बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः सारी तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं जो कायनात का परवरदिगार है। दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा और उनकी पाकीज़ा व मासूम नस्ल, ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत (इमामे ज़माना) पर।

इस समेनार के आयोजकों और “रेड रेक्टैंगल” फ़िल्म के निर्माताओं का शुक्रिया

आपका स्वागत है अज़ीज़ो! और जो ये रिपोर्टें दी गईं, आप अपने साथ अच्छी ख़बरें भी लाए हैं। मैं इसके लिए बहुत शुक्रगुज़ार हूं कि आप ये बड़ा और अहम सेमीनार आयोजित कर रहे हैं और उम्मीद है कि आपकी ये कोशिशें और सच्ची नीयत जो पूरी टीम में दिखाई देती है, इंशाअल्लाह ख़ुदावंदे आलम का ध्यान और हज़रत इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की हिमायत हासिल करेगी। इसी तरह मैं उन प्यारे भाइयों का भी शुक्रगुज़ार हूं जिन्होंने अपने मेडल मुझे प्रदान किए। मैं “रेड रेक्टेंगल”(2) फ़िल्म बनाने वालों का भी शुक्रिया अदा करना चाहता हूं - हालांकि मैंने फ़िल्म नहीं देखी है, लेकिन उसके बारे में सुना है- फ़िल्म बनाने वाले यहां तशरीफ़ रखते हैं। ये काम होना ही चाहिए, यानी कला का प्रोडक्शन और उन सच्चाइयों का बयान, जिसे आपने बताया, बहुत अहम है, इसे अंजाम पाना चाहिए। इन दो लोगों ने ये काम किया और मैंने सुना है कि टेलीविजन पर भी कुछ शहीद चैम्पियनों के बारे में कुछ प्रोडक्शन दिखाए गए हैं। बहरहाल ये काम बहुत अहम है और इसे जारी रहना चाहिए।

स्पोर्ट्स हाशिये का नहीं बल्कि अस्ली और बुनियादी मामला

आज मैं दो बातें अर्ज़ करना चाहता हूं, एक बात शहीदों, शहादत और स्पोर्ट्स के विभाग के प्यारे शहीदों के इस महान कारवां के बारे में और दूसरी बात ख़ुद स्पोर्ट्स और व्यायाम के बारे में। स्पोर्ट्स और व्यायाम का मामला, ऐसा मामला है जिसे हाशिये पर नहीं रखा जाना चाहिए बल्कि अस्ल और बुनियादी विषय के रूप में इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। मैं इन बातों के बारे में कुछ जुमले अर्ज़ करूंगा।

शहीदों के ज़िंदा होने की बात क़ुरआने मजीद साफ़ शब्दों में कह रहा है

शहीदों के बारे में क़ुरआने मजीद में दो जगहों पर स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि शहीद मुर्दा नहीं, ज़िंदा हैं। ये बात बड़े साफ़ शब्दों में कही गई है। एक जगह सूरए बक़रह में कहा गया है। “ये लोग जो अल्लाह की राह में मारे जाते हैं, इन्हें मुर्दा न कहो, ये ज़िंदा हैं। (3) इससे ज़्यादा साफ़ और स्पष्ट बात क्या हो सकती है? दूसरी जगह सूरए आले इमरान में कहा गया है। “और जो लोग अल्लाह की राह में मारे गए, उन्हें कभी भी मुर्दा न समझो बल्कि वे ज़िंदा हैं(4) स्पष्ट शब्दों में कहा गया है। अब रही ये बात कि शहीदों की ज़िंदगी किस तरह की है? तो ये एक अलग विषय है, निश्चित रूप से वो हमारी दुनियावी ज़िंदगी से अलग है, बरज़ख़ की ज़िंदगी से अलग है, बरज़ख़ में बहुत से दूसरे लगों की रूहें भी एक प्रकार से ज़िंदा और सक्रिय होती हैं, तो ये भी नहीं है, वो ज़िंदगी एक तीसरी चीज़ है और एक बड़ी अहम हक़ीक़त है जिसे क़ुरआने मजीद साफ़ शब्दों में बयान कर रहा है।

