अमरीकन ड्रीम जो बिखर गया

21वीं सदी की शुरुआत, अमरीका में कई पहलुओं से ज़मीनी सच्चाई को समझने की भी शुरुआत रही है। सोशल फ्रीडम और नस्लीय बराबरी का यह हाल था कि बाराक ओबामा ने मार्टिन लूथर किंग की “अमरीकन ड्रीम” की पचासवीं सालगिरह के मौक़े पर अपनी तक़रीर में यह मान लिया कि अमरीकन ड्रीम पूरा नहीं हो पाया है। (1) “मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं।” (2) और “काले लोगों की ज़िदंगी अहम है” (3) जैसे आंदोलनों में लगाए जाने वाले नारे, एक काले प्रेज़िडेंट के हाथों अमरीकन ड्रीम को पूरा किये जाने की कोशिशों का नतीजा थे। कैपिटलिज़्म के वादों, बैंकिंग सिस्टम और रियल स्टेट के सिस्टम के चलते अमरीकी समाज में जो सोशल और इनकम के मैदान में नाइंसाफ़ी है उसके ख़िलाफ़ “वॉल स्ट्रीट पर क़ब्ज़ा करो” आंदोलन की शुरुआत हुई। (4) माइकल लिंड ने अपनी किताब “द न्यू क्लास वॉर” में लिखा है कि अमरीका में मज़दूरों का वर्ग, छोटे से “बड़े वर्ग” और “क्रीम क्लास और ओहदेदारों” के ख़िलाफ़ उठ खड़ा हुआ है क्योंकि इस “हाई क्लास” के लोग समाज के दस-पंद्रह फ़ीसद ही हैं लेकिन सरकार, इकोनॉमी और साइंस के मैदान में उनका बहुत ज़्यादा रसूख़ होता है। (5) इकोनॉमी के मैदान में बड़े कामों के लिए नोबल इनाम पाने वाले इंगस डेटन ने अपनी किताब “मायूसी की मौत” (6) में यह साबित किया है कि किस तरह कैपिटलिज़्म ने अमरीकियों की ज़िंदगी को खोखला बना दिया है और लोग, ज़िंदगी की परेशानियों और दबाव से बचने के लिए, दवाओं और शराब व नशे का इस्तेमाल करते हैं और यही मायूसी, ख़ुदकुशी और नार्कोटिक्स के हाई डोज़ से ख़ास तौर पर गोरों के मध्यम वर्ग में मरने वालों की तादाद में बढ़ोत्तरी की वजह बनी है। (7)

सेक्सुअल रिवोल्यूशन और सोशल फ्रीडम, शादियों की दर में कमी और तलाक़ में बढ़ोत्तरी और सब से अहम अमरीका में बच्चों की पैदाइश में कमी की वजह बनी। तबाह होते समाज नामी किताब के आथर रॉस डॉथेट जो न्यूयॉर्क टाइम्ज़ से भी जुड़े हैं, अपनी किताब में वेस्ट में बच्चों की पैदाइश में कमी को अमरीकी ताक़त के ख़ात्मे की एक वजह बताते हैं। उन्होंने अमरीका के पतन की दूसरी वजहें इस तरह बयान कीः राजनीतिक निष्क्रियता, नयी पहचान और विचारों के लिए कल्चरल कमज़ोरी और टेक्नालॉजी में तरक़्क़ी और नये अविष्कारों का सिलसिला ख़त्म हो जाना, अमरीका की तबाही की दूसरी वजहें हैं। जिस मुल्क के लोगों ने बीसवीं सदी के दूसरे हिस्से में सिनेमा और राजनीति में “स्टार्स वॉर” की बातें सुनी थीं और जो लोग ओडिसा 2001 के स्पेस ट्रवेल के ख़्वाब को पूरा करने की कोशिश कर रहे थे, वह अब फ्लिंट, नेवार्क और चार्ल्सटन और मिल्वॉकी जैसे इलाक़ों में पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।  पानी की पाइप लाइनों के साथ ही साथ, सड़कें, पुल और रेलवे और इसी तरह के दूसरे बुनियादी ढांचों की हालत पूरी तरह से ख़स्ता हो चुकी है। अमरीका में बुनियादी ढांचे की कमज़ोरी, कोरोना के दौर में पूरी तरह खुल कर सामने आय गयी। हालांकि अमरीका के सियासी मैदान में कोरोना के दौरान हर कमी की ज़िम्मेदारी, ट्रम्प और उनके अजीबो ग़रीब फैसलों के सिर थोप दी गयी लेकिन अस्पतालों में बेड की कमी, मेडिकल स्टाफ़ के लिए ज़रूरी किट और सहूलतों की कमी और वेंटिलेटर मशीनों और दूसरे उपकरणों की कमी, अपने नागरिकों की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में अमरीकी सरकार की नाकमी का सुबूत है। जार्ज पेकर ने एंटलाटिंक में अपने एक आर्टिकल में, कोरोना के दौरान अमरीका की हालत को “हारी सरकार” (9) का नाम दिया है और येल यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर और “सियासी क़बायल” नामी किताब की आथर डॉक्टर एमी चुवा ने फॉरेन अफ़ेयर्स में छपने वाले अपने एक आर्टिकल में (10) लिखा है कि “कोरोना की बीमारी ने यह साफ़ कर दिया कि अमरीका, सिस्टम के फ़ेल्युर की हालत में पहुंच रहा है। क्राइसेस के दौरान पहले से कहीं ज़्यादा यह महसूस हो रहा था कि मुल्क, वाइलेंट पॉलिटिकल पनिशमेंट की तरफ़ बढ़ रहा है।”

