तक़रीर के कुछ अहम बिंदुः

 

बसीजी कल्चर गुमनाम रहकर जी तोड़ मेहनत का कल्चर हे, बेग़रज़ और बे ख़ौफ़ होकर हर ख़तरा मोल लेने वाले ‎मुजाहेदों का कल्चर है। यह हर किसी की और मुल्क की ख़िदमत का नाम है, ख़ुद को दूसरों के लिए वक़्फ़ कर देने ‎का नाम है।

 

बसीजी होने का मतलब मज़लूम को निजात दिलाना है और इस काम के लिए हर ज़ुल्म बर्दाश्त करना है। आपने ‎देखा कि हालिया मसले में बसीजियों ने इस मक़सद के लिए कि ईरानी क़ौम को मुट्ठी भर दंगाइयों, ग़ाफ़िलों या ‎ख़ुद फ़रोशों के ज़ुल्म से बचाएं, ख़ुद ज़ुल्म सहा।

 

नेश्नल फ़ुटबाल टीम के खिलाड़ियों ने कल ईरानी क़ौम का दिल ख़ुश कर दिया। इंशा अल्लाह ख़ुदा उनका दामन ‎ख़ुशियों से भर दे। ‎

 

1980 के दशक और 2010 के दशक के बसीजी में कोई फ़र्क़ नहीं। आप नौजवानों ने न तो इमाम ख़ुमैनी को देखा, ‎न इंक़ेलाब का ज़माना देखा और न ही पाकीज़ा डिफ़ेंस का दौर देखा है लेकिन आपके अंदर मैदाने जंग का वही ‎जज़्बा भरा हुआ है। वो नस्ल ख़त्म हो जाने वग़ैरा जैसी बातें बेबुनियाद हैं।

 

आज अलहम्दो लिल्लाह मुल्क में दसियों लाख रजिस्टर्ड बसीजी और दसियों लाख ग़ैर रजिस्टर्ड बसीजी हैं। इस्लामी ‎दुनिया और दूसरे मुल्कों में भी दसियों लाख की तादाद में बसीजी मौजूद हैं। वो बसीजी जिनके दिलों और हमारे ‎दिलों की ज़बान एक है। ‎

 

वेस्ट की सोच यह है कि ईरान की स्ट्रैटेजिक गहराई छह मुल्कों तक है, यह मुल्क अमरीका और इम्पेरियल ताक़तों के क़ब्ज़े में आने चाहिए और उसके बाद ईरान का नंबर लगाएं। इन छह मुल्कों (इराक़, सीरिया, लेबनान, लीबिया, सूडान और सूमालिया) की हुकूमतों का तख़्ता उलट दिया जाना चाहिए था।

 

वेस्ट के मुक़ाबले में ईरान ने क्या किया? इस्लामी जुम्हूरिया ने उत्तरी अफ़्रीक़ा में तो कोई रोल नहीं निभाया। हमारा इरादा ही नहीं था और हमने कोई दख़ल नहीं दिया। लेकिन तीन मुल्कों इराक़, सीरिया और लेबनान में ईरान की पालीसी ने अपना काम किया और अमरीका की पालीसी को शिकस्त हुई।

 

ईरान के रोल अदा करने का नतीजा इन तीन मुल्कों में अमरीका की शिकस्त की शक्ल में निकला। वो #इराक़ को हाथ में लेना चाहते थे नहीं ले सके, वो #सीरिया की हुकूमत गिराना चाहते थे नहीं गिरा सके, वो #लेबनान में हिज़्बुल्लाह और अमल पार्टी को ख़त्म करना चाहते थे नहीं कर सके।

 

ईरान की स्ट्रैटेजिक डेप्थ को मिटाना वह साज़िश थी जिस के लिए कई अरब डालर ख़र्च किए गए और हज़ारों घंटे इस पर फ़िक्री काम हुआ कि ईरान को नुक़सान पहुंचा सकें लेकिन इस्लामी जुम्हूरिया की अज़ीम और कारसाज़ फ़ोर्स की वजह से यह साज़िश नाकाम हो गई।