बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का तरजुमाः सारी तारीफ़ें कायनात के परवरदिगार के लिए हैं और दुरूद व सलाम हो हमारे आक़ा व सरदार हज़रत मोहम्मद और उनकी पाकीज़ा नस्ल ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत पर।

मैं वाक़ई में अल्लाह का बहुत शुक्रगुज़ार हूं कि अलहम्दो लिल्लाह कोरोना की इस मुश्किल के हलके हो जाने के बाद एक बार फिर यह बा-रौनक़, दिलचस्प और उम्मीद जगाने वाली बैठक हो रही है। वाक़ई आप नौजवानों, ख़ास तौर पर ग़ैर मामूली लियाक़त वाले औप नौजवानों की मौजूदगी, उम्मीद पैदा करने वाली है, यानी आप जहाँ कहीं भी होते हैं, आपकी मौजूदगी उम्मीद को वजूद देती है, उम्मीद पैदा करती है, यही वजह है कि वे लोग जो मुल्क की तरक़्क़ी व कामयाबी का सपोर्ट नहीं करते, वे उन जगहों पर आपकी मौजूदगी के, जहाँ आपको होना चाहिए, ख़िलाफ़ हैं। ख़ैर, अलहम्दो लिल्लाह।

दोस्तों ने जो बातें बयान कीं, मैं उनके बारे में मुख़्तसर तौर पर कुछ कहना चाहता हूः सबसे पहले तो यह कि बहुत अच्छी बातें बयान हुयीं, मुझे वाक़ई में फ़ायदा हुआ और मुझे लगता है कि जो सुझाव पेश हुए हैं वे सही हैं और उनमें ज़्यादातर पर अमल भी हो सकता है और यहीं से इंसान इस हक़ीक़त को ज़्यादा बेहतर तरीक़े से समझ सकता है कि इन बीते हुए बरसों में हमारे ज़्यादातर मामलों का सरोकार प्रशासन से था। रास्ते मौजूद थे लेकिन एडमिनिस्ट्रेशन ने उन रास्तों पर अमल नहीं किया, उम्मीद है कि यह मौजूदा हुकूमत इंशाअल्लाह पूरी संजीदगी से इस सिलसिले में क़दम उठाएगी और इसकी निशानियां भी दिखाई दे रही हैं। यहाँ पर कई मंत्री हैं और वाइस प्रेज़िडेन्ट भी हैं, ये लोग इन बातों को हुकूमत के सामने पेश करें, मैं भी इन बातों को पहुंचाउंगा, यानी ये चीज़ें जो मुझे दी गयी हैं, उनका दफ़्तर में जायज़ा लिया जाएगा और फिर हम उन्हें इंशाअल्लाह ख़ुद राष्ट्रपति तक भी और दूसरे ओहदेदारों तक भी पहुंचा देंगे।

मैंने आज जो बातें बयान करने लिए नोट की हैं, उनमें दो तीन अहम विषय हैं, जिन्हें मैं मुख़्तसर शक्ल में पेश करने की कोशिश करुंगा। एक, जीनियस और मुमताज़ सलाहियत रखने वालों के बारे में है, यह सब्जेक्ट, यह विषय है, इस सिलसिले में दो तीन बिन्दुओं को पेश करुंगा, जीनियस कौन है और क्या करता है। दूसरा अहम विषय जीनियस से अपेक्षाओं (एक्सपेकटेशन्स) के बारे में है, जब हमने जीनियस और ग़ैर मामूली सलाहियत वाले शख़्स को पहचान लिया कि वह कौन है तो फिर उससे और मुल्क भर के जीनियस लोगों से हमारी क्या एक्सपेक्टेशन्स हैं। अगला विषय यह है कि जीनियस की मदद के लिए प्रशासन से क्या एक्सपेक्टेशन्स हैं, क्योंकि जीनियस एक नौजवान है, उसे मदद चाहिए, सपोर्ट चाहिए, हिमायत चाहिए, यह मदद और सपोर्ट कैसी हो, यह तय होना चाहिए। मैं उन में से हर एक को मुख़्तसर तौर पर पेश करुंगा। एक और बिन्दु मेरे मन मैं है जिसे मैं आख़िर में पेश करुंगा।

इल्म, साइंस और हर तरह के जीनियस के बारे में, ग़ैर मामूली सलाहियत वाले लोगों के बारे में सबसे पहले तो हमें जानना चाहिए और हम जानते हैं -यानी मैं पूरी संजीदगी से इस बात का क़ायल हूँ कि हम सबको यह बात समझनी चाहिए- कि जीनियस, मुल्क के सबसे अहम ह्यूमन रिसोर्सेज़ में से एक है। जी हाँ, क़ुदरती रिसोर्सेज़ अहम हैं, जियोस्ट्रैटेजिक पोज़ीशन अहम है, क्लाइमेट फ़ॉर्म अहम है, ये सब अहम हैं लेकिन सबसे अहम चीज़ों में से एक, ग़ैर मामूली सलाहियत वाला शख़्स है, जीनियस को बहुत बड़ी दौलत समझना चाहिए। जब हम उसे बड़ी दौलत समझेंगे तो उसे परवान चढ़ाने के लिए कोशिश करेंगे, यह एक बात हुयी। उसे खो देने को घाटा समझेंगे और जितना मुमकिन होगा उसे हाथ से निकल जाने से रोकने की कोशिश करेंगे, उसके साथ शफ़क़त भरा सुलूक करेंगे, जब हम यह समझ जाएंगे कि वह एक अहम व बड़ी दौलत है तो उसी के हिसाब से उसके साथ हमारा रवैया भी होगा। इसलिए हमें यह बात समझ लेनी चाहिए, सभी को समझ लेना चाहिए, मुल्क के ओहदेदारों और मुल्क के पब्लिक माहौल में असरदार लोगों को भी समझ लेना चाहिए।

इल्म व साइंस के लेहाज़ से ग़ैर मामूली सलाहियत वाला शख़्स बल्कि बुनियादी तौर पर युनिवर्सिटी, मुल्क की तरक़्क़ी के अहम स्तंभों में है, यानी मुल्क की तरक़्क़ी का एक अहम पिलर युनिवर्सिटी है और युनिवर्सिटी में भी इल्म व साइंस के लेहाज़ से ग़ैर मामूली सलाहियत वाले लोग हैं। यह जो आप देखते हैं कि अलग अलग मौक़ों पर सिर्फ़ आजकल की बात नहीं है, अनेक मौक़ों पर यूनिवर्सिटियों को बंद करने की कोशिश की गयी है, क्लासों की छुट्टी हो जाए, बच्चे क्लासों में न जाएं, टीचर न जाए! इन सब की वजह यही है। क्योंकि युनिवर्सिटी का बड़ा बुनियादी रोल है। वह शख़्स जो प्रोफ़ेसर को टेलीफ़ोन पर धमकी दे रहा है कि अगर आप गए तो ऐसा होगा, वैसा होगा! पता नहीं वह अस्ली आदमी है भी या नहीं। सबसे अहम वह आदमी है जो पर्दे के पीछे है। यह इसलिए है कि युनिवर्सिटी अहम है, मुल्क की तरक़्क़ी के लिए युनिवर्सिटी, शहरग की तरह है। युनिवर्सिटी को जितना रोक सकें, बंद कर सकें, उसमें जितना तोड़फोड़ कर सकें, उसे बेकार बना सकें, मुल्क और मुल्क की तरक़्क़ी के दुश्मनों के लिए उतना अच्छा है। इसलिए युनिवर्सिटी, मुल्क की तरक़्क़ी के पिलर्ज़ में से एक है।