शहीदों की तरफ़ से हमारे लिए ख़ुशख़बरीः अल्लाह की राह में जेहाद के रास्ते में डर और ग़म नहीं है

ख़ैर, इस ज़िंदा होने के कुछ तक़ाज़े हैं जिनमें से एक असर डालना है, तो शहीद असर डालते हैं। चूंकि वो ज़िंदा हैं इस लिए ज़िंदों की ज़िंदगी में उनका असर होता है, वो हम पर काम कर रहे हैं। ये बात भी क़ुरआने मजीद में आई है। सूरए आले इमरान की इसी आयत के आगे कहा गया हैः “और वो अपने पीछे आने वालों के बारे में भी, जो अभी उनके पास नहीं पहुंचे हैं, ख़ुश और निश्चिंत हैं कि उन्हें न कोई डर है और न ही कोई दुख। “(5) इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आयत में इस्तेमाल हुए लफ़्ज़ “अलैहिम” (उन पर) में ज़मीर (प्रोनाउन-सर्वनाम) ख़ुद शहीदों के लिए है या हमारे लिए जो इस दुनिया में हैं, हर हाल में इसका नतीजा यही है कि वो हमसे कह रहे हैं कि मुमकिन है कि अल्लाह की राह में जेहाद में कुछ कठिनाइयां हों, निश्चित रूप से कठिनाइयां हैं, लेकिन उसका अंजाम बहुत अच्छा है, इस राह के अंत में, इस मार्ग के ख़त्म हो जाने पर न तो डर है और न ही दुख, ये बहुत अहम है। इंसान किसी कठिनाई को सहन करता है लेकिन जिस राह पर आप चल रहे हैं उसके अंत पर न तो भय है और न ही दुख, ये दो चीज़ें इंसान को तकलीफ़ पहुंचाने वाली हैं, ये हमारे लिए क़ुरआने मजीद के स्पष्ट शब्द हैं। वास्तव में शहीदों का ये अज़ीम कारवां हमारा हौसला बढ़ा रहा है, इस मोमिन समाज का, जो अल्लाह की राह में क़दम उठाना चाहता है और अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ काम करना चाहता है, शहीदों के इस संदेश से - और संदेश पहुंचाने वाला भी ख़ुद ख़ुदा है - हौसला बढ़ता है और वो समझ जाता है कि इस राह में उम्मीद के साथ क़दम बढ़ाया जा सकता है और आगे बढ़ा जा सकता है। तो ये हौसला अफ़ज़ाई भी हमें ताक़त देती है, आगे बढ़ने और संघर्ष का जज़्बा देती है। जिन मिसालों का आपने ज़िक्र किया, शायद मैं आगे चल कर उनके बारे में भी इशारा करूं।

इस्लामी व्यवस्था के ज़माने में शहादत पसंदी का जज़्बा और शौक़

इस्लामी व्यवस्था के ज़माने में देश ने कुल मिला कर इस तरह काम किया कि अल्लाह की राह में जेहाद और अल्लाह की राह में शहादत का जज़्बा पैदा हुआ, इस से पहले ऐसा नहीं था। हमने इंक़ेलाब से पहले के दौर को अच्छी तरह देखा है, मेरी उम्र का आधा हिस्सा उसी दौर में गुज़रा है और उस वक़्त भी अल्लाह ने मदद की थी जो इस राह में क़दम बढ़ा रहे थे, लेकिन अल्लाह की राह में जेहाद और अल्लाह की राह में शहादत का ये जज़्बा, जो इस्लामी व्यवस्था के ज़माने में पाया जाता है, उस वक़्त नहीं था। ये जज़्बा और ये कशिश इस बात का कारण बनती है कि समाज के सभी वर्गों, समाज के सभी लोगों में जेहाद का शौक़ पैदा हो और जिन लोगो में क्षमता है, मानसिक व रूहानी तैयारी है, वो जेहाद के मैदानों में जाएं, उन्हीं में स्पोर्ट्स के मैदान के शहीद और मुजाहिद भी हैं।

