बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

अरबी ख़ुतबे का अनुवादः और सारी तारीफ़ें कायनात के परवरदिगार के लिए हैं, दुरूद व सलाम हो हमारे सरदार अबुल क़ासिम मुस्तफ़ा मोहम्मद और उनकी पाकीज़ा नस्ल ख़ास तौर पर ज़मीन पर उसकी आख़िरी हुज्जत इमाम महदी अलैहिस्सलाम पर।

मुझे बड़ी ख़ुशी है और मैं अल्लाह का शुक्र अदा करता हूँ कि लंबी मुद्दत के बाद इस साल इस दिन आप प्यारे जवानों, मिलिट्री कैडेट्स और फ़ौजी रैंक हासिल करने वाले अफ़सरों से रूबरू मुलाक़ात का एक बार फिर मौक़ा मिला। कई हज़ार जवानों का आर्म्ड फ़ोर्सेज़ में शामिल होना ख़ुशी की ख़बर है, एक ख़ुशख़बरी है, जो हर साल दोहराई जाती है। चाहे वे कैडेट्स हों जो मिलिट्री एकेडमियों में शिक्षा पूरी करने के बाद फ़ौजी अफ़सर की रैंक हासिल करके फ़ोर्सेज़ में शामिल हो रहे हैं और काम शुरू करने जा रहे हैं, चाहे वे लोग हों जो मिलिट्री एकेडमियों में दाख़िल होने जा रहे हैं और एपलेट (फ़ौजी बैज) ले रहे हैं, तालीम शुरू करने जार रहे हैं, ये सभी लोग अलग अलग अंदाज़ से आर्म्ड फ़ोर्सेज़ में नया जज़्बा पैदा करते हैं। जवानों का यह दाख़िला, नवीनीकरण और मज़बूती का पैग़ाम लिए हुए है। जवान जहाँ भी जाते हैं, जिस डिपार्टमेंट में, जिस संगठन में जाते हैं, हक़ीक़त में वह अपने साथ उस मरकज़ इनोवेशन और मज़बूती का पैग़ाम लिए होते हैं। सभी मैदानों में जवानों की मौजूदगी, उम्मीद बढ़ाने वाली है। यानी साइंस, इकानोमी, पालिटिक्स, मैनेजमेंट, मिलिट्री सहित दूसरे मैदानों में जहाँ भी जवान पहुंचते हैं, अपने साथ उम्मीद और इनोवेशन की ख़ुशख़बरी लेकर आते हैं।

इस वक़्त प्रोपैगन्डा करने और गुमराह करने वाला धड़ा मौजूद है जो इस हक़ीक़त के बिल्कुल विपरीत प्रोपैगंडा करना चाहता है, प्रोपैगंडा करने वाले इस धड़े की कोशिश यह है कि लोगों पर यह ज़ाहिर करे कि ईरानी जवान वैल्यूज़ और मूल्यों से दूर हो चुका हैं, भविष्य की तरफ़ से मायूस है और उसमें ज़िम्मेदारी का एहसास नहीं है, प्रोपैगंडा करने वाला यह धड़ा इन बातों को फैलाने की पूरी ताक़त से कोशिश कर रहा है, यह हक़ीक़त के ख़िलाफ़ है, हमारे मुल्क में मौजूद हक़ीक़त के पूरी तरह विपरीत है। हमारी जवान नस्ल आज तक सभी मैदानों में शानदार रोल अदा कर रही है, इंशाअल्लाह आगे भी ऐसा ही रहेगा। चाहे मुल्क के डिफ़ेंस का मैदान हो, चाहे सेक्युरिटी की हिफ़ाज़त हो, चाहे पूरे इलाक़े में रेज़िस्टेंस फ़्रंट की मदद हो –रौज़ों की हिफ़ाज़त का पाकीज़ा मिशन हो- चाहे समाज सेवा हो, चाहे साइंसी तरक़्क़ी हो, आप देखते हैं कि हर मैदान में साइंसी तरक़्क़ी जवानों के कंधे परे है, वहीं हैं जो इस मिशन को आगे बढ़ाने वाले हैं, चाहे दीनी प्रोग्राम हों, यही अरबईन मार्च, दसियों लाख जवान जिन्होंने ख़ुद मुल्क में, अनेक शहरों में अरबईन के नाम पर, रूहानियत और बशारत की उस मंज़िल से पीछे रह जाने वालों की हैसियत से पैदल सफ़र किया, चाहे पैदावार और इन्वेन्शन का मैदान हो, जिसकी ख़बरे आप टीवी पर देखते रहते हैं, हर दिन मुल्क में पैदावार के किसी न किसी क्षेत्र में, मुल्क के उद्योग में हमारे नौजवान कोई न कोई नया काम कर रहे हैं, चाहे पैनडेमिक से मुक़ाबला हो, चाहे अल्लाह पर ईमान से प्रेरित मुहिम हो, चाहे कल्चरल मैदान की जिद्दोजेहद हो, चाहे बाढ़ और भूकंप वग़ैरह जैसी प्राकृतिक आपदा में मदद हो, जहाँ कहीं भी आप देखेंगे, जवान भरपूर अंदाज़ में सरगर्म नज़र आएंगे। यह जवान मायूस नहीं हो सकता, यह जवान वैल्यूज़ से दूर नहीं हो सकता, यह जवान मोर्चे के बीच में खड़ा न थकने वाला एक सिपाही है, इन सभी मैदानों में इंक़ेलाबी और मोमिन जवान आगे आगे रहे हैं, हमारे जवान ऐसे हैं।