युनिवर्सिटी साम्राज्यवाद के ग़ल्बे के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट है, हमें यह बात जान लेनी चाहिए। दुनिया की मुंहज़ोर ताक़तों का मक़सद ग़ल्बा हासिल करना है, किस चीज़ के ज़रिए? कभी हथियार के ज़रिए, कभी धोख़े से, कभी इल्म व साइंस के ज़रिए! इल्म व साइंस के ज़रिए भी वह क़ब्ज़ा करते हैं। युनिवर्सिटी, ग़ल्बे को रोकती है, मतलब यह कि अगर आप मुल्क की साइंस की सतह को ऊपर उठाने में कामयाब हो गए तो आपने दुश्मन के ग़ल्बे के मुक़ाबले में एक रुकावट खड़ी कर दी। तो यह जीनियस व साइंस और युनिवर्सिटी में ग़ैर मामूली सलाहियत के लोगों के बारे में एक बात हुयी।

एक दूसरा बिन्दु यह है कि जीनियस के वजूद में आने में एक अहम हिस्सा उसका नैचुरल टैलेंट है, अच्छी सोच, अच्छा ज़ेहन, अच्छा दिमाग़ और यह अल्लाह का तोहफ़ा है, यह किसी और का काम नहीं है, उसे अल्लाह ने दिया है, अब अल्लाह ने किस वजह से दिया है, यह अलग बहस है। अल्लाह ने इस जीनियस को अच्छा दिमाग़, अच्छी सोच, ज़रूरी सलाहियत, खुली आँख दी है, यह एक पहलू है, किसी के जीनियस बनने के लिए दूसरा पहलू उसकी अपनी कोशिश और मेहनत है। वरना बहुत से लोग हैं जिनके पास अल्लाह की दी हुयी यह सलाहियत है लेकिन वह काम नहीं करते, कोशिश नहीं करते, मेहनत नहीं करते और कहीं पहुंच नहीं पाते। न वह ख़ुद तरक़्क़ी करते हैं और न ही मुल्क की मदद करते हैं। इस तरह के लोग कम नहीं थे, इस वक़्त भी हैं, अतीत में तो कहीं ज़्यादा थे। तो जीनियस के वजूद में आने का दूसरा तत्व ख़ुद उसी से मुताल्लिक़ है। काम, कोशिश, मेहनत, लगातार कोशिश वग़ैरह। ये दो तत्व हुए। एक तीसरा तत्व भी है जिसे मैं बाद में बयान करुंगा, अपनी इसी स्पीच में बाद में पेश करुंगा।

ख़ैर, इन पहलुओं से बनने वाला यह जीनियस अपनी निजी सलाहियत को सामने लाए और कोशिश का मौक़ा हासिल करे, उसके लिए एक अहम चीज़, रास्ते का साफ़ होना है, जीनियस की मेहनत के लिए रास्ता साफ़ होना, यह बहुत अहम है। कभी ऐसा होता है कि कोई जीनियस है, काम के लिए तैयारी भी रखता है लेकिन उसके लिए रास्ता साफ़ नहीं होता। तो यह जो रास्ता तैयार करने की बात हम ने की वह शाही दौर में नहीं थी, अगर थी भी तो सरकश हुकूमत की पॉलिसियों में उसे ख़ास हैसियत हासिल नहीं थी, रास्ता तैयार नहीं था। अच्छी सलाहियत व क़ाबिलियत वाले बहुत से लोग थे, मेहनत के लिए तैयार भी थे, कोशिश भी करते थे लेकिन उन्हें दबा दिया जाता था, न सिर्फ़ यह कि उनके लिए रास्ता तैयार नहीं होता था, बल्कि उन्हें दबाने का काम भी किया जाता था, सरकश (शाही) हुकूमत के दौर में ऐसा ही था। इस्लामी इंक़ेलाब की बर्कत से रास्ता तैयार हुआ। देखिए मैं यह बात खुल कर साफ़ लफ़्ज़ों में कहता हूं, यानी यह ऐसी चीज़ है जिसमें किसी तरह का कोई शक नहीं है, चूंकि मैं इंक़ेलाब के आग़ाज़ से स्टूडेंट्स, युनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स, तेहरान युनिवर्सिटी और दूसरी यूनिवर्सिटियों के साथ जुड़ा रहा हूं, प्रोफ़ेसरों और स्टूडेंट्स वग़ैरह के साथ मेरा मुसलसल उठना बैठना रहा है, इसलिए मैं पूरे यक़ीन और ठोस दलील के साथ अर्ज़ कर रहा हूं कि इस्लामी इंक़ेलाब से जीनियस लोगों को फलने फूलने का मौक़ा मिला।

सबसे पहले तो यूनिवर्सिटियों की तादाद बढ़ी, आप देखिए कि इस वक़्त मुल्क के किस हिस्से में युनिवर्सिटी नहीं है। कुछ दोस्तों ने शिकवा किया कि कुछ जगहों पर ज़रूरी सहूलियतों के बग़ैर युनिवर्सिटी बना दी गयी। ठीक है, कम से कम युनिवर्सिटी बनाने के लिए हौसला बढ़ाने वाला कारक तो मौजूद था, यह बहुत अहम है। मुल्क में हर जगह युनिवर्सिटी है। कुछ दूर-दराज़ के शहरों की यूनिवर्सिटियां भी, बड़ी अहम यूनिवर्सिटियां हैं, इंसान इस बात को समझ सकता है, बड़े अच्छे प्रोफ़ेसर, मशहूर प्रोफ़ेसर, फ़ुलां दूर दराज़ की युनिवर्सिटी में हैं। इस तरह के लोगों को हम जानते हैं। तो यह यूनिवर्सिटियों का दायरा फैलाने की बात हुयी।

इसके बाद यूनिवर्सिटियों से जुड़े लोगों की तादाद बढ़ाने का मामला, चाहे वे स्टूडेंट्स हों या प्रोफ़ेसर। मुल्क में यूनिवर्सिटियों के स्टूडेंट्स की तादाद- यह बात मैंने बार-बार ज़िक्र की है लेकिन इस वक़्त सही तादाद याद नहीं है, जब मैं नोट कर रहा था, उस वक़्त रेफ़रेंस मेरे पास नहीं था, क़रीब पचीस गुना बढ़ चुकी है, यूनिवर्सिटियों के स्टूडेंट्स पचीस गुना बढ़ चुके हैं, यह बहुत ज़्यादा है।

प्रोफ़ेसर, इंक़ेलाब के शुरूआत के बरसों में- सन 1980-81 में- जब हम युनिवर्सिटी के मामलों के बारे में बहस करते थे, जैसा कि मुझे याद है, क़रीब पाँच हज़ार प्रोफ़ेसर, अकैडमिक बोर्ड के मेंबर मुल्क में थे, इस वक़्त एक लाख से ज़्यादा हैं, इस वक़्त उनकी तादाद एक लाख से ज़्यादा है। मुल्क की आबादी दुगुनी से कुछ ज़्यादा हुयी है, लेकिन यह तादाद बीस गुना हो गयी है, ये चीज़ें अहम हैं। यह स्टैटिस्टिक्स बहुत कुछ कहती है, साफ़ तौर पर कहती है। इंक़ेलाब ने क्या किया है?!