समाज में स्पोर्ट्स के लोगों का गहरा असर

स्पोर्ट्स का विभाग एक प्रभावी विभाग है, खिलाड़ी का असर होता है, समाज में उसकी शख़्सियत और उसका काम एक आम आदमी से बहुत अलग होता है। ख़ास करके वो खिलाड़ी जो मशहूर हो जाता है, सबकी नज़र में आ जाता है, वो बहुत से लोगों पर असर डालता है। अब अगर उस खिलाड़ी में जेहाद का शौक़ और जज़्बा पैदा हो जाए और वो जेहाद की राह में क़दम बढ़ाए तो आप देखिए कि वो समाज पर कितने अहम प्रभाव डाल सकता है, कैसा जज़्बा जगा सकता है! ख़ुदा का शुक्र है कि ये काम हुआ, आपके इन्हीं पांच हज़ार से कुछ ज़्यादा शहीदों की बरकत से। इन शहीदों में पेशेवराना ख़िलाड़ी और चैम्पियन कम नहीं थे, शायद इनमें से एक हज़ार से ज़्यादा शहीद पेशेवर खिलाड़ी, चैम्पियन और स्पोर्ट्स में अच्छी रैंकिंग रखने वाले थे, सभी खेलों में। यहां जो प्रदर्शनी लगाई गई है, उसमें मैंने देखा कि लिखा हुआ हैः “स्पोर्ट्स के 33 विभागों में” बहरहाल जहां तक मेरी मालूमात है और जहां तक मैं जानता हूं, खेल और स्पोर्ट्स के अलग अलग विभागों से लोग जेहाद के लिए गए। ये लोग गए और उस दुनिया में चैम्पियन के पायदान पर, जो दुनिया के चैम्पियन के पायदान से कहीं ऊंचा है, पहुंच गए, उन्होंने ख़ुद तो ये ऊंचा स्थान हासिल किया है, साथ ही दूसरों को भी अपने पीछे बुला लिया।

हमारे समाज में स्पोर्ट्स के माहौल पर शहीद खिलाड़ियों की रूहानियत का गहरा असर

आज हमारा खेल और स्पोर्ट्स का माहौल उसी रूहानियत के असर में है जो स्पोर्ट्स के हमारे प्यारे शहीदों ने समाज में पैदा की है, ये रूहानियत आज हमारे खेल और स्पोर्ट्स के माहौल में पाई जाती है। अलबत्ता हर माहौल में हर तरह के इंसान होते हैं, रूहानियत के माहौल में भी हर तरह के लोग हैं, स्पोर्ट्स के वातावरण में भी ऐसा ही है लेकिन आज देश में स्पोर्ट्स का माहौल कुल मिला कर अतीत से बहुत अलग है। दीनदारी की झलक, दीनी नियमों पर अमल, रूहानियत की झलक और इसी तरह की दूसरी बातें - जिन्हें मैंने कई मौक़ों पर अपनी बातों में कहा है, इस वक़्त भी कुछ लोगों ने बयान किया- बहुत ज़्यादा हैं: वो बहादुर और ईमान वाली ख़ातून जो चैम्पियन के पायदान पर खड़ी है और जब कोई ग़ैर मर्द उससे हाथ मिलाना चाहता है तो वो उससे हाथ नहीं मिलाती या दसियों लाख लोगों की नज़रों के सामने, जिनमें बहुत से लोगों की, हिजाब के ख़िलाफ़ और औरत की पाकीज़गी के ख़िलाफ़ बात करने और काम करने के लिए ट्रेनिंग हुई है, चादर पहन कर और इस्लामी हिजाब के साथ खड़ी होती है, या वो जवान चैम्पियन जो अपना मेडल शहीदों के घर वालों को दे देता है, या वो बाईमान खिलाड़ी जो अपने खेल में, चाहे कुश्ती हो, वेट लिफ़्टिंग हो या कोई दूसरा खेल हो, जीतने पर नख़रा दिखाने और चीख़ने-चिल्लाने के बजाए ज़मीन पर गिर कर अल्लाह का सज्दा करता है या इमामों का नाम लेता है। ये सब बड़ी अहम चीज़ें हैं। हम लोगों को कभी कभी किसी चीज़ को देखने की आदत पड़ जाती है तो उस चीज़ की अहमियत को हम महसूस नहीं कर पाते लेकिन आज की दुनिया में, दुनिया परस्ती और करप्शन के इस माहौल में ये चीज़ें बड़ी अजीब हैं।

