सवालः डॉक्टर ज़ुन्नूरी साहब पिछले क़रीब 40 दिनों से जारी हालात के बारे में मुल्क के दो इंटेलिजेन्स विभागों का पहला ज्वाइंट बयान सामने आया, इस बयान में जो चीज़ें सामने आयी है, उनकी अहमियत क्या है?

जवाबः पहले मैं एक बिन्दु की ओर इशारा करूं। इन्क़ेलाब और मुक़द्दस डिफ़ेंस के आग़ाज़ में कुछ लोग फ़ौज और आईआरजीसी के समानांतर या पैरलल रूप से मौजूद होने पर सवालिया निशान लगाते थे, लेकिन आठ साल के मुक़द्दस डिफ़ेंस से यह बात साबित हो गयी कि आईआरजीसी और फ़ौज ने दो बाज़ुओं की तरह एक साथ मिल कर मुल्क की सेक्युरिटी को यक़ीनी बनाया। आपको याद होगा कि पिछले बरसों में हमारे दुश्मन इस सिलसिले में तरह तरह के प्रोपैगंडे करते थे और सिस्टम को निशाना बनाते थे। हम इस बात के गवाह हैं कि पिछले कुछ बरसों से दो मज़बूत इंटेलिजेन्स विभाग यानी इंटेलिजेन्स मिनिस्ट्री और आईआरजीसी का इंटेलिजेन्स डिपार्टमेंट मुल्क की ज़रूरत समझे जाते हैं और अल्लाह का शुक्र है कि आज हमारे इंटेलिजेन्स विभाग इस मरहले पर पहुंच चुके हैं कि एक दूसरे की मदद करते हैं और इंटेलिजेन्स से जुड़ी मालूमात पर पूरी तरह से कंट्रोल रखते हैं, जैसा कि दूसरे मुल्कों की इंटेलिजेन्स सर्विसेज़ ख़ास तौर पर अमरीका और इस्राईल की सीक्रेट सर्विसेज़ की सारी ख़ुफ़िया मालूमात और सुराग़ उनके पास हैं, जिन्होंने हमारे मुल्क के अंदर कुछ लोगों को ख़रीद रखा है, कुछ लोगों को दूसरे मुल्कों में ले गए हैं, उन्हें ट्रेनिंग दी है और आज उनसे लोगों पर हमले करवा रही हैं। यह बयान जो, इंटेलिजेन्स मिनिस्ट्री और आईआरजीसी ने जारी किया है, उसमें ऐसी अहम बातें और बिन्दु हैं जो मुल्क के भीतर इम्पेरियल ताक़तों की घुसपैठ की कोशिशों, उसके ज़रिए पानी की तरह बहाए जा रहे पैसों और कई बरसों से जारी साज़िशों से पर्दा उठाते हैं जिनका मक़सद एक तरफ़, मुल्क में अमन व सेक्युरिटी को तबाह करना और इस्लामी सिस्टम को गिराने की कोशिश करना है, दूसरी तरफ़ जातीय व मज़हबी जज़्बात भड़काकर मुल्क में अलगाववाद को बढ़ावा देना, तीसरी तरफ़ साइबर स्पेस और सोशल मीडिया के प्लेटफ़ार्म्ज़ से सेक्युरिटी ख़तरे पैदा करना और मुल्क के बुनियादी ढाँचों पर साइबर हमले करना और चौथी तरफ़ इन संसाधनों से मनोवैज्ञानिक जंग छेड़ना है। यह सारे काम उन्होंने इस मुद्दत में अंजाम दिए हैं ताकि पहले तो हमारे मुल्क को अंदर से पूरी तरह तब्दीली की ओर ले जाएं और फिर बाद में सिस्टम को जड़ से उखाड़ फेंकने की साज़िश को अमली बनाएं। अल्लाह का शुक्र है हमारे अवाम ने अपनी समझदारी, बेदारी, सूझबूझ और होशियारी से आज तक इन साज़िशों को नाकाम बनाया है। मेरा ख़्याल है कि इंटेलिजेन्स मिनिस्ट्री और आईआरीजीसी के इस ज्वाइंट बयान की बातों की वज़ाहत के लिए कई प्रोग्रामों की ज़रूरत होगी जिनमें दुश्मन की साज़िशों और कोशिशों के अनेक पहलुओं का जायज़ा लिया जा सके और देखने वालों की ख़िदमत में उन्हें पूरी वज़ाहत के साथ बयान किया जा सके।

सवालः डॉक्टर ज़ुन्नूरी साहब यह जो ज्वाइंट बयान जारी हुआ है, चूंकि हम अमरीका के बारे में बात कर रहे हैं, ईरान के ख़िलाफ़ उसके एलायंस की बात कर रहे हैं, जो संकट पैदा किया गया, अशांति पैदा हुयी, जो हंगामे हमने देखे, उनमें से हर तत्व का रोल, अशांति और हंगामों में आप किस तरह देखते हैं?