मुल्क में रिसर्च सेंटर्ज़ की जो तादाद है, थिंक टैंक्स, इंस्टीट्यूट, मुल्क की बहुत सी जगहों पर यह हैं। मुल्क में इल्म व साइंस को बढ़ावा बहुत ही क़ीमती चीज़ है। ये जीनियस को परवान चढ़ाने के रास्ते हैं, जीनियस को वजूद में लाने के रास्तों में से एक यह है। अलबत्ता हमें यूनिवर्सिटियों से संबंधति ज़िम्मेदारों का शुक्रिया अदा करना चाहिए, उन्होंने हमें पश्चिम वालों का मोहताज नहीं रहने दिया। क्योंकि जब किसी मुल्क में युनिवर्सिटी हो लेकिन उस्ताद न हो तो जो चीज़ मन में आती है वह यह है कि चलें बाहर से प्रोफ़ेसर ले आएं! लेकिन हमारी यूनिवर्सिटियों के ज़िम्मेदारों ने ऐसा नहीं होने दिया, उन्होंने प्रोफ़ेसर तैयार किए, इस वक़्त शायद आज के नब्बे फ़ीसद प्रोफ़ेसर वे हैं जिनकी ट्रेनिंग ख़ुद हमारी यूनिवर्सिटियों के प्रोफ़ेसरों ने ही की है, उन्होंने काम किया, मेहनत की। इस्लामी जुम्हूरिया चाहती था कि युनिवर्सिटी का दायरा फैले, मज़बूत हो और अल्लाह का शुक्र कि यह काम हुआ, यूनिवर्सिटियों ने भी इस मौक़े से फ़ायदा उठाया और ख़ुद को डेव्लप किया। यह एक बात हुयी।  

एक और बात यह है कि इसमें कोई मुबालग़ा नहीं है कि हमारी यूनिवर्सिटियों के मुमताज़ सलाहियत वाले लोगों से ईरान का सिर फ़ख़्र से ऊंचा हुआ। आपका जीनियस लोगों की नौजवान नस्ल से ताअल्लुक़ है। आपसे पहले भी, आपसे पहले वाली नस्लों में भी, इन चालीस बरसों में बहुत से जीनियस रहे हैं, जिन्होंने मुल्क का नाम रौशन किया। हमारे साइंटिस्ट और विद्वान जिस मैदान में भी उतरे, उसमें उन्होंने ऐसा काम किया कि दुनिया के इल्मी व साइंसी हल्क़ों ने उनकी तारीफ़ की। मैं यहाँ पर कुछ नमूनों का ज़िक्र करुंगा, अलबत्ता आप सब जानते हैं।

मिसाल के तौर पर रोयान इंस्टीट्यूनट के रिसर्च के कारनामे, सिर्फ़ स्टेम सेल्ज़ के मैदान में ही नहीं बल्कि ज़िन्दा जानवर की क्लोनिंग में भी, दुनिया में लगभग बेनज़ीर चीज़ थी, यह काम हुआ। उस ज़िन्दा जानवर को मैंने ख़ुद देखा है, यह सुनी हुयी बात नहीं है, मैंने जाकर कलोनिंग से वजूद में आने वाले उस जानवर को देखा है। एक ही जानवर नहीं था, कई थे, ये हमने देखे हैं। यह कोई छोटा मोटा काम नहीं था। अल्लाह काज़ेमी आश्तियानी (2) पर रहमत नाज़िल करे, जिन्होंने इस चीज़ की बुनियाद रखी और फिर उनके बाद वे लोग जो अब भी हैं और जिन्होंने इस काम को आगे बढ़ाया और यहाँ तक पहुंचाया। यह एक नमूना।

बायो केमिस्ट्री में तरक़्क़ी और इस सब्जेक्ट में यूनेस्को में सीट मिलना! ख़ुद उन्होंने इस बात को माना। आप जानते हैं कि इन इंटरनैश्नल सीटों के सिलसिले में हमारे दुश्मनों का एक बुनियादी काम यह है कि दख़लअंदाज़ी करें, अपना रसूख़ इस्तेमाल करें और ईरान को सीट न मिलने दें, उसे मेंमरशिप न मिलने दें, इसके बावजूद हमारे मुमताज़ सलाहियत के मालिक लोगों ने यह कामयाबी हासिल की।

या एक और नमूना, स्पेस में सैटलाइट लॉन्च करना है, यह (सलाहियत) सिर्फ़ कुछ मुल्कों के पास है, सभी मुल्कों के पास नहीं है। बहुत से मुल्कों के सैटलाइट स्पेस में हैं, लेकिन ख़ुद उनके नहीं है, ख़ुद उन्होंने लॉन्च नहीं किए हैं। जो मुल्क ख़ुद लॉन्च करते हैं, उनकी तादाद बहुत कम है। हाँ हम पीछे तो हैं। लेकिन हमने सैटलाइट लॉन्च किया, हम इसमें कामयाब रहे, हमारे साइंटिस्टों ने इस पर ध्यान लगाया। तेहरान युनिवर्सिटी में इंसाननुमा रोबोट बनाना, यह बात अहम है। हम इन्हें क्यों नज़रअंदाज़ करें?!

ऐटमी इंडस्ट्री में अहम व बुनियादी कारनामे। इस ऐटमी इंडस्ट्री की दास्तान बड़ी लंबी है, इस सिलसिले में बहुत सी बातें हैं लेकिन इस वक़्त बयान करने की गुंजाइश नहीं है। हमने ऐटमी इंडस्ट्री में बुनियादी कामयाबी हासिल कर ली हैं। हम हथियार और बम बनाने के चक्कर में नहीं हैं लेकिन ख़ुद इस इंडस्ट्री की बहुत सी बर्कतें जिन्हें हासिल करने में हम कामयाब रहे हैं। अलबत्ता आज दुनिया में जिनके पास ऐटमी इंडस्ट्री है, पहली बार बनाने वालों के अलावा, कि ऐटमी इंडस्ट्री हिटलर के ज़माने में जर्मनी की थी, फिर अमरीकियों ने उनसे हासिल की, कुछ दूसरे मुल्कों ने तरह तरह की साइंटिफ़िक चोरी के ज़रिए अमरीका से हासिल की, फिर इस मुल्क ने अपने जैसे विचार रखने वाले दूसरे मुल्क को दिया, इस मुल्क ने किसी दूसरे मुल्क को, जिनके पास ऐटमी साइंस है, उन्होंने उसे इस तरह हासिल किया है। हमने नहीं! अलबत्ता वह शुरूआत का बाहर का बैकग्राउंड बहुत ही मामूली था, वह बहुत ही कम अहमियत वाली चीज़ थी। लेकिन जो अस्ली काम अंजाम पाया है, वह ईरानी जीनियस लोगों ने किया है, ईरानी जीनियस जवानों ने किया है, ईरानी जीनियस लोगों ने सलाहियत और उम्मीद के साथ अंजाम दिया है। 