खेल के मैदान की रूहानियत ईरानी अवाम की रूहानियत और अख़लाक़ की झलक

मैं कहता हूं कि जो लोग ईरानी क़ौम को बख़ूबी पहचानना चाहते हैं वो इस बात पर ध्यान दें, ये बहुत अहम बात है कि जब हमारा कोई जवान खिलाड़ी दसियों लाख लोगों बल्कि कभी कभी करोड़ों लोगों की नज़रों के सामने पोडियम पर जाता है तो इस तरह रूहानियत का प्रदर्शन करता है, अल्लाह और वलीयुल्लाह  से अक़ीदत ज़ाहिर करता है, इन चीज़ों को देखिए, ये चीज़ें ईरानी क़ौम की पहचान और ईरानी क़ौम की रूहानी व अख़लाक़ी पहचान के लिए बहुत मायने रखती हैं। तो ये एक कसौटी है और बहुत अहम कसौटी है। इस साल अरबईन के पैदल मार्च में खिलाड़ियों की जो अंजुमनें गई थीं उनके बारे में मुझे बड़ी अच्छी अच्छी ख़बरें मिली हैं जिनमें से एक नजफ़ में अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम से उनकी अक़ीदत और उनके इश्क़ का प्रदर्शन था, ये बड़ी मूल्यवान चीज़ है, ये रूहानी माहौल बहुत अहम है। अल्लाह की राह में जेहाद की बरकतों में से एक यही है कि वो रूहानियत को समाज के अलग अलग तबक़ों के अंदर तक पहुंचा देती है, यानी जब आप खिलाड़ी या स्पोर्ट्स मैनेजर, कुछ दीनी व रूहानी नियमों का कड़ाई से पालन करते हों तो सिर्फ़ आप ही उससे फ़ायदा नहीं उठाते, बहुत से लोग ख़ुद आप से फ़ायदा हासिल करते हैं - पहले चरण में ख़ुद स्पोर्ट्स का माहौल और फिर अवाम का सार्वजनिक माहौल - और ये काम सक्षम लोगों को रूहानियत के माहौल में ले आता है और रास्ता खोल देता है। बहरहाल ईरानी क़ौम के सामने जेहाद का जो मैदान है, वह हर दिन एक अलग तरह का होता हैः कभी वो पाकीज़ा डिफ़ेंस के रूप में था, कभी रौज़ों की हिफ़ाज़त की शक्ल में था, आज भी जेहाद के मैदान हमारे सामने अलग अलग शक्लों में खुले हुए हैं, मेरे ख़याल में इनमें से हर एक में, समाज के अहम और मशहूर लोगों की जेहादी उपस्थिति का बहुत ज़्यादा असर है और ये बहुत मूल्यवान है। तो ये बातें शहीदों और शहादत के बारे में थीं।

सेहत और मन की ख़ुशी के लिए स्पोर्ट्स सबके लिए अहम है

स्पोर्ट्स के बारे में, मैं जो स्पोर्ट्स के बारे में बात कर रहा हूं उसकी वजह स्पोर्ट्स की अहमियत है; स्पोर्ट्स सबके लिए और अवाम की सतह पर स्पोर्ट्स- जिस पर हम सभी ताकीद करते हैं- पेशेवराना स्पोर्ट्स भी; यह भी अहम है, इसे सामाजिक ज़िन्दगी के मरकज़ी हिस्से की हैसियत हासिल है यह हाशिए की चीज़ नहीं है।