जवाबः मैं अर्ज़ करूं कि इस सिलसिले में दुश्मन की कई स्ट्रैटेजीज़ हैं। वह इस कोशिश मैं है कि उसे कोई ऐसा बहाना मिल जाए कि वह अपनी उन स्ट्रैटेजीज़ को एक दूसरे से जोड़ दे और बहुत से पहलुओं वाला संकट पैदा कर दे। यहाँ पर मैं इशारा करता चलूं कि मिसाल के तौर पर महसा अमीनी का केस, चूंकि वह एक औरत थी, इसलिए दसियों बरस से दुनिया भर में फ़ेमिनिज़्म के सिलसिले में जितनी भी कोशिशें हुयी हैं, उन्हें इस मामले से जोड़ दिया गया, अगर कोई मर्द होता तो यह सब कुछ न होता। वह लड़की थी और जवान थी।

दूसरे यह कि इस मामले में गुंजाइश थी कि जवानों की बहस, नई नस्ल की बहस और इंक़ेलाब की पिछली नस्ल की बहस कि उसे कुछ पता नहीं है, इन सब चीज़ों को इस मामले से लाकर जोड़ दे लेकिन वह कामयाब नहीं हो सके, मगर छोटे पैमाने पर यह काम किया गया।

तीसरे यह कि वह सुन्नी थीं, वह लोगों के फ़िरक़ावाराना जज़्बात भड़का कर एक जगह लाने में कामयाब हो गए और उसे एक तरह से शिया और सुन्नी का मामला बना दिया। पेट्रो डॉलर उंडेले जाने लगे। इस दौरान ‘ईरान इंटरनैश्लन’ (सऊदी अरब की फंडिंग से चलने वाला फ़ारसी टीवी चैनल) ने सऊदी अरब के पेट्रो डॉलर के सहारे जो कुछ किया वह पूरी तरह वाज़ेह है।

सवालः मतलब यह कि जिन कामों की वह बरसों से प्लानिंग कर रहे थे, जिनकी वह हिमायत कर रहे हैं, कैम्पेन चला रहे हैं, ट्रेनिंग दे रहे हैं, उन सबको एक साथ मैदान में ले आए?

जवाबः उन सबको वह एक साथ एक मामले में ले आए, सबको एक साथ जोड़ दिया ताकि सब एक दूसरे की मदद करें। वह कुर्द थीं, जातीय जज़बात को, जो अलगाववाद का रास्ता समतल करते हैं, भड़काया गया। वह मुसाफ़िर थीं, उन लोगों ने इंसानी हमदर्दी के जज़बात का सहारा लिया ताकि फ़ैमिलीज़ को चिंता में डाल दें कि क्या पता कल को उनके बच्चे के साथ भी ऐसा हो सकता है। वह मुसाफ़िर थीं, उन लोगों ने रहमदिली के जज़्बे को भड़काया, ये सारी चीज़ें वह एक साथ मैदान में लेकर आ गए। इस्राईल काफ़ी मुद्दत से काम कर रहा था, आप जानते हैं कि इस्फ़हान में होने वाले उस आतंकवादी वाक़ए के लिए इस्राईल ने कुर्द मिलिशिया के लोगों को इस्तेमाल किया था जो हमारी सेक्युरिटी फ़ोर्सेज़ की मुस्तैदी से नाकाम हो गया, यह वाक़ेया बताता है कि इस्राईल ने ईरान के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर इन्वेस्ट किया है। दूसरी तरफ़ हम यह भी देखते हैं कि उन्होंने जो काम किए हैं, जिस तरह पैसे ख़र्च किए हैं, जैसे पैसों का सपोर्ट देना, ख़ुदा करे कि वह दिन आए जब बलवा व हंगामा करने वाले गिरफ़्तार शुदा कुछ लोगों के बैंक ट्रांज़ैक्शन के प्रिंट आउट दिखा सकें जिन में सीधे तौर पर मसीह अली नेजाद नाम की उस बद किरदार व फ़रारी औरत और दूसरों की ओर से पैसे डाले जाते थे। इन सबसे पता चलता है कि यह सब कुछ प्लानिंग के साथ अंजाम दिया गया और कामों को आपस में बांटा गया था। हंगामों व बलवों को जारी रखने के लिए आपने सुना ही होगा कि कैनेडा के विदेश मंत्री के साथ आमने सामने या वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए मीटिंग की गई थी कि किस तरह ईरान में हंगामों को जारी रखा जाए। यूरोपीय ट्रोएका भी मैदान में आ गया और पूरे कोआर्डिनेशन के साथ आया।