सॉफ़िस्टिकेटेड मीज़ाईल और ड्रोन बनाना। अबसे कुछ साल पहले तक ये लोग कहते थे कि यह फ़ोटोशॉप से बनायी गयी तस्वीरें हैं! जब उनकी तस्वीरें छपती थीं तो यह कहते थे कि यह फ़ोटोशॉप का कमाल है, अब कहते हैं कि ईरानी ड्रोन बहुत ख़तरनाक हैं! क्यों फ़ुलां को बेचते हो, फ़ुलां को देते हो?। तो यह वे काम हैं जो ईरान के मुमताज़ सलाहियत के लोगों ने अंजाम दिए हैं, यह मुल्क के लिए फ़ख़्र व इज़्ज़त की बात हैं। जटिल वैक्सीन्ज़ की तैयारी, ख़ास तौर पर कोविड वग़ैरह की वैक्सीन, यह भी हमारे पास कम नहीं हैं। तो यह भी एक बिन्दु है कि ईरानी जीनियस लोगों ने मुल्क को इज़्ज़त दी है। फ़ख़्र से सिर ऊंचा किया है। यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि आप लोग जो मुमताज़ सलाहियत के लोग हैं, अपनी क़द्र समझें, जो लोग बाहर बैठे हुए हैं, वे आपकी क़द्र समझें, मैं तो आपका बहुत बड़ा क़द्रदान हूं, अल्लाह करे कि हम आपकी कुछ मदद कर सकें।

और अब वह तीसरा पहलूः मैंने दो पहलू बयान कर दिए, मैंने शुरू में अर्ज़ किया था कि एक तीसरा पहलू भी है, जीनियस होने, जीनियस बनने और जीनियस समझे जाने के लिए वह तीसरा पहलू क्या है? वह है अल्लाह की रहनुमाई हेदायत और उसकी और से मौक़ा दिया जाना। यक़ीनी तौर पर आपको जीनियस बनने और जीनियस क़रार दिए जाने के लिए अल्लाह की तौफ़ीक़ और हेदायत की ज़रूरत है। सिर्फ़ यह बात इंसान को जीनियस नहीं बनाती कि उसमें मुमताज़ सलाहियत हो और वह उस सलाहियत को इस्तेमाल भी करे। मुमकिन है कि कोई बहुत ही ज़हीन और तेज़ इंसान हो और वह अपनी उस अक़्ल और ज़ेहानत को भ्रष्टाचार के लिए इस्तेमाल करे! इस्तेमाल करते हैं ना? या फिर चोरी के लिए इस्तेमाल करे, क्या यह जीनियस है? नहीं यह चोर है, यह फ़्राड है, यह जीनियस नहीं है, जीनियस वह होता है जो सही अर्थों में चुना हुआ हो, जीनियस यानी चुना हुआ, जीनियस यानी मुमताज़। यह चालाक चोर जो गाड़ियों के अनेक तरह के पेचीदा ताले खोल लेता है और गाड़ी को चुरा कर ले जाता है, क्या यह मुमताज़ है? नहीं, चोर है! यह जीनियस नहीं है। मुमताज़ सलाहियत का मालिक जीनियस वही है जो अल्लाह की तौफ़ीक़ से अपना काम करे और अल्लाह की हेदायत से उसे आगे बढ़ाए।

मैं चोर और फ़्रॉड इंसान के विषय को थोड़ा और बयान करूंगा, मैं यह कहता हूँ कि जो शख़्स फ़िज़िक्स में जीनियस बन जाता है और ऐटम बम तैयार करता है, ऐसा शख़्स हमारी नज़र में जीनियस नहीं है। वह शख़्स जो केमिस्ट्री को इस्तेमाल करके मस्टर्ड गैस और ज़हरीली गैस बनाता है, जो निशाना बनने वाले इंसान को पूरी ज़िंदगी तड़पाती है, वह जीनियस नहीं है। जो शख़्स गणित में और मिसाल के तौर पर एडवान्स्ड इंजीनियरिंग के ज़रिए स्पेस के माहौल पर क़ब्ज़ा कर लेता है। स्पेस में बहुत ऊपर और लोगों की ज़िन्दगी के माहौल पर भी-यानी जब आप अपने घर के अंदर भी बात कर रहे हैं तो आपको धड़का लगा हुआ है कि कोई अजनबी कान आपकी बातें सुन रहा है, सिर्फ़ मोबाइल फ़ोन ही नहीं, बहुत से दूसरे तरीक़े भी मौजूद हैं। यह जीनियस नहीं है, यह जो इल्म व साइंस का इस तरह ग़लत इस्तेमाल करता है, जीनियस नहीं है।

इम्पेरियल ताक़तों के दौर में, पश्चिम वालों ने -पहले यह सिलसिला पुर्तगाल और स्पेन वग़ैरह से शुरू हुआ, फिर धीरे-धीरे दूसरी जगहों तक पहुंच गया जैसे नेदरलैंड, बेल्जियम, ब्रिटेन और फ़्रांस- दूसरों से पहले हथियार बनाने में कामयाबी हासिल की, यानी सत्रहवीं और अट्ठारहवीं सदी में इंडस्ट्रियल क्रांति ने जो पहले काम किए, उनमें से एक यह था कि आधुनिक हथियार बनाए। इन आधुनिक हथियारों से इन लोगों ने दूसरे मुल्कों पर क़ब्ज़ा किया। भारत पर, इतने बड़े मुल्क पर जिसका रक़बा ब्रिटिश आइलैंड से दसियो गुना ज़्यादा था, अलबत्ता सिर्फ़ भारत नहीं, आज के भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश यानी इंडियन सबकांटिनेंट पर क़ब्ज़ा कर लिया, उसके आस-पास के मुल्कों जैसे यही म्यांमार वग़ैरह पर भी क़ब्ज़ा कर लिया, इन मुल्कों की क़ौमी इंडस्ट्री को तबाह कर दिया। आप नेहरू की किताब ग्लिम्पसेज़ ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री (विश्व इतिहास की झलकियां) को पढ़िए। अफ़सोस कि आप लोग किताब कम पढ़ते हैं, किताब, विश्व इतिहास की झलकियां, नेहरू की लिखी हुयी है, उन्होंने तफ़सील से लिखा है कि किस तरह अंग्रेज़ भारत में आए और उन्होंने क्या करतूतें की।

मैंने हाल ही में एक किताब देखी है जिसे हमारे ही राइटर्ज़ में से एक ने (3) लिखी है, मैं उन्हें क़रीब से नहीं जानता, उस किताब का नाम है “साम्राज्यवाद की तारीख़” सौ डेढ़ सौ पेज की पंद्रह-सोलह जिल्दें हैं, उस किताब में उन्होंने तफ़सील से लिखा है कि साम्राज्यवाद किस तरह अमरीका कॉन्टिनेन्ट और एशिया कॉन्टिनेन्ट में इन मुल्कों की दौलत को लूटने और ख़ुद को मालदार बनाने में कामयाब हुआ। ब्रिटेन दौलतमंद नहीं था, फ़्रांस दौलतमंद नहीं था, यूरोपीय मुल्क अमीर नहीं थे, उन्होंने दूसरे मुल्कों की दौलत पर क़ब्ज़ा कर लिया। तो इन मुल्कों ने हथियार के ज़रिए ये सारी हरकतें कीं। सही बात है कि वे तेज़ दिमाग़ के थे, उन्होंने बहुत मेहनत भी की, रिस्क लेना जानते थे, यह यूरोप वालों की ख़ूबियां हैं लेकिन इन ख़ूबियों से उन्होंने क्या किया? दुनिया पर अपना ग़ल्बा क़ायम रखने वाला सिस्टम बनाया, ग़ल्बा करने वाला सिस्टम। आज दुनिया की बड़ी मुसीबतों में से एक, जो अभी ख़त्म नहीं हुई हैं और इंशा अल्लाह अब ख़त्म होकर रहेंगी, ग़ल्बा क़ायम रखने वाला सिस्टम है। ग़ल्बा क़ायम रखना यानी दुनिया को दो हिस्सों में बांट दिया जाए, एक वह जो ग़ल्बा क़ायम करे और दूसरा वह जिस पर ग़ल्बा क़ायम किया जाए, कुछ लोग ताक़त के ज़रिए पूरी दुनिया पर हुकूमत करें और कुछ दूसरे मुल्क अलग अलग शक्लों में उनकी ग़ुलामी करें, यह ग़ल्बा क़ायम रखने वाला सिस्टम है। इस सिस्टम को यूरोप की इल्मी व साइंसी तरक़्क़ी ने वजूद दिया है। तो अगर इस इल्मी सलाहियत को एक ख़ूबी के तौर पर देखा जाए तो ये लोग जीनियस नहीं कहे जा सकते।