मैंने हमेशा सबके लिए स्पोर्ट्स के बारे में ताकीद की है, फिर दोहरा रहा हूं; सभी कसरत करें। यह आज की मशीनी ज़िन्दगी और कम एक्टिविटी, हम बूढ़ों की तो बात ही दूर है, जवान भी जिस्मानी एक्टिविटी नहीं करते! गाड़ी पर सवार होते हैं, थोड़ी सी दूर के लिए गाड़ी करते हैं, लिफ़्ट से ऊपर जाते हैं, ज़रा भी नहीं चलते। ऐसे माहौल में कसरत अख़तियार की चीज़ नहीं बल्कि लाज़िमी है। अलबत्ता हमारे लिए और हम जैसों के लिए जिनकी उम्र हमारी तरह है, अलग कसरत है, जवानों और अधेड़ उम्र के लोगों की कसरत अलग है, लेकिन कसरत सभी को करनी चाहिए। स्पोर्ट्स को न छोड़ें। यह, जिस्म की सेहत के लिए अच्छा है- स्पोर्ट्स से शरीर सेहतमंद रहता है; कभी कभी जवानों को कुछ बीमारियों हो जाती हैं जिन्हें देखकर हैरत होती है कि एक जवान आदमी को हार्ट अटैक हो रहा है, बहुत सी बीमारियों की वजह एक्टिविटी का न होना है- यह ज़ेहन और रूह की ख़ुशी के लिए भी अच्छा है। कसरत से आनंद मिलता है। आप जो भी काम करते हैं, जिस्मानी काम, ज़ेहनी काम, ऑफ़िस का काम, इल्मी काम, अगर कसरत करें तो उस काम को बेहतर तरीक़े से अंजाम देंगे। ज़ेहन को ज़्यादा लुत्फ़ हासिल होगा और आप बेहतर तरीक़े से उस काम को अंजाम देने लगेंगे। यानी आपके मन को ज़्यादा ख़ुशी मिलेगी और आप बेहतर तरीक़े से काम अंजाम दे सकते हैं। अलबत्ता दूसरे फ़ायदे भी हैं जिसे यहाँ बयान करने का मौक़ा नहीं है।

 

पेशेवराना स्पोर्ट्स, अवामी सतह पर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देना वाला

पेशेवराना स्पोर्ट्स और पेशेवराना मुक़ाबले और चैंपियनशिप, यह भी बहुत अहम है। पेशेवराना स्पोर्ट्स की अहमियत के बढ़ने की एक वजह यह है कि जब पेशेवराना खेल वजूद में आता है तो इससे अवाम की सतह पर भी स्पोर्ट्स को बढ़ावा मिलता है; इसकी एक वजह यह है। स्पोर्ट्स का चैंपियन जब पहचाना जाने लगता है और लोगों की नज़रों में आ जाता है तो इससे जवानों में स्पोर्ट्स का शौक़ पैदा होता है। यह पेशेवराना स्पोर्ट्स के फ़ायदों में से एक है, अलबत्ता सिर्फ़ यही एक फ़ायदा नहीं है, दूसरे फ़ायदे भी हैं। एक और फ़ायदा यह है कि स्पोर्ट्स से क़ौमी वेक़ार भी बढ़ता है। स्पोर्ट्स चैंपियनशिप में, जब आप किसी इंटरनैश्नल मुक़ाबले में शामिल होते हैं और उसमें कामयाब होते हैं और नुमाइंदगी करते हैं तो क़ौम को ख़ुशी का एहसास होता है, फ़ख़्र महसूस करती है। यह बहुत अहम चीज़ है। उन लोगों को जो अलग अलग स्पोर्ट्स के ज़रिए अवाम की ख़ुशी का सबब बनते हैं- चाहे अकेले खेला जाना वाला खेल हो या टीम की शक्ल में खेला जाने वाला खेल हो जो दुनिया में प्रचलित है- हक़ीक़त में मुबारकबाद देनी चाहिए, शुक्रिया अदा करना चाहिए। मैं सभी का शुक्रिया अदा करता हूँ; अवाम को ख़ुश करते हैं, लोगों को ख़ुश करते हैं, फ़ख़्र का एहसास पैदा करते हैं।  