आपके रोल को, जो इमाम हसन मुज्तबा कैडेट कॉलेज में इकट्ठा हुए हैं और दूसरे कैडेट कालेजों में यह बातें सुन रहे हैं, अगर हम इस नज़र से देखें तो आर्म्ड फ़ोर्सेज़ में आपका एडमिशन और आपकी मौजूदगी, एक संपत्ति है, आपकी मौजूदगी एक बड़ी दौलत है। अलबत्ता सीनियर फ़ौजियों और कमांडरों के तजुर्बे को साथ रखना ज़रूरी है। आर्म्ड फ़ोर्सेज़ को मज़बूत बनाना, मुल्क को ताक़तवर बनाना है। मुल्क को ताक़तवर बनाने में आर्म्ड फ़ोर्सेज़ मज़बूत स्तंभ हैं। अलबत्ता मुल्क को ताक़तवर बनाना सिर्फ़ आर्म्ड फ़ोर्सेज़ तक सीमित नहीं है, दूसरे मज़बूत स्तंभ भी हैं, साइंसी तरक़्क़ी, मुल्क की तरक़्क़ी की बुनियाद है, लोगों में ईमान होना, मन में ईमान के मज़बूत होने से क़ौमी सतह पर मज़बूती आती है, अवाम के ज़रिए बनी हुकूमत और अवाम के सहारे पर निर्भर हुकूमत किसी भी मुल्क के लिए फ़ख़्र की बात है। यह सारी चीज़ें हैं लेकिन आर्म्ड फ़ोर्सेज़ भी, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की मौजूदगी भी, फ़ौजी ताक़त भी मुल्क की बुनियादों को मज़बूत करने का अहम ज़रिया है। ये अनेक तत्व मुल्क को ख़तरों और दुश्मनियों से महफ़ूज़ रख सकते हैं, इसकी हिफ़ाज़त कर सकते हैं। अलबत्ता यह बात सभी मुल्कों के लिए है, हमारे मुल्क से मख़सूस नहीं है। सभी मुल्कों की इन चीज़ों की ज़रूरत है, लेकिन हमारे जैसे मुल्क के लिए, जिसे अमरीका वग़ैरह जैसे सरकश और शैतनत करने वाले दुश्मनों का सामना है, इसकी अहमियत बढ़ जाती है। इसलिए डिफ़ेंस पावर मज़बूत होना ज़रूरी है।   

मैंने यह बात हमेशा कही है, एक बार फिर दोहरा रहा हूं कि डिफ़ेंस पावर बढ़नी चाहिए। इस ज़िम्मेदारी का कुछ हिस्सा आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के बाहर से अंजाम पाना चाहिए और कुछ हिस्सा आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के भीतर से, मैं इसी दूसरे हिस्से पर चर्चा करुंगा। आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के ज़िम्मेदारों को नए और अप-डेटेड तरीक़े अख़्तियार करके आर्म्ड फ़ोर्सेज़ को ज़्यादा से ज़्यादा मज़बूत बनाना चाहिए, जिसमें एजुकेशन व ट्रेनिंग और फ़ौजी साज़ो-सामान को स्मार्ट बनाना है। अल्लाह की कृपा से हमारी आर्म्ड फ़ोर्सेज़ में यह काम शुरू हो चुका है, लेकिन काम का मैदान अभी बहुत बड़ा है। आज फ़ौजी साज़ो-सामान, हथियार यहाँ तक कि गोला-बारूद सहित आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के सभी मामलों को स्मार्ट सिस्टम से लैस करना, अहम मामलों में से एक है। या आर्म्ड फ़ोर्सेज़ में विज्ञान व रिसर्च के लेहाज़ से तरक़्क़ी, इससे आर्म्ड फ़ोर्सेज़ मज़बूत होंगी, या हायब्रिड वॉर की पेचीदा चालों की मंसूबाबंदी। आप जानते हैं कि आज दुनिया की जंगें, सिर्फ़ एक पहूल की नहीं होतीं, हार्ड वॉर, सॉफ़्ट वॉर, वैचारिक जंग, सांस्कृतिक जंग, कई प्रकार के हथियारों से जंग और इसी तरह की दूसरी जंगें एक दूसरे के साथ मिल कर किसी क़ौम या मुल्क पर हमले का ज़रिया बनती हैं। जंग के मंसूबों में इंशाअल्लाह ये सभी बातें नए तरीक़ों और अप-टू-डेट शैलियों के साथ शामिल होनी चाहिए।

आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की अस्ली ज़िम्मेदारी क्या है? नेश्नल सेक्युरिटी, यह वह चीज़ है जिस पर आप जवानों को जिन्होंने इस राह में क़दम रखा है, फ़ख़्र करना चाहिए, नाज़ करना चाहिए, गर्व करना चाहिए। आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की ज़िम्मेदारी, मुल्क के अंदर पब्लिक सेक्युरिटी की ज़िम्मेदारी है। सेक्युरिटी का मतलब क्या है? सेक्युरिटी किसी भी समाज के जीवन के सभी पहलुओं की बुनियाद है। एक आम बुनियादी ढांचा है, व्यक्तिगत मामलों से लेकर सामाजिक मामलों, पब्लिक मामलों और विदेशी मामलों तक, इन सब मैदानों में सेक्युरिटी की बुनियादी हैसियत है। निजी मामलों में, सुरक्षा का मतलब यह है कि आप रात को अपने घर में सुकून से सो सकें, सुबह पूरे सुकून के साथ बेफ़िक्र होकर अपने बच्चे को स्कूल भेज सकें, अपने काम पर जा सकें, बिना किसी फ़िक्र के जुमे की नमाज़ में जा सकें। देखिए उन मुल्कों पर नज़र डालिए जहां यह सुकून और राहत नहीं है, इनमें से किसी भी मामले में नहीं है, न रात को सुकून से सो सकते हैं, न सुबह को काम पर जा सकते हैं, न बेफ़िक्र होकर खेल देखने जा सकते हैं, न जुमे की नमाज़ में जा सकते हैं, न सफ़र पर जा सकते हैं। ये बातें छोटे मुल्कों तक सीमित नहीं हैं, बड़े मुल्कों में, सबसे बढ़ कर अमरीका में, रेस्तोरां महफ़ूज़ नहीं है, यूनिवर्सिटी महफ़ूज़ नहीं है, बच्चों के स्कूल महफ़ूज़ नहीं हैं, दुकान महफ़ूज़ नहीं है, निजी मामलों में सुरक्षा का मतलब यह होता है। यानी  आप ख़ुद, आपके बच्चे और आपके घर वाले, सुकून के एहसास के साथ ज़िन्दगी गुज़ार सकें, आपका काम, आपकी नौकरी, आपका सफ़र और आपकी तफ़रीह महफ़ूज़ माहौल में हो।

पब्लिक या सामाजिक मामलों में सेक्युरिटी का मतलब यह है कि यूनिवर्सिटी या दीनी तालीमी मरकज़ में या रिसर्च सेन्टर या फिर इंस्टीट्यूट में आप बैठ कर ग़ौर कर सकें, काम कर सकें, रिसर्च कर सकें, अध्ययन कर सकें, ये सुरक्षा के बिना नहीं हो सकता। अगर सुरक्षा न होती तो यह तरक़्क़ी हासिल नहीं हो सकती थी, जहाँ भी तरक़्क़ी हुयी  सुरक्षा की बर्कत से हुयी है, सुरक्षा के बिना काम कठिन हो जाता है, सख़्त हो जाता है। आर्थिक पूंजिनिवेश तक में, अगर आप चाहते हैं कि मुल्क की आर्थिक तरक़्क़ी के लिए इनवेस्टमेंट करें तो यह बिना सुरक्षा के मुमकिन नहीं है, सुरक्षा के बिना ट्रांज़िट मुमकिन नहीं है, सुरक्षा के बिना पैदावार नहीं हो सकती, सुरक्षा इन सभी चीज़ों के लिए बुनियाद की हैसियत रखती है।