एक क़ीमती वैल्यू की हैसियत से जीनियस, वह सलाहियत वाला, मेहनत करने वाला और कोशिश करने वाला इंसान है कि अल्लाह की हेदायत जिसके शामिले हाल रही हो, कभी उसे पता नहीं होता कि यह अल्लाह की तरफ़ से हेदायत है, लेकिन वह अल्लाह की तरफ़ से हेदायत होती है। वह हैरतअंगेज़ लम्हें जिनमें किसी हक़ीक़त तक दुनिया के बड़े बड़े साइंटिस्टों की पहुंच हुयी, वह अल्लाह की मदद का लम्हा है, यह वही अल्लाह की तरफ़ से मिलने वाला गाइडेंस से, कोई ग्रेविटेश्नल फ़ोर्स का पता लगाता है, कोई माइक्रोब का पता लगाता है तो यह वही अल्लाह की तरफ़ से होने वाली गाइडेन्स है।

ख़ैर, अल्लाह का शुक्र है कि आप प्यारे नौजवानों के दिल दूषित नहीं हैं, आप नौजवान हैं, हो सकता है नौजवान से कुछ ग़लतियां हुयी हों लेकिन आपके मन पाक हैं, आपके ज़मीर रौशन हैं, आप अल्लाह की इस हेदायत को ज़्यादा से ज़्यादा हासिल कर सकते हैं। तो आप सही अर्थों में जीनियस बन सकते हैं। यानी सलाहियत, कोशिश और मेहनत करने वाले और अल्लाह की तौफ़ीक़ और अल्लाह की हेदायत से मालामाल और यक़ीनन “और जो अल्लाह पर ईमान रखता है अल्लाह उसके दिल की हिदायत कर देता है” (6) जो अल्लाह पर ईमान रखता है तो वह उसकी हेदायत करता है, ईमान अपने साथ हेदायत लाता है। तो यह कुछ बातें जीनियस और मुमताज़ सलाहियत वाले लोगों के बारे में थीं।

जीनियस लोगों से एक्सपेक्टेशन; हमें आपसे कुछ एक्सपेक्टेशन्ज़ हैं। मैं कोशिश करुंगा इंशाअल्लाह मुख़्तसर लफ़्ज़ों में बयान करुं। पहली एक्सपेक्टेशन यह है कि जो मुमताज़ सलाहियत अल्लाह ने आपको दी है -यह सलाहियत आपकी अपनी है- उसे क़ौमी सलाहियत में तब्लीद कीजिए। अल्लाह का शुक्र है कि ये बात ख़ुद आप लोगों के बयानों में थी कि जीनियस को चाहिए कि अपनी सलाहियत को क़ौमी सलाहियत में तब्दील करे; इससे क्या मुराद है? यानी इस सलाहियत को मुल्क की मुश्किलों को हल करने में लगाए। हमारे सामने बहुत सी मुश्किलें हैं; आप लोगों ने यहाँ कुछ का ज़िक्र किया, माइन्ज़ का ज़िक्र किया, ट्रांस्पोर्टेशन का ज़िक्र किया, स्पेस का ज़िक्र किया; यह मुल्क के अहम मुद्दे हैं; अपनी मुमताज़ सलाहियत को इन चीज़ों में लगाइए। अफ़सोस कि कुछ लोग यह काम नहीं करते; कुछ जीनियस- यानी मुमताज़ सलाहियत वाले; जो मैंने पैरामीटर बताए, शायद उस पैरामीटर में वे फ़िट न हों- यहाँ डेव्लप होते हैं, जब फल देने का वक़्त आता है तो अपना फल किसी दूसरे को देते हैं; कभी तो वह दूसरा दुश्मन होता है, दुश्मन को देते हैं; कभी क़ौमों पर ग़ल्बे और उनसे दुश्मनी के लिए विश्व साम्राज्यवाद का मोहरा बन जाते हैं, उनके लिए हथियार बन जाते हैं, उनके हाथ का खिलौना बन जाते हैं; कुछ ऐसे भी हैं। तो यह लोग नाशुक्री करते हैं; अलबत्ता उनका अंजाम भी अच्छा नहीं होता; मेरी नज़र में ये लोग जो इस तरह से अपने अवाम को पीठ दिखाते हैं, उनका अंजाम अच्छा नहीं होता। जीनियस को चाहिए कि अपने अवाम के साथ रहे। मैं यह नहीं कहता हिजरत न करे, पढ़ाई न करे, किसी बेहतर युनिवर्सिटी या किसी सेंटर में न जाए; नहीं! जाए लेकिन अपने अवाम के लिए जाए, पलट कर आने के लिए जाए ताकि अपने मुल्क के लिए काम करे, इसलिए न जाए कि उसका  मोहरा बन जाए, तो यह बहुत अहम बात है; हमारे जीनियस को चाहिए कि अपनी ज़मीर की अदालत में और अल्लाह के सामने इस विषय का फ़ैसला  करे।

जीनियस तबक़े से एक और तवक़्क़ो है, यह कि लापरवाही न करें। यहाँ दो तरह की लापरवाहियां होती हैः एक अपनी सलाहियत की ओर से लापरवाही है। अगर आप अपनी सलाहियतों की ओर से लापरवाह रहेंगे तो मेहनत नहीं करेंगे। हमारे कुछ जीनियस लोग एक हद तक पहुंचने के बाद रुक जाते हैं; यह नाशुक्री है, यह लापरवाही है। कोशिश कीजिए, आगे बढ़िए, जितना मुमकिन है कोशिश जारी रखिए; जिस शक्ल में मुमकिन है अपनी सलाहियत की ओर से कि जो ग़ैर महदूद है, लापरवाही न कीजिए। सलाहियत की कोई हद नहीं है; यानी ऐसा कि आप जितना अपनी मुमताज़ सलाहियत को इस्तेमाल कीजिएगा, यह सोता आपके भीतर उतना ही ज़्यादा उबलकर निकलेगा, आप और बड़े जीनियस हो जाएंगे; जितना ज़्यादा काम करेंगे, उतना ज़्यादा इज़ाफ़ा होगा। थकिए नहीं, रुकिए नहीं, नुक़सानदेह सरगर्मियों के चंगुल में न फंसिए। नुक़सानदेह सरगर्मियां भी मौजूद हैं, यह एक तरह की लापरवाही है, चाहे सोशल मीडिया के प्लेटफ़ार्म हों या दूसरे प्लेटफ़ार्म हों इन सरगर्मियों में न फंसिए।

एक और लापरवाही मुल्क की सलाहियत की ओर से है। आप दोस्त आए, हर एक ने अपनी अपनी फ़ील्ड और उसमें अपने काम के बारे में बताया; बहुत अच्छा है। आपकी इन्फ़ार्मेशन बहुत अच्छी है, हम इससे फ़ायदा उठाएंगे; लेकिन दूसरी फ़ील्ड के बारे में कुछ ख़बर है आपको? मुल्क के जीनियस लोग मुल्क की अज़ीम सलाहियतों से बाख़बर हैं? मुझे नहीं लगता; यानी मैं जानता हूं कि नहीं, सभी बाख़बर नहीं हैं; ज़्यादातर को पता नहीं है।