अंतर्राष्ट्रीय सतह पर स्पोर्ट्स में कामयाबी और दूसरी कामयाबियों में फ़र्क़

स्पोर्ट्स के मैदान में कामयाबी, दूसरी कामयाबियों से एक तरह से अलग है। हमारी क़ौम और दूसरी क़ौमें भी ज़िन्दगी के अलग अलग मैदानों में कामयाबियां हासिल करती है; सेक्युरिटी के मैदान में भी हमने कामयाबियां हासिल की हैं, विज्ञान के मैदान में भी हमने कामयाबियां हासिल की हैं, सियासी मैदान में भी हमने कामयाबियां हासिल की हैं, रिसर्च के मैदान में भी हमने कामयाबियां हासिल की हैं, अलग अलग मैदानों में हमने कामयाबियां हासिल की हैं, लेकिन ये कामयाबियां दुनिया के लोगों के सामने नहीं है। कुछ को हम जानबूझ कर ज़ाहिर नहीं करते; किसी मुल्क में अगर कोई सेक्युरिटी के मैदान में कामयाबी हासिल करता है तो उसे ज़ाहिर नहीं करता, सेक्युरिटी के मैदान में कामयाबी को छिपाया जाता है। कुछ कामयाबियों को हम नहीं छिपाते, लेकिन दुश्मन उनके बारे में शक पैदा करता है, जैसे विज्ञान के क्षेत्र में कामयाबियां। ये अंजाम पाने वाले अहम साइंसी काम, बड़े समय तक हमारे दुश्मन के पिट्ठू अपने बयानों और तहरीरों में इंकार करते थे कि नहीं! ऐसा नहीं नहीं हुआ है! यानी इसमें शक हो सकता है, शक किया जा सकता है। या देर से समझ में आती है या उसमें आम लोगों के लिए बहुत ज़्यादा आकर्षण नहीं होता। स्पोर्ट्स के मैदान में कामयाबी इस तरह की नहीं होती। वहाँ कामयाबी फ़ौरन होती है, जिसकी फ़ौरन ख़बर मिलती है। जिस लम्हे आपको कामयाबी मिलती है, उसी लम्हे लाख़ों और कभी करोड़ो लोग कामयाबी को अपनी आँखों से देखते हैं। यह कामयाबी बहुत अहम है। यह बहुत अहम है और दूसरी कामयाबियों की तरह इसे छिपाया नहीं जा सकता। कभी कभी ग़लत फ़ैसला होता है, दुश्मनी के जज़्बे के साथ होता है, इसी मैदान में भी कभी कभी दुश्मन कुछ हरकते करते हैं, लेकिन ज़्यादातर मौक़ों पर नहीं कर सकते। आम तौर पर कामयाबी बिल्कुल ज़ाहिर होती है जिसका असर बहुत ज़्यादा होता है जिसे आप देखते हैं और दुनिया में आपके दोस्त भी ख़ुश होते हैं।

 

स्पोर्ट्स के मैदान में तकनीकी कामयाबी के साथ साथ अख़लाक़ी कामयाबी

एक स्पोर्ट्स मुक़ाबला, जिसके बारे में मुझे पता चला- यानी मुझे पुख़्ता ख़बर मिली- कुछ अरब इस्लामी मुल्कों में जिनका नाम मैं ज़िक्र नहीं करना चाहता, लोग टीवी के पास खड़े होकर देख रहे थे, जैसे ही उस मैच में उन्होंने ईरान को कामयाब होते देखा सड़क पर सबके बीच जश्न व ख़ुशी मनाना शुरू कर दिया कि ईरान मिसाल के तौर पर फ़ुलां ताक़तवर मुल्क से मैच जीत गया जो सियासत की दुनिया में बहुत घटिया है। ऐसा होता है। यह कामयाबी सभी लोगों के सामने होती है। तो यहाँ पर ईरानी स्पोर्ट्समैन अपने बर्ताव से इस तकनीकी कामयाबी को अख़लाक़ी कामयाबी से जोड़ सकता है। मूल बिन्दु यह है। यानी जब आप किसी मुक़ाबले में कामयाब हुए तो आप ने तकनीकी कामयाबी हासिल की, लेकिन इसी तकनीकी कामयाबी को आप अख़लाक़ी कामयाबी से जोड़ सकते हैं। स्पोर्ट्समैन वाले अख़लाक़ के ज़रिए। यही काम जो हमारी महिला स्पोर्ट्समैन अंजाम दे रही हैं। यानी इस्लामी हेजाब की पाबंदी, इस्लामी नियमों का पालन अपने भरपूर आत्म विश्वास का परिचय देते हुए। यह एक बहुत बड़ी कामयाबी है। यह अगर तकनीकी कामयाबी से ज़्यादा अहम नहीं, तो उससे कम भी नहीं है।