रोब और दबदबे का ख़ात्मा

नेशनल और इंटरनेश्नल सतह पर भी वह सुपर पॉवर जो अमरीकी सदी में, जंगों को निपटा देने का दावा किया करता था, अब “कभी न ख़त्म होने वाली जंगों” में फंसा हुआ है और अब भी इस क़िस्म की जंगों में अरबों डॉलर बर्बाद कर देता है। उस मुल्क को जिसके बिना, बालकान के झगड़ों का निपटारा नहीं होता था, इन्टरनेश्नल पॉलिटिक्स के एक बेहद अहम मुद्दे यानी सीरिया में पॉलिटिकल प्रोसेस में कोई रोल अदा करने का मौक़ा नहीं मिला। वर्ल्ड इकॉनोमी में भी अमरीका की पोज़ीशन कमज़ोर हो चुकी है। अब वह चीन जैसे मज़बूत राइवल के सामने हाथ पैर मार रहा है। ट्रम्प के दौर में इन्टरनेश्नल कम्युनिटी और उसके साथ कोआप्रेशन से दूरी भी अमरीकी अगुवाई के फीके पड़ जाने में पहले से ज़्यादा प्रभावशाली रही है और नौबत यहां तक पहुंच गयी कि मैक्रां, अमरीका की नेतृत्व की योग्यता पर ही शक करने लगे हैं। (11) म्यूनिख़ कांफ्रेंस ने अपने हालिया सेशन में “वेस्ट से दूरी” (Westlessness) पर चर्चा को अपने एजेंडे में जगह दी जिसके तहत वेस्टर्न वैल्यूज़ के आकर्षण कम होने पर बात चीत की गई और यह कहा गया कि अमरीका और युरोप इन वैल्यूज़ से मुंह मोड़ चुके हैं जिसकी वजह से दूसरे मुल्क भी अब उनके जैसा बनने की ख़्वाहिश नहीं रखते।

हालांकि इन्टरनेश्नल स्तर पर पॉलिटिक्स, फ़ौज और इकॉनोमी के मैदान में अमरीका के इन्टरनेश्नल रोल और उसमें आने वाली ऊंच-नीच के मद्दे नज़र अमरीकी ताक़त में कमी की बात की जाती है लेकिन अमरीका के अंदर भी जो कुछ हो रहा है वह दरअस्ल वहां के सामाजिक मुद्दों का नतीजा है। जार्ज फ्लायड के क़त्ल के बाद शुरु होने वाले प्रोटेस्ट से लेकर, इलेक्शन के दौरान झगड़ों और उसके बाद 6 जनवरी को कांग्रेस की इमारत पर हमले तक, सब कुछ अमरीका की उस सामाजिक व्यवस्था का नतीजा है जो बरसों से जारी है। यही वजह है कि रिचर्ड हॉस ने डेमोक्रेसी का सिंबल कही जाने वाली कैपिटल हिल इमारत पर हमले को “पोस्ट अमेरिकन” दौर की शुरुआत कहा। (12) फ्रांसिस फ़ोकोयामा भी चेतावनी देते हैं कि “अमरीकी, ऐसे छोटे छोटे टुकड़ों में बंट रहे हैं जो छोटी पहचान पर टिके हैं और यह एक गुट के रूप में किसी भी समाज के सामूहिक काम और सोच की संभावना के लिए ख़तरा है।” (13)

 

[1] https://edition.cnn.com/2013/08/28/politics/obama-king-speech-transcript/index.html

[2] I can’t breathe

[3] Black Lives Matter

[4] Occupy Wall Street

[5] The New Class War: Saving Democracy from the Managerial Elite, Michael Lind, Portfolio / Penguin Publishing, 2020.

[6] Deaths of Despair

[7] Deaths of Despair and Future of Capitalism, Angus Deaton & Anne Case, Princeton University Press, 2020.

[8] Decadent Society: How We Became the Victims of Our Own Success, Ross Douthat, Simon & Schuster, 2020.

[9] https://www.theatlantic.com/magazine/archive/2020/06/underlying-conditions/610261/

[10] https://www.foreignaffairs.com/reviews/review-essay/divided-we-fall

[11] https://apnews.com/article/1cf7908 da5bfc29d272e6dad34de0305

[12] https://www.foreignaffairs.com/articles/united-states/2021-01-11/present-destruction

[13] Identity: The Demand for Dignity and the Politics of Resentment, Francis Fukuyama, Farrar, Straus and Giroux, 2018.