एक दिन एक साहब ने कहा था कि हम हथियारों के लेहाज़ से अमरीका के मुक़ाबले में ज़ीरो हैं, मिसाल को तौर पर वह एक घंटे में फ़ुलां नुक़सान पहुंचा सकता है;(8) मैंने यहाँ कहा था (9) एक टूर का इंतेज़ाम कीजिए। ये लोग जाएं हमारे फ़ौजी हथियार देख लें, ये हमारी फ़ौजी इंडस्ट्रीज़ को देख लें ताकि इस ग़लतफ़हमी से बाहर निकल आएं; आप लोगों के लिए भी इसी तरह के टूर का इंतेज़ाम होना चाहिए। अहम कामों में से एक अहम काम यह भी है। मेरे ख़्याल में वाइस प्रेज़िडेंसी फ़ॉर साइंस ऐन्ट टेक्नॉलोजी का एक काम यह भी है। साथियों को मुल्क में मौजूद चीज़ों के बारे में बताइए; जो सलाहियतें हैं और जो बहुत सारे काम अंजाम पा रहे हैं। मुझे मालूम है कि बहुत से लोगों को पता ही नहीं है; यहाँ तक कि कुछ लोग तो इन सलाहियतों का इंकार करते हैं, उस बेवक़ूफ बादशाह की तरह; किसी एक बादशाह को बताया गया कि मुल्क में एक जगह काले रंग का बदबूदार पदार्थ जिसे तेल कहते हैं, एक जगह उबल रहा है, ये विदेशी बेचारे आने के लिए तैयार हैं ताकि इसे ले जाएं; हम ले जाने की इजाज़त दे दें?! उसने कहाः अच्छा ही है, ले जाएं, हमें झंझट से नजात मिले! अब हमसे कहते हैं कि मुल्क में न्युक्लियर इंडस्ट्री नाम की एक जटिल मुश्किल मौजूद है, उन्हें ले जाने दीजिए, यहाँ न रहे! वे इस तरह की बातें करते हैं! झूठा दावा किया जाता है कि दुनिया ने न्युक्लियर इंडस्ट्री और ऐटमी एनर्जी से मुंह मोड़ लिया है; निरा झूठ! दिन ब दिन अपनी न्युक्लियर बेसेज़ को -फ़ौजी बेसेज़ को नहीं बल्कि इंडस्ट्रियल बेसेज़ को- बढ़ा रहे हैं, इज़ाफ़ा कर रहे हैं। हमें भी ज़रूरत है। हमने जिस दिन शुरू किया -अब तो बरसों गुज़र चुके हैं-अगर उस वक़्त शुरू नहीं करते, दस साल बाद शुरू करते तो तीस साल बाद नतीजा हमें नतीजा मिलता; यानी यह ऐसी चीज़ नहीं है जिसे कोई मुल्क नज़रअंदाज़ कर दे। तो एक यह भी एक अहम बात थी।

एक और लापरवाही, दुश्मन की ओर से लापरवाही है। हमारे जीनियस लोगों को दुश्मन की ओर से ग़ाफ़िल नहीं होना चाहिए। कभी दुश्मन एक इल्मी शक्ल में सामने आता है। मुझे मालूम है; यह जो मैं कह रहा हूँ, इन्फ़ॉर्मेशन है, अनुमान और एनालिसिस नहीं है। बहुत से साइंटिफ़िक सेन्टरं हैं, जहाँ से प्रोफ़ोसरों को बुलावा भेजा जाता है, उन लोगों के ज़रिए जिसे ख़ुद उन्होंने उस साइंटिफ़िक बोर्ड में बिठाया है, सीआईए, मोसाद और इनके जैसों के सेक्युरिटी मेंबर को साइंटिफ़िक शख़्सियत के तौर पर बिठाते हैं, कभी कभी स्टूडेंट्स से संपर्क करवाया जाता है। यह संपर्क बाद में कहाँ तक पहुंचता है, यह तो अल्लाह ही जानता है; कम से कम यह होता है कि उसके ज़ेहन को ख़राब कर देते हैं। अगर उसे अपनी ओर नहीं बुला पाए, अगर उसे धोखा नहीं दे पाए, तो कम से कम यह करते हैं कि उसके ज़ेहन को ख़राब कर देते हैं। दुश्मन इस तरह दाख़िल होता है। ख़ुद को बहुत संस्कारी ज़ाहिर करता है, ज़ेहीन दिखाता है, बाद में पता चलता है कि ये हमें धोखा देते हैं।

हमें जो तवक़्क़ो जीनियस व मुमताज़ सलाहियत के लोगों के लिए एडमिनिस्ट्रेशन से है, वह भी बहुत अहम है। एक लफ़्ज में कहें तो सपोर्ट। विभागों से हमें तवक़्क़ो है कि जीनियस का सपोर्ट करें। ये सपोर्ट हमेशा पैसा देने के अर्थ में नहीं है। कभी कभी पैसा देना नुक़सानदेह होता है; सपोर्ट समझदारी से हो, अक़्लमंदी और अनेक पहलुओं पर ध्यान के साथ हो।

सपोर्ट करने की एक और जगह, चाहे ईरान में पढ़े हुए जीनियस हैं, चाहे विदेश में पढ़ कर ईरान आए हैं -हमारे यहाँ इस तरह के लोग हैं, कम नहीं हैं, वे जीनियस जिन्होंने ने विदेश में पढ़ाई की और किसी मक़ाम तक पहुंचे हैं, और अब ईरान आए हैं- उन्हें दो तवक़्क़ो है; इन दो उम्मीदों को पूरा करें उनके लिएः एक उम्मीद उनकी इल्मी सलाहियत के मुताबिक रोज़गार है; दूसरी उम्मीद रिसर्च को जारी रखने की सहूलतें है; दुनिया के साइंटिफ़िक सेंटरों से संपर्क; ये दो हमारे जीनियस तबक़े की तवक़्क़ो हैं, बहुत बड़ी तवक़्क़ो नहीं है। मुझे पता है कोई जीनियस जब युनिवर्सिटी के अकेडमिक बोर्ड का मेंबर बनना चाहता है तो अनेक तरह के हथकंडों से उसका रास्ता रोका जाता है, नहीं बनने दिया जाता; क्यों? इस मुमताज़ सलाहियत वाले से क्यों फ़ायदा नहीं उठाया जाता? हमारे कुछ मुमताज़ सलाहियत वाले हैं -बहुत ही मुमताज़ हैं- विदेश में पढ़ाई की है, यहाँ आए इस उम्मीद के साथ कि काम करें, लेकिन इस तरह के रवैये की वजह से लौट गए, चले गए! उन्हें लगा कि यहाँ ज़िन्दगी नहीं गुज़ारी जा सकती। मैं इस नौजवान से क्या तवक़्क़ो लगाऊं? सपोर्ट किया जाना चाहिए। इस फ़ील्ड में जो भी हम ख़र्च करें, ख़र्च नहीं है, इन्वेस्टमेंट है। मोहतरम वज़ीर साहब इस फ़ील्ड में ज़रूर काम करें, कोशिश करें। जीनियस तबक़े को यूनिवर्सिटियों की ओर से मायूस न होने दें; कम से कम यह है कि वह युनिवर्सिटी में दाख़िल हो, कोई ओहदा हासिल करे। कुछ लोग ज़बान से जीनियस का सपोर्ट करते हैं, बार बार जीनियस का सपोर्ट करने की बात करते हैं, लेकिन अमल में उसे मायूस करते हैं, नाउम्मीद करते हैं, रुकावटें डालते हैं। मेरे ख़्याल में दुनिया के साइंटिफ़िक सेंटरों से संपर्क बनाने के संबंध में भी विदेश मंत्रालय सरगर्म हो सकता है, अच्छी ख़ासी मदद कर सकता है।