क़ाबिज़ ज़ायोनी हुकूमत तस्लीम न करना और मूल्यों की हिफ़ाज़त, मेडल हासिल करने से बड़ा काम है

इसलिए मैं अपने खिलाड़ियों को दोबारा ताकीद करता हूं कि स्पोर्ट्स के मैदान में, कामयाबी के इस आयाम को न भूलें, सावधान रहें कि मेडल के लिए मूल्य नज़रअंदाज़ न होने पाएं। कभी कभी इंसान को मेडल नहीं मिलता, हमारे स्पोर्ट्समैन क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन की नुमाइंदगी करने वालों से मैच नहीं खेलते और उन्हें मेडल से हाथ धोना पड़ता है, लेकिन वे फिर भी कामयाब हैं। अगर कोई इस उसूल को कुचल दे, तो इसका मतलब यह हुआ कि तकनीकी व ज़ाहिरी कामयाबी पाने के लिए, उसने अख़लाक़ी फ़तह को पैरों तले कुचल दिया। आपने अगर उसके साथ मुक़ाबला किया, उसका सामना किया तो हक़ीक़त में इसका मतलब यह हुआ कि आपने उस क़ाबिज़ शासन को, उस बच्चों के क़ातिल व जल्लाद को मान्यता दी है। इसलिए चाहे जितना बड़ा फ़ायदा हो उसके साथ मैच खेलने की कोई अहमियत नहीं है। साम्राज्यवाद के सरग़ना और उनके पिछलग्गू और हक़ीक़त में दुनिया की बड़ी ताक़तों के नौकर यहाँ पर फ़ौरन हाय तौबा मचाने लगते हैं किः “जनाब, खेल को राजनैतिक रंग न दीजिए”! आपने देखा कि ख़ुद उन्होंने युक्रेन जंग (1) के बाद खेल के संबंध में क्या रवैया अपनाया! कुछ मुल्कों पर खेल की पाबंदी लगा दी राजनैतिक विषय के लिए (2) अर्थात जब उन्हें फ़ायदा नज़र आता है तो अपनी रेडलाइनों को ख़ुद पार कर जाते हैं, जब हमारे खिलाड़ी ज़ायोनी खिलाड़ी से मुक़ाबला करने से इंकार करते हैं तो उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं।

खेल के मैदान से बाहर अपनी और क़ौम की इज़्ज़त का ख़याल

ख़ैर, एक और बात पेश करके अपनी बात ख़त्म करना चाहता हूं। हमारे प्यारे चैंपियन्ज़ जो स्पोर्ट्स में शरीक होते हैं-चाहे आंतरिक नेश्नल लेवल का स्पोर्ट्स हो और चाहे अंतर्राष्ट्रीय लेवल का स्पोर्ट्स हो, इस बात पर ध्यान दें कि उन पर सिर्फ़ खेल के मैदान के भीतर कैमरे की नज़र नहीं है, बल्कि मैदान के बाहर भी वे कैमरे की नज़र में हैं। आम लोग, अलग अलग निगाहें, कभी बुरी नीयत रखने वालों की निगाहें, इन सबकी आप पर नज़र होती है ताकि कहीं से कोई अख़लाक़ी कमी या कोई कमज़ोरी ढूंढें ताकि उसके ज़रिए मैदान में मिलने वाली कामयाबी को दबा दें। खेल के मैदान में कामयाब होता है, मैदान से बाहर मुसीबत का शिकार हो जाता है। इसलिए मैदान के बाहर भी अपने व्यवहार की ओर से सावधान रहें और जान लें कि अपनी हैसियत और अपनी इज़्ज़त की ज़रूर हिफ़ाज़त करनी है। अपनी इज़्ज़त की भी, क़ौम और अपने मुल्क की इज़्ज़त की भी। हमारे चैंपियन्ज़ के सामने बहुत से जाल बिछाए जाते हैं।