मतलब यह कि अलग अलग गिरोहों ने आपस में हाथ मिला लिया। अमरीका, फ़्रांस, जो येलो जैकेट्स के मसले में एक दूसरे के ख़िलाफ़ थे, इस मसले में दोनों ने आपस में हाथ मिला लिया। यानी हमारे इस्लामी सिस्टम से मुक़ाबला, सभी विरोधियों के बीच एकजुट होने की बुनियाद व साधन बन गया है। या मिसाल के तौर पर हम इंक़ेलाब के आग़ाज़ से मुख़तलिफ़ नामों को नज़र में रखें तो इंक़ेलाब विरोधी गिरोहों व धड़ों में कोई भी इस मामले में ग़ैर हाज़िर नहीं रहा। ये सब पूरी ताक़त से इस मामले में काम कर रहे हैं और मैदान में आ गए हैं। इससे पता चलता है कि हमारे दुश्मनों ने अपनी पूरी ताक़त और अपने पूरे वजूद से हमारे ख़िलाफ़ एक बहुपक्षीय जंग छेड़ दी है।

अल्लाह का शुक्र है कि हमारे अवाम समझदार हैं, जागरुक हैं और संकट को क़ाबू करने में हमारी फ़ोर्सेज़ की क़ाबिलियत के अलावा मेरे ख़्याल में तीन तत्व ऐसे हैं जिसकी वजह से ये लोग संकट को बड़े पैमाने पर नहीं फैला सके। जैसे आबान सन 1398 (नवंबर 2019) का वाक़ेया या सन 2009 का फ़ितना, मैं मुख़्तसर तौर पर उन तीन तत्वों का ज़िक्र करता हूं।

एक, विरोधी पक्ष यहाँ ग़लत समझ बैठा था कि हमारे अवाम की क्या रेडलाइनें हैं। उन्होंने बहुत जल्द बहुत ज़्यादा हिंसक रवैया अख़्तियार किया। पुलिसकर्मी का सिर क़लम करना, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मूकिब को उसके ज़िम्मेदारों के साथ जला देना, बसीज फ़ोर्स के लोगों, पुलिसकर्मियों या राहगीरों के पेट में छुरा घोंपना, औरतों की चादरें खैंच लेना और उसे आग लगा देना, बैंक में आग लगा देना, अस्सी से ज़्यादा एम्बूलेंसो और फ़ायर ब्रिगेड की गाड़ियों को आग लगा देना, तो शुरू में जो थोड़े बहुत लोग इकनॉमिक मामलों जैसे नाराज़गी के कुछ असबाब की वजह से मैदान में आ गए थे, वह उनसे अलग हो गए।

दूसरा तत्व जिसने लोगों को उनसे अलग कर दिया, यह था कि इन लोगों ने अवाम की पवित्र आस्थाओं की बुरी तरह तौहीन करना शुरू कर दिया। पच्चीस मज़हबी व कल्चरल सेंटर्ज़ को इन लोगों ने आग लगा दी जिनमें कई मस्जिदें थी, जैसे रश्त के सब्ज़ा मैदान की मस्जिद मूसा बिन जाफ़र जो पूरी तरह जल कर राख हो गयी है। यह लोग क़ुरआन लेकर आते थे और भीड़ के बीच में उसे जला देते थे। ठीक है हमारे अवाम को शिकायतें हैं, इकनॉमिक मुश्किलें हैं लेकिन वह इस बात के लिए हरगिज़ तैयार नहीं हैं कि कुछ एतेराज़ के लिए अपने सारी आस्थाओं को जला कर राख कर दें। यह दूसरा तत्व था।

तीसरा तत्व भी बताता चलूं, वह यह था कि उन्होंने मरने वालों का जिस तरह से झूठा प्रोपैगंडा  किया वह एक ऐसा हथकंडा है जो भीड़ वाले हंगामों और तख़्ता पलटने की साज़िशों के दौरान इस्तेमाल किया जाता है, यह जॉर्ज सोरोस और दूसरे लोगों की थ्योरी है, हमारे मीडिया ने इस मसले में देर से काम करना शुरू किया लेकिन जब वह मैदान में आ गए और उन्होंने इस मामले में बोले जाने वाले सफ़ेद झूठ को बेनक़ाब करना शुरू कर दिया, जैसे मेहर शहर की उस लड़की की मौत या दूसरे वाक़यात तो नतीजा यह हुआ कि लोगों ने झूठे प्रोपैगंडे पर यक़ीन करना छोड़ दिया और मैदान में आने के लिए तैयार नहीं हुए। इस तरह अल्लाह का शुक्र है कि इस मसले को कंट्रोल कर लिया गया और ये लोग नाकाम हो गए।