एक और बिन्दु जिसकी तवक़्क़ो है, यह है कि मुमताज़ सलाहियत वालों की सलाहियत का जायज़ा लेने के पैरामीटर में हम सुधार करें। आज कल प्रोफ़ेसरों, मुमताज़ सलाहियत वालों वग़ैरह की सलाहियत का जायज़ा लेने का पैरामीटर रिसर्च पेपर्ज़ हैं; यह सही नहीं है। अलबत्ता मैंने पहले भी यह बात कही है। (10) मैंने बार बार इस बात को दोहराया है; पैरामीटर किसी मसले का हल तलाश करने को बनाइए। कोई मुश्किल पेश कीजिए, उनसे हल करने के लिए कहिए; यह तबक़ा, मुमताज़ सलाहियतों वाला यह गिरोह, कोई जीनियस, मुमताज़ सलाहिय वालों का उस्ताद, किसी संबंधित विभाग की मुश्किल को हल करे; प्रोमोशन का स्टैंन्डर्ड यह होना चाहिए, ऐडमिशन के इस स्टैंडर्ड को अहम पैमाने के तौर पर होना चाहिए, तो यह भी एक अहम बात है।

एक और बिन्दु यह है कि हमारे मुमताज़ सलाहियत वालों के सामने रौशन विजन को दिखाया जाए। कुछ लोग मुमताज़ सलाहियत वालों को मायूस करते हैं, क्षितिज को धुंधला दिखाते हैं; यह हक़ीक़त के ख़िलाफ़ है; क्षितिज रौशन है, दिखाया जाना चाहिए, उनकी हिम्मत बंधाई जाए। प्रोफ़ेसर भी, उच्च शिक्षा विभाग के ओहदेदार भी, मीडिया में काम करने वाले एक्टिविस्ट भी-चाहे क़ौमी मीडिआ हो, चाहे प्रिन्ट मीडिया हो- चाहे इंडस्ट्री और नॉलेज बेस्ड कंपनी के लोग हों, अभी यहाँ कुछ साथियों ने कहा, माहौल को मुमताज़ सलाहियत वालों में शौक़ पैदा करने वाला बनाया जाए। मेरे ख़्याल में मुमताज़ सलाहियत वालों को मायूस करना और धुंधला भविष्य दिखाना, दुश्मन की सॉफ़्ट वॉर का हिस्सा है। दुश्मन की यही कोशिश है कि मुमताज़ सलाहियत वालों को धुंधला भविष्य दिखाए। अब यह अर्ज़ करना चाहता हूं कि मुल्क में कमज़ोरियां भी मौजूद हैं, ऐसा नहीं है कि हम ख़ामियों का इंकार करें; कमज़ोरियां कम नहीं हैं, ज़्यादा हैं, लेकिन कमज़ोरियों के साथ मज़बूतियों को भी देखना चाहिए। दुश्मन की कोशिश है कि हमारी कमज़ोरियों को बड़ा करके दिखाए, हमारे मज़बूतियों को छिपाए; ऐसा नहीं होने देना चाहिए, हमें इस पहलु से दुश्मन की मदद नहीं करनी चाहिए।

यह मेरी आख़िरी बात यह है। मैं इसी क्षितिज और किस तरह इस क्षितिज को सही करना चाहिए, इस बारे में कहना चाहता हूं। इंक़ेलाब के आग़ाज़ के दिनों में पश्चिम अपने प्रचार में यह ज़ाहिर करने की कोशिश करता था कि जो इस्लामी जम्हूरी सिस्टम इंक़ेलाब के ज़रिए वजूद में आया, वह नाकाम हो रहा है; शुरूआत के दिनों ही से कहते थे नाकाम हो रहा है। कभी कहते थे अगले दो महीने में, कभी कहते थे एक साल में, कभी कहते थे बस पाँच साल में, कभी कोई और डेडलाइन तय करते थे; अफ़सोस कि कुछ लोग मुल्क के अंदर -चाहे ग़फ़लत की वजह से या कुछ लोग दुश्मनी की वजह से- यही प्रचार करते थे। इमाम ख़ुमैनी के ज़माने में, एक अख़बार ने, मैं उसका नाम नहीं लूंगा, एक तफ़सीली आर्टिकल लिखा, मेरे ख़्याल में हेडलाइन थी -पहले पेज की बड़ी हेडलाइन की तरह, उसका मज़मून भी यही था, इस वक़्त सही तौर पर बातें याद नहीं हैं, मगर उसका ख़ुलासा यही था कि सिस्टम बिखरने की हालत में है! इमाम ख़ुमैनी ने उस वक़्त जवाब दिया था, कहा थाः आप ख़ुद बिखरने वाले हैं; सिस्टम ठोस ढंग से और मज़बूती से खड़ा हुआ है। ऐसा नहीं था कि चूंकि इमाम ख़ुमैनी थे और उनका रोब सबको रोक देता था, नहीं! इमाम ख़ुमैनी के ज़माने में भी कहने वाले कहते थे।

इमाम ख़ुमैनी के इंतेक़ाल के बाद, सन 1990 में कुछ मशहूर लोगों ने यानी उनमें ऐसे लोग भी थे, सिस्टम के मशहूर व पसंदीदा लोग जो सिस्टम में काम कर चुके थे, (11) एक बयान जारी किया कि सिस्टम गिरने के मुहाने पर है, यानी ऐसे ही दिनों की तरह यह कि काम तमाम हो जाए! कब? 1989 में। सन 2003 में कुछ सासंदों ने (12) मुझे एक ख़त लिखा; वाक़ई ग़लत ख़त था, बहुत ग़लत था। कुछ बातें कहीं, हमसे कुछ सवाल किए जिसके जवाब ख़ुद उन्हें देना चाहिए थे; क्योंकि संसद उनके हाथ में थी, हुकूमत भी उन्हीं के हाथ में थी; उन्हें जवाब देना चाहिए था, लेकिन मुझसे सवाल किया था! उस वक़्त के ख़त का मज़मून व ख़ुलासा यह था कि हमें झुक जाना चाहिए वरना आपका काम तमाम है! सन 2003 की बात है। हम नहीं झुके, डटे रहे और इंशाअल्लाह आइंदा भी डटे रहेंगे। तो यह हमारे दुश्मनों का काम था जिन्होंने बार-बार ऐसा  किया।