पश्चिमी स्पोर्ट्स को, पश्चिमी कल्चर का असर लिए बग़ैर सीखिए

अलबत्ता अतीत में हमारे खेल का माहौल, पश्चिमी स्पोर्ट्स मुल्क में आने से पहले का माहौल, हमेशा दीनी होता था। पुराने ज़माने के खेल, अखाड़े और पुराने खेलों के क्लब जिन्हें हम देख चुके हैं, सबके सब अल्लाह और अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के नाम से सजे रहते थे और उनसे दीनदारी और अख़लाक़ झलकता था। पश्चिम ने कोशिश की कि इन नए स्पोर्ट्स के साथ मुल्क में अपना कल्चर भी फैलाए। ख़ैर, तो हमारा फ़रीज़ा क्या है! हमारा फ़रीज़ा यह है कि वह नया खेल जिसे सामने वाले पक्ष ने वजूद दिया -जैसे फ़ुटबॉल, वॉलीबॉल और बाक़ी दूसरे खेल, टीम की शक्ल में खेले जाने वाले खेल- उन्हें सीखें, आगे बढ़ें, पेशेवर बनें लेकिन उनके कल्चर का असर न लें, इसे पश्चिमी कल्चर के लिए पुल न बनने दें। अपने कल्चर को उन पर हावी करें। यह, खेल के संबंध में मूल बात है जिस पर हमें ज़रूर ध्यान देना चाहिए।

बहरहाल, हम आप सबके लिए दुआ करते हैं। इस प्यारे जवान ने कहा हमारे लिए दुआ कीजिए। जी हाँ, मैं ज़रूर आपके लिए दुआ करुंगा, आपकी कामयाबी के लिए, आपकी भलाई के लिए, आपके अच्छे अंजाम के लिए अल्लाह से दुआ करुंगा। उन लोगों के लिए भी जिन्होंने इस मैदान में कोशिश की -महिला ख़िलाड़ियों, जवान ख़िलाड़ियों के लिए- और खेल के मैदान में रूहानियत का परिचय दिया, ईरानी व इस्लामी पहचान को पेश किया, दिल से उनका शुक्रिया अदा करता हूं और सभी की कामयाबी के लिए अल्लाह से दुआ करता हूं। इंशाअल्लाह, शहीद खिलाड़ियों की पाकीज़ा रूह और सभी शहीदों की रूहें हमसे राज़ी रहें और अल्लाह हमें उनमें शामिल करे।  

सलाम और अल्लाह की रहमत और बर्कत हो आप सब पर

 (1) इस मुलाक़ात के आरंभ में स्पोर्ट्स और जवानों के मामलों के मंत्री सैयद हमीद सज्जादी, स्पोर्ट्स फ़ेडरेशन के प्रमुख महदी मीर जलीली और वेट लिफ़्टिंग के चैम्पियन अली दाऊदी ने रिपोर्टें पेश कीं।

(2) फ़िल्म “रेड रेक्टैंगल” के डायरेक्टर हसन सैदख़ानी और हुसैन सैदख़ानी और प्रोड्यूसर सैयद अली रज़ा सज्जादपूर हैं। ये फ़िल्म पाकीज़ा डिफ़ेंस के दौरान ईलाम के चेवार इलाक़े के लोगों की बहादुरी और इस इलाक़े के फ़ुटबाल के मैदान पर बमबारी की सच्ची घटना पर बनी है।

(3) सूरए बक़रह, आयत 154

(4) सूरए आले इमरान, आयत 169,

(5) सूरए आले इमरान, आयत 170,

(6) 24/02/2022 से शुरू हुई रूस-युक्रेन के बीच जंग अब तक जारी है

(7) अंतर्राष्ट्रीय हल्क़ों में पश्चिमी ताक़तों की पैठ की वजह से रूस और बेलारूस के सभी खिलाड़ियों को जिन्होंने युक्रेन के ख़िलाफ़ रूस का साथ दिया, खेल के सभी अंतर्राष्ट्रीय मुक़ाबलों में भाग लेने से रोक दिया गया।