जो ख़ूज़िस्तान प्रांत के केन्द्र, दक्षिण और पश्चिम में स्थित 26 शहरों और 1608 देहातों को पीने का साफ़ पानी सप्लाई करने का रास्ता समलत करता है।
6 प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था की नीतियों का नोटिफ़िकेशन (18/2/2014)
7 मुल्क के कुछ उद्योगपतियों, उद्यमियों और नॉलेज बेस्ड कंपनियों के मालिकों से मुलाक़ात (30/01/2023)
8 नए साल के आग़ाज़ के मौक़े पर नौरोज़ का पैग़ाम (21/03/2023)
9 इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के ज़ायरों और स्थानीय लोगों की सभा के बीच भाषण (20/3/2016)
10 सरकार, न्यायपालिका और संसद को क़ानून साज़ी से संबंधित जनरल पॉलिसीज़ का नोटिफ़िकेशन (28/09/2019)
11 सूरए नास, आयत-4,5,6, (ऐ रसूल) (स) आप कह दीजिए कि मैं लोगों के परवरदिगार की पनाह लेता हूं बार बार वसवसा डालने वाले, बार बार पसपा होने वाले के शर से। जो लोगों के मन में वसवसा डालता है। ख़्वाह वह जिनों में से हो या इंसानों में से।)
12 सूरए हूद, आयत-112, (ऐ रसूल) (स) जिस तरह आपको हुक्म दिया गया है (सीधे रास्ते पर) साबित क़दम रहें और वे लोग भी जिन्होंने (कुफ़्र व नाफ़रमानी से) तौबा कर ली है और आपके साथ हैं, वे भी यही करें।)
13 सूरए आले इमरान, आयत-139, (ऐ मुसलमानो! कमज़ोरी न दिखाओ और ग़मगीन न हो अगर तुम मोमिन हो तो तुम ही ग़ालिब व बर्तर होगे।)