मेरी नज़र में इस बारे में जो हमें देखना चाहिए यह है कि हमें हालात का अपना जायज़ा लेना चाहिए; सही जायज़ा लेना चाहिए। जायज़ा लेने के दो तरीक़े मौजूद हैं; जायज़ा लेने का एक तरीक़ा यह है कि दुनिया में फैली हुए सिस्टम  के मुक़ाबले में काम करना बेफ़ायदा है, इसका कोई फ़ायदा नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तौर तरीक़े चल रहे हैं, सरकारें इन्हीं तौर तरीक़े की बुनियाद पर बनी हैं, सत्ता में आयी हैं, ताक़तवर व मालदार अमरीका भी इसी तौर तरीक़े की बुनियाद पर वजूद में आया है, यही युरोप भी इसी तरह, दूसरे भी इसी तरह हैं। इन तौर तरीक़ों के मुक़ाबले में बेकार में मत खड़े होइए, तबाह हो जाइयेगा। यह एक जायज़ा है। आज यह बात नहीं कर रहे हैं; जैसा कि मैंने अर्ज़ किया, चालीस साल से लगातार यही बात कह रहे हैं। उस वक़्त जो लोग यह जायज़ा लेते थे, दूसरों को वहम में मुब्लता समझते थे! कहते थे कि ये लोग वहम में मुब्तला हैं- मिसाल को तौर पर मुझे; -सबसे ऊपर ख़ुद मैं हूं- कहते हैं ये लोग वहम का शिकार हैं, ग़लतफ़हमी में हैं कि आगे बढ़ रहे हैं, यह एक जायज़ा।

एक दूसरा जायज़ा भी है, जो ना कहने की हिम्मत रखता है, हक़ीक़त पसंदाना जायज़ा है। यह जायज़ा फ़ैक्ट्स को देखता है; सिर्फ़ अच्छी हक़ीक़तों को नहीं, बल्कि नेगेटिव फ़ैक्टस को भी मद्देनज़र रखता है। हमने कभी भी नेगेटिव प्वाइंट्स का इंकार नहीं किया है। हम ओहदेदारों से मुलाक़ातों में, रमज़ान मुबारक के महीनों की बैठकों में, सभी को बुलाते हैं, ज़्यादातर कमियों की ओर से सावधान करते रहते हैं। बंद दरवाज़ों के पीछे होने वाली बैठकों में तो और ज़्यादा। और इन कमज़ोर बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाता है, ऐसा नहीं है कि नहीं दिया जाता; हम बार-बार कह चुके हैं कि हम पीछे हैं; इस बात में शक नहीं है, लेकिन मामले का दूसरा पहलू यह है कि हमने काफ़िले की आख़िरी लाइन से बहुत तेज़ी से चलना शुरू किया है और अब आगे वालों के क़रीब पहुंच गए हैं; यह एक सच्चाई है। अभी हम उतना आगे नहीं पहुंचे हैं, लेकिन बहुत आगे आए हैं, आगे भी जाएंगे। हमने मुल्क के बहुत से मामलों में तरक़्क़ी की है। साइंस में तरक़्क़ी की है, प्रशासनिक क्षेत्र में तरक़्क़ी की है; कमियां हैं, हमारे कुछ ओहदेदार, हमारी कुछ हुकूमतों से कोताहियां हुयी हैं, ऐसा है लेकिन इंक़ेलाब से आगे बढ़ने की पक्रिया जारी है, इंक़ेलाब से तरक़्क़ी हुयी है।

आप देखें चालीस साल पहले इस्लामी जम्हूरिया कहाँ थी, आज कहाँ है; बीस साल पहले कहाँ थी, आज कहाँ है। चार दशकों के बाद अब तो समझा जा सकता है कि इन दोनों जायज़ों में कौन सा हक़ीक़त पर आधारित है; पश्चिम की ओर रुझान रखने वालों और पश्चिम वालों का हक़ीक़त पर आधारित है, और हम वहम का शिकार हैं; या नहीं! इंक़ेलाब का ज़ायज़ा हक़ीक़त पर आधारित है, वे वहम का शिकार हैं। हक़ीक़त यह है। इंक़ेलाब की हरकत, ठोस हरकत है; आप नौजवान उसकी निशानियों में से एक निशानी हैं। आप मुमताज़ सलाहियतों वाले एक गिरोह हैं, सिर्फ़ आप ही मुमताज़ सलाहियतों वाले नहीं है, दूसरे भी मुमताज़ सलाहियत रखते हैं; बड़ बड़े जीनियस, इंक़ेलाब को मानने वाले, इस रास्ते पर अक़ीदा रखने वाले, कोशिश व जिद्दो जोहद में लगे हुए हैं, चार दशकों के बाद और इन सब दुश्मनियों के बाद, इन प्रोपैगन्डों के बाद; क्या इससे बेहतर कोई दलील है जिससे पता चले कि वह जायज़ा, ग़लत जायज़ा है और सही जायज़ा इंक़ेलाब का जायज़ा है?

परवरदेगार! हमें अपने रास्ते पर साबित क़दम रख। परवरदिगार! हमें अपनी हेदायत और अपनी तौफ़ीक़ से सीधे रास्ते पर, पूरी तेज़ी से आगे ले जा। परवरदेगार! ईरानी क़ौम के दुश्मनों को ईरानी क़ौम के हाथों तबाह और पराजित कर दे।

वस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाहे व बरकातोह

  1. इस मुलाक़ात के आग़ाज़ में वाइस प्रेज़िडेन्सी फ़ॉर साइंस ऐन्ट टेक्नॉलोजी के प्रभारी डॉक्टर रूहुल्लाह दहक़ानी फ़ीरोज़ाबादी और मुमताज़ सलाहियत रखने वालों में से 7 लोगों ने अपने अपने ख़्याल व नज़रिये पेश किए।
  2.  डॉक्टर सईद काज़ेमी आशतियानी (रोयान इंस्टीट्यूट और ईरान युनिवर्सिटी फ़ॉर मेडिकल साइंसेज़ में जेहाद दानिशगाही विभाग के प्रमुख
  3. यूनेस्को
  4. भारत के भूतपूर्व प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू
  5. जनाब महदी मीर कियाई
  6. सूरे तग़ाबुन, आयत-11 का एक हिस्सा; और जो शख़्स अल्लाह पर ईमान लाए, अल्लाह उसके दिल को सही रास्ता दिखाता है
  7. जनाब मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ (पूर्व विदेश मंत्री) ने 3 दिसंबर 2013 को तेहरान युनिवर्सिटी में कहा थाः (पश्चिम हमारे दो चार टैंकों और मीज़ाइलों से नहीं डरता, बल्कि ईरानी अवाम से डरता है। क्या आपको लगता है कि अमरीका हमारे फ़ौजी सिस्टम को बेकार नहीं कर सकता? क्या आपको सच में लगता है कि अमरीका हमारे फ़ौजी सिस्टम से डरता है? क्या वाक़ई हमारे फ़ौजी सिस्टम की वजह से अमरीका हमारे मुक़ाबले में नहीं आता?
  8.  2 जुलाई 2014 को यूनिवर्सिटियों के शिक्षकों के एक गिरोह के बीच सुप्रीम लीडर की स्पीच
  9. 22 अक्तूबर 2014 को मुल्क के नौजवान मुमताज़ सलाहियत वालों की आठवीं क़ौमी कॉन्फ़्रेंस में शामिल होने वालों से मुलाक़ात में बयान
  10. आज़ादी मूवमेंट के कुछ मेंबर (भूतपूर्व अंतरिम प्रधान मंत्री इंजीनियर महदी बाज़ुर्गान) और सिस्टम की मुख़ालिफ़ कुछ दूसरी शख़्सियत, आज़ादी और ईरानी क़ौम की ख़ुद मुख़तारी की रक्षा नामी अंजुमन के लोग इस बयान पर दस्तख़त करने वालों में थे।
  11. छठी संसद में सुधारवादी धड़े के कुछ सांसद।