आर्म्ड फ़ोर्सेज़ मुल्क और समाज के आम लोगों की इस बड़ी और हमेशा रहने वाली ज़रूरत को पूरा करने वाली हैं, यह कम गर्व की बात नहीं है। फ़ौज अलग अंदाज़ से, आईआरजीसी किसी दूसरी तरह से, पुलिस फ़ोर्स एक और तरह से, इनमें से हर एक किसी न किसी तरह से सुरक्षा मुहैया करने वाला है। जो कोई पुलिस थाने पर हमला करता है, वह दरअस्ल मुल्क की सेक्युरिटी को निशाना बनाता है, वह जो अपने बयान में, स्पीच में, बातचीत में फ़ौज या आईआरजीसी को बुरा भला कहता है, वह मुल्क की सुरक्षा का अपमान करता है। आर्म्ड फ़ोर्सेज़ को कमज़ोर बनाना, मुल्क की सुरक्षा को कमज़ोर बनाना है। पुलिस को कमज़ोर बनाने का मतलब है मुजरिमों को हौसला देना। पुलिस की ज़िम्मेदारी है कि मुजरिम के ख़िलाफ़ कार्रवाई करे, लोगों की सुरक्षा को यक़ीनी बनाए, जो शख़्स पुलिस पर हमला करता है, अस्ल में वह लोगों को मुजरिमों के सामने, ग़ुन्डों व बदमाशों के सामने, चोरों के सामने, मुंहज़ोरी करने वालों के सामने बेबस बना देना चाहता है। हमारे मुल्क का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट यह है कि हमारी सुरक्षा पूरी तरह से अपने बलबूते पर हासिल हुयी है। बड़ा फ़र्क़ है उस मुल्क और उस क़ौम में जो अपने बलबूते पर, अपनी फ़ोर्सेज़ के ज़रिए, अपनी ताक़त से, अपनी सोच से और नज़रिये से अपने लिए सुरक्षा पैदा करे और उस मुल्क और क़ौम में जिसे बाहर से आकर कोई कहे कि मैं तुम्हें सुरक्षा मुहैया करुंगा, तुम्हारी रक्षा करुंगा, उस शख़्स की तरह जो अपनी दूध देने वाली गाय की रक्षा करता है, इन दोनों में बहुत फ़र्क़ है। हमारी सुरक्षा, मुल्क के अंदर से हासिल होने वाली सुरक्षा है। हम अपनी सुरक्षा के लिए किसी और के मोहताज नहीं हैं। हमने अल्लाह की दी हुयी ताक़त, अल्लाह की कृपा, अल्लाह की ओर से मिले मौक़े, इमाम महदी (अल्लाह उन्हें जल्द ज़ाहिर करे) की मदद, क़ौम के सहारे, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के ज़िम्मेदारों की दृढ़ता से यह सुरक्षा हासिल की है और इसे क़ायम रखा है। जो बाहरी फ़ौज के सहारे पर है, उसे वही विदेशी फ़ौज कठिन हालात में अकेला छोड़ देगी, वह न तो उसकी रक्षा कर सकती है और न ही करना चाहती है। ख़ैर, यह कुछ जुमले आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के बारे में थे, इन्हें याद रखिएगा, गर्व कीजिए, इसी के नक़्शे क़दम पर चलिए, अपने काम को अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ किया जाने वाला काम समझिए और अल्लाह के लिए इस काम को अंजाम दीजिए।

अब कुछ जुमले हालिया घटनाओं के बारे में। पहली बात जो मैं कहना चाहता हूं वह यह है कि हालिया कुछ दिनों की घटनाओं में सबसे ज़्यादा ज़ुल्म मुल्क की पुलिस फ़ोर्स पर हुआ, स्वयंसेवी बल पर ज़ुल्म हुआ, ईरानी क़ौम पर ज़ुल्म हुआ। ज़ुल्म किया गया। अलबत्ता क़ौम इस वाक़ए में भी, पिछली घटनाओं की तरह मज़बूती से सामने आयी, पूरी  मज़बूती के साथ, हमेशा की तरह, अतीत की तरह। आगे भी ऐसा होगा। भविष्य में भी, जहाँ भी दुश्मन रुकावट डालना चाहेंगे तो जब सबसे ज़्यादा मज़बूती से सीना तान कर जो सामने आएगा और सबसे ज़्यादा प्रभावी होगा, वह ईरानी की बहादुर व मोमिन क़ौम है, वह मैदान में आएगी और मैदान में आ गयी है। जी हाँ! ईरानी क़ौम मज़लूम है लेकिन ताक़तवर है अमीरुल मोमेनीन की तरह, मुत्तक़ी लोगों के सरदार की तरह, अपने आक़ा अली अलैहिस्सलाम की तरह जो सबसे ज़्यादा ताक़तवर भी थे और सबसे ज़्यादा मज़लूम भी थे।

यह जो वाक़ेआ हुआ, इसमें एक जवान लड़की की मौत हो गयी, एक कड़वी घटना थी, हमें भी सद्मा हुआ, लेकिन इस घटना पर आने वाला रिएक्शन, किसी भी जाँच के बिना, किसी भी ठोस सुबूत के बिना, यह नहीं होना चाहिए था कि कुछ लोग सड़कों पर अशांति फैला दें, लोगों के लिए अशांति पैदा कर दें, सुरक्षा को ख़त्म कर दें, क़ुरआन को आग लगा दें, हेजाब करने वाली औरत के सिर से चादर छीन लें, मस्जिद और इमामबाड़े में आग लगा दें, बैंक में आग लगा दें, लोगों की गाड़ियों को जला दें। किसी वाक़ए पर यह रिएक्शन, जो अफ़सोसनाक भी है, इस बात का सबब नहीं बन जाता कि इस तरह की हरकतें की जाएं। यह नॉर्मल बात नहीं थी, स्वाभाविक नहीं थी, ये दंगे मंसूबे के तहत कराए गए। अगर उस जवान लड़की का मसला पेश न आता तब भी वे लोग कोई न कोई बहाना निकाल लेते ताकि इस साल मेहर महीने के आग़ाज़ (सितंबर महीने के अंतिम दिनों) में उस वजह के चलते जो मैं अभी बयान करुंगा, मुल्क में अशांति व दंगा फैला सकें। किन लोगों ने ये साज़िश तैयार की है? मैं साफ़ लफ़्ज़ों में खुलकर कहता हूं कि ये दंगे  और अशांति अमरीका और क़ाबिज़ व जाली ज़ायोनी शासन और उसके किराए के टट्टुओं की साज़िश थी, उन्होंने बैठ कर यह साज़िश तैयार की है। जबकि उनके किराए के टट्टुओं और विदेश में मौजूद कुछ ग़द्दार ईरानियों ने उनकी मदद की।

जैसे ही हम कहते हैं कि ʺफ़ुलां घटना विदेशी दुश्मन की कारस्तानी है।ʺ कुछ लोगों को जैसे इस ʺविदेशी दुश्मनʺ लफ़्ज़् से चिढ़ है, जैसे ही हम कहते हैः ʺये विदेशियों का काम था, बाहरी दुश्मन की हरकत थीʺ ये लोग फ़ौरन अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी और ज़ायोनियों की ढाल बन कर खड़े हो जाते हैं! तरह तरह की समीक्षाएं, मुग़ालते में डालने वाली लफ़्फ़ाज़ी शुरू कर देते हैं कि किसी तरह यह साबित कर दें कि नहीं! इस मामले में विदेशियों का हाथ नहीं था। दुनिया में बहुत सी जगह हंगामे और दंगे होते हैं। यूरोप में, फ़्रांस में, थोड़े थोड़े वक़्त से पेरिस की सड़कों पर दंगे होते हैं, मैं पूछता हूँ कि क्या कभी ऐसा हुआ है कि अमरीकी राष्ट्रपति और अमरीकी हाउस आफ़ रिप्रज़ेंटेटिव्ज़ ने बलवाइयों का सपोर्ट किया हो? क्या कभी ऐसा हुआ है कि वह पैग़ाम दें कि हम आपके साथ खड़े हैं? क्या कभी ऐसा हुआ है कि अमरीकी कार्पोरेट्स और अमरीकी हुकूमत से जुड़े मास मीडिया और अफ़सोस कि सऊदी सरकार समेत इलाक़े में उनकी कुछ पिट्ठू सरकारों ने इन मुल्कों में हंगामा करने वालों का साथ दिया हो? क्या कभी ऐसा हुआ है? क्या कभी ऐसा हुआ है कि उन्होंने यह एलान किया हो कि हम फ़ुलां हार्डवेयर या इंटरनेट सॉफ़्टवेयर दंगाइयों को देंगे कि ताकि वे आराम से एक दूसरे से संपर्क क़ायम करें और अपना काम कर सकें?! क्या ऐसा दुनिया की किसी जगह पर और किसी भी मुल्क में हुआ है? लेकिन यहाँ हुआ है, एक बार नहीं, दो बार नहीं, बार बार हुआ है। तो किस तरह आप विदेशी हाथ नहीं देख पा रहे हैं? कैसे कोई समझदार इंसान यह नहीं समझ पा रहा है कि इन घटनाओं के पीछे कुछ दूसरे हाथ हैं, कुछ दूसरा खेल चल रहा है?!

यक़ीनन वे झूठा अफ़सोस ज़ाहिर कर रहे हैं कि एक इंसान दुनिया से चला गया, वे झूठ बोल रहे हैं। वे किसी भी तरह दुखी नहीं हैं, बल्कि ख़ुश हैं। इसलिए कि उन्हें ख़तरनाक खेल खेलने के लिए एक बहाना मिल गया, वे झूठ बोलते हैं। यहाँ पर सरकार, न्यायपालिका और संसद के प्रमुखों ने दुख का इज़हार किया, लोगों से हमदर्दी दिखाई, उसके बाद कुछ ख़ास तत्वों ने जिनकी तरफ़ मैं इशारा करुंगा, कुछ दूसरे लोगों को क़त्ल कर दिया, बग़ैर किसी जुर्म के। न्यायपालिका ने वादा किया कि वह मामले की तह तक जाएगी, तहक़ीक़ात का मतलब यही तो है, यानी वो काम को बीच में नहीं छोड़ेंगे, आख़िर तक जाएंगे ताकि नतीजा सामने आ जाए, पता चले कि कोई क़ुसूरवार है या नहीं है और क़ुसूरवार कौन है? आप किस तरह एक पूरे डिपार्टमेंट पर, बहुत ज़्यादा सेवाएं देने वाले एक डिपार्टमेंट पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं, उसका अपमान करते हैं, सिर्फ़ इस संभावना की वजह से कि किसी उसके एक आदमी या दो लोगों से कोई ग़लती हो गयी होगी! जबकि वह भी यक़ीनी नहीं है, उसकी जाँच अभी नहीं हुयी है? इस बात के पीछे कोई तर्क नहीं है, कोई ठोस वजह नहीं है। इसकी, विदेशी ख़ुफ़िया एजेंसियों और घटिया दुश्मन नेताओं की चाल के अलावा और कोई वजह नहीं है।

अब सवाल यह है कि विदेशी सरकारों की इसके पीछे क्या मंशा है? मुझे लगता है कि वह महसूस कर रही हैं कि ईरान बड़ी ताक़त बनने की ओर बढ़ रहा है और वे इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते, वे महसूस कर रहे हैं, देख रहे हैं। वे देख रहे हैं कि अल्लाह की मेहरबानी से कुछ पुरानी मुश्किलें हल होती जा रही हैं। अलबत्ता मुल्क में अभी बहुत सी मुश्किलें हैं, कुछ मुश्किलों को तो बरसों गुज़र चुके हैं लेकिन इन मुश्किलों को दूर करने, इन गिरहों को खोलने के लिए संजीदगी से काम हो रहा है। वे लोग मुल्क में आगे बढ़ते हुए क़दमों को देख रहे हैं जिनमें तेज़ी आ गयी है, यह एक सच्चाई है। सभी मैदानों में तेज़ी से आगे बढ़ते क़दमों को देखा जा सकता है, महसूस किया जा सकता है, वे लोग भी महसूस कर रहे हैं। वे नहीं चाहते कि ऐसा हो। वे देख रहे हैं कि बंद पड़ा कारख़ाना चलने लगा है, नॉलेज बेस्ड कंपनियां सक्रिय हो गयी हैं, वे देख रहे हैं कि कुछ मैदानों में बड़े पैमाने पर डेली प्रोडक्शन सामने आने लगा है, वे देख रहे हैं कि कुछ ऐसे काम हो रहे हैं जो पाबंदी के हथियार को-इस वक़्त दुश्मन के पास सिर्फ़ एक हथियार पाबंदियां हैं- नाकाम बना सकते हैं, वे इस चीज़ को देख रहे हैं। इन बढ़ते क़दमों को रोकने के लिए उन्होंने बैठकर साज़िश तैयार की है, यूनिवर्सिटी के लिए साज़िश तैयार की है, सड़क के लिए साज़िश तैयार की है, दुश्मन ने साज़िश तैयार की है कि यूनिवर्सिटी बंद हो जाए, जवान नस्ल (उपद्रव में) लग जाए। देश के अधिकारियों के सामने नई मुश्किलें पैदा हो जाएं, मुल्क के नार्थ वेस्ट में, मुल्क के साउथ ईस्ट में कुछ मुश्किलें पैदा हो जाएं, ये सब उलझनें पैदा करने वाली बाते हैं, ये हरकतें इसलिए की जा रही हैं ताकि वे मुल्क की तरक़्क़ी को रोक सकें। अलबत्ता उन्हें ग़लतफ़हमी है, वे नार्थ वेस्ट के संबंध में भी ग़लतफ़हमी का शिकार है और साउथ ईस्ट के बारे में भी ग़लत अंदाज़े लगा रहे हैं। मैं बलोच क़ौम के बीच रह चुका हूं, वे लोग दिल की गहराई से इस्लामी इंक़ेलाब और इस्लामी रिपब्लिक सिस्टम के वफ़ादार हैं। कुर्द क़ौम ईरान की तरक़्क़ी करने वाली क़ौमों में से एक है, अपने मुल्क से प्यार करने वाली, अपने इस्लाम पर अक़ीदा रखने वाली और अपने इस्लामी रिपब्लिक सिस्टम से प्यार करने वाली क़ौम है। दुश्मनों की साज़िश नाकाम रहेगी, लेकिन वे अपना काम करते रहेंगे, ज़हर घोलने की कोशिश करते रहेंगे।

इन हरकतों से हमारे दुश्मन का अस्ली चेहरा सामने आता है। वह दुश्मन जो अपने कूटनैतिक बयान में कहता है कि हम ईरान पर पहले का इरादा नहीं रखते, हम इस्लामी रिपब्लिक सिस्टम को बदलने का इरादा नहीं रखते, हमारी आप से कोई दुश्मनी नहीं है और हम ईरानी क़ौम के समर्थक हैं, लेकिन उसके मन में वही चीज़ है जिसे आप देख रहे हैं, उसके मन में साज़िश है, उसके मन में उपद्रव और दंगे करवाना है, उसके मन में मुल्क की सुरक्षा को ख़त्म करना है, उसके मन में लोगों को बहकाना है जो छोटी सी बात पर उत्तेजित होकर सड़कों पर आ जाएं, उसके मन में यह है।

वे सिर्फ़ इस्लामी जुमहूरिया के मुख़ालिफ़ नहीं, वे ख़ुद ईरान के ख़िलाफ़ हैं। अमरीका ताक़तवर ईरान के ख़िलाफ़ है, स्वाधीन ईरान के ख़िलाफ़ है। उनकी सारी बहस और सारा झगड़ा इस्लामी रिपब्लिक नहीं है, बेशक वे इस्लामी जुमहूरी सिस्टम के तो कट्टर दुश्मन हैं, इस बात में कोई शक नहीं है, लेकिन इस्लामी जुमहूरिया के साथ ही वे उस ईरान के भी ख़िलाफ़ हैं जो मज़बूत व ताक़तवर हो, उस ईरान के ख़िलाफ़ हैं जो स्वाधीन हो। वह पहलवी दौर के ईरान को पसंद करते हैः ऐसी दूध देने वाली गाय जो उनके हुक्म के आगे सिर झुकाए और मुल्क का शासक किसी फ़ैसले के लिए अंग्रेज़ राजदूत या अमरीकी राजदूत बुलाने और उससे हुक्म लेने पर मजबूर हो! इस अपमान को ईरानी क़ौम कैसे बर्दाश्त कर सकती है? वे यह चाहते हैं, वे ईरान के ख़िलाफ़ हैं।

ख़ैर तो हमने अर्ज़ किया कि मुंहज़ोरी करने वाले, ये लोग हैं, बटन उनके हाथ में है जो पर्दे के पीछे हैं। इसलिए झगड़ा हेजाब या अधूरे हेजाब को लेकर नहीं है, झगड़ा एक जवान लड़की की मौत का नहीं है, झगड़ा यह है ही नहीं। ऐसी बहुत सी औरतें, जो मुकम्मल हेजाब भी नहीं करतीं, इस्लामी जुमहूरिया की कट्टर समर्थक हैं, आप देखते हैं कि वे दीनी प्रोग्रामों में, इंक़ेलाब के कार्यक्रमों में शिरकत करती हैं, बहस उनकी है ही नहीं। अस्ल मामला स्वाधीनता, रेज़िस्टेंस, मज़बूती और ताक़त का है, अस्ल बहस इस पर है।

मैं एक दो प्वाइंट पेश करके अपनी बात ख़त्म करूँगा। एक प्वाइंट यह है कि जिन लोगों ने सड़कों पर हंगामे और तोड़फोड़ की और कर रहे हैं, उन सबको एक क़तार में नहीं रखा जा सकता, उन सबके बारे में एक जैसा हुक्म नहीं लगाया जा सकता। उनमें कुछ वे बच्चे और नौजवान हैं जिन्हें मिसाल के तौर पर किसी इंटरनेट प्रोग्राम से पैदा होने वाली उत्तेजना सड़क पर ले आती है, जोशीले हैं, जज़्बाती हैं, जज़्बात में आकर सड़क पर आ जाते हैं। अलबत्ता ये सब के सब कुल मिलाकर भी ईरानी क़ौम और इस्लामी ईरान के मोमिन व गैरतमंद जवानों की तुलना में बहुत ही कम हैं, लेकिन इतने से लोग भी जो हैं, उनमें बहुत से ऐसे हैं जिन्हें जोश और जज़्बात सड़कों पर ले आते हैं, उनके मसले को एक चेतावनी के ज़रिए हल किया जा सकता है, यानी उन्हें समझाया जा सकता है कि वे ग़लती कर रहे हैं और ग़लतफ़हमी का शिकार हैं। लेकिन उनमें से कुछ ऐसे नहीं हैं, उनमें से कुछ इस्लामी जुमहूरिया से चोट खाए हुए तत्वों के रिश्तेदार हैः एमकेओ, अलगाववादी, मनहूस पहलवी शासन के बचे खुचे तत्व और घिनौने व धुतकारे गए सावाक (शाह की ख़ुफ़िया एजेंसी) के एजेंटों के रिश्तेदार हैं। इंटेलिजेंस मंत्रालय के हालिया बयान से इनमें से कुछ बातें बड़ी हद तक स्पष्ट हो गयी हैं। (2) अलबत्ता और भी बहुत सी बाते हैं। न्यायपालिका को इनकी तोड़फोड़ और सड़कों पर सुरक्षा व शांति को नुक़सान पहुंचाने वाली उनकी हरकतों की सतह के मुताबिक़ उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाना चाहिए और उनकी सज़ा तय करनी चाहिए।

एक दूसरा प्वाइंट यह है कि दंगों के आग़ाज़ में ही कुछ अहम लोगों ने, हमदर्दी के तहत -उन्हें तकलीफ़ हुयी होगी- बिना किसी जाँच के बयान दिया, तहरीर जारी की, बात की, राय ज़ाहिर की -अलबत्ता बिना जाँच किए हुए- इनमें से कुछ ने पुलिस और स्वयंसेवी बल पर इल्ज़ाम लगाया, कुछ ने पूरे सिस्टम को ही कटहरे में खड़ा कर दिया, हर किसी ने अलग अलग तरीक़े से कुछ न कुछ किया। ख़ैर इसका हिसाब अलग है, लेकिन जब उन्होंने यह देख लिया कि मामला क्या है, जब ये समझ गए कि दुश्मन की साज़िश के साथ साथ उनकी बातों के नतीजे में सड़क पर क्या हो रहा है, तो उन्हें अपनी इस हरकत की भरपाई करनी चाहिए, उन्हें सही स्टैंड लेना चाहिए, उन्हें खुल कर साफ़ लफ़्ज़ों में एलान करना चाहिए कि जो कुछ हुआ है, वे उसके ख़िलाफ़ हैं, उन्हें अवाम को यह यक़ीन दिलाना चाहिए कि जो कुछ हुआ है, वे उसके ख़िलाफ़ हैं, उन्हें लोगों को यह यक़ीन दिलाना चाहिए कि वे बाहरी दुश्मन की साज़िश के ख़िलाफ़ हैं। मामले की हक़ीक़त ज़ाहिर हो गयी है। जब आप देखते हैं कि अमरीकी लीडर इन मामलों को बर्लिन की दीवार क़रार दे रहे हैं तो आपको समझ लेना चाहिए कि मक़सद क्या है? आपको समझ जाना चाहिए कि मामला एक नौजवान लड़की की मौत पर अफ़सोस ज़ाहिर करने का नहीं है, यह आपको समझ जाना चाहिए था, अगर नहीं समझे तो समझ जाइये और अगर समझ गए हैं तो अपने स्टैंड का एलान कीजिए। यह दूसरा प्वाइंट था।

स्पोर्ट्स और आर्ट के मैदान के कुछ लोगों ने भी कुछ बयान दिये हैं, मेरी नज़र में उसकी कोई अहमियत नहीं है, इसे अहमियत देने की ज़रूरत नहीं है। हमारी स्पोर्ट्स कम्युनिटी, एक सही कम्युनिटी है, हमारे आर्टिस्टों की कम्युनिटी भी एक अच्छी कम्युनिटी है। स्पोर्ट्स और आर्ट की कम्युनिटी में मोमिन, मुल्क से प्यार करने वाले और इज़्ज़तदार लोग कम नहीं हैं, बहुत हैं। अगर दो चार लोग कुछ कह देते हैं तो उनकी बात की कोई अहमियत नहीं है। अब रही यह बात कि उनके बयान मुजरेमाना क़दम क़रार पाएंगे या नहीं तो यह चीज़ न्यायपालिका के ज़िम्मे है, लेकिन आम लोगों की निगाह में उसकी कोई अहमियत नहीं है। आर्ट्स और स्पोर्ट्स की हमारी कम्युनिटी, इस तरह की बातों और दुश्मन को ख़ुश करने वाले इस तरह के रवैये से दूषित नहीं होगी।

मेरी आख़िरी बात, पुलिस, स्वयंसेवी बल के शहीदों, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के शहीदों, शांति की रक्षा में मारे गए शहीदों, हालिया शहीदों और सच्चाई की राह के सभी शहीदों को अनगिनत दुरूद व सलाम है।

आप सब पर सलाम और अल्लाह की रहमत व बरकत हो।

(1)     इस प्रोग्राम के आग़ाज़ में जो इमाम हसन मुज्तबा ऑफ़िसर्ज़ ऐन्ड पुलिस ट्रेनिंग अकेडमी में आयोजित हुआ, आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के जनरल स्टाफ़ के चीफ़ ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद बाक़ेरी, ईरानी फ़ौज के कैडेट कालेजों के कमांडर सेकंड एडमिरल आर्या शफ़क़त, इमाम हुसैन कैडेट कॉलेज के कमांडर ब्रिगेडियर नोमान ग़ुलामी और इमाम हसन ऑफ़िसर्ज़ ऐन्ट पुलिस ट्रेनिंग अकैडमी के कमांडर सेकेन्ड ब्रिगेडियर परवीज़ इलाही ने रिपोर्टें पेश कीं।

(2)     इंटेलीजेन्स मंत्रालय के बयान में जो 30-9-2022 को जारी हुआ, मुल्क के कुछ हिस्सों में हालिया दिनों में होने वाले दंगों की तफ़सील बयान की गयी है और बताया गया है कि इन दंगों के दौरान आतंकी संगठन एमकेओ के 49 एजेंटो, कोमोला, डेमोक्रेट पाक और पजाक जैसे आतंकी गुटों के 77 तत्वों, तकफ़ीरी और आतंकवादी गुटों के पाँच तत्वों, बहाई मत के 5 लोगों, मनहूस पहलवी शासन से जुड़े और शाही व्यवस्था की वापसी के इच्छुक 92 लोगों, 9 विदेशियों, विदेशी मीडिया से जुड़े और हिस्टी शीटर 28 गुन्डों और बदमाशों को हिरासत में लिया